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धरती दस साल पहले ही 1.5 डिग्री ज्यादा गर्म हो जाएगी, जलवायु परिवर्तन पर नई रिपोर्ट ने बजाई खतरे की घंटी

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नई दिल्ली / शौर्यपथ / धरती का तापमान बढ़ने यानी ग्लोबल वार्मिंग का खतरा हमारी आशंकाओं से भी कहीं ज्यादा गहरा है. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन पैनल की ताजा रिपोर्ट ने इस पर मुहर लगा दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर ग्लोबल वार्मिंग के हॉटस्पॉट बन गए हैं, क्योंकि वहां वातावरण को ठंडा रखने के पानी और वनस्पति के स्रोतों की कमी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर समुद्र का जल स्तर 1901 से 2018 के बीच औसतन 0.20 मीटर बढ़ा है.
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल ने अपनी छठवीं आकलन रिपोर्ट सोमवार को जारी की. भारत भी इस पैनल का हिस्सा है. इस अध्ययन के तहत वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में धरती की जलवायु और इकोसिस्टम का आकलन किया. इसमें चौंकाने वाली बात सामने आई कि जलवायु परिवर्तन के जिन खतरों का भविष्य में आने की आशंका थी, वो पहले ही दिखने लगे हैं. जिनकी भरपाई शायद ही संभव हो. जैसे कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर को वापस लाने में अब शायद सैकड़ों या हजारों साल लग जाएंगे.
हालांकि कार्बन डाई आक्साइड या धरती का तापमान बढ़ाने वाली अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी जलवायु परिवर्तन के असर को ज्यादा घातक होने से बचाया जा सकता है. लेकिन सभी देशों को इस पर सहमति दिखानी होगी. इस साल ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों की बैठक होने वाली है, इसमें प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों में भारी कमी लाने का लक्ष्य है.
फिर भी पृथ्वी के वैश्विक औसत तापमान को स्थिर करने में 20 से 30 साल लग जाएंगे. हालांकि हवा की गुणवत्ता में तुरंत सुधार देखने को मिलेगा. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने पैनल की रिपोर्ट को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर अब तक सबसे विस्तृत आकलन करार दिया है.
जानिए रिपोर्ट की 10 खास बातें...
1. धरती तेजी से गर्म हो रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, धरती का तापमान 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. जो पहले लगाए गए अनुमानों से दस साल पहले का वक्त है. यह सबसे बड़ा खतरा है.
2. समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. 1901 से 1971 के बीच इसका औसत 1.3 मिमी प्रति वर्ष रहा. यह वर्ष 2006 से 2018 के बीच बढ़कर 3.7 मिमी प्रति वर्ष हो गया. वर्ष 1901 से 2018 केबीच वैश्विक स्तर पर जलस्तर में 0.15 से 0.25 मीटर की बढ़ोतरी देखी गई.
3. रिपोर्ट के अनुसार, हीटवेव यानी लू जैसे थपेड़ों की घटनाएं और इसका समय पहले से ज्यादा बढ़ गया है. 1950 के बाद से दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में भीषण गर्मी का काल हर साल देखी जा रही हैं. जबकि बेहद ठंड का समय लगातार कम औऱ कमजोर होता जा रहा है.4. मानवीय गतिविधियों के कारण हो रहा जलवायु परिवर्तन ही ग्लोबल वार्मिंग के इन खतरनाक प्रभावों का मुख्य जिम्मेदार है. इस पर तुरंत लगाम न लगाई गई तो दोबारा इसकी क्षतिपूर्ति करना असंभव होगा.
5. शहर ग्लोबल वार्मिंग के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं. पानी औऱ पेड़-पौधों की कमी के कारण यहां से गर्मी का एक जाल (heat trap ) से बन गया है.
6. पहले 10 या 50 साल में होने वाली भीषण गर्मी, भयावह बारिश या सूखे की घटनाएं अब बेहद कम समय में सामने आने लगी हैं. इससे बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान और आर्थिक संकट देखने को मिल रहा है.
7. मौसम में आकस्मिक और असामान्य बदलावों की तीव्रता बढ़ गई है. अब दो या उससे ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप एक साथ भी दिखने लगा है. हीट वेव और सूखे की घटनाएं एक साथ कहर ढा रही हैं.
8. जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों का कहना है कि किसी अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा या ग्लोबल वार्मिंग की घटना की विशिष्ट वजह बताना तो मुश्किल है, लेकिन अब मानव गतिविधियों के असर और तीव्रता का ज्यादा बेहतर तरीके से आकलन किया जाता है, ताकि बेहद गंभीर आपदाओं की संभावनाओं का समय रहते अनुमान लगाया जा सके.
9. रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और जीवनस्तर की गुणवत्ता एक दूसरे से जुड़ी हैं. एक समस्या का समाधान करने से जीवन स्तर में सुधार और आर्थिक तरक्की अपनेआप ज्यादा बेहतर हो जाएगी.
10. ग्लोबल वार्मिंग को इस सदी के अंत तक सीमित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कार्बन उत्सर्जन में भारी और तुरंत कटौती करनी होगी. जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल-डीजल अन्य) के साथ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों पर तुरंत लगाम लगानी होगी.

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