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आत्मा का आनंद ही परमानंद है

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     आस्था /शौर्यपथ /शांति बारी-बारी से आने वाले दुख-सुख तथा उदासी की अनुपस्थिति है। यह बहुत इच्छित अवस्था है। दुख और सुख के शिखरों पर उत्तेजित सवारी के पश्चात बीच-बीच में उकताहट के गर्त में गोते खाने के पश्चात शांति के निश्चल सागर पर तैरने का आप आनंद लेते हैं। परंतु शांति से भी बढ़कर है परमानंद, जो आत्मा का आनंद है। यह नित्य-नवीन आनंद है, जो कभी लुप्त नहीं होता, लेकिन अनंतता तक आपकी आत्मा के साथ रहता है। वह आनंद केवल ईश्वर के बोध द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
यदि आप चंद्रमा की चांदनी में पानी से भरे एक बर्तन को रखें और पानी को हिला दें, तो उसमें चंद्रमा का विकृत प्रतिबिंब बनेगा। जब आप बर्तन में पानी की तरंगों को शांत कर देते हैं, तो प्रतिबिंब स्पष्ट हो जाता है। जिस समय बर्तन में पानी शांत होता है और चंद्रमा का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है, उसकी तुलना ध्यान में शांति की अवस्था और उससे भी अधिक गहरी निश्चलता की अवस्था से की जा सकती है। ध्यान की शांति में मन से समस्त संवेदनाएं और विचारों की तरंगें समाप्त हो जाती हैं। निश्चलता की और अधिक गहन अवस्था में, व्यक्ति को उस स्थिरता में ईश्वर की विद्यमानता के चंद्रमा रूपी प्रतिबिंब का बोध होता है।
शांति एक नकारात्मक अवस्था है, क्योंकि यह केवल सुख, दुख और उदासी की अनुपस्थिति की अवस्था है और इसीलिए कुछ समय पश्चात ध्यान करने वाला व्यक्ति फिर से तरंगों की गतिशीलता का अनुभव पाने की इच्छा की ओर आकर्षित हो जाता है। परंतु जैसे-जैसे ध्यान में प्राप्त शांति पहले निश्चलता में और उसके बाद परमानंद की चरम सकारात्मक अवस्था में गहन होती जाती है, तब ध्यान करने वाला व्यक्ति आनंद का अनुभव करता है, जो नित्य नवीन है और सर्वसंतुष्टिदायक है।
निद्रावस्था में, आप विचारों और संवेदनाओं को निष्क्रिय रूप से शांत करते हैं। जबकि ध्यान के द्वारा आप विचारों और संवेदनाओं को चेतन रूप से शांत करते हैं, आप पहले शांति की अवस्था का अनुभव करते हैं, और आपके चेहरे की मांसपेशियां एक मुस्कान का रूप ले लेती हैं, जो आपके हृदय की शांति को प्रदर्शित करती है। परंतु आपको शांति से परे, इंद्रिय जनित विचारों से उत्पन्न शारीरिक प्रक्रियाओं और ज्ञानेंद्रियों की संवेदनाओं से अविकृत, अपनी आत्मा की पवित्रता को देखने का प्रयास करना चाहिए । तब जिस अवस्था का आप अनुभव करेंगे, वह नित्य नवीन परमानंद है । संतों के हृदय में यह आनंद सदैव रहता है। दिव्य आंतरिक विश्वास में सुरक्षित, वे क्रोध अथवा भय से अविचलित रहते हैं। अंतर्ज्ञान अथवा तर्क की छुरी का उपयोग करके वे मन में अपने या दूसरों के विचारों की व्याख्या-विश्लेषण कर सकते हैं और शांत, अचल रह सकते हैं। आत्मा के परमानंद में, समस्त दुखों का अंत हो जाता है। परमानंदमय व्यक्ति का विवेक शीघ्र ही आत्मा में दृढ़ता से स्थिर हो जाता है।
मुस्कराहटें, कोई अच्छा कार्य करने से उत्पन्न अच्छे भावों के कारण अथवा किसी के प्रति सहानुभूति, प्रेम, दयालुता या करुणा के भाव के कारण उत्पन्न होती हैं। परंतु मुस्कराने की अति अद्भुत विधि है, अपने हृदय में ईश्वर के प्रेम को भरना। तब आप प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करने लगेंगे, आप हर क्षण मुस्कुराएंगे। मुस्कराहटों के अन्य सभी प्रकार क्षणभंगुर हैं,क्योंकि भावनाएं क्षणभर के लिए रहती हैंऔर फिर समाप्त हो जाती हैं, चाहे वे कितनी भी अच्छी क्यों न हों। जो अंत तक रह सकता है, वह केवल ईश्वर का आनंद है। जब आपके पास वह आनंद है, तो आप हर क्षण मुस्कुरा सकते हैं। अन्यथा जब आप किसी के प्रति दयालुता का भाव रखते हैंऔर बदले में वह एक थप्पड़ लगा देता है, तो फिर आप उसके प्रति दयालुता का भाव अधिक समय तक नहीं रख पाएंगे। तथाकथित प्रेमालाप में भी इसी प्रकार की दृढ़ता अधिकार जमा लेती है। प्रेम करने वाले एक चेहरे के प्रति सम्मोहित हो जाते हैं, वे उसे भुला नहीं पाते। परंतु वास्तविक सुंदरता जो हमें दूसरों में देखनी चाहिए वह बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होनी चाहिए।
जब आपकी आत्मा आनंद से भरपूर रहती है, तो आप आकर्षक लगते हैं। मैं केवल दिव्य मुस्कानों को ही पसंद करता हूं, क्योंकि उनके बिना, मनुष्य कठपुतली की भांति है। आज वे कहते हैं कि वे आपको सदा के लिए प्रेम करेंगे, परंतु कल आप श्मशान में होते हैं, तब उनका वह महान प्रेम कहां होता है? फिर कहां गया उनका वचन—‘मैं तुमसे सदा-सदा के लिए प्रेम करूंगा?’ परंतु यदि आप ईश्वर से केवल एक बार यह कहलवा सकें, ‘मैंतुमसे प्रेम करता हूं,’ तो यह अनंत काल के लिए है। तब आप थोड़े-से मानवीय प्रेम तथा धन और यह तथा वह-जैसी छोटी-मोटी वस्तुओं के लिए क्यों अपना समय नष्ट करते हैं, जबकि ईश्वर में प्रत्येक वस्तु आप पा सकते हैं— समस्त प्रेम जो संपूर्ण संसार में है, सृष्टि में व्याप्त संपूर्ण शक्ति?
लेकिन प्रभु को शक्ति के लिए मत ढूंढें, उसे प्रेम के लिए ढूंढें। तब आप उनके सुरक्षा कवच में दरार खोज पाएंगे। जब आप उन्हें अपना अशर्त प्रेम देंगे, तो वे आपके सम्मुख स्वयं को समर्पित करने से रोक नहीं पाएंगे।

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शौर्यपथ