
CONTECT NO. - 8962936808
EMAIL ID - shouryapath12@gmail.com
Address - SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)
शौर्यपथ लेख / शहर में लॉक डाउन की घोषणा हुई और इस घोषणा से पहले जिला प्रशासन ने आम जनता की राय ली ऐसा सुनने में आया जब इस बात की गहराई तक गए तो पता जला कि एक बैठक हुई और शहर के जनप्रतिनिधि , व्यापारी संगठन और जिला प्रशासन के बड़े अधिकारियों ने मिल कर ये फैसला लिया कि शहर में एक बार फिर लॉक डाउन होना चाहिए और बहुत ही सख्त इतना सख्त कि हवा भी इधर से उधर ना हो सके सभी दुकाने बंद रहेंगी , सभी पेट्रोल पम्प बंद रहेंगे , सब्जी दूकान बंद रहेगी , राशन दूकान बंद रहेगी . सुनकर अच्छा लगा कि चलो शासन ने कोई सख्त कदम उठाया और जनता के हित की बात सोंची . पर क्या किसी ने भी यह सोंचा कि इन १० दिनों के सख्त लॉक डाउन और उसमे भी ७ दिनों का अति सख्त लॉक डाउन का क्या परिणाम निकलेगा . और आम जनता मिडिल क्लास जनता , गरीब तबके के लोगो पर इसका क्या असर पड़ेगा . गरीब और मध्यम वर्ग की पीड़ा क्या जनप्रतिनिधि समझते है , क्या अधिकारी समझते है , क्या व्यापारिक संगठन के मठाधीश समझते है . मेरे नजर से तो कोई भी नहीं समझता इनमे से .
चलिए आप ही अपने दिल पर हाँथ रखकर बताइये फैसले लेने वाले महोदय १० दिन तो क्या अगर १०० दिन भी लॉक डाउन रहेगा तो भी शहर के किसी भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को कोई परेशानी नहीं आएगी ना ही उनके घर में राशन की दिक्कत होगी और ना ही किसी अन्य तरह की परेशानी १०० दिन भी अगर घर पर रहेंगे तो भी उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा . ऐसी ही हालत व्यापारी संगठन की है शहर के व्यापारी संगठन वालो में से कोई ऐसा व्यापारी हो तो हमे जरुर बताइए जिसे १० तो क्या अगर १०० दिन भी लॉक डाउन रहे और घर के अंदर रहना पड़े तो कितने होंगे जिन्हें दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज़ होना होगा . यहाँ बात नफ़ा नुक्सान की नहीं दो वक्त की भूख मिटाने की हो रही है . ऐसी ही हालत बड़े बड़े पद में विराजमान शासकीय अधिकारी की ही बात करे तो एक भी ऐसा अधिकारी बता दीजिये जिन्हें दो वक्त पेट की आग शांत करने की चिंता होगी . मेरी नजर में इनमे से कोई नहीं है .
क्या शहर में सिर्फ गणमान्य नागरिक ही रहते है जिनकी राय ली जाती है क्या शहर की आम जनता के जीवन का कोई मोल नहीं है ये वही गणमान्य नागरिक है जो अपने व्यापर में कई बार शासन के नियमो की धज्जी उड़ाते हुए व्यापार करते है और ये देते है अपनी राय कि शहर में लॉक डाउन होना चाहिए क्या कोई ऐसा जनप्रतिनिधि है जो गरीब जनता की बात सुने तकलीफ सुन कर समस्या का हल करे यहाँ तो स्थिति इसी है कि जनप्रतिनिधि ज्ञान पेलने पर माहिर है क्योकि पेट के आग की इन्हें चिंता नहीं है अपनी नाकामी हुपाने और झूठी वाहवाही लुटने में ही इन्हें आत्म संतुष्टि मिलती है .
क्या फैसला लेने वाले मठाधिशो ने कभी सोंचा है कि १० दिन के लॉक डाउन में उस परिवार का क्या होगा जो रोज मजदूरी करता है और रोज घर में दो वक्त का खाना खाता है क्या उस परिवार का सोंचा है जो घर में बेरोजगार बैठा है , क्या उस व्यक्ति की पीड़ा का आभास है इन्हें जो अपनी तकलीफों के बावजूद इस लिए काम करता है कि रात को अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे सके . साहब पेट की आग क्या होती है फैसले लेने वाले को कभी अहसास ही नहीं है छोटी छोटी जरुरत को भी ना पूरी करने वाला इन १० दिनों में कैसे एक एक दिन गुजारेगा इस बात का अहसास एसी कमरे में हॉट काफी और कोल्ड काफी पीने वालो को यक़ीनन नहीं होगा इनके लिए तो १० दिन एक टार्गेट है क्योकि सारी सुविधाए , सारी शक्तियों के बाद भी ये महामारी से लड़ने के लिए कोई रास्ता तो नहीं निकाल रहे जिसे जनता का हित हो अपितु यही रास्ता निकाल लिए कि १० दिन घर में आराम करो . अरे साहब कौन १० दिन घर में आराम करेगा गरीब व्यक्ति १० दिन ऐसे बिताएगा जैसे एक एक पल सजा काट रहा हो और नजरो के सामने परिवार के सदस्यों की जरुरत को पूरी न कर पाने की पीड़ा सहन करते हुए ११ वे दिन का इंतज़ार करते हुए एक एक पल गिनता रहेगा और दिल से उन लोगो को बद्दुआ देगा जो जो इसके कारण है क्योकि १० दिन शासन के नियम को मानने वाला यही गरीब परिवार होता है इन १० दिनों की पीड़ा का अहसास अगर करना है तो आप रहो अपने आलिशान बंगले में किन्तु साथ यह भी करो कि घर से दो वक्त की रोटी के सारे इंतजाम हटा दो और देखो फिर कैसे आपको भी ये १० दिन १० साल जैसे लगेंगे .
चलिए साहब आप लोगो का फैसला सर आँखों पर ये १० दिन आपके आदेश अनुसार घर पर किन्तु क्या इन दस दिनों के बाद आने वाला समय सामान्य हो जाएगा क्या १० दिनों बाद जो भीड़ बाजार में उतरेगी उसे नियंत्रण कर पायेंगे , १० दिनों बाद जो वातावरण निर्मित होगा उससे क्या कोरोना और विस्फोट नहीं लेगा क्या १० दिनों के लॉक डाउन के बाद सब सामान्य हो जायेगा अगर ऐसा है तो १० क्या आप १५ दिन कर दो लॉक डाउन किन्तु उसके बाद भी अगर स्थिति सामान्य नहीं होगी तो क्या फैसले लेने वाले गणमान्य शहर की जनता के सामने ये कबुल करेंगे कि हमारा फैसला गलत था . हमे मालूम है नहीं करेंगे क्योकि आप लोगो से गलती नहीं होती साहब गलती तो गरीबो से होती है कानून तो गरीबो के लिए है , सारे नियम गरीबो के लिए है अगर आप के फैसले को सफलता मिलेगी तो बड़े बड़े प्रोपोगंडा करके अपनी कामयाबी बताएँगे किन्तु असफल होते ही सारा दोष एक बार फिर गरीब जनता के उपर लगा कर अपनी बुद्धिमता का परिचय देंगे क्योकि आप तो धरती के भगवन बन गए है किन्तु साहब कभी दिल से सोंचना इस दुनिया के बाद भी एक दुनिया है जहा आपका रुतबा नहीं आपके कर्म काम आते है और जिसके दरबार में कोई राजा नहीं होता कोई रंक नहीं होता सब एक सामान होते है और कर्मो का हिसाब देते है उस दरबार में ही सबका निष्पक्ष फैसला होता है . साहब आप लोगो के फैसले शिरोधार्य बस फैसले लेते समय आम जनता की तकलीफों के बारे में आम जनता से ही सवाल कीजिये ख़ास जनता क्या जाने आम जनता की तकलीफ अब तो बस यही दुआ है कि ये १० दिन पल पल के हिसाब से निकल जाए क्योकि पल पल का हिसाब ऍम जनता और गरीब जनता को ही करना है और करेगा भी क्योकि यही वो जनता है जो कानून का सम्मान करती है नियमो का पालन करती है लोकतंत्र की रक्षा करती है एक समाज के निर्माण में अपना अहम् योगदान देती है और वैश्विक महामारी से कही ज्यादा इस बात की चिंता में लीन रहती है कि परिवार को दो वक्त की रोटी कैसे नसीब हो ...( शरद पंसारी - संपादक दैनिक शौर्यपथ समाचार पत्र )
Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.