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रायपुर / छत्तीसगढ़ की स्थापना के 18 साल बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वो कार्य किया जो इतिहास के पन्नो पर सदा के लिए दर्ज हो गया . आने वाले समय में सत्ता चाहे किसी की भी हो किन्तु श्रीराम की कर्मस्थली को पुनः सजीव करने का जो दायित्व श्रीराम ने मुख्यमंत्री बघेल को दिया उसे उन्होंने बखूबी निभाया . हालाँकि भारत में भारतीय जनता पार्टी राम नाम को आधार बना कर आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनितिक दल होने की बात करती है किन्तु राम नाम के सहारे सत्ता में पहुँचाने वाली भाजपा सरकार अपने 15 साल के कार्यकाल में कभी भी छत्तीसगढ़ से प्रभु राम के सम्बन्धो की गहराई को सहजने और सवारने का कार्य नहीं किया . ये कहने में कोई संकोज नहीं कि 15 साल के शासन काल में भाजपा सरकार ने कभी भी छत्तीसगढ़िया अस्मिता को राष्ट्रिय मंच पर लाने का प्रयास की हो छत्तीसगढ़िया सभ्यता को बड़ा मंच दिया हो . हो सकता है इसका सबसे बड़ा कारण सरकार के फैसले लेने वाले वो मंत्री हो जो छत्तीसगढ़ में तो निवास करते है किन्तु आज भी अपने पूर्वजो के याद को अन्य प्रदेशो में देखते है . गैर छत्तीसगढ़ी होने के कारण छत्तीसगढ़ की परंपरा को कभी महत्तव ही नहीं दिया . यहाँ तक छत्तीसगढ़ी बोली भी अंधेरो में कही खो रही थी . राम जी की माता का एकमात्र मंदिर होने के बाद भी भाजपा सरकार की इस दिशा में कभी कोई पहल नहीं रही . इसे अगर दुसरे शब्दों में कहे तो प्रभु श्रीराम ने ये अवसर उन्हें कभी दिया ही नहीं कि उनकी यादो को उनके कर्म भूमि को वो सहेजे . इस मामले में कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रभु राम ने इस नेक कार्य के लिए भूपेश बघेल को चुना . प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने अपने चुनावी वादों में राम वनगमन पथ , कौशल्या मंदिर संधारण की बात नहीं की इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसमें कांग्रेस पार्टी का भी योगदान है . यह सभी सोंच सीएम बघेल की थी जिसे उन्होंने सार्थक किया और जमीनी स्तर पर लाये .
ये कहने में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं कि प्रदेश के एक बड़े वर्ग को यह भी नहीं मालुम था कि प्रभु श्री राम का काफी वक्त इसी पवन भूमि में गुजरा जो आज छत्तीसगढ़ की भूमि है जिसकी भूमि को श्रीराम ने अपने चरणों से पावन कर दिया है . प्रभु श्री राम जब महल से निकल कर दंडकारण्य (वर्तमान में छत्तीसगढ़ ) आये थे तब श्री राम थे किन्तु जब वापस महल गए तब मर्यादा पुरषोत्तम राम हुए . इसी दंडकारण्य में प्रभु राम ने अपने जीवन के महत्तवपूर पल गुजारे , इसी दंडकारण्य में प्रभु राम ने वंचितों को साथ लिया और समाज को एकसार का सन्देश दिया , इसी दंडकारण्य में प्रभु श्री राम ने शबरी माता के स्नेह को प्राप्त किया , इसी दंडकारण्य में प्रभु श्री राम ने वनवास के कई साल बिताये , इसी दंडकारण्य में प्रभु श्रीराम ने अपने चरणों से इस भूमि को तीर्थ बनाया आज इसी दंडकारण्य को सहेजने का कार्य की सोंच को रामवन गमन पथ के जरिये सार्थक सीएम बघेल कर रहे है , आज विश्व के एकमात्र माता कौशिल्या मंदिर की रौनक को वापस लौटाने का कार्य सीएम बघेल ने किया और कौशिल्या माता महोत्सव के जरिये प्रदेश की जनता को श्री राम के करीब लाने का सफल प्रयास किया , राष्ट्रिय रामय प्रतियोगिता के जरिये प्रभु राम के दंडकारण्य में बिताये जीवन को मंचन द्वारा जीवंत करने के सफल प्रयास के जनक के रूप में सीएम बघेल को प्रदेश की जनता हमेशा याद रखेगी . सीएम बघेल ने कभी राम के नाम की राजनीती नहीं की किन्तु मर्यादा पुरषोत्तम राम को प्रदेश की जनता के बहुत करीब लाने का श्रेय सीएम बघेल को ही जाता है .
जिस तरह छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ की परंपरा , छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थलों को एक बार फिर विश्व मंच पर लाया वो पहल अनुकरणीय है . हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगो का विश्वास है कि जो भी काम होता है वो प्रभु की मर्जी से होता है प्रभु की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता . धन्य है भूपेश बघेल जिन्हें प्रभु श्री राम ने ये जिम्मेदारी दी कि छत्तीसगढ़ में राम जी के महत्तव को आम जानो तक पहुंचाए और इस कार्य में भूपेश बघेल ने सभी राजनितिक बाधाओ टिप्पणियों को अनसुना करते हुए आज छत्तीसगढ़ को राममय कर दिया . राम का नाम सब लेते है किन्तु राम में समाने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता जिस पर प्रभु राम की कृपा होती है वही राम का प्रिय होता है . छत्तीसगढ़ के भांचा राम अब एक बार फिर छत्तीसगढ़ की गलियों में हर घरो में नजर आ रहे है . अभी तक छत्तीसगढ़ सिर्फ एक प्रदेश था किन्तु अब छत्तीसगढ़ वो तपोभूमि के नाम से पुरे विश्व में पहचाना जाने लगा जहाँ श्री राम ने वनवास के एक बड़े काल को जिया था छत्तीसगढ़ में अब प्रभु राम नहीं छत्तीसगढ़ के भांचा राम हो गए जय श्री राम ...
भगवान श्रीराम को लेकर छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि उन्होंने 14 वर्ष के वनवास काल में से 10 वर्ष दण्डकारण्य में व्यतीत किया था . रामायण कथा के कई प्रसंगों में भगवान श्रीराम के छत्तीसगढ़ में प्रवास के वृतांत हैं. दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है.
शरद पंसारी
संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार
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