दुर्ग / शौर्यपथ / कहते है इस दुनिया में जब तक बेवकूफ है होशियार लोग भूखे नहीं मर सकते . धोखाधड़ी ,जालबाजी के नित नए किस्से अखबारों के माध्यम से सामने आते ही रहते है जिसमे कई मामले ऐसे होते है जिसमे जो पहले आरोपी नजर आता है वही बाद में पीडि़त साबित होता है . चेहरों से आदमी की पहचान इस कलयुग में तो लगभग असंभव है . आज ऐसे ही एक मामले की बात करते है जिसमे एक व्यक्ति द्वारा दुसरे व्यक्ति से जालसाजी कर 21 लाख का गबन का मामला सामने आया है .
मामला है उरला निवासी देवेन्द्र सिंह और सूर्या विहार कालोनी निवासी सुखदेव सिंह का . सुखदेव सिंह द्वारा पिछले माह मोहन नगर थाना में एक एफआईआर दर्ज कराई गयी जिसमे उरला निवासी देवेन्द्र सिंह द्वारा 21 लाख के गबन का मामला है . एफआईआर में कहा गया कि देवेन्द्र द्वारा अपनी जमीन का सौदा करना चाहता है और बैंक के ब्याज से परेशान होकर बैंक में पैसे पटा कर दस्तावेज को बंदक मुक्त करने की बात कही गयी और इसी भरोसे 31 लाख के सौदे में 21 लाख 3 माह के अंतराल में दिसम्बर 2017 व फरवरी 2018 को दो भागो में ( 6 लाख व 15 लाख दे दिए ) चुकी सारी रकम आरटीजीएस हुई इसलिए कोई दो मत नहीं की पैसे ट्रांसफर हुए . किसी भी व्यक्ति को इतने पैसे अगर डूबता हुए दिखे तो उसका चिंतित होना स्वाभाविक है .
वही जब इस आरोप के बारे में देवेन्द्र पाल सिंह लूथरा की धर्मपत्नी से जानकारी चाही गयी तो उनका कथन कुछ और ही कहानी बया कर रहा है . श्रीमती लूथरा के अनुसार देवेन्द्र पाल और सुखदेव की कभी मुलाक़ात ही नहीं हुई मुलाक़ात की बात तो दूर जिस समय इस रकम के लेन देन का मामला था उस समय भी मिलना तो दूर कभी एक दुसरे से फोन पर भी बात नहीं हुई ये रकम देवेन्द्र पाल के खाते में आयी ज़रूर है किन्तु देवेन्द्र पाल ने इस रकम को अपने किसी परिचित से ली थी जो की उसने यह रकम आरटीजीएस करवा देने की बात की और जिस परिचित से ये रकम ली गयी उसे इस रकम को नगद रूप में किस्तों में वापस कर दिया गया एवं जिस जमीन के सौदे की बात और बंधक की बात कही गयी है उस जमीन का क्रय ही 2017 के मध्य में हुआ एवं प्रमाणीकरण 8-9 माह में हुई . ऐसे में जमीन बैंक में बंधक रखने का सवाल ही नहीं उठता .
आखिर क्या खेल चल रहा है सुखदेव , देवेन्द्र और एक अज्ञात व्यक्ति के बीच
इस मामले में कुछ ऐसे प्रश्न है जो कई तरह की शंका पैदा करते है है . देवेन्द्र का कहना है कि उसकी सुखदेव से कभी बात नहीं हुई किन्तु पैसा सुखदेव के खाते से देवेन्द्र के खाते में आये . वही सुखदेव सिंह का कहना है कि देवेन्द्र उनके ऑफिस जमीन के कागज़ लेकर आया और जमीन को बंधक मुक्त करने के लिए जमीन का सौदा किया एवं सौदा 31 लाख में तय होने के बाद एडवास की रकम 21 लाख दिसम्बर 2017 में व फरवरी 2018 में दी गयी किन्तु दो साल तक जब रकम या जमीन नहीं मिलती दिखी तब पुलिस की शरण में जाना पडा किन्तु इन दो सालो में एक बार भी देवेन्द्र और सुखदेव के बीच कोई मुलाकात क्यों नहीं हुई कभी फोन पर बात क्यों नहीं हुई मुलाक़ात हुई ना हुई ये जांच का विषय है उसी तरह फोन पर एक बार भी इतने बड़े लेन दें करने वालो के बीइच बात ना होना आश्चर्य की बात है वही जब पहली मुलाक़ात जमीन के सौदे में हुई तो सुखदेव ने आखिर देवेन्द्र के खाते में 5 लाख की रकम 9 माह 2017 में क्यों ट्रांसफर किये और किसके कहने पर ट्रांसफर किये वो भी तब जब दोनों एक दुसरे को जानते तक नहीं थे फिर इस रकम का जिक्र क्यों नहीं . हर सवाल में एक तीसरा व्यक्ति है आखिर वो तीसरा व्यक्ति कौन है क्या पुलिस प्रशासन मामले की गहराई से छानबीन करेगी क्योकि कई ऐसे तथ्य है जो मामले में किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहे है ...