"झूठे निराकरण से जनता गुमराह, महापौर अलका वाघमारे की निष्क्रियता से बढ़ा जनता का आक्रोश"
"मुख्यमंत्री की पहल को पलीता, दुर्ग में सुशासन तिहार पर महापौर की चुप्पी भारी"
दुर्ग। शौर्यपथ।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय द्वारा शासन की पारदर्शिता, जवाबदेही और जनभागीदारी को मजबूती देने के उद्देश्य से “सुशासन तिहार” का आयोजन किया गया था, लेकिन दुर्ग नगर निगम ने इस नेक पहल को मजाक बना दिया। सुशासन के नाम पर जनसमस्याओं का समाधान तो दूर, आवेदनकर्ताओं को बिना निराकरण के ही संतुष्ट दिखा कर फर्जी आँकड़े तैयार कर प्रदेश सरकार को गुमराह करने की साजिश रची गई।
जांच में सामने आया है कि दर्जनों ऐसे आवेदन हैं जिन्हें "निराकृत" दिखा दिया गया, जबकि आवेदकों से बात करने पर स्पष्ट हुआ कि उनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं हुआ। कहीं जलनिकासी की व्यवस्था जस की तस है, तो कहीं अतिक्रमण हटाने के नाम पर खानापूर्ति कर ली गई। ऐसे कई आवेदन फील्ड विजिट के बिना, प्रत्यक्ष कार्रवाई के बिना और बिना संवाद के ही निपटाए दिखा दिए गए।
मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने का प्रयास
जहां एक ओर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सुशासन तिहार को जनता की आवाज़ और समस्याओं के स्थायी समाधान का माध्यम मानते हैं, वहीं दुर्ग निगम के कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों की कार्यप्रणाली मुख्यमंत्री की मंशा पर सवाल खड़े करती है। ये अधिकारी न केवल जनसमस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं, बल्कि फर्जी समाधान दिखाकर प्रदेश सरकार को आंकड़ों के खेल में उलझा रहे हैं। यदि अब भी समय रहते वस्तुस्थिति की स्वतंत्र जांच नहीं हुई, तो यह संपूर्ण योजना केवल कागज़ों में ही सफल बताई जाती रहेगी, और वास्तविक समस्याएं जस की तस बनी रहेंगी।
महापौर अलका वाघमार की भी चुप्पी सवालों के घेरे में
शहर की प्रथम नागरिक और महापौर अलका वाघमार की जिम्मेदारी बनती थी कि वे सुशासन तिहार के अंतर्गत आए आवेदनों की प्रगति की समीक्षा करतीं और सुनिश्चित करतीं कि हर आवेदन का समाधान जमीनी स्तर पर हो। मगर नगर निगम की लापरवाही और झूठे आंकड़े प्रस्तुत करने की साज़िश पर महापौर की चुप्पी ने यह संदेश दिया है कि शहरी सरकार सत्ता के सुख में जनता की आवाज को अनसुना कर रही है।
केवल दुर्ग ही नहीं, अन्य शहरों में भी ऐसी ही स्थिति!
सूत्रों के अनुसार, दुर्ग ही नहीं बल्कि राजनांदगांव, बिलासपुर और रायगढ़ जैसे कई जिलों में भी सुशासन तिहार के तहत बिना किसी कार्यवाही के आवेदनों को 'निराकृत' दर्शा देने की शिकायतें मिल रही हैं। कई जगहों पर सफाई, पानी, सड़कों की मरम्मत, अवैध कब्जे, राशन कार्ड जैसी समस्याओं को या तो नजरअंदाज कर दिया गया या कागजों पर हल कर दिखा दिया गया।
अब कार्रवाई जरूरी — नहीं तो मजाक बनकर रह जाएगा "सुशासन तिहार"
अब समय आ गया है कि नगरीय प्रशासन विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय खुद हर नगर निगम से प्राप्त आवेदन और उसके समाधान की स्वतंत्र जांच कराएं। जो अधिकारी सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी कर रहे हैं और जनसेवा की बजाय अपनी छवि चमकाने में लगे हैं, उन पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।जब तक ऐसे अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती, तब तक जनता को इस योजना का वास्तविक लाभ नहीं मिल सकेगा और "सुशासन तिहार" भी सिर्फ एक दिखावटी आयोजन बन कर रह जाएगा।
विशेष अनुरोध: यदि आपके पास ऐसे आवेदनों की सूची है जो निराकृत बताए गए हैं, लेकिन वास्तव में उनका कोई समाधान नहीं हुआ, तो आप इसकी जानकारी हमें भेज सकते हैं। "शौर्यपथ" इसे शासन स्तर तक पहुंचाने में मदद करेगा।
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