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अहोई अष्टमी व्रत में पहनी जाती है अहोई माता की माला, इस तरह किया जाता है पूजन, पढ़ें व्रत कथा

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   आस्था /शौर्यपथ /अहोई अष्टमी भारतीय महिलाओं के विशेष पर्व हैं। इन पर्वों को मनाते हुए भारतीय महिलाएं जहां पौराणिक रीति पूर्वक व्रत-उपवास करती हैं वहीं सांस्कृतिक उमंग द्वारा उत्सव का रूप भी प्रदान करती हैं। इस बार अहोई चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी 17 अक्टूबर 2022 सोमवार को है । 17 अक्टूबर को दिन में 08:06 बजे के बाद अष्टमी तिथि लग जायेगी जो अगले दिन सुबह 10:14 बजे तक रहेगी । इस पर्व में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी का ही विशेष महत्त्व है ,अतः अष्टमी तिथि में चन्द्रोदय रात में 11:10 बजे होगा।
 जहां इस पर्व में परिवार के कल्याण की भावना निहित होती है वहीं सास के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लेने की प्राचीन परंपरा आज भी दिखाई देती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी अहोई अथवा आठें कहलाती है। यह व्रत दीपावली से ठीक एस सप्ताह पूर्व आता है। कहा जाता है इस व्रत को संतान वाली स्त्रियां करती हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अहोई अष्टमी का व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, जिसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कैसे करें:-
जिन स्त्रियों वह व्रत करना होता है वह दिनभर उपवास रखती हैं। सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं। उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है।
संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें। बाल-बच्चों के कल्याण की कामना करें। साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें।
इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें।
जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेंहू के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें
दिन में पूजा का समय - सुबह 9:29 बजे अष्टमी तिथि आरंभ होने के बाद
व्रत पारायण - संध्याकाल में तारों के दर्शन करने के बाद
तारोदय : शाम 6.36 मिनट पर
चंद्रोदय : रात 11.34 मिनट पर
व्रत कथा: साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटीकी खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटीभाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं सात पुत्रोंकी इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरीइच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. यदि आप मेरी कोख खुलवा देतो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।
रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनीके बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहूने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है. स्याहु छोटीबहू को सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं का आर्शीवाद देती है। और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बेटी हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया।
अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना.' जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकारकी बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें।

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शौर्यपथ