
CONTECT NO. - 8962936808
EMAIL ID - shouryapath12@gmail.com
Address - SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)
वरिष्ठ रंगकर्मी विजय मिश्रा ‘अमित‘ की रंगयात्रा
सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / लोक कलाओं का कुबेर है छत्तीसगढ़ । यहां के मनोरम लोकगीत, नृत्य, वाद्य परम्पराओं को लुप्त होने से बचाने और पुनर्जीवित कर सांस्कृतिक क्रांति का शंखनाद करने में अग्रणी योगदान दुर्ग जिला के निकट स्थित ग्राम बघेरा के दाऊ रामचन्द्र देशमुखजी का है। उन्होंने छत्तीसगढ़वासियों के भीतर सांस्कृतिक चेतना जगाने के उद्देश्य से ‘चन्देनी गोंदा‘ का गठन किया था। इस संस्था के उद्देश्य के पूर्ण हो जाने के पश्चात उन्होंने 22 फरवरी 1983 को ‘चंदैनी-गोंदा‘ को विसर्जित कर लोकनाट्य ‘कारी‘ की तैयारियों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर दिया था। ‘कारी‘ के निर्देशन का दायित्व अंचल के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी श्री रामहृदय तिवारी जी को सौंप दिया था। ‘कारी‘‘ का प्रथम प्रदर्शन 22 फरवरी 1984 को सिलियारी में हुआ था। दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी कालजयी सर्जना लोकनाट्य ‘कारी‘ में सरपंच तथा कथावाचक (छंततंजवत) की दोहरी भूमिका बहुमुखी प्रतिभा के धनी विजय मिश्रा ‘अमित‘ ने बड़ी ही कुशलता से निभायी थी। जहाँ सरपंच की भूमिका में उन्हें छत्तीसगढ़ी में संवाद करना होता था, वहीं कथावाचक की भूमिका में वे हिन्दी में कथानक को गति प्रदान करते थे। वर्तमान में वे छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कंपनीज रायपुर में अतिरिक्त महाप्रबंधक (जनसंपर्क) के पद पर सेवारत रहते हुए अभिनय व लेखन के क्षेत्र में भी सतत साधनारत हैं।
रायपुर बस स्टेन्ड में जमीन पर सोया
लोकनाट्य ‘कारी‘ की प्रस्तुति के दौरान अपने संघर्ष को साझा करते हुए विजय मिश्रा ‘अमित‘ बताते हैं कि ‘‘ वर्ष 1984-85 में मैं महासमुंद के एक निजी स्कूल में उच्च श्रेणी शिक्षक के पद पर सेवारत था। तब रात को कारी नाटक की प्रस्तुति के उपरांत मुझे सुबह महासमुंद स्कूल पहुंचना होता था, अतः रात को एक-दो बजे कारी नाटक की समाप्ति के उपरान्त मेन रोड पर आकर खड़ा हो जाता था, ताकि रायपुर बस स्टैंड पहुँचने के लिए गाड़ी उपलब्ध हो सके, अतः किसी भी वाहन कभी ट्रक तो कभी कबाड़ी की गाड़ी को रोक कर मैं रायपुर बस स्टैंड पहुँचने का प्रयास करता था और बस स्टैंड में जमीन पर ही चादर बिछा कर सो जाता था क्योंकि सुबह 4 बजे मुझे महासमुंद के लिए बस मिलती थी। अनेक रातों को रायपुर के बस स्टैंड पर मैं ऐसे ही सोया करता था और सुबह स्कूल पहुंचने के लिए सफर करता था।
इसी दौरान छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध लोक-गायिका कविता विवेक वासनिक जी की संस्था ‘‘अनुरागधारा - राजनांदगाँव‘‘ से भी जुडने का अवसर मिला। अनुरागधारा में अभिनय करने के साथ-साथ उद्घोषक के रूप में भी विशेष पहचान व लोकप्रियता मिली। कविता वासनिक जी के प्रमुख कैसेट ‘धरोहर‘, ‘धनी‘, ‘धुन‘, ‘नहीं माने काली‘ के अलावा लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कैसेट मैं छत्तीसगढ़ के माटी अंव में प्रारंभिक उद्घोष का भी बखूबी निर्वहन किया।
हिन्दी रंगकर्म में भी अभिनय का मनवाया लोहा
विजय मिश्रा ‘अमित‘ जी वर्ष 1976 में दुर्ग सुप्रसिद्ध संस्था क्षितिज रंग शिविर से जुड़े और अपनी अभिनय-कला का लोहा मनवाने लगे। इस दौरान वे नुक्कड़ नाटक में भी श्री राम ह्दय तिवारी जी के साथ सतत सक्रिय रहे। क्षितिज रंग शिविर के बैनर तले वर्ष 1980 से 1987 तक श्री संतोष जैन जी के निर्देशन में हम क्यों नहीं गाते, घर कहाँ है, अरण्य गाथा, मुर्गी वाला, विरोध, हाथी मरा नहीं है, जैसे कई सुप्रसिद्ध नाटकों का मंचन किया। सन् 1982 में जब टेलीविजन मोहल्ले के इक्का-दुक्का घरों में ही होता था तब उपग्रह दूरदर्शन केंद्र दिल्ली से लोरिक चंदा के दो एपिसोड प्रसारित हुए थे जिसमें विजय मिश्रा ‘अमित‘ ने राजा मेहर की महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वे दाऊ महासिंह चंद्रकार के सोनहा बिहान से भी जुड़े थे।
लोकनाट्यों की राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुति - बलराज साहनी अवाॅर्ड से अंलकृत
छत्तीसगकढ़ के बहुचर्चित लोकनाट्य कारी और लोरिक चंदा की मूल स्क्रिप्ट भिलाई निवासी सुप्रसिद्ध लेखक श्री प्रेम साइमन ने लिखी थी। दोनों लोक नाट्यों के मंचन की अवधि तीन से चार घण्टों की होती थी। इन दोनों लोकनाटयों का हिन्दी रूपान्तरण एक घंटे की अवधि के लिए अमितजी ने किया। इन नाटकों के संवाद ही हिंदी में लिखे गए, छत्तीसगढ़ी वेशभूषा, छत्तीसगढ़ी नृत्य-गीत, छत्तीसगढ़ के तीज त्यौहार और परम्पराओं से सुसज्जित इन नाटकों को मूल रूप में ही प्रस्तुत किया गया। इनका मंचन ऑल इंडिया ड्रामा काम्पीटिशन इलाहाबाद, उड़ीसा, दिल्ली, महाराष्ट्र , हिमाचल प्रदेश, बरेली, कोलकाता, शिमला, सोलन, भोपाल, नागपुर और जबलपुर में किया गया। इन नाटकों को हर स्पर्धा में सर्वश्रेष्ठ नाटक के अलावा अन्य अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। हिमाचल प्रदेश में ऑल इंडिया आर्टिस्ट एसोसिएशन ने विजय मिश्रा को इन उपलब्धियों के लिए वर्ष 1996 में बलराज साहनी अवार्ड से अलंकृत किया ।
राजधानी रायपुर में रहते हुए इन्होंने अनेक छत्तीसगढ़ी फिल्म जैसे - ‘मोही डारे रे‘, ‘पहुना‘, ‘बहुरिया‘, ‘पंचायत के फैसला‘, ‘सोंचत सोंचत प्यार होगे‘ आदि में प्रभावी अभिनय किया। इसके साथ ही दूरदर्शन के अनेक सीरियल व अनेक टेली फिल्म में भी काम किया । विशेष उल्लेखनीय है कि विजय मिश्रा ‘अमित‘ द्वारा लिखित नाटक रिजेक्ट पंडित का प्रसारण, हवा महल से भी हुआ। इनके द्वारा लिखे गए नाटकों, कहानियों तथा कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी रायपुर और जबलपुर से समय-समय पर होता रहा है। अनेक रचनाएँ राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं ।
चार दशक से अधिक की गौरवमयी कला यात्रा
40 वर्षों से अधिक की कला यात्रा के दौरान भीष्म साहनी, सुनील दत्त, मोहन गोखले, शफी ईनामदार, पंडित जसराज, जैसे अनेक ख्यातिलब्ध कलाकारों के करकमलों से पुरस्कृत होने का गौरव इन्हें प्राप्त हुआ। विजय मिश्रा ष्अमितष् जी बहुत गर्व के साथ बताते हैं कि उन्हें दाऊ रामचन्द्र देशमुख, दाऊ महासिंह चंद्रकार, दाऊ दीपक चंद्रकार, लक्ष्मण मस्तुरिया, केदार यादव, खुमानलाल साव, गिरिजा कुमार सिन्हा, संतोष कुमार टांक, पंचराम देवदास, शिव कुमार दीपक, भैयालाल हेड़ाऊ, मदन निषाद, गोविंद निर्मलकर, कविता वासनिक, विवेक वासनिक, साधना यादव, अनुराग ठाकुर, शैलजा ठाकुर, ममता चंद्राकर, रामहृदय तिवारी, संतोष जैन,चतरू साहू, कृष्णकुमार चैबे, विनायक अग्रवाल जैसी नामी-गिरामी छत्तीसगढ़ की विभूतियों के साथ काम करने का अवसर मिला ।
पशु पक्षियों और पर्यावरण संरक्षण में गहरी अभिरुचि
हिन्दी रंगकर्म, लोकनाट्य सहित लेखन के अलावा श्री विजय मिश्रा ‘अमित‘ जी को पशु पक्षियों और पर्यावरण संरक्षण में गहरी अभिरुचि है। इसके लिए इन्हें भास्कर समूह ने ‘वृक्ष-मित्र सम्मान‘ से सम्मानित किया है। विजय जी ‘पेड़-प्रहरी‘ नामक संस्था का गठन कर अभी तक हजारों वृक्षारोपण कर चुके हैं। वे पर्यटन के भी शौकीन हैं। इसी शौक के चलते उन्होंने कैलाश मानसरोवर, तिब्बत, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और थाईलैंड की यात्रा की है।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.