नई दिल्ली /शौर्यपथ /चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न फ्रीज किए जाने के मामले में उद्धव ठाकरे ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने दलील दी है कि आयोग ने बिना किसी सुनवाई के ही यह आदेश पास कर दिया था। ठाकरे ने दावा किया है कि उन्होंने मामले में मौखिक सुनवाई की अपील की थी, इसके बावजूद उनका पक्ष नहीं सुना गया।
याचिका में किया यह दावा
ठाकरे के मुताबिक चुनाव आयोग ने शिवसेना के नाम और चुनाव निशान धनुष-बाण को फ्रीज करने में कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखाई है। उन्होंने कहा कि 1966 में पार्टी की स्थापना के बाद से ही यह हमारा प्रतीक चिह्न है। इससे हमारी पार्टी की पहचान स्थापित होती है। याचिका में उद्धव ठाकरे द्वारा कहा गया है कि यह सिंबल, उनके पिता बाल ठाकरे द्वारा डेवलप और डिजाइन किया गया है। यह भी कहा गया है कि इसका कॉपीराइट भी बाल ठाकरे के पास है।
कहा-शिंदे के दावे जैसा कोई पद ही नहीं
याचिका के मुताबिक एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि उनके पास शिवसेना के मुख्य नेता का पद है। जबकि पार्टी संविधान में संठनात्मक ढांचे में इस तरह का कोई पद ही नहीं बनाया गया है। उद्धव ठाकरे ने दलील दी है कि वह शिवसेना के पक्ष प्रमुख यानी चुने हुए अध्यक्ष हैं। उन्हें पार्टी और उसके प्रतीक के प्रतिनिधित्व से हटाकर शिंदे को देना गलत है। वजह, शिंदे जिस पद का दावा कर रहे हैं शिवसेना का संविधान उसको मान्यता ही नहीं देता। ठाकरे ने यह भी दावा किया है कि एकनाथ शिंदे ने पार्टी अध्यक्ष के तौर पर बहुमत साबित नहीं किया है। वहीं ठाकरे ने ऑर्गनाइजेशनल विंग के साथ पार्टी कैडर में भी खुद को स्थापित किया है।