जीना इसी का नाम है / शौर्यपथ / अपनी जिंदगी से उन्हें कोई शिकायत नहीं थी। होती भी क्यों? एक कामयाब जीवन जीने के लिए जो कुछ चाहिए, वह सब कुछ तो उनके पास था। दांपत्य जीवन में भी किसी किस्म की कोई कमी न थी। पॉल बर्क बेहद चाहने वाले पति थे और वह तीन नन्हे बच्चों- होली, इसाक व जॉर्ज की मां थीं। बच्चों की किलकारियों से उनका घर खिलखिलाता रहता और थिया व पॉल उन पलों को जी भरकर जीते।
22 फरवरी, 2012 की बात है। हफ्ता भर पहले छोटे बेटे जॉर्ज की पहली सालगिरह मनाई थी। लेकिन 22 फरवरी को अपने खिलौनों के साथ खेलते-खेलते जॉर्ज अचानक गिर पड़ा और उसे मूच्र्छा के दौरे पड़ने लगे। इसके पहले वह कभी बीमार नहीं पड़ा था। पॉल और थिया बेटे को लेकर अस्पताल भागे, मगर चंद घंटों में ही सब कुछ खत्म हो गया था। डॉक्टर ने बर्क दंपति को जॉर्ज के पार्थिव शरीर के साथ कुछ पल बिताने की इजाजत तो दी, मगर उनके लिए वक्त जैसे वहीं खत्म हो गया था।
थिया और पॉल को जिंदगी यूं हैरान करेगी, यह तो कभी उनके गुमान में भी न आया होगा। बदहवासी के उन क्षणों में अपने जिगर के टुकडे़ को अलविदा कह वे जब घर लौटे, तो उसके बर्थडे के कार्ड वैसे ही सामने रखे हुए थे। वे समझ ही नहीं पा रहे थे, आखिर चंद घंटों में जॉर्ज उनसे इतना दूर कैसे चला गया? बाद में मिली पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मालूम हुआ कि निमोनिया और टाइप-ए इन्फ्लूएंजा ने उनके प्यारे बेटे की जान ली थी।
जो घर बच्चों की किलकारियों और पॉल-थिया के कहकहों से गुलजार रहा करता, वहां मातम ने जैसे डेरा डाल दिया था। पति-पत्नी अपने भीतर ही यूं ढह चुके थे कि एक-दूसरे का संबल क्या बनते? उस समय उन्हें कुछ ऐसे कंधों की जरूरत थी, जिनसे टिककर वे अपने लिए कुछ ऊर्जा बटोर पाते। काश! कोई गले लगाकर उनसे कहता, आपकी कोई गलती नहीं है, आपने तो अपने तईं पूरी कोशिश की, लेकिन नियति को शायद यही मंजूर था। कोई बताता कि दोनों बच्चों को कैसे बताया जाए कि जॉर्ज के साथ क्या हुआ?
लेकिन कोई नहीं आया। किसी ने उनकी खबर नहीं ली। कई दिनों के बाद घर के दरवाजे पर पहली दस्तक पुलिस की हुई, जो उस हादसे की तफसील जानने आई थी। यह उसकी ड्यूटी का हिस्सा था, लेकिन उसके कुछ तकनीकी सवाल शायद एक पिता के भीतर यह अफसोस भी गढ़ गए कि जॉर्ज के यूं जाने के लिए कुछ हद तक वह भी जिम्मेदार हैं।
जब जॉर्ज को गए पांच दिन हो गए थे। परिवार को जिंदगी की तरफ लौटना था, दो नन्हे बच्चों को संभालना भी था, मगर बेटे के गम में डूबे पॉल बर्क ने कहीं गहरा सदमा दे दिया। वह घर से यह कहकर निकले थे कि थोड़ा टहलकर आ रहा हूं। मगर उनके बजाय कॉल बेल पुलिस ने बजाई थी। 33 साल के पॉल की मौत की सूचना थिया के लिए किसी सन्निपात से कम न थी। हालांकि, मृत्यु के कारणों की जांच करने वाले अधिकारी (कॉरोनर) ने बाद में बताया था कि पॉल ने खुदकुशी नहीं की, बल्कि बेटे की मौत के बाद वह तनाव से गुजर रहे थे और इसी वजह से हादसे के शिकार हो गए।
लेकिन पांच दिन के अंदर एक खुशहाल परिवार उजड़ गया। थिया तो सुन्न पड़ गई थीं। मगर पति और बेटे, दोनों की अंतिम विदाई की तैयारी करनी थी। दो जीवित मासूमों को संभालना था। रोने का वक्त ही कहां था उनके पास? वह महीनों तक नहीं रोईं। हताशा, घबराहट और तनाव की समस्या पर जीत पाने में उन्हें वर्षों लग गए, लेकिन पॉल के चले जाने के बाद थिया के माता-पिता और कुछ करीबी दोस्तों ने उनकी पूरी मदद की।
थिया को यह हमेशा महसूस होता रहा कि पीड़ा के उन पलों में अगर किसी ने आकर उनका गम बांटा होता, तो पॉल उनसे दूर न गए होते। यह बात उन्हें वर्षों तक कचोटती रही। अंतत: उन्होंने फिजिकल एजुकेशन टीचर की अपनी नौकरी छोड़ ‘टु विश अपॉन अ स्टार’ नाम से एक चैरिटी की शुरुआत की। इसका मकसद उन अभिभावकों की मदद करना है, जिनके 25 साल तक बच्चे की अचानक मौत हो जाती है। थिया की यह चैरिटी वेल्स पुलिस और मेडिकल बोर्डों के साथ मिलकर ऐसे बदकिस्मत माता-पिता की मदद करती है। अब तक 3,316 लोगों की यह संस्था मदद कर चुकी है।
थिया वेल्स के मिस्किन गांव में रहती हैं। साल 2018 में आईटी कॉन्ट्रेक्टर क्रेग मैनिंग्स से उन्होंने दूसरी शादी की है, जो उनकी चैरिटी से बतौर स्वयंसेवी जुडे़ रहे हैं। थिया की इस अनमोल मानवसेवा को देखते हुए कुछ ही महीने पहले उन्हें ‘प्राइड ऑफ ब्रिटेन’ सम्मान से नवाजा गया है। पुरस्कृत होने के बाद थिया के शब्द थे, ‘पॉल और जॉर्ज मुझे ऊपर से गर्व के साथ देख रहे होंगे। मैं कोशिश करूंगी कि वेल्स में ऐसा कोई मां-बाप, भाई-बहन हमारी मदद से वंचित न रहे।’ थिया ऐसे बच्चों के मासूम भाई-बहनों से कहती रहेंगी- जो गया है, उसको सितारों में देखना।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह