राजनितिक हलचल दुर्ग विधान सभा से .....
दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग की राजनीती में पिछले कई सालो से संगठन से ज्यादा व्यक्ति विशेष का वर्चस्व रहा है . भाजपा की बात करे तो दुर्ग राजनीती का केंद्र बिंदु जल परिसर रहा तो कांग्रेस की राजनीती का केंद्र बिंदु वोरा निवास रहा . दुर्ग की राजनीती में आगे बढ़ने की सीढी यही दो बंगले है . इन्ही बंगलो के आशीर्वाद से अनुशंषा से आगे बढ़ा जा सकता है कोई भी इनसे अलग राह पकड़ने की कोशीश करे तो समझो राजनैतिक कैरियर खत्म ऐसे कई नेता हुए है दुर्ग में जो आगे बढ़ने के लिए या तो कार्य क्षेत्र बदल लेते है या फिर दुसरे नेताओ को राजनैतिक आका मान लेते है तभी आगे बढ़ने की उम्मीद नजर आती है .
दुर्ग की आम जनता के बीच अगर प्रतायाशियो के जीत हार की बात होती है तो पिछले हर चुनाव में हुई कांग्रेस की जीत का सेहरा वोरा बंगले को ना देकर जल परिसर की हार को मान जा रहा है . पिछले कई चुनाव में दुर्ग में जनता ने कांग्रेस को जीत गुट बाजी के चलते होने का कारण बता .
निगम चुनाव में महापौर चन्द्रिका चंद्राकर की जीत के लिए भाजपा का मजबूत होना नहीं बल्कि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पुराने कांग्रेसी नेता दीपा प्रताप मध्यानी का मैदान में उतरना कारण रहा . जिसके चलते 2-3 हजार मतों के अंतर से भाजपा की जीत हुई थी . विधान सभा में तात्कालिक विधायक के मुकाबले रबर स्टाम्प की छाप के रूप में चर्चा में रही महापौर चन्द्रिका चंद्राकर के प्रत्याशी घोषित होते ही कांग्रेस खेमे में जीत का जश्न मनाया जाने लगा .पिछले निगम चुनाव में अगर टिकिट वितरण में सामंजस्य बैठता तो निगम में भाजपा पार्षदों की संख्या बहुमत के रूप में होती किन्तु बगावत की असर और कई वार्डो में कमजोर प्रत्याशियों के उतरने के बावजूद भी कांग्रेस को 1-2 सीटो का ही बहुमत मिला यहाँ भी महापौर और सभापति के रूप में राजेश यादव के चयन में पड़े मत साफ़ इशारा कर रहे थे कि वोरा गुट से अलग चयनित प्रत्याशी किस स्थिति में जीत अर्जित किये . तब तो आम जन्तो में चर्चा भी खूब रही कि महापौर और सभापति के सीट का बंटवारा हो चूका था किन्तु ज़रा सी चुक और अंतिम समय में निर्दलीय प्रत्याशी परषद नीता जैन के मत ने पूरी स्थिति बदल दी . आज भी ऐसे कई मौके देखने को मिल ही जाते है जहां सभापति को दरकिनार किया जाता रहा .
अब एक बार फिर प्रदेश में विधान सभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है अब फिर से एक बार आम जनता के सामने प्रत्याशी चयन को लेकर सवाल उठने लगे है. कांग्रेस से कौन प्रत्याशी होगा इस विषय में चर्चा बेमानी ही है किन्तु भाजपा से इस बार किसे प्रत्याशी घोषित किया जाएगा इस पर चर्चा जोरो में है क्योकि दुर्ग की राजनीती में जल परिसर के फैसले को अहम् माना जाता है किन्तु वही काफी सालो बाद निष्क्रिय अध्यक्ष से परे सक्रीय अध्यक्ष के रूप में जितेन्द्र वर्मा ने अलग पहचान बना ली है वही युवा मोर्चा की कमान स्व. हेमचंद के पुत्र जीत यादव के हाथो है ऐसे में प्रत्याशी को लेकर भी कई तरह के कयास लग रही है . वही अब भाजपा नेता भी दबी जुबान में कहने लगे है कि संगठन लाख तात्कालिक विधायक और महापौर के घोटालो को उजागर करने में लगा हुआ है किन्तु अगर छत्तीसगढ़िया प्रत्याशी जिन पर जल परिसर से कोई वास्ता ना हो तो जीत आसान होगी . भाजपा कार्यकर्ताओं और आम जनता में चर्चा का विषय यह भी है कि पिछले 5 साल में वर्तमान विधायक की कोई उपलब्धि दुर्ग शहर के लिए नहीं रही जो भी कार्य हुए वो निगम मद से हुए या फिर पीडब्ल्यूडी विभाग की योजनाओं से हुए कोई ऐसा कार्य नहीं हुआ जिसे विधायक कि उपलब्धि कहा जा सके फिर भी मुकाबले के लिए इस बार भाजपा की तरफ से कोई छत्तीसगढ़िया प्रत्याशी हो तो मुकाबला किया जा सकता है वरना यह चुनाव भी सिर्फ दिखावे का ही साबित होगा .वही कई लोगो ने चौकाने वाली बात भी कही कि अगर दुर्ग विधान सभा से स्वयं डॉ. सरोज पाण्डेय मैदान में उतरती है तो भी जीत के ज्यादा आसार भाजपा की तरफ ही होंगे क्योकि दुर्ग की आम जनता आज भी दुर्ग की बदली कायाकल्प का सारा श्रेय डॉ. सरोज पाण्डेय को ही मानती है .
अब आम जनता इस बात की राह तक रही कि कौन होगा भाजपा प्रत्याशी ....