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टिड्डियों से मुकाबला

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        सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / प्रकृति के कोप का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। यह न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक है कि तमाम आफतों के बीच टिड्डियों ने भी भारत में पांच से ज्यादा राज्यों में कहर बरपा दिया है। ये दल तपती धरती पर बची हुई फसल को चट करने में लगे हैं। यह तो भला हो कि देश के ज्यादातर खेतों से गेहूं की फसल कट चुकी है, लेकिन ऐसे किसानों की संख्या लाखों में है, जो साल भर कुछ न कुछ अपने खेतों में लगाते ही रहते हैं। विशेष रूप से फल उत्पादकों पर मानो मुसीबत ही टूट पड़ी है। महाराष्ट्र के नारंगी उत्पादकों की चिंता का कोई ठिकाना नहीं है। विदर्भ में पड़ने वाले 11 जिलों में अलर्ट जारी है। पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा में भी किसानों को चेताया गया है। प्रभावित राज्यों में गन्ने, आम, सरसों, सौंफ, जीरा, आलू, रतनजोत जैसी नकदी फसलें टिड्डियों के निशाने पर हैं। बताया जा रहा है कि ऐसा हमला इन्होंने लगभग दो दशक बाद किया है।
इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना की त्रासदी ने भी टिड्डियों को मौका दिया है। आम तौर पर ईरान, पाकिस्तान की ओर से भारत में आने वाली इन करोड़ों टिड्डियों को पंजाब, राजस्थान इत्यादि राज्यों में रोक लिया जाता है और उससे पहले ईरान और पाकिस्तान में भी किसान व सरकारें मुकाबला करती हैं। इस बार इन सरकारों ने कोरोना के खिलाफ जंग में लगे होने के कारण टिड्डियों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। नतीजा यह कि भारत में एक बड़ी आबादी है, जिसने ऐसा टिड्डी हमला पहले कभी नहीं देखा था। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि टिड्डियों की ओर से ऐसे हमले की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी, लेकिन हमारे यहां भी सरकारें कोरोना से जंग में लगी हैं, तो टिड्डियों को मौका मिल गया। केंद्र सरकार इसी सप्ताह सक्रिय हुई है और उन राज्य सरकारों की मदद की जा रही है, जो नुकसान झेल रही हैं। अपनी फसल को लेकर चिंतित हर किसान अपनी-अपनी तरह से इनसे जूझ ही रहा है, लेकिन यह किसी एक या दो किसानों के लड़ने योग्य लड़ाई नहीं है। ये पतंगे करोड़ों की तादाद में होते हैं। अनुमान है कि एक दल में एक समय में इनकी संख्या आठ करोड़ तक हो सकती है।
बहरहाल, इस साल के भयावह हमले से हमें हमेशा के लिए कुछ सबक सीखने चाहिए। जो 20 से ज्यादा देश टिड्डियों से हर साल परेशान होते हैं, उन्हें एक समूह या संगठन बनाना चाहिए। इस संगठन में अफ्रीका के गरीब देश भी शामिल हों और एशिया के विकासशील देश भी। टिड्डयों को उनके मूल प्रजनन स्थलों पर ही रोकना होगा। जो रेगिस्तानी इलाके या देश अब नमी से लैस हो गए हैं, उनकी जिम्मेदारी ज्यादा है। इधर भारत में हरसंभव कोशिश करनी चाहिए कि जल्द से जल्द इन टिड्डियों को खत्म किया जाए। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने चेताया है कि जुलाई महीने तक यह हमला जारी रहेगा। बताया जा रहा है कि टिड्डियों की एक विशाल आबादी दक्षिणी ईरान और दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में तैयार हो रही है। अत: यह जरूरी है कि भावी हमलावरों को उनके मूल स्थान पर ही जवाब दिया जाए। यह तभी होगा, जब हमारी सरकार आगे बढ़कर ईरान व पाकिस्तान को प्रेरित करेगी। साथ ही, हमें यह भी तैयारी रखनी होगी कि हम इन टिड्डियों को सीमा पर ही रोक दें।

 

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शौर्यपथ