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शौर्यपथ / प्रदीप भोले एक गरीब परिवार का आदमी था।अपनी पत्नीऔर दो बच्चों के साथ मेहनत मजदूरी करके वह परिवार की जिंदगी की गाड़ी जैसे तैसे खींच रहाथा। बरसात के मौसम में लगातार बारिश की वजह से काम पर नहीं जा पाने के कारण घर में राशन पानी का संकट उठ खड़ा हुआ।आर्थिक तंगी से जूझने की नौबत आ गई थी।ऐसे में परिवार चलाने की जिम्मेदारी को निभाने के लिए भोले को खराब मौसम में भी काम पर जाना ही पड़ा।
तब भोले की पत्नी घर पर गीली लकड़ी सुलगाते हुए चुल्हे पर रोटी पका रही थी।बच्चे भूख से ब्याकुल थे।वे रोटी पकने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे।तवे परअधपकी रोटी को मां ने चिमटे से पकड़कर चूल्हे कीआग में पलट पलट कर सेंकना शुरू किया।तभीभूख कीआग में जलती पेट कीअंतड़ियों को सहलाते हुए बच्चे ने सवाल किया- मां बहुत खराब मौसम है,फिर भी बाबूजी को काम करने क्यों जाना पड़ा?
बच्चे के सवाल का जवाब देती हुई मां बोली-देखो बेटा,चूल्हे की धधकतीआग में रोटी को पकाने,उसे जलने से बचाने के लिए उलटने पलटने की जवाबदेही चिमटे की ही होती है।पकी हुई रोटी को निकालने के लिए चिमटे को आग मेंअपना मुंह जलाना ही पड़ता है।तुम्हारे बाबूजी भी चिमटे की तरह ही हैं।वेअपनी जिम्मेदारी निभाने निकले हैं।इतना कहते-कहते मां की आंखें धूंए से भर गई थी।
इसे देखकर बच्चा उठा और मां कीआंखों से बहते आंसू को पोंछते हुए बोला- मां,तुझेऔर बाबूजी को गरम गरम रोटी खिलाने के लिए,बड़ा होकर मैं भी चिमटा ही बनूंगा।बच्चे की बात सुनते ही मां ने झट से रोटी का एक टुकड़ा बच्चे के मुंह में डालाऔर उसे कलेजे से लिपटा लिया।
विजय मिश्रा 'अमित'
पूर्व अति.महाप्रबंधक(जन.) छग पावर कम्पनी,
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