शौर्य की बातें / भारत के युवाओं में असीम शक्ति और संभावनाएं हैं। यदि अवसर मिले तो ये भारत को विश्वगुरु बनाने की क्षमता रखते हैं इसमें कोई शक नही। लेकिन भारतीय युवा राजनीतिक धूर्तताओ का शिकार है जिनको ये सिखाते हैं कि पकोड़ा तलना रोजगार है. क्या भारत के संविधान निर्माता ने 70 साल बाद सोचा था कि पकोड़े तलना राष्ट्रीय रोजगार होगा?
वोट कमाए जाते थे आज खरीदे जाते हैं। यदि भारत का युवा शिक्षित कर्मठ और योग्य है तो सिर्फ पकोड़े तलने तक सीमित क्यों है? सिस्टम ही खराब है कह दु तो शायद काफी लोग अफेंड हो जाएंगे. पर नीतियां चाहे राज्य सरकार की हो या केंद्र सभी लोगों के जीवन को ऊंचा उठाने के बजाय सिर्फ जीवन बच पाए तक ही सीमित लगती है।
भिक्षावृत्ति कानूनन अपराध है। ईश्वर के दिये हाथों का अपमान है लेकिन जब किसी वस्तु को उसकी कीमत कम या बिना दिए खरीदा जाता है तब वो स्थिति या तो चोरी है या भीख। क्या आज भी हमारे युवा रोटी, कपड़ा, मकान की निम्नतम जरूरतों में ही उलझे हुए हैं। अगर आज भी मकान दुकान का किराया, बिजली का बिल भरना ही चुनौती है तो भारत विकसित देशों के पूंजीपतियों का मुकाबला कैसे करेगा ,कैसे विश्वगुरु बनेगा?
बिल गेट्स का कथन की भारत को फ़ाइज़र बना नही पायेगा एक दुखद पहलू पेश करता है। जब रोटी दाल ही मिलना असीम आनंद और आलीशान लाइफ का प्रतीक हो तो व्यक्तिगत उत्थान तो दूर की कौड़ी मालूम होती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी किसानों का कर्ज माफ कर दिया, और वो चुनाव जीत भी गए। पर उस कर्ज की कीमत किसी न किसी को तो चुकानी होगी। किसान नही तो शिक्षक चुकाएगा, दुकानदार चुकाएगा, मध्यमवर्ग चुकाएगा।
मुफ्त में तो जहर भी नही आता पर चावल 1 या 2 रुपये में मिल जाता है. पर इसकी कीमत पेट्रोल के दामों में नजर आती है महंगी होती वस्तुओं में छिपाई जाती है। छत्तीसगढ़ सरकार के विज्ञापनों से सड़के अटी पटी है जहां 2 रुपये गोबर खरीदने की बात को जोर शोर से उठाया गया है। आप इसपर सहमति जता सकते हैं कम से कम गरीबों को कुछ तो मिल रहा है पर ध्यान से सोचिए। क्या आप अपने बच्चो को इस काम को आगे बढ़ाता देखना चाहेंगे या खुद इसका हिस्सा बनना चाहेंगे?
जो लोग कम कीमतों में या बिना कीमत दिए समान लेते हैं उनकी कीमत कोई और जरूर चुकाता है। जब वस्तु मुफ्त में मिलती है तब व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरी करने की जहमत भी नही उठाता है। 35 किलो मुफ्त मिलता अनाज फिर बिकने पीछे दरवाजे से वापस आ जाता है और कई बार बचा पैसा शराब सेवन में इस्तमाल हो जाता है। तभी तो होम डिलीवरी चालू है सोम रस की ताकि हर परिवार स्वर्ग जैसा बन जाये।
यदि इन मधुशालाओ को आधारकार्ड से लिंक कर दिया जाए तो सरकार हैरान रह जायेगी की 2 रुपये चावल खरीदते लोग 100 रुपये शराब पर लगा रहे हैं। आखिर ये पैसा जनता का है तो इसका इस्तेमाल गरीबो को खरीदने के लिए क्यो होता है? आप गरीबो के हितैषी दिखने के लिए करोड़ो रूपये तो विज्ञापनों में लगा देते हो।
गरीबी का इलाज तब तक संभव नही जब तक इसे बीमारी समझकर इसका इलाज न किया जाए। गरीबो को वोट बैंक समझेंगे और सिर्फ जीने लायक बनाएंगे तो ये क्या नया भारत बनाएंगे? ये मुफ्त में पैसे बांटना बन्द कीजिये, जाति के नाम पर एकाउंट में जमा होता पैसा, किसानों को मिलता पैसा, अनाज ,इलाज के नाम पर मुफ्त सर्विस, इसकी कीमत मध्यमवर्ग ही चुकाता है। हवा भी मुफ्त नही हो सकती किसी को पेड़ लगाना पड़ता है।
वैक्सीन की कमी पड़ी तो फिर सरकार ने खुद को गरीबों का मसीहा दिखाने के लिए एपीएल , बीपीएल और अंत्योदय का कार्ड खेल दिया और जिंदा रहने के हक को अमीर गरीब में बांट दिया। इस वजह से इतना कंफ्यूजन हुआ कि पूछो मत। भाजपा की वैक्सीन बताकर कोवैक्सीन की डोज़ नही ली जिसका खामियाजा सीजी को कोरोना प्रदेश बनाकर चुकाना पड़ा।
पैसे कमाने सरकार को कभी घर घर दारू बेचना पैड रहा या कोरोना के मौके पर रोड सेफ्टी जैसे मैच करवाने पड़े जिसनी सुपर स्प्रेडर का काम किया और कोरोना की दूसरी लहर ने राज्य को घुटनों पर ला दिया।
कहावत है अगर किसी को आम खरीदकर दे दो तो एक दिन खायेगा, अगर आम तोड़ना सीखा दो तो जीवन भर खायेगा। ये नकली गरीब प्रेम दिखाने वाली कांग्रेस सरकार ने ही 10% गरीब जनरल वर्ग को आरक्षण नही लेने दिया ताकि बहुतायत समुदाय नाराज न हो जाये। आज पूरा प्रदेश सरकारी तंत्र से नाराज है। सरकार को जरूरत है अपनी नीतियों पर पुनः विचार करने की और
देश को दुबारा पटरी पर लाने की।
लेख - डॉ. सिद्धार्थ शर्मा
सुपेला भिलाई