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छोटी बचत से हम फिर ले रहे हैं बड़ी मदद

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           नजरिया / शौर्यपथ / अक्सर कहा जाता है कि भारतीयों की घरेलू बचत ने देश को वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी से बचाया था। एक बार फिर 2020 में कोविड-19 से जंग में घरेलू बचत भारत का विश्वसनीय हथियार दिखाई दे रही है। अब जब कमाई पर असर पड़ा है, तब आम लोगों के लिए उनकी छोटी-छोटी बचत आर्थिक सहारा बन गई है। चूंकि हमारे देश में विकसित देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा का उपयुक्त ताना-बाना नहीं है, इसलिए छोटी बचत योजनाएं ही देश के अधिकांश लोगों की सामाजिक सुरक्षा का आधार हैं।
नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट (एनएसआई) द्वारा भारत में निवेश की प्रवृत्ति से संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां देश के लोगों के लिए छोटी बचत योजनाएं लाभप्रद हैं, वहीं इनका बड़ा निवेश अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद है। वर्ष 2011-12 में जहां छोटी बचत योजनाओं के समूह राष्ट्रीय लघु बचत निधि (एनएसएसएफ) में कुल निवेश महज 31 अरब रुपये था, वहीं यह 2018-19 में बढ़ते हुए 1,600 अरब रुपये से अधिक हो गया है। हालांकि देश में छोटी बचत योजनाओं में ब्याज दर के घटने से उनका आकर्षण कुछ कम हुआ है। वर्ष 2012-13 के बाद सकल घरेलू बचत दर (ग्रास डोमेस्टिक सेविंग रेट) लगातार घटती गई है, लेकिन अभी भी दुनिया के कई विकासशील देशों की तुलना में भारत की सकल घरेलू बचत दर अधिक है। देश में वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान जो सकल घरेलू बचत दर 36.80 फीसदी थी, वह घटते हुए वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 32.10 फीसदी तथा 2018-19 में 30.14 फीसदी रह गई है। चाहे देश में बचत दर घटी हो, लेकिन छोटी बचत योजनाएं अपनी विशेषताओं के कारण निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों के विश्वास व निवेश का माध्यम बनी हुई हैं।
यह साफ दिखाई दे रहा है कि लॉकडाउन और ठप हुए उद्योग-कारोबार ने मध्यमवर्ग की मुस्कराहट छीन ली है। देश के लाखों दफ्तरों में दिन-रात पसीना बहाकर देश को नई पहचान और नई ताकत देने वाला भारतीय मध्यमवर्ग कोविड-19 के दौर में अपनी छोटी बचतों से अपने परिवार की गाड़ी आगे बढ़ा रहा है, लेकिन इस वर्ग के लोगों की आर्थिक चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं। कोविड-19 के बीच मध्यमवर्ग के करोड़ों लोगों के चेहरे पर हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कंज्यूमर लोन आदि की किस्तें देने की चिंताएं, बच्चों की शिक्षा और कर्ज पर बढ़ते ब्याज जैसी कई चिंताएं बढ़ गई हैं।
देश में छोटी बचत करने वाले करोड़ों लोगों के सामने नई चिंता 1 अप्रैल, 2020 से सरकार द्वारा छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में की गई कटौती से भी संबंधित है। पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) पर ब्याज दर अब 7.1 फीसदी है, जबकि पहले यह 7.9 फीसदी थी। नेशनल सेविंग्स स्कीम्स (एनएससी) में अब 6.8 फीसदी ब्याज मिलेगा, जबकि पहले इस पर 7.9 फीसदी का ब्याज मिल रहा था। सुकन्या समृद्धि योजना में निवेश पर ब्याज दर 8.4 फीसदी से घटाकर 7.6 फीसदी कर दी गई है। कम ब्याज दर के बावजूद बचत योजनाओं को मध्यमवर्ग लाभप्रद मान रहा है। खासतौर से पीपीएफ, एनएससी, डाकघर सावधि जमा जैसी छोटी बचत योजनाएं निश्चित प्रतिफल देती हैं। दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्य हासिल करने के लिहाज से इन योजनाओं में निवेश अहम है। इतना ही नहीं, पीपीएफ और सुकन्या समृद्धि योजना पर मिलने वाली रकम पूरी तरह कर मुक्त भी है।
साफ दिखाई दे रहा है कि जैसे-जैसे लॉकडाउन की अवधि बढ़ती गई है, वैसे-वैसे छोटी बचत करने वाले, नौकरी-पेशा वर्ग एवं मध्यमवर्ग के करोड़ों लोगों की मुश्किलें बढ़ती गई हैं। ऐसे में, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत आर्थिक पैकेज की घोषणा करते समय मध्यमवर्ग को भी कुछ राहत दी है। आवास कर्ज से जुड़ी सब्सिडी योजना (सीएलएसएस) को एक और वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। यह योजना 31 मार्च, 2020 को समाप्त हो गई थी। सरकार के आर्थिक पैकेज और कर रियायतों से निश्चित ही आम लोगों को फायदा होगा। ज्यादा से ज्यादा आम लोगों को फिर काम-धंधे में लगाना होगा, ताकि उनकी कमाई लौटे। कमाई लौटेगी, तो बचत भी लौटेगी। जितने ज्यादा लोगों की बचत लौटेगी, अर्थव्यवस्था को उतना ही लाभ होगा। बेशक, छोटी बचतों का संरक्षण, संवद्र्धन सरकार को भी करना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री

 

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