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दुर्ग / शौर्य्पथ / स्थानांतरण के मौके पर जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारियों एवं जिले के अन्य गणमान्य नागरिक संगठन के सदस्यों एवं आम नागरिकों ने कलेक्टर अंकित आनंद को भावभीनी विदाई दी। आज ही जिला पंचायत सीईओ कुंदन कुमार और अपर कलेक्टर गजेंद्र ठाकुर भी रिलीव हुए। इन्हें भी अधिकारी-कर्मचारियों एवं गणमान्य नागरिकों ने भावभीनी विदाई दी। कलेक्टर अंकित आनंद के विदा होने के मौके पर अधिकारी-कर्मचारियों के अतिरिक्त अन्य नागरिक संगठनों के पदाधिकारी भी उपस्थित थे। उन्होंने निवर्तमान कलेक्टर के कार्यकाल की प्रशंसा करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। विभिन्न नागरिक संगठनों के पदाधिकारियों ने कहा कि कलेक्टर अंकित आनंद ने बड़े ही परिश्रम और मनोयोग के साथ हम सबकी समस्याएं सुलझाने की दिशा में बड़ा काम किया। हम इसके लिए उनके प्रति आभार प्रदर्शन करने आए हैं। अधिकारी-कर्मचारियों ने भी जिले में उनके योगदान की प्रशंसा की और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। अधिकारी-कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का एहतियात बरतने हम सब इक_ा नहीं हो पाए, हममें से हर कोई व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर आभार प्रदर्शन करना चाहता था। अधिवक्ता संघ एवं अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने भी यह बात कही। इन्होंने कहा कि कलेक्टर हमेशा सुलभ होकर मिलते थे और ध्यानपूर्वक समस्याएं सुनकर उनके निदान की दिशा में त्वरित कार्रवाई करते थे। उनका कार्यकाल बहुत अच्छा रहा और हमेशा स्मृति में रहेगा। इसी तरह जिला पंचायत सीईओ कुंदन कुमार को भी भावभीनी विदाई दी गई। विदाई समारोह को संबोधित करते हुए जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती शालिनी यादव ने कहा कि अपने काम के प्रति पूरी तरह निष्ठा का भाव होने से लक्ष्य की प्राप्ति जरूर होती है। जिला पंचायत सीईओ कुंदन कुमार ने अपने कार्यकाल में नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी का कार्य बहुत अच्छी तरह से आगे बढाया। उन्होंने नवाचारी उपायों को ब?ावा दिया जो किसी भी योजना को सफल करने की दिशा में बड़ी भूमिका निभाते हैं। कोविड संक्रमण को थामने की दिशा में मनरेगा के कार्य को आगे बढाना उनका प्रमुख कार्य रहा। वे काफी सजग होकर और पूरे उत्साह के साथ कार्य करते रहे। इससे ग्रामीण विकास को बढावा देने में बड़ी मदद मिली। जिला पंचायत के अधिकारियों-कर्मचारियों ने भी श्री कुमार के योगदान को सराहा। इस मौके पर सीईओ ने जिला पंचायत के सभी पदाधिकारियों एवं अधिकारी-कर्मचारियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आप सभी के योगदान की वजह से हम नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाडी, मनरेगा जैसे कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से आगे बढाने में सफल रहे।
भिलाई / शौर्यपथ / माह मई में प्रति शनिवार और रविवार राज्य शासन के आदेश पर पूर्ण लॉकडाउन छूट प्राप्त दुकानों को छोड़कर का लोगों द्वारा पूर्ण पालन करने के पश्चात् सप्ताह के शेष दिनों में बेखौफ होकर बिना मास्क पहने बेवजह घुमना एवं सोशल डिस्टेसिंग के प्रति उदासहीनता व लाकडाउन के नियमों का पालन करने में लोग काफी हद तक लापरवाही बरत रहें है। लॉकडाउन 4 में शासन द्वारा मिली छूट का आम लोगो के साथ साथ व्यावसायिक वर्ग भी पूरा फायदा उठा रहें है। कुछ एक हठधार्मियों के चलते रिसाली क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण को मजाक बनाकर शासन के नियम निर्देषों की खुले आम धज्जियां उड़ा रहें है। बुधवार को रिसाली निगम के उडनदस्ता टीम द्वारा सभी वार्डो का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान आजाद मार्केट रिसाली के इलेक्ट्रीकल व्यवसायी द्वारा बेखोफ होकर रात 8 बजे तक दुकान संचालित करते पाये जाने पर 2000/- रूपये का अर्थदण्ड लगाया गया। वह नियम निर्देशों के पालन करने का सख्त चेतावनी दी गई। टंकी मरोदा एवं स्टेशन मरोदा के क्षेत्रों में युवाओं द्वारा मास्क जेब में रखकर दोपहियों गाड़ी में तीन सवारी घुमते पाये जाने पर गंभीरता से लेते हुए अर्थदण्ड वसूल किया गया एवं प्रदेष में कोरोना संक्रमण बढते प्रकरण की जानकारी व दुष्परिणाम से अवगत कराया गया। टंकी मरोदा स्थित सेलून दुकान का आकस्मिक निरीक्षण कर दुकानदार से डेली उपयोग में लायी जाने वाली वस्तूओं का सघन निरीक्षण कर सैनटाईजेशन का उपयोग करने व तौलिया, ब्लेड व अन्य वस्तुओं की सावधानी पूर्वक उपयोग करने की हिदायत दी गई। टीम द्वारा सभी वार्डो का निरीक्षण कर हठधार्मियों से 2700/- रूपये का जुर्माना वसूला गया। निरीक्षण के दौरान निगम के सहायक अभियंता बी.के. सिंह, सहा. राजस्व अधिकारी हरचरण सिंह अरोरा, राजस्व निरीक्षक अनिल मैश्राम, रमेशर निषाद, पुनित बंजारे, विनोद शुक्ला, आत्मा राम व राजस्व विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी उपस्थित थे।
दुर्ग। शौर्यपथ । जिले के नवनियुक्त कलेक्टर डा. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने आज पदभार ग्रहण किया। उन्होंने निवर्तमान कलेक्टर श्री अंकित आनंद से पदभार गृहण किया। डा. भूरे इससे पूर्व मुंगेली जिले में कलेक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। डा. भूरे वर्ष 2011 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। डा. भूरे मूल रूप से महाराष्ट्र से हैं। उन्होंने अपनी एमबीबीएस की डिग्री महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंस नाशिक से ली है।
नजरिया / शौर्यपथ /भारत आज एक बडे़ मानवीय और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। बड़ी संख्या में उन मजदूरों का पलायन हुआ है, जो हमारी अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र की रीढ़ रहे हैं और ये मजदूर आज खुद को सबसे अधिक घिरा हुआ पा रहे हैं। अर्थव्यवस्था मुश्किल में है और एक आर्थिक पैकेज की घोषणा हुई है। ज्यादातर विश्लेषकों, रेटिंग एजेंसियों और बैंकों ने इस पैकेज का आकार जीडीपी के 0.7 से 1.3 फीसदी के बीच आंका है, जबकि सरकार के अनुसार, यह 10 प्रतिशत है। सरकार ने खुद यह माना है कि 20 लाख करोड़ रुपये के इस पैकेज में रिजर्व बैंक द्वारा नकदी बढ़ाने के लिए दिए गए 8.02 लाख करोड़ शामिल हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक के परिणामों पर कोई आश्चर्य नहीं, जिसमें रेपो और रिवर्स रेपो दर घटाने का फैसला हुआ। रिजर्व बैंक द्वारा इन दरों में लगातार कटौती का मकसद बाजार में नकदी उपलब्धता बढ़ाना है। हालांकि उद्योगों और ऋण के खुदरा ग्राहकों को इस रेपो या रिवर्स रेपो रेट कटौती से कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि ऋण उपलब्ध नहीं हैं। बैंकिंग नेटवर्क में पहले से ही अच्छी मात्रा में तरलता है, लेकिन बैंकों के बीच जोखिम का विस्तार ऋण प्रवाह बढ़ाने और उद्योगों व आम लोगों तक रेट कटौती का लाभ पहुंचने में बाधा पैदा कर रहा है। आशंका है, इन दरों में कटौती मध्यम एवं निम्न आय वर्ग को प्रभावित करेगी, क्योंकि आने वाले दिनों में इन वर्गों की सावधि जमा पर ब्याज दरों में लगभग 0.5 प्रतिशत की कमी होगी।
ऋण देने में अत्यधिक सावधानी बरतने के लिए अकेले बैंकों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। देश की अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व कठिन समय से गुजर रही है और बैंक एनपीए रोकने के लिए अतिरिक्त सतर्कता से काम कर रहे हैं। प्राथमिक मुद्दा तरलता का अभाव नहीं है। असल में, हमारी अर्थव्यवस्था में तरलता की मांग गायब हो गई है। मांग बढ़ाने के लिए कैपिसिटी यूटिलाइजेशन के 68.6 प्रतिशत (अक्तूबर-दिसंबर 2019) को बढ़ाना है। यहीं पर प्रत्येक जन-धन खातों, पीएम किसान खातों, पेंशनर खातों में तत्काल 7,500 रुपये प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण की जरूरत है। इस नकदी हस्तांतरण से ग्रामीण व अद्र्ध-शहरी क्षेत्रों में मांग पैदा होगी, जो भारतीय उद्योग को अपनी शेष 31.4 प्रतिशत क्षमता का उपयोग करने में सक्षम बनाएगी। इसके लिए बैंकों को नकदी समर्थन और बढ़ाना होगा। रिजर्व बैंक ने जो नकदी प्रवाह अभी बढ़ाया है, उससे ऋण लेने में तेजी नहीं आने वाली।
रिजर्व बैंक ने ऋण चुकाने में और तीन महीने की राहत दी है। उसके द्वारा दी गई रियायतों से ऋण लेने वालों को राहत मिल सकती है, लेकिन बैंकों को नहीं, क्योंकि इससे उनके अपने खातों पर दबाव बढ़ जाएगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आत्मनिर्भर होने की दिशा में बैंकों और वित्त संस्थाओं को भगवान भरोसे न रहना पडे़। पिछले कुछ वर्षों में हम पीएमसी और येस बैंक जैसे उदाहरण देख चुके हैं।
देश के लिए एक और चुनौती खाद्य मुद्र्रास्फीति दर में लगातार वृद्धि है। लॉकडाउन की खामियों की वजह से आपूर्ति शृंखला में रुकावट आई है, जिससे अप्रैल 2020 में खाद्य मुद्र्रास्फीति दर बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। यदि अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने से पूर्व आपूर्ति शृंखलाओं के बारे में उचित योजना नहीं बनाई गई, तो यह और बढे़गी। यदि खाद्य मुद्र्रास्फीति की दर एक आरामदेह सीमा में वापस नहीं लौटती है, तो हमें उच्च मुद्र्रास्फीति दर व नकारात्मक जीडीपी विकास का सामना करने वाली अर्थव्यवस्था से निपटना पड़ेगा। हालांकि रिजर्व बैंक ने अनुमानित जीडीपी विकास का कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं दिया है, पर उसने यह तो बता ही दिया है कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी नकारात्मक रहेगी। कुछ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2021 के लिए माइनस पांच प्रतिशत की भविष्यवाणी की है।
इसलिए इस कठिन दौर से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका बैंकों को तरलता प्रदान करना नहीं है, बल्कि नई मांग पैदा करने के लिए कम से कम अगले छह महीनों तक बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण करना होगा। यह नए रोजगार पैदा करेगा और खपत या उपभोग भी बढ़ाएगा। इसके बाद ही हमारी जनसांख्यिकीय ताकत हमारे देश के आर्थिक पहिए को गति देगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)गौरव वल्लभ, कांग्रेस प्रवक्ता
सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / यह एक ऐसी गिनती है, जिसको गिनने की बदकिस्मती से हम बच नहीं सकते और इसके आंकडे़ रोज हमारी चिंताओं में इजाफा कर जाते हैं। कल देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या डेढ़ लाख का आंकड़ा पार कर गई और पिछले छह दिनों से लगातार छह हजार से ज्यादा नए मामले रोज सामने आ रहे हैं। हम इस महामारी के शिकार शीर्ष दस देशों में आ गए हैं। हालांकि, आईसीएमआर अब भी वायरस के सामुदायिक प्रसार की आशंका को नकार रहा है, तो यकीनन यह कुछ सुकून की बात है। पर जिस तरह से महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए और अब बिहार में इसकी तीव्रता दिख रही है, उससे तो यही लगता है कि लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाने में ये प्रदेश चूक गए। ऐसा मानने का आधार है। विदेश को छोड़िए, देश में ही केरल ने यह बताया है कि किसी महामारी से निपटने के लिए कैसी सूझबूझ, तैयारी और प्रशासनिक कौशल की जरूरत पड़ती है।
हमारे यहां कोरोना का पहला मामला केरल में ही 30 जनवरी को सामने आया था और आज वह संतोष जता सकता है कि पिछले चार महीने में उसके यहां संक्रमितों की संख्या हजार से भी नीचे रही, बल्कि इनमें भी आधे से अधिक मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं। उसकी यह उपलब्धि तब है, जब उसके यहां जनसंख्या घनत्व कई राज्यों के मुकाबले अधिक है और विदेश में रहने वाले नागरिक भी बड़ी संख्या में वहां लौटकर आए हैं। केरल की ही तरह, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने भी लॉकडाउन की अवधि का अपेक्षाकृत बेहतर उपयोग किया है। बल्कि आज हम जिस मुकाम पर हैं, उसमें अकेले महाराष्ट्र का एक तिहाई योगदान है। शुरुआत में राज्य सरकार वहां हालात को नियंत्रित करती हुई दिखी भी थी, मगर उसके बाद कुछ जैसे उससे छूटता-सा गया। कभी अस्पतालों से बदइंतजामी झांकती मिली, तो कभी फिजिकल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाती भीड़ स्टेशनों पर उमड़ती दिखी। कुछ ऐसी ही तस्वीरें गुजरात से आईं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तो एक वक्त इतने आश्वस्त थे कि चंद रोज के भीतर वह अपने यहां कोरोना पर पूर्ण नियंत्रण का एलान करने जा रहे थे। आज उनका प्रांत संक्रमण के मामले में नंबर दो पायदान पर है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अब राज्य लॉकडाउन में रियायत देने को बाध्य हैं, क्योंकि उन्हें राजस्व भी चाहिए, और उन पर कारोबार जगत का भी दबाव है।
कोविड-19 से जंग की एक विश्व-व्यापी सच्चाई यही है कि जिन भी देशों-प्रदेशों ने एक स्पष्ट नीति बनाई, और उस पर सख्ती से अमल किया, वे आज बेहतर स्थिति में हैं। इसके उलट, जहां कहीं भी उपायों के स्तर पर ऊहापोह की स्थिति रही, वहां के नागरिक समाज को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। हमने बहुत पहले देश में पूर्ण लॉकडाउन लागू करके एक अच्छी रणनीति अपनाई थी और इसका फायदा भी हुआ है, मगर हम इससे अपेक्षित लाभ नहीं उठा सके। चंद घटनाओं को छोड़ दें, तो सवा अरब से भी अधिक लोगों ने सरकार के निर्देश पर पहले 21 दिनों में जिस अनुशासन का पालन किया, उसका सारा हासिल इस महामारी को सांप्रदायिक रंग देने की राजनीति और प्रवासियों के मामले में दिशाहीन कार्य-प्रणाली के कारण तिरोहित हो गया। वरना आज हम डेढ़ लाख से अधिक संक्रमण के बाद की आशंकाओं से न घिरे होते।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ /चीन बदमाशी कर रहा है। पूरी दुनिया को कोरोना संकट में डालने के बाद भी वह आंखें तरेर रहा है। अपने ऊपर लगे आरोपों से वह नाखुश है। चीन के विदेश मंत्री का तो यह भी कहना है कि मुआवजे की मांग करने वाले देश दिवास्वप्न देख रहे हैं, अर्थात चीन का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि वह माफी मांगने की बजाय दूसरे देशों को धमका रहा है। सच यही है कि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में दुनिया को बताना उचित नहीं समझा, जिसके कारण इसका फैलाव तेजी से हुआ। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में हुआ है, जहां एक लाख से अधिक लोग इसका शिकार बन चुके हैं। फिर भी, चीन की ऐठन कम नहीं हुई है। दुखद यह भी है कि डब्ल्यूएचओ परोक्ष रूप से उसी का बचाव कर रहा है।
नीरज कुमार पाठक, नोएडा
बनाना होगा दबाव
पूरे विश्व में चीन अपनी गुप्त रणनीति, गहरी साजिश और योजनाओं के लिए जाना जाता है। कभी वह कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करता है, तो कभी सीमा-विवाद को बढ़ाकर पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है। कोरोना आपातकाल के इस दौर में भी वह लद्दाख, नेपाल, ताईवान, हांगकांग या भारत की सीमा में घुसपैठ करके अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह यह जताना चाहता है कि उसकी सीमाओं का कोई अंत नहीं है। अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए ही उसने कोरोना वायरस को जन्म दिया, ताकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो जाएं और उसका साम्राज्य बन जाए। निश्चित रूप से चीन दुनिया के साथ कॉकटेल गेम खेल रहा है, जिसे तभी रोका जा सकता है, जब पूरी दुनिया एकजुट होकर उस पर दबाव बनाएगी। पूरे विश्व को चीन से सजग रहना होगा।
संजय कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड
अव्यवस्था भरी यात्रा
रेल व हवाई यात्राओं के दौरान सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए भी संबंधित मंत्रियों का ध्यान समस्या के समाधान की तरफ कम है और विरोधियों को नीचा दिखाने में ज्यादा है। जब एक श्रमिक ट्रेन दो दिन की बजाय नौ दिनों में अपने गंतव्य पर पहुंचती है और ऐसी यात्राओं में कई श्रमिक अपनी जान गंवा देते हैं, तो इसको यात्रा नहीं, यातना ही कहा जाएगा। फिर भी मंत्रीगण ऐसा भाव बनाते हैं, मानो उनकी सरकार के कारण ही रेल चल रही है, वरना नहीं चलती। लॉकडाउन से पहले जहां हजारों ट्रेनें चलने के बाद भी किसी ट्रेन के अपने गंतव्य से भटकने का समाचार नहीं आया, वहीं अब कई ट्रेनें गलत जगहों पर पहुंच रही हैं। इससे भयानक अराजकता भला और क्या होगी?
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर
स्वास्थ्य मद में बजट बढ़े
वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें।
वीरेंद्र बहादुर पाण्डेय, गोंडा
रायपुर / शौर्यपथ / वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेश बिस्सा ने कहा कि जब भाजपा ने प्रश्न पूछने का सिलसिला शुरू किया ही है तो उन्हें केंद्र सरकार से भी प्रश्न पूछना चाहिए कि इस देश की आत्मा श्रमिकों की स्थिति जायजा केंद्र सरकार ने क्यों नहीं लिया?
बिस्सा ने कहा कि कचरे की तरह ट्रेनों की बोगियों में जिन गरीबों को भरकर लाया जा रहा है क्या वह उन्हें इंसान नहीं मानती? बिना वजह श्रमिक स्पेशल ट्रेने तीन दिन देर से गंतव्य स्थान पर पहुंच रही है, क्यों नहीं रेलवे मंत्री अपनी जवाबदारी लेते हुए इस्तीफा देते?
ट्रेनों में सफर कर रहे श्रमिक पानी और भूख की कमी के कारण दम तोड़ रहे हैं केंद्र सरकार क्यों उस पर मौन है? हाहाकारी तरीके से नोटबंदी की तरह आकर एक झटके में देश को बंद कर दिया यह फिक्र क्यों नहीं की कि गरीब का क्या होगा?
बिस्सा ने कहा कि झूठ की बुनियाद पर कल्पना की इमारत खड़ी की जा सकती है लेकिन जो गरीब आज असहाय हालत में है उसके दुख दर्द को दूर किये बिना केंद्र सरकार द्वारा राज्यों पर जिम्मेदारी डालना गलत है।
दुर्ग / शौर्यपथ / कोरोना आपदा के कारण शहर सहित देश दो महीनो के लॉक डाउन में जिन्दगी गुजार दी . कोरोना का संक्रमण से दुर्ग शहर अभी अछुता ही है और जन जीवन लॉक डाउन में मिली ढील के साथ सुचारू रूप से चल रहा है . इस कोरोना आपदा के दरमियान सुखा राशन वितरण की पहल दुर्ग विधायक और निगम महापौर द्वारा की गयी जिसके उपरान्त दुर्ग निगम के सभी पार्षदों की पार्षद निधि पहले २ लाख फिर बाद में २ लाख की स्वीकृति की गयी साथ ही विधायक व महापौर के द्वारा भी निधि दी गयी लगभग २ करोड़ ६० लाख रूपये की कीमत का सुखा राशन का वितरण दुर्ग निगम क्षेत्र में किया गया साथ ही कई संस्थाओ द्वारा भी सुखा राशन का दान निगम को किया गया .. राशन वितरण और खरीददारी का सारा जिम्मा निगम के एक ही अधिकारी प्रभारी ईई गोस्वामी के हांथो में निगम प्रशासन ने सौपा .
कई सामानों में हुआ प्रति नग एक से दो रूपये का खेल ..
राशन वितरण में शक्कर , आंटा , साबुन , चाय पत्ती , मसाला , तेल ,चावल , दाल , आलू , प्याज आदि जरुरत की वस्तुए वार्ड के ज़रूरतमंदों लोगो को दी गयी . कोरोना आपदा में शासन के पैसे का इससे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता था किन्तु इन वस्तुओ के खरीददारी में किन मानको का उपयोग किया गया वही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का खेल है आइये हर सामान के कीमतों का आंकलन करते है जिसके बारे में आम जनता को भलीभांति ज्ञात होगा ही कि कैसे एक अधिकारी द्वारा सोयाबीन की बड़ी के एक रूपये से दाल के १० रूपये तक का घोटाला किया गया ....
साबुन में एक से ढेढ़ रूपये प्रति नग में गड़बड़ी
निगम प्रशासन द्वारा एक लोकल साबुन की खरीदी की गई जिसकी प्रिंट कीमत ही 5 रुपये थी जबकि बड़ी बड़ी कम्पनी जो जीएसटी व सभी शासकीय टेक्स भुगतान के बाद भी 4 रुपये थोक भाव मे मिल जाती है किंतु निगम के ज़िम्मेदार अधिकारी द्वारा उसकी तय खरीदी मूल्य 5 रुपये ही दर्शायी गई खरीदी की संख्या हज़ारों नग थी वैसे ही नहाने के साबून और डिटर्जेंट पाऊडर में भी यही खेल चला । शौर्यपथ समाचार द्वारा जब इस बात को उजागर किया गया तब कपड़ा धोने के साबुन घड़ी साबुन और डिटर्जेंट को राशन के थैले में जगह मिली किन्तु तब तक साबुन के खेल में हज़ारों के बारे न्यारे हो गए ।
आलू प्याज में भी खूब चला खेल
सूखा राशन में आलू प्याज भी पेकिंग कर दिया गया । विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आलू प्याज की तय मात्रा की खरीदी पहले ही हो गई किन्तु प्रतिदिन के पेकिंग में अलग अलग कीमत अंकित कर आलू प्याज में भी हजारों का खेल हो गया ।
चावल दाल में चली अंधाधुन कमाई
सूखा राशन के पैकेट में चावल व दाल भी दिया गया कई पार्षदों के पैकेट में उसना चावल पालिस वाला भी वितरित किया गया जिसकी बाजार कीमत 24-25 रुपये है किंतु यहां भी चावल की कीमत प्रति पैकेट में 36 रुपये प्रति किलो अंकित की गई । वही मिक्स दाल जो बाजार में 55-57 रुपये प्रति किलो आसानी से चिल्हर भाव मे मिलता है की कीमत पैकेट में 70 रुपये अंकित की गई यानी एक किलो पर ही 10 से 12 रुपये का खेल हुआ ।
तेल की कीमत में बदलाव
एक ही कम्पनी के तेल की कीमत कभी 86 तो कभी 88 रुपये दर्शाए गए यह भी निगम के जिम्मेदार अधिकारी द्वारा हजारों के वारे न्यारे की संभावना व्यक्त की जा रही है क्योंकि तेल प्रति पैकेट ही दिया गया और सूखा राशन के वितरण की संख्या एक दो नही हजारों में थी ।
निम्न स्तर के चाय पत्ती में भी कमाई
सूखा राशन के पैकेट में निम्न स्तर के लोकल चाय पत्ती के वितरण में भी हज़ारों के वारे न्यारे हुए है और इन सामनो की खरीददारी की जिम्मेदारी भी प्रभारी ईई और निगम के सर्वेसर्वा मोहन पूरी गोस्वामी की थी ये वही मोहन पूरी गोस्वामी है जिन पर दीपावली में अपने खास मीडिया कर्मियों को लिफाफा देने का आरोप एक दैनिक समाचार पत्र में लगा था ।
सोयाबीन बड़ी में भी लगा दिए 4 रुपये प्रति पैकेट का चूना (80 ग्राम प्रति पेकेट )
निगम के सूखा राशन में सोयाबीन बड़ी और मुर्रा का भी वितरण किया गया । बाज़ार में अच्छी क्वालिटी का सोयाबीन बड़ी 1170 से 1200 रुपये बोरी (20 किलो ) आसानी से मिलता है किंतु निगम प्रशासन द्वारा यहां भी 4 रुपये की हेरा फेरी का अंदेशा है । प्राप्त जानकारी के अनुसार निगम के ईई ने अपने खासमखास व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी दी और यहां भी बड़ी घोटाला हो गया । शहर के नए महापौर बाकलीवाल राशन के भी व्यापारी है इस तरह से हुए राशन घोटाले में शहर की आम जनता का शक सीधे महापौर बाकलीवाल की तरफ जाता है किन्तु निगम की कार्यप्रणाली को करीबी से जानने वाले ही अच्छी तरह समझ सकते है कि निगम आयुक्त बर्मन के आदेश के अनुसार खरीदी का पेकिंग का सारा कार्य ईई मोहनपुरी गोस्वामी के जिम्मे है . प्राप्त जानकारी के अनुसार अब जब सुखा राशन वितरण का कार्य खत्म हो गया तो बिलिंग के कार्य के लिए डमी एजेंसी का सहारा लिया जा रहा है . जो सिर्फ बिलिंग का कार्य करेगी जबकि असली ठेकेदार कोई और है . कोरोना आपदा के पैसे की बंदरबाट होना निगम प्रशासन के कार्य प्रणाली और लचर व्यवस्था को दर्शाता है . क्या निगम आयुक्त बर्मन इन सब बातो से अनजान है या फिर किसी अनदेखी लाभ के कारण मौन है . अगर आयुक्त बर्मन इन सब बातो से अनजान है महापौर बाकलीवाल इन सब बातो से अनजान है तो समाचार के माध्यम से प्रकाशित खबर के आधार पर मामले की निष्पक्ष जाँच कर दोषी अधिकारी और फर्जी ठेकेदारों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही कर आम जनता को ये सन्देश दे कि प्रशासन निष्पक्ष होकर बिना लालच के कार्य कर रहा है .