August 04, 2025
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कांग्रेस प्रत्याशी वोरा अपनी हार के खुद है सबसे बड़े जिम्मेदार , 50 साल की विरासत को 3 साल भी नहीं रख सके संभाल Featured

कांग्रेस प्रत्याशी वोरा अपनी हार के खुद है सबसे बड़े जिम्मेदार , 50 साल की विरासत को 3 साल भी नहीं रख सके संभाल कांग्रेस प्रत्याशी वोरा अपनी हार के खुद है सबसे बड़े जिम्मेदार , 50 साल की विरासत को 3 साल भी नहीं रख सके संभाल
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 दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा की हार एक यादव से ही हुई है पूर्व में भी लगातार है तीन बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में अरुण वोरा भाजपा के हेमचंद यादव से हारे वही इस बार फिर से भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र यादव से बड़े अंतर से चुनाव हार गए .यह चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा के लिए काफी महत्वपूर्ण था 50 साल की दुर्ग कांग्रेस में स्व. मोतीलाल वोरा की विरासत को संभालने की जिम्मेदारी अरुण वोरा के कंधों पर थी किंतु देश के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले स्व.मोतीलाल वोरा की विरासत को अरुण वोरा 3 साल से ज्यादा नहीं संभाल पाए इस बार दुर्ग विधानसभा क्षेत्र से अरुण वोरा का जबरदस्त विरोध हुआ हर वार्ड में ( तीन वार्ड छोडकर )अरुण वोरा की करारी हार हुई .शहर के 57 वार्ड में अरुण वोरा को हार का सामना करना पड़ा .
  भले ही कांग्रेस नेता और उनके समर्थक यह सोचे कि उनके विरुद्ध कांग्रेसियों ने कार्य किया किंतु कहीं से भी यह तथ्यात्मक नजर नहीं आता अगर विरोध में काम होता तो जीत हार का अंतर 2-5 हजार से ज्यादा नहीं होता किंतु यहां लगभग 40000 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा की हार हुई .हार के बाद भले ही अरुण वोरा समीक्षा करते रहे किंतु शहर में अब खुलकर अरुण वोरा के हार की समीक्षाएं होने लगी .
  कुछ बातें ऐसी निकल कर आई जो की सोचने पर मजबूर कर देती है कि यह बात कहीं से भी गलत नहीं है ..
संगठन को कमजोर कर दिया कांग्रेस नेता अरुण वोरा  ने
  दुर्ग शहर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस संगठन में पूरी मर्जी पूर्व विधायक अरुण वोरा की चलती रही उनके अनुशंसा से ही संगठन के पदाधिकारी तय होते थे परंतु दुर्ग शहर कांग्रेस में संगठन नाम का अस्तित्व ही नाम मात्र का रह गया था संगठन में कहने को तो कई ब्लॉक अध्यक्ष थे परंतु ब्लॉक अध्यक्षों का वर्चस्व शहर कांग्रेस में उतना नहीं था जितना होना चाहिए वही दुर्ग शहर में कांग्रेस कार्यालय होने के बावजूद भी संगठन विधायक निवास से संचालित होना भी यह साफ दर्शाता है कि पूर्व विधायक अरुण वोरा संगठन को अपने इशारों पर चलाना हते थे इसी निष्क्रिय संगठन का परिणाम रहा की दुर्ग शहर में कांग्रेस की करारी हार हुई . शहर अध्यक्ष गया पटेल जो संगठन के कार्यो को समझने और चलाने में वर्तमान समय तक नाकाम ही रहे सिर्फ एक मोहरे के रूप में पहचान बनी रही .वहीं युवाओं को साथ लेकर चलना और चुनावी माहौल में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका तय करने में भी संगठन को आगे रहना चाहिए परंतु दुर्ग शहर कांग्रेस में युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में आयुष शर्मा को जिम्मेदारी तो दे दी गई परंतु आयुष शर्मा की अनुभवहीनता और कम उम्र के साथ पारिवारिक जिम्मेदारी के परिपेक्ष में उनके द्वारा संगठन में भी वह समय नहीं दिया गया और ना ही संगठन को मजबूत करने की दिशा में कोई खास पहल की गई बावजूद इन सबको देखते हुए भी अरुण वोरा ने संगठन को मजबूत करने का कोई सार्थक कदम कभी नहीं उठाया जिसका परिणाम यह रहा की कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में अरुण वोरा की दुर्ग शहर में बड़े अंतर से हार हुई
ब्राह्मणवाद का भी है अरुण बड़ा पर समय-समय पर लगता रहा आप
  यूं तो किसी ने खुलकर नहीं कहा कि अरुण वोरा के द्वारा ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया जाता है परंतु अधिकतर कांग्रेसी और राजनितिक क्षेत्र से जुड़े लोगो द्वारा लगातार यह आरोप लगता ही रहा साथ ही जिन तथ्यों के आधार पर बात कही जा रही वह भी कही ना कही इस ओर इशारा भी कर रही . सभी को ज्ञात है कि पिछले निगम चुनाव जीतने के बाद तात्कालिक विधायक अरुण वोरा ने कांग्रेसियों से कहा था कि जिस जिस परिवार के सदस्यों को पार्षद का टिकट मिला है उसे परिवार के किसी भी सदस्य को एल्डरमैन के लिए अनुशंसा नहीं की जाएगी परंतु राजेश शर्मा के मामले में अरुण बोरा अपने वादों से अपनी बातों में झूठ साबित हुए यह सभी को मालूम है कि राजेश शर्मा का शहर के परिवार से पूर्व में पार्षद टिकिट दिया गया वो भी लीलाधर पाल का टिकिट काट कर जिसका परिणाम इस चुनाव में स्थानीय वार्ड से हार का सामना करना पडा . राजेश शर्मा की माता जी को पार्षद प्रत्याशी का टिकट मिला एवं अपनी बातों से ही मुखरते हुए आदमी बोलते राजेश शर्मा को एल्डरमैन बना दिया जिसे काफी विरोध भी हुआ परंतु विधायक की मर्जी के आगे सब बेबस थे और उसे समय उनके खिलाफ विरोध के स्वर तो थे परंतु वह मनमर्जी के आगे पीछे पड़ गए वहीं पर अंशुल पांडे को भी एल्डरमैन के रूप में नामित किया गया जिनका कोई लंबा राजनीतिक अनुभव भी नहीं था तथा उसे ही निगम के दर्ज़न भर शौच्ल का ठेका देना , अन्य कार्यो का डमी नाम (फार्म) से ठेकों की बरसात .वहीं जिला अध्यक्ष के रूप में आयुष शर्मा को महत्व दिया गया साथ ही नगर निगम के कार्यों में एवं पीडब्ल्यूडी के कार्यों की एक लंबी श्रृंखला उनकी झोली में डाल दी गई इन सब के बाद भूपेश सरकार की महत्वपूर्ण योजना राजीव मितान क्लब में शासन की तरफ से संयोजक के नाम में सुशील भारद्वाज का नाम था जिन्हें दरकिनार करते हुए अरुण वोरा ने विवेक मिश्रा को जो पिछले चुनाव में जोगी कांग्रेस के लिए कार्य कर रहे थे राजीव मितान क्लब का सर्वे सर्वा बना दिया राजीव युवा मितान क्लब में हुए भ्रष्टाचार के बारे में अब पूरा दुर्ग शहर जानता है कि किस तरह राजीव मितान क्लब के पैसों से का भ्रष्टाचार हुआ है जिसमे सामने विवेक मिश्रा का नाम आता है परंतु विवेक मिश्रा के नाम के पीछे पूरा आदेश राजनीति के क्षेत्र में अनुभवहीन सुमित वोरा की मनमर्जी ही चली जिसका परिणाम चुनावी संचालन के समय स्पष्ट देखने को मिला ।
शासन के पैसों का खुलकर हुआ दुरुपयोग
   ऐसा हो नहीं सकता कि विधायक के रूप में अरुण वोरा के द्वारा शासन के पैसे का दुरुपयोग हो रहा हो और उन्हें जानकारी ना हो विधायक अरुण वोरा द्वारा शासन के पैसे कभी अपने स्वार्थ और अपने चाटुकारों के लिए खुलकर प्रयोग किया गया और जरूरतमंदों को दरकिनार किया गया . स्वैक्षिक अनुदान राशि की बात करें या फिर मुख्यमंत्री अनुदान राशि की हर राशि को विधायक अरुण वोरा द्वारा सिर्फ उन्हीं लोगों को वितरित किया गया जो उनके बंगले में रोजाना हाजिरी देते हैं साल में दो-दो बार यह राशि बंगले में रोजाना हाजिरी देने वालों को लगता है एक परितोष के रूप में वितरित की जाती थी जो की हार का एक बड़ा कारण बना ।
    ऐसे कई अनेक कारण हैं जो अरुण वोरा कि हार में जो अहम भूमिका निभाते हैं और उनमें हुए  भ्रष्टाचार की बाते भी सामने आ रही है जो की हो सकता है भाजपा सरकार द्वारा जांच कर सामने लाई जाएगी चाहे संगठन की बात करें या फिर शासकीय राशियों की या फिर निगम के ठेके के कार्य वितरण की हर जगह अरुण वोरा की मनमानी खूब चली और जरूरतमंदों को उनके कार्यालय से निराश होकर आना पड़ा जिसका परिणाम यह रहा की एक दो वार्ड ही नहीं 57 वार्ड में विधायक अरुण वोरा की जबरदस्त हार हुई और जिले में एक बड़े हार के रूप में आम जनता ने अपना विरोध कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा के ऊपर दर्शा दिया . अब देखना यह है कि स्वैक्षिक अनुदान में सूची बदलना ,राजीव मितान क्लब के पैसों का बिना अध्यक्षों की जानकारी के निकालना ,ठगड़ा बाँध में सैकड़ो गाड़ी मुरुम निकालकर बेचना देना जैसे कई मामले जो विवादों में रहे हैं एक-एक व्यक्तियों को दर्जन दर्जन पर शौचालय / राशन दूकान / ठेका कार्य देना मामलों पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार और नगरी निकाय मंत्रालय द्वारा किस तरह से संज्ञान लेकर कार्यवाही की जाती है .

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