विजय मिश्रा 'अमित'
विशेष आलेख /शौर्यपथ / खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य छत्तीसगढ़ अति प्राचीन काल से मेला- मड़ाई का भी गढ़ रहा है।यहां माघ माह की पूर्णिमा पर लगभग सभी प्रतिष्ठित शिवालयों में,नदी, तालाबों के तट पर मनमोहक मेले लगते हैं।जहां ग्रामीण जनों का रेला,जमावड़ाऔर उत्साह देखते ही बनता है।
छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध माघी पुन्नी मेलों में सर्वाधिक बड़ा- जनप्रिय मेला राजिम कुंभ कल्प है,जिसका प्राचीन नाम माघी पुन्नी मेला है।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग पचास किलोमीटर की दूरी पर पक्के सड़क से संबद्ध राजिम 'धर्म नगरी' और 'छत्तीसगढ़ का प्रयाग' तथा 'शिव-वैष्णव धर्म का संगम' तीर्थ के नाम से भी ख्याति प्राप्त है।दरअसल प्रयागराज इलाहाबाद की भांति यहां पैरी,सोंढ़ूर और महानदी का त्रिवेणी संगम है। प्रयाग के संगम की भांति यहां प्रदेशवासी अस्थि विसर्जन ,पिण्ड दान, कर्मकांड करते हैं।यह बंया करता है राजिम मेला महज़ मनोरंजनगाह नहीं है।
इस त्रिवेणी के तट पर ही प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक विशाल कुम्भ कल्प मेला भरता है।इस वर्ष 12 फरवरी से आरंभ होकर 26 फरवरी अर्थात महाशिवरात्रि तक यह आयोजित है। मेले में आए संतजन और श्रद्धालुगण राजिम त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे।पुण्य स्नान उपरांत अनेक श्रद्धालुजन महानदी की रेत से शिवलिंग तैयार करके बेलपत्र,धतूरा,कनेर के फूल,नारियल से पूजा अर्चना करते है।पवित्र भावनाओं से प्रज्ज्वलित अगरबत्ती और धूप की खुशबू से वातावरण सुगंधित हो उठता है।
*वनवास काल में सीता जी ने किया शिवलिंग निर्माण*
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ में दस वर्ष बिताए थे।इसी वनवास काल में माता सीता ने राजिम में महानदी की रेत से शिवलिंग निर्मित कर आराधना की थी।उसी स्थल पर वर्षों पूर्व निर्मित कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर जनाकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
इसी तट पर प्रभु श्री राजीव लोचन का पुरातन भव्य मंदिर भी है।जिनका जन्मोत्सव माघ माह की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है।धार्मिक मान्यता है इस दिन भगवान जगन्नाथ उड़ीसा से राजीव लोचन जन्मोत्सव मनाने राजिम आते हैं,जिसके कारण उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर का पट बंद रहता है।मेला स्थल से कुछ दूरी पर स्थित चम्पारण में श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी प्रकाट्य स्थल,लोमश ऋषि आश्रम,भक्त माता कर्मा,और अन्य देवालयों का दर्शन लाभ मेला भ्रमणार्थियों को सहज मिल जाता है।
छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी पुण्य सलिला महानदी के तट पर स्थित राजीव लोचन मंदिर से लगा स्थल सीताबाड़ी है।जिसमें मौर्यकालीन,14 वीं शताब्दी तथा सम्राट अशोक काल के मंदिर,सिक्के,मूर्तियां अनेक कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं,जो कि वैभवशाली इतिहास की साक्षी हैं।
*पंचकोशी परिक्रमा*
माघी पुन्नी मेला स्थल से अनेक श्रद्धालुगण पंचकोशी परिक्रमा की शुरुआत करते हैं।यहां कुलेश्वर महादेव के दर्शनोंपरांत धर्मालुओं का जत्था हर-हर महादेव जपते पटेश्वर महादेव पटेवा, चम्पेश्वर महादेव चंपारण, फिगेंश्वर महादेव फिंगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा के स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन कर परिक्रमा पूरी करते हैं। ग्रामीण संस्कृति का संरक्षण और नवपीढ़ी तक परम्पराओं का संचार की द्रष्टि से यह बहुपयोगी है।
*मेले की रंगीन शाम कलाकारों के नाम*
पखवाड़े भर मेला में आए दर्शनार्थियों को रंगीन रोशनी के साथ प्रतिष्ठित लोक मंचो की प्रस्तुति का आंनद मिलता है।जहां वे पंथी,पण्डवानी,करमा,सुवा, नाचा आदि लोकनृत्यों का लुत्फ उठाते हैं।मेला स्थल पर महानदी की पसरी रेत की चमक मेला के दौरान दमक उठती है। यहां सरकारी विभागों की प्रदर्शनी,खेल तमाशे,एवं साज श्रृंगार, पारम्परिक गहनों, खान-पान, के स्टाल ,विविध किस्म के झूलों का मजा लाखों दर्शकों के भीतर नवऊर्जा का संचार करता है।
*लक्ष्मण झूले का आकर्षण*
राजिम मेला स्थल पर लक्ष्मण झूला का निर्माण किया गया है।नदी तट से नदी के मध्य बने कुलेश्वर महादेव मंदिर तक खींचे गए झूले में चलते हुए श्रद्धालुओं को अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। साथ ही रंग-बिरंगे चिताकर्षक लाइटों से सुसज्जित लक्ष्मण झूला, लेज़र शो आगंतुकों को मंत्रमुग्ध करते हैं। राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की गौरवशाली सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित रखने की दिशा में किया जा रहे प्रयासों के ए साक्षी भी है।