शौर्यपथ / आज अचानक आसमान की तरफ नजर उठाकर मैने देखा,
आसमान की काली स्याह बादलों के बीच नजर आने लगी एक आशा की रेखा।
कई दिनों से चारो ओर जो मुसीबत के बादल छाए थे
उनको कमजोर पढ़ते देखकर हम मन ही मन मुस्कुराए।
मन कहने लगा कि चलो अब ये मुसीबत के दिन टल जाएंगे।
मुरझाए हुए थे जो जीवन के फूल वो फिर से खिल जाएंगे।
तभी आसमान से एक आवाज ने मुझे टोका
कहने लगा कि आखिर तुम किसको दे रहे हो धोखा।
तुम्हारी मुसीबतों को मिलने वाला यह एक छोटा सा विराम है।
तुम्हारी सावधानियों में ही तुम्हारे जीवन का समाधान है।
मुझे मालूम है तुम कभी बदल नही सकते।
जीवन की सच्चाई में कभी ढल नही सकते।
तुम्हे तो बस दौडऩा है, भागना है और प्रकृति को उजाडऩा है।
इस धरा के नियम को तुमको अपने तौर तरीके से बनाना और बिगाडऩा है।
आज क्रंकीट के सड़को पर तुमको सरपट दौडऩा है।
और धरती माता के गर्भ से एक एक बूंद पानी भी निचोडऩा है।
बस अब भी वक्त है थम जाओ,
अपने जीवन की सात रंगों में ही रंग जाओ।
जो उजाड़ा है उसे बसाने की अपने मन ठान लो।
और अपने जीवन के हरपल को तुम फिर से संवार लो।
नही तो मैं फिर आऊंगा जलजला बनकर,कहर बनकर
और चीखती हुई लाशों का शहर बनकर।
मुझसे जैसा सुलूक करोगे वैसा ही तुमको लौटाऊंगा।
चंद हरियाली के बदले तुम पर हर खुशी लुटाऊंगा।
कुमार नायर