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सतर्कता की जरूरत

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      शौर्यपथ / सोमवार से लॉकडाउन के चौथे चरण की शुरुआत होते ही राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर रियायतें दी हैं। हालांकि, इन राहतों का लोग गलत फायदा उठाने लगे हैं और नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। अधिकतर लोग बिना मास्क लगाए बाजार और सड़कों पर घूमते नजर आ रहे हैं। वाहनों पर भी निर्धारित सवारी से अधिक लोग बिना हेलमेट के सड़कों पर निकल रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा मरीजों के मामले में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, फिर भी प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा और लोगों का संक्रमण से डरे बिना उन्मुक्त होकर विचरण करना बंद नहीं हो रहा है। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है। यदि हम खुद नहीं संभलेंगे, तो कोरोना का संक्रमण बढ़ता चला जाएगा। नतीजतन, सरकार को कहीं अधिक सख्त कदम उठाने पड़ सकते हैं। ऐसे में, हम सभी को जागरूक रहने की जरूरत है।
अंजली राजपूत, झांसी

निजीकरण है रुकावट
मोदी सरकार ने स्वदेशी पर जोर देने के उद्देश्य से आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया है। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह अच्छा कदम है, लेकिन क्या लोकल होने से हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी? जनता तो खाने-पीने की चीजों में स्वदेशी को प्राथमिकता देगी, लेकिन क्या सरकार और अधिकारी स्वदेशी को प्राथमिकता देंगे? भारत में स्वदेशी को लेकर अधूरी बातों को ही प्रसारित किया जाता रहा है। स्वदेशी का मतलब टूथपेस्ट, दूध, वस्त्र, साबुन आदि ही बताया गया है, जबकि असली और पूर्ण स्वदेशी का मतलब है, सुई से लेकर जहाज तक भारत में बने। स्वदेशी को सबसे बड़ा खतरा तो निजीकरण से है, क्योंकि इससे सरकार की संपत्ति घट जाती है और देश की शक्ति भी कम हो जाती है।
भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा

आर्थिक मदद अनिवार्य
वर्तमान में लगभग पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है और तमाम देशों की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। उद्योग जगत से लेकर आम मजदूर तक सब इस प्रकोप से प्रभावित हुए हैं। भारत में लगातार तीन लॉकडाउन के बाद चौथे लॉकडाउन में आशाजनक राहत मिली है, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनिवार्य भी है। हालांकि, केंद्र सरकार ने ठप पड़ चुके उद्योग-धंधों को फिर से शुरू करने को लेकर कोई खास कदम नहीं उठाया है। अगर भारत की तुलना अमेरिका और अन्य देशों से करें, तो अमेरिका ने उद्योगों में सुधार और रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए आर्थिक सहायता के रूप में उद्योगों को भारी राशि उपलब्ध कराई है। अन्य देश भी तकरीबन हर सेक्टर को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं। मगर भारत में केंद्र सरकार आर्थिक सहायता एक कर्ज के रूप में दे रही है। अगर सरकार आर्थिक पैकेज बिना किसी शर्त और कर्ज के रूप में मुहैया कराती, तो स्थिति जल्द ही बेहतर हो सकती थी। चूंकि मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है और वे अपने गांव लौट चुके हैं। ऐसे में, सरकार कर्ज नहीं, बल्कि आर्थिक सहायता दे।
विशेक, दिल्ली विश्वविद्यालय

छात्रों की मुश्किलें
लॉकडाउन का लगातार विस्तार हो रहा है, जिससे वे छात्र खासे चिंतित हो गए हैं, जिनकी अगले वर्ष बोर्ड की परीक्षाएं हैं। भले ही सरकार ने कुछ चैनल पर पढ़ाई की व्यवस्था की है, निजी विद्यालय भी ऑनलाइन पठन-पाठन शुरू कर चुके हैं, लेकिन ये तमाम व्यवस्थाएं समान रूप से सभी छात्रों की मदद नहीं कर पा रही हैं। जिन्हें ये सुविधाएं मिल भी रही हैं, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में, परीक्षार्थियों में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जो सही नहीं है। इस समस्या के हल के लिए संबंधित मंत्रालय को कोई न कोई व्यवस्था जरूर करनी चाहिए।
कमल नयन चौबे
करगहर, रोहतास

 

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शौर्यपथ