शौर्यपथ लेख / कृषि बिल जिसे पास करवाने के लिए मेरी नजर में मत विभाजन होना था नहीं हुआ संख्या बल के आधार पर भारत के सबसे बड़े बिल को पास कर दिया गया . कृषि बिल पर कौन राजनीती कर रहा ये हमारा मुद्दा नहीं है मुद्दा ये है कि कृषि बिल को जो कि किसानो के लिए एक महत्तवपूर्ण बिल है क्योकि भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है ऐसे में बिल पास करवाने का जो तरीका निकाला गया क्या हो सही था . क्या संख्या बल के दम पर चुने हुए सांसद बिना किसी की राय लिए कृषको के भाग्यविधाता बनने की कोशिश नहीं कर रहे है . इतने बड़े विधेयक को पास करने की इतनी जल्दबाजी क्यों की गयी क्या यही भारत का लोकतंत्र है जहा संख्या बल के दम पर विपक्ष को दबाया जा रहा है . इस बिल पर कौन राजनीति कर रहा है सत्ता पक्ष या विपक्ष ये अलग मुद्दा है किन्तु यहाँ जिस तरह नियमो की अनदेखी की जा रही है क्या ये एक नए प्रथा को जन्म नहीं दे रहा है . चलिए ये मान लिया जाए कि कृषि बिल किसानो के हित का है तो सरकार इस बात को लिखित में क्यों नहीं दे रही है कि किसानो को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा . संसद में इस बात को ऑन रिकार्ड क्यों नहीं स्वीकार कर रही है कि किसानो को समर्थन मूल्य ( न्यूनतम मूल्य ) प्राप्त होगा . चलो मान लिया जाये कि मोदी सरकार किसानो के हित के लिए आगे बढ़ रही है तो इस बात में आखिर सरकार को परेशानी क्यों हो रही है संसद में लिखित में न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात को स्वीकार करने में . आज राज्यसभा में सबको यह बात तो दिखी कि किस तरह से सांसदों का उग्र व्यवहार था किन्तु ये कोई क्यों नहीं देख रहा है कि आखिर इतने उग्र क्यों हुए सांसद कि उन्हें उप सभापति के चेयर तक जाना पडा रुल बुक फाड्नी पड़ी और माइक से छेड़खानी करने की नौबत आयी . चाहे कोई भी स्थिति हो इस तरह का व्यवहार निंदनीय है किन्तु क्या ये सही है कि रुल बुक के अनुसार अगर कोई भी सांसद किसी बिल के लिए मत विभाजन की मांग करता है तो सदन के सभापति / उपसभापति को नियमानुसार सदन के सदस्यों की मांग को माननी पड़ती है और मत विभाजन की प्रक्रिया निभानी होती है किन्तु यहाँ क्या हुआ एक से ज्यादा सदस्य मत विभाजन की मांग करते रहे रुल बुक के अनुछेद की याद दिलाते रहे सदन के लिए बनाए गए नियमो के अनुसरण की बात करते रहे किन्तु सदन के अनुछेद को नहीं माना गया . जब सदन के अनुछेद को नहीं माना जा रहा है तो फिर रुल बुक का क्या औचित्य शायद यही पीड़ा लेकर सदन के सदस्य / सदस्यों ने रुल बुक को फाड़ दिया होगा खैर रुल बुक को फाड़ने वाले और सदन के नियमो की अवहेलना करने वाले सांसदों को एक हफ्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया है किन्तु की सिर्फ सदस्यों की ही गलती हुई इस सारे घटना क्रम में और किसी की गलती नहीं है . क्या सदन में संख्या बल है तो जंगल राज की तरह व्यवहार होगा सरकार का . लोकतंत्र में सर्व सम्मति का उच्च स्थान है किन्तु साथ ही विपक्ष की बात को सुनने का और निराकरण करने की परम्परा भी रही है किन्तु क्या वर्तमान स्थिति में ऐसा हो रहा है कोई भी बात स्पष्ट रूप से आखिर क्यों नहीं कही जा रही है सदन के बाहर जिस बात के वादे किये जा रहे है वही बात सदन के अंदर कहने में आखिर क्या परेशानी . अगर मन साफ़ है और नियत सही है तो सदन के अंदर भी उसी बात को कही जा सकती है जिसे बाहर बार बार सफाई देने के लिए कहा जा रहा है .
कृषि बिल में आखिर ऐसी क्या बात है जो किसानो को तो परेशान कर रही है साथ ही सरकार के घटक दल भी विरोध कर रहे है किन्तु यहाँ एक बार फिर संख्या बल का नशा सर पर होने का दंभ दिख रहा है जिसके कारण यह भी नहीं दिख रहा है कि सालो पुरानी साथी पार्टी की नारजगी का भी कोई असर सरकार पर नहीं पड़ रहा है . आज भले ही सारी बाते आपके पक्ष में हो किन्तु ये समय है यहाँ इंदिरा गांधी जैसी सरकार को भी धुल चाटनी पड़ी है राजनितिक के मैदान में . इस देश में ऐसे ऐसे राजनितिक कारनामे हुए है कि जब सारा देश मोदी के पक्ष में था तब दिल्ली विधान सभा में भाजपा को मुह की खानी पड़ी , छत्तीसगढ़ में स्थिति बदतर हुई , सत्ता के कारण शिवसेना - भाजपा में दरार हो गयी - सत्ता के खेल में जनता की पसंद को दरकिनार कर मध्यप्रदेश , हरियाणा , गोवा , कर्णाटक ,बिहार में कैसे सरकार बनी ये सभी ने देखा यहाँ कितने बार लोकतंत्र की हत्या हुई इस पर सब मौन रहे .
कृषि बिल से सरकार का कहना है कि इससे किसानो को बहुत लाभ होगा और विपक्ष का कहना है कि नुक्सान होगा . किसानो को क्या और कैसे फायदा होगा ये किसान को समझाने की जिम्मेदारी बिल पास करवाने वालो की होती है / सरकार की होती है आखिर सरकार क्यों नहीं किसानो के शंकाओ का समाधान कर रही . सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या मर्यादा तोड़ने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ विपक्ष की होती है सत्ता पक्ष की नहीं होती ताली एक हाँथ से नहीं बजती और यही हाल कल संसद में हुआ . कल के व्यवहार से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सरकार के बिल को पास करवाने के लिए प्रश्नकाल को भी दफन करने का फैसला क्या सही है आखिर उपसभापति ने विपक्ष की मांग को भी क्यों नहीं माना , प्रवर समिति में भेजने की मांग को भी क्यों नहीं माना क्या ये निति संगत है . कृषि बिल संसद में ध्वनी मत से पास हुआ किन्तु संसद फेल हो गया . हाउस रुल 252 के अनुसार कोई भी सदस्य चाहता है या चेयरमेन के फैसले को चेलेंज करता है तो रुल 252 के तहत मत विभाजन का आदेश देना होता है किन्तु जिस तरह से कल की कार्यवाही हुई उससे साफ सन्देश जाता है कि सरकार किसी भी तरह से बिल उसी दिन पास कराना चाहती थी और हुआ भी यही कृषि बिल ध्वनी मत से पास हो गया और आठ सांसद एक हफ्ते के लिए सस्पेंड हो गए .
इन सबमे सबसे बड़ी बात जो ध्यान देने वाली है उसके अनुसार वर्तमान सरकार एनडीए -2 में कुल 82 बिल पास हुए जिसमे से 17 बिल प्रवर समिति को / मत विभाजन के लिए भेजे गए यानी कि लगभग २० प्रतिशत बिल में विपक्ष की राय को महत्तव दिया गया उसी तरह एनडीए 1 में 25 प्रतिशत बिल को पास कराने के लिए विपक्ष के राय को महत्तव दिया गया वही अगर यूपीए 2 ( सरकार ) की बात करे तो 71 प्रतिशत बिल के लिए विपक्ष की राय ली गयी वही यूपीए -1 में 60 प्रतिशत बिल पास होने के लिए विपक्ष को महत्तव दिया गया . इन आंकड़ो से ही साफ़ नजर आता है कि वर्तमान सरकार संख्या बल के आधार पर किस तरह बिल पास करवा रही है . बिल पास होने के कई मायने है पूर्ण बहुमत से बिल पास होना मतलब सभी की पूर्ण सहमती , मत विभाजन से बिल पास होना मतलब वो बिल जिस पर विपक्ष सवाल उठा रही है और सत्ता पक्ष समर्थन कर रही है ऐसे बिल के पास होने के लिए सदन के चेयर पर्सन द्वारा मत विभाजन करवाना और बहुमत के आधार पर बिल को पास या फेल करना जिसमे विवाद की स्थिति अल्प समय के लिए होती है किन्तु ध्वनिमत से बिल पास करना यानी कि विपक्ष की शंकाओं को नजर अंदाज करते हुए सत्ता पक्ष बल संख्या के आधार पर बिल को पास करवा लेती है उसे ध्वनिमत से पास हुआ बिल करार दिया जाता है और ऐसा ही कृषि बिल के साथ हुआ राज्यसभा में कृषि बिल विवादों के बीच विपक्ष की मांगो को नजरंदाज कर यहाँ तक कि सत्ता के घटक दलों की भावना को भी नजर अंदाज कर पास करा लिया गया और एक नए प्रथा का श्री गणेश जो हुआ है उस पर एक सीढ़ी और आगे बढ़ गयी सरकार इस तरह कृषि प्रधान देश में जमीनी किसानो से चर्चा किये बिना सरकार ने एक नए नियम को लागू कर दिया अब इससे किसानो को फायदा है या नुक्सान ये तो आने वाला समय ही बताएगा . ( शरद पंसारी - संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र )