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शौर्यपथ /गर्मियों में बार-बार होंठ सूखते रहते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह होती है कम पानी पीना और जब होंठ अपनी प्राकृतिक नमी खो देते हैं, तो भी यह परेशानी होती है। ऐसे में होंठों पर लिप बॉम लगाने से इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। मार्केट के लिप बॉम में कई तरह के केमिकल्स होते हैं, जिससे आपके होंठ धीरे-धीरे काले पड़ते जाते हैं। ऐसे में होंठो का नेचुरल कलर बनाए रखने के लिए आप घर पर भी लिप बाम बना सकते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं लिप बाम बनाने के दो आसान उपाय-
बिना कलर वाला लिप बाम बनाने का तरीका
कोकोनट आयल - न्यूटेला ( किसी भी कन्फेक्शनरी की दूकान पर उपलब्ध होगा ) - एक कंटेनर या डिब्बी एक हीटप्रूफ़ कप लें और उसमें 1 चम्मच मोम डालें। अब आधा चम्मच न्यूटेला डालें। ये डालने के बाद उसमें नारियल का तेल डालें। इसके बाद एक फ्राइंग पैन में पानी उबालें और हीटप्रूफ़ कप इस तरह उसमें रखें कि बनाया हुआ मिक्सचर न गिरे। जब मिक्सचर अच्छे से पिघल जाए तो उसको एक डिब्बी में डालकर फ्रीजर में 10 मिनट तक रख दें। आपकी लिप बाम तैयार है।
कलर्ड लिप बाम बनाने का तरीका
आईशेडो - शहद - वेसिलीन - 1 कंटेनर / डिब्बी एक चम्मच वेसिलीन को एक कांच के गिलास में डाल दें और फिर ओवन में दो मिनट तक पिघलाएं। इसके बाद अपने पसंदीदा रंग की आईशेडो के टुकडे करके उसमें दाल दें। इसके बाद मिक्सचर को अच्छे से हिलाएं। ये करने के बाद थोड़ा सा हनी डाल दें। फाइनल मिक्सचर को जिस कंटेनर में आपको रखना है उसमें डाल दें और फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें। आपकी कलर्ड लिप बाम तैयार।
सेहत / शौर्यपथ / बिना किसी उपकरण के सिर्फ शरीर के भार के साथ किए जाने वाले व्यायाम बॉडीवेट एक्सरसाइज कहलाते हैं। ये व्यायाम करने से पूरे शरीर की कसरत होती है इसलिए इन्हें बतौर वॉर्मअप सबसे पहले किया जाता है। ये व्यायाम हर स्तर के लोग कर सकते हैं, चाहे वे लंबे समय बाद व्यायाम करना शुरू कर रहे हों या फिर हर दिन व्यायाम करते हों। आज हम आपको ऐसे ही तीन बॉडीवेट एक्सरसाइज के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आपको दो सेट में दस से 15 बार करना होगा।
ब्रिज-
इसमें शरीर के कोर एरिया और पीठ के हिस्से के बीच ऐसी समन्वय करना होता है कि पूरा शरीर एक पुल की आकृति बनाता दिखे। यह वार्मअप के लिए बेहतरीन व्यायाम है। इसे करने के लिए आप पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं, घुटने मुड़े रहेंगे और पंजा जमीन पर सीधा रहेगा। दोनों हाथों को जमीन पर सीधा रखें। अब शरीर के कोर एरिया को पैरों की ओर ढकेलने का प्रयास करें। अपने पिछले हिस्से को जमीन से ऊपर तब तक उठाएं, जब तक नितंब पूरी तरह उठ नहीं जाता। अब स्टार्ट पोजिशन में लौटें और व्यायाम को दोहराएं।
लाभ : यह नितंब और नितंब से जांघ के बीच की मांसपेशियों की जकड़न दूर करती है। साथ ही उदर व पीठ पर मांसपेशियों पर भी सकारात्मक असर होता है।
चेयर स्क्वॉट-
कुर्सी के सामने खड़े हो जाएं, दोनों पैर और बांहें खुली रहेंगी और पंजे आशिंक रूप से बाहर की ओर केंद्रित होंगे। शरीर का भार नितंब पर ले जाएं और घुटने को झुका लें। अब निचले हिस्से को इतना नीचे ले जाएं कि वह कुर्सी की सतह को छू जाए। आपके दोनों हाथ सामने की ओर खुले रहेंगे, अब पैर के बल पुशअप करें और रिटर्न पोजिशन में लौटें।
लाभ : यह व्यायाम करने से पैर और शरीर के मुख्यभाग को मजबूती मिलती है जिससे रोजमर्रा की शारीरिक गतिविधियां करने में हम थकावट महसूस नहीं करते।
नी पुशअप-
स्टैंडर्ड पुशअप सीखना चाहते हैं तो नी-पुशअप से शुरूआत करें। इसे करने के लिए घुटने और दोनों हाथों के बल जमीन पर प्लांक की अवस्था में आ जाएं। इसमें शरीर का पूरा हिस्सा हवा में रहेगा और सिर से घुटने तक शरीर एक रेखा में रहना चाहिए। अब अपनी कोहनी मोड़कर खुद को जमीन तक झुकाएं। कोहनी को जमीन से 45 अंश के कोण पर रखें। अब कोहनी को ऊपर ले जाते हुए शरीर को ऊपर ले जाएं। फिर स्टार्ट पोजिशन में लौटें और दोहराएं।
लाभ : यह शरीर की मेटाबोलिक दर बढ़ाता है और हड्डी क्षरण को कम करता है। साथ ही शरीर के कोर एरिया की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
खाना खजाना / शौर्यपथ / कच्चे आम का नाम लेते ही मुंह में पानी आने लगता है। अक्सर लोगों को लगता है कि कच्चे आम से सिर्फ चटनी और अचार ही बनाए जाते हैं। लेकिन आपको बता दें, इससे अचार और चटनी ही नहीं यह दाल फ्राई को Tangy बनाने का काम भी करता हैं। आप सोच रहे होंगे आखिर कैसे तो चलिए जानते हैं पूजा रॉय से।
कच्चा आम दाल फ्राई-
सामग्री
-अरहर दाल- 1 कप
-कद्दूकस किया कच्चा आम- 2 चम्मच
-हल्दी पाउडर- 1/2 चम्मच
-लाल मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच
-कटा टमाटर- 1
-कटी हुई मिर्च- 2
-करी पत्ता- 10
-कटा प्याज- 1
-लाल मिर्च- 2
-लहसुन की कली- 4
-नमक- स्वादानुसार
-घी- 1 चम्मच
विधि-
प्रेशर कुकर में दाल, नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, कटी हुई हरी मिर्च, टमाटर और कद्दूकस किया हुआ आम डालें। दो कप पानी डालकर कुकर बंद करें और तीन से चार सीटी आने तक पकाएं। गैस ऑफ करें और कुकर की सीटी अपने-आप निकलने दें।
कुकर खोलें और दाल को अच्छी तरह से मैश कर दें। एक छोटी कड़ाही में घी गर्म करें और उसमें लाल मिर्च को तोड़कर डालें। अब कड़ाही में प्याज डालें और उसे सुनहरा होने तक भूनें। लहसुन की कलियों को चम्मच या किसी और चीज से हल्का-सा मैश कर दें और उसे कड़ाही में डालें।
एक मिनट बाद तैयार दाल को कड़ाही में डालकर मिलाएं और पांच से सात मिनट तक मध्यम आंच पर पकाएं। अगर दाल गाढ़ी हो गई है तो उसमें थोड़ा पानी डालकर गाढ़ापन एडजस्ट करें। नमक चख लें और किसी सूखी सब्जी और रोटी के साथ इस दाल को सर्व करें।
लाइफस्टाइल/ शौर्यपथ / रमजान के पवित्र महीने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। रमजान के पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। सुबह सेहरी के साथ रोजा शुरू होता है और शाम को इफ्तार के बाद रोजा खत्म किया जाता है। रमजान का महीना तीस दिन का होता है और चांद के दिखने पर निर्भर होता है। जिस दिन चांद दिखता है उसके अगले दिन ईद का त्योहार मनाया जाता है। ईद उल फितर की सही तारीख चांद के दिखने पर ही तय की जाती है।
इसका समय अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकता है। इस्लामिक कैलेंडर की मानें तो यह चांद पर निर्भर है जो 29 या 30 दिन का होता है। चांद के दिखने से नए महीने की शुरुआत होती है। आपको बता दें कि सऊदी अरब, यूएई और कई खाड़ी देशों में 22 मई को ईद का चांद दिखाई नहीं दिया इसलिए 23 मई को ईद नहीं मनाई गई। वहां इस बार 30 दिन के रोजे के बाद ईद मनाई जाएगी। इसलिए वहां अब रविवार को ईद मनाई जाएगी। भारत में ईद-उल-फितर का त्योहार 24 या 25 मई को मनाया जा सकता है। इसी तरह भारत में भी ईद के चांद का दीदार करने के लिए लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।भारत में भी आज ईद का चांद देखा जाएगा। अगर शनिवार को ईद का चांद दिखता है तो रविवार को ईद मनाई जाएगी। अगर शनिवार को चांद नहीं दिखा तो सोमवार को ईद मनाई जाएगी।
बिहार के फुलवारीशरीफ में इमारत-ए-शरिया व खानकाह मुबिजिया ने शनिवार को ईद की चांद देखने का एहतेमाम करने का ऐलान किया है। वहीं इमारत-ए-शरिया के काजी शरियत मोहम्मद जसीमुद्दीन व खानकाह-ए-मुजिबिया फुलवारीशरीफ के प्रबंधक मौलाना मिनहाजुद्दीन कादरी ने प्रेस रिलीज जारी कर ईद-उल-फितर की चांद देखने का शनिवार को ऐलान किया है। इस दौरान कहा गया है कि शनिवार को ईद का चांद दिखता है तो रविवार को ईद मनाई जाएगी। अगर शनिवार को चांद नहीं दिखा तो सोमवार को ईद मनाई जाएगी।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / मूंगा मंगल ग्रह का रत्न है, जिन जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह क्रूर हो उसका मूंगा धारण करना अधिक लाभकारी है।
मंगल का अर्थ तो कल्याणकारी होता है इसमें इक प्रत्य के इस्तेमाल से बने शब्द मांगलिक का अर्थ भी शुभ ही होता है लेकिन जब यह शब्द मंगल ग्रह के संदर्भ में जुड़ जाते हैं तो इनका एक अर्थ नकारात्मक भी हो जाता है। ऐसे ही ज्योतिष शास्त्र में मंगल दोष को शांत करने के लिये भी कई सुझाव दिये जाते हैं जिनमें से एक है पीड़ित जातक का मूंगा रत्न पहनना। मंगल की पीड़ा को शांत करने के लिए जातकों को मूंगा धारण करना चाहिये।
मूंगा यथासंभव सोने की अंगूठी में जड़वाया जाना चाहिए। यदि धारक के लिए सोना खरीदना संभव न हो तो चांदी में थोड़ा सोन मिलाकर या तांबे की अंगूठी में मूंगा जड़वाया जा सकता है। मूंगा पहनने वाले को पेट दर्द व सूखा रोग नहीं होता है। हृदय के रोग के लिए भी मूंगा लाभकारी होता है।
इस मंत्र का करें उच्चारण
मूंगा किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सूर्योदय के एक घंटे बाद दाएं हाथ की अनामिका उंगली में में धारण करना चाहिए। मूंगा धारण करते समय अंगूठी का पूजन करने के बाद ऊं अं अंगारकाय नम: मंत्र का दस हजार बार उच्चारण करें।
इन स्थितियों में पहनना चाहिए मूंगा
- कुंडली में अगर मंगल राहु या शनि के साथ कहीं भी स्थित हो तो मूंगा पहनना अत्यांत लाभदायक सिद्ध होता है।
-यदि मंगल प्रथम भाव में स्थित हो तो मूंगा धारण करना लाभकारी होता है।
-कंडली में मंगल अगर तीसरे स्थान पर हो तो भाई-बहनों में मदभेद होता , इसे दूर करने के लिए मूंगा पहनना चाहिए।
-कुंडली में यदि मंगल चतुर्थ भाव में हो तो जीवन-साथी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अत: ऐसे जातक मूंगा अवश्य धारण करें।
-कुंडली में मंगल सप्तम या द्वादश भागव में शुभ नहीं होता, इससे जीवन साथी को कष्ट होता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को भी मूंगा पहनना चाहिए।
खेल / शौर्यपथ / भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच रवि शास्त्री ने ट्वीट करते हुए लोगों से एक अपील की है। उन्होंने लोगों से मदद की अपील करते हुए कहा कि वह मुंबई के रिटायर्ड क्रिकेटर और ग्राउंसमैन की मदद करें। कोरोना वायरस की वजग से सभी क्रिकेट गतिविधियों पर ब्रेक लगा हुआ है। भारत में कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा कहर महाराष्ट्र पर टूट रहा है। ऐसे में लॉकडाउन के दौरान मुंबई के रिटायर्ड क्रिकेटर, अंपायर और ग्राउंड स्टाफ को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में कोच रवि शास्त्री ने लोगों से मदद की अपील की है।
1981 में भारत के लिए डेब्यू करने वाले रवि शास्त्री शानदार क्रिकेटरों में से एक हैं। वह फिलहाल विराट कोहली की कप्तानी वाली भारतीय क्रिकेट टीम के कोच हैं। कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है। लॉकडाउन की वजह से बहुत सी आर्थिक गतिवधियां भी रुकी हुई हैं, जिसके वजह से कई अलग-अलग प्रोफेशन के बहुत से लोगों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे में कोच रवि शास्त्री ने अपने ऑफिशियल टि्वटर अकाउंट से ट्वीट करते हुए लिखा- ''क्रिकेट कम्युनिटी की मदद के लिए हम सब एक साथ आते हैं। यह परीक्षा का समय हैं और थोड़ी सी सहानुभूति भी बड़ी मदद होगी।''
बता दें कि भारतीय क्रिकेटर संघ (आईसीए) ने कोविड-19 महामारी के कारण परेशानी झेल रहे 36 जरूरतमंद खिलाड़ियों को वित्तीय मदद देने के लिए चुना है जिनमें पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज देवराज गोविंदराज भी शामिल हैं। गोविंदराज (73) उस भारतीय टीम का हिस्सा थे, जिसने 1971 में इंग्लैंड और वेस्टइंडीज में ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज जीती थीं। इस तेज गेंदबाज ने 93 प्रथम श्रेणी मैचों में 190 विकेट चटकाये, हालांकि उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला। वह इंग्लैंड में बसे थे, लेकिन फिर भारत लौट आए।
संघ के अध्यक्ष अशोक मल्होत्रा ने कहा, ''आईसीए को संन्यास ले चुके प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों और विधवाओं से वित्तीय मदद के लिए कुल 52 आवेदन (पुरुष और महिला) मिले। आईसीए के निदेशक बोर्ड के पांच सदस्यों ने 36 जरूरतमंद, संन्यास ले चुके क्रिकेटरों/विधवाओं को वित्तीय मदद की मंजूरी दी।'' हालांकि गोविंदराज सात अन्य (पुरूष और महिला) के साथ बी वर्ग में शामिल हैं, जिन्हें प्रत्येक को 80,000 रुपये की मदद दी जाएगी।
वहीं ए वर्ग में 20 लोगों (11 पुरुष और नौ महिलाएं) में उत्तर प्रदेश और दिल्ली के पूर्व खिलाड़ी शामिल हैं जिन्हें एक लाख की मदद दी जाएगी जबकि तीसरे वर्ग में आठ लोगों को 60-60 हजार की सहायता मिलेगी। आईसीए ने इस स्वास्थ्य संकट के बीच पूर्व खिलाड़ियों की मदद के लिए 15 मई तक 57 लाख रुपये इकट्ठा कर लिए थे। इसमें पूर्व खिलाड़ी सुनील गावस्कर और कपिल देव ने भी वित्तीय योगदान दिया है। भारत की पहले खिलाड़ी संघ आईसीए से 1750 पूर्व क्रिकेटर पंजीकृत हैं।
मनोरंजन / शौर्यपथ / इस वक्त पूरा देश कोरोना वायरस से परेशान है। अदनान सामी इस वक्त अपनी बेटी को लेकर चिंता में हैं। अदनान ने कहा, 'हमें इस वक्त अपने बच्चों को पूरा ध्यान रखना चाहिए। हमें उनका मेंटली और फिजिकली पूरा ध्यान रखना चाहिए।'
अदनान ने कहा, 'हम बच्चों के बारे में ज्यादा बात नही करते हैं। बच्चे ऑनलाइन वीडियोज देखते हैं जिसमें बच्चे बाहर खेल रहे होते हैं तो वो सोचते हैं कि हम बाहर क्यों नहीं बाहर जा सकते। इस उम्र में उनके अंदर बहुत एनर्जी होती है जो उन्हें बाहर निकालनी होती है।'
अदनान ने आगे कहा, 'ये जो वक्त चल रहा है वो गुजर जाएगा। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चों की जिंदगी में कड़वी यादें रहे। हम इसलिए इस वक्त अपनी बेटी को पूरा समय दे रहे हैं। उसका पूरा ध्यान रख रहे हैं।'
अदनान ने बताया कि बेटी का ध्यान रखने के अलावा वह अपने म्यूजिक पर भी फोकस कर रहे हैं। इन दिनों वह गाने कम्पोज कर रहे हैं और लिरिक्स लिख रहे हैं।हालांकि लॉकडाउन के शुरुआत में वह काफी परेशान हुए थे। उन्होंने कहा, 'मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है। इसके बाद धीरे-धीरे मैंने इस सिचुएशन को हैंडल किया।'
जब अदनान से पूछा गया क्या भारत में सुरक्षित महसूस करते हो...
कुछ दिनों पहले एक इवेंट में अदनान से पूछा गया कि आमिर खान कहते हैं कि वह भारत में सुरक्षित महसूस नहीं करते, क्या आप करते हैं और सीएए को लेकर आपकी क्या राय है? तो इस पर अदनान ने कहा, 'मुस्लिम होने के नाते मैं भारत में सुरक्षित महसूस करता हूं।'
मनोरंजन / शौर्यपथ / संजय दत्त लॉकडाउन की वजह से अपने परिवार से दूर हैं। संजय की पत्नी मान्यता दत्त अपने दोनों बच्चों के साथ दुबई में फंसी हैं और संजय मुंबई में अकेले रह रहे हैं। संजय से दूर होने पर मान्यता ने कहा, लॉकडाउन में अगर हम साथ होते तो चीजें ज्यादा आसान होती।
संजय से दूर होने पर मान्यता ने कहा, 'मैं चाहती थी कि काश मेरा पूरा परिवार लॉकडाउन में साथ होता। हम 2 अलग-अलग देशों में ना होते तो चीजें ज्यादा आसान होती हमारे लिए। संजू अपने बच्चों के साथ बहुत ही शानदार समय बिता पाते।'
मान्यता ने आगे कहा, 'मुझे इस बात का दुख है कि मैं घर नहीं हूं। ये एकदम अचानक हुआ। मुझे थोड़ा बुरा लग रहा है, लेकिन क्या करें हम कुछ नहीं कर सकते।'
संजय ने कुछ दिनों पहले आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के साथ बात की। संजय ने उनसे बात करते हुए बताया कि जब वह जेल में थे तब भगवान शिव की पूजा करते थे। संजय ने कहा था, 'मुझे लगता था कि शायद कोई चमत्कार हो जाएगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं तभी जेल से बाहर आया जब मुझे आना था।'
इसके बाद संजय ने रविशंकर से सवाल किया था कि ऐसे में प्रार्थना का क्या महत्व है?
रविशंकर ने संजय को जवाब देते हुए कहा था कि प्रार्थना और प्रयत्न दोनों अलग चीज हैं। दोनों का साथ में चलना जरूरी है। उन्होंने कहा था, 'प्रार्थना लोग तब करते हैं जब उन्हें लगता है कि उनके पास कोई रास्ता नहीं है। अगर प्रार्थना और प्रयत्न दोनों साथ चले तो हमें उसका फल जरूर मिलता है।'
संजय ने यह भी बताया कि वह अपने माता-पिता को बहुत याद करते हैं। संजय ने रविशंकर को बताया कि हाल ही में उनकी मां नरगिस दत्त की 39वीं डेथ एनिवर्सरी थी और वह अपनी मां को बहुत याद करते हैं।
जीना इस्सी का नाम है / शौर्यपथ / वह काफी सेहतमंद पैदा हुई थीं, और इस बात को लेकर घर में सब काफी खुश थे। खुश होने की बात ही थी। मीठी मुस्कान लिए नन्ही बच्ची घर में इधर-उधर ठुमकती, तो कोई भी उसे गोद में उठाकर दुलारने का लोभ नहीं छोड़ पाता था। मगर अम्मा-अप्पा को तब क्या पता था कि उनकी लाडली का वजन उसके बचपन को तकलीफदेह ख्यालों से भर देगा।
दीपा जब स्कूल पहुंचीं, तो वहां उन्हें एक बिल्कुल अलग दुनिया मिली। इस नए संसार में खूब सारे बच्चे थे, कई मैडम और खेलने की काफी सारी जगहें थीं। तमाम बच्चों की तरह दीपा को भी हमउम्र दोस्तों के बीच खेलना-कूदना खूब रास आता। मगर एक दिन कुछ ऐसा घटा, जिससे उनके कोमल मन को कुछ अच्छा नहीं लगा और वह सुबक पड़ीं। किसी ने उन्हें ‘बेबी एलिफैंट’ कहा था। फिर तो यह जैसे उन्हें चिढ़ाने का मुहावरा-सा बन गया।
दीपा के भीतर एक ग्रंथि बनने लगी थी। सहपाठियों के अलावा भी कई लोग थे, जो मौका पाकर उनके मोटापे पर अपना निशाना साध बैठते और इन सबका असर दीपा की पढ़ाई पर पड़ने लगा था। वह अब ज्यादातर खामोश रहने लगी थीं। अक्सर दोस्तों से कतराकर जल्द घर पहुंचने के रास्ते तलाशती रहतीं। वह क्लास में फेल हो गईं। दीपा के लिए स्कूल का माहौल अब और तकलीफदेह हो उठा था। लेकिन एक टीचर ने उनकी मनोदशा को पढ़ लिया।
तब दीपा कक्षा आठ में थीं। टीचर जानती थीं कि यदि इस बच्ची को निराशा के गड्ढे से अभी न निकाला गया, तो यह गहरी खाई में गिर सकती है। उन्होंने दीपा का हौसला बढ़ाना शुरू किया। यह एक टीचर का फर्ज था, मगर दीपा की जिंदगी में किसी फरिश्ते की आमद थी। टीचर ने उन्हें उनके गुणों का एहसास कराना शुरू किया और हताशा की ओर मुडे़ कदम जिंदगी की जानिब लौट लाए। बल्कि कुछ यूं लौटे कि दीपा पुरानी दीपा न रहीं। और स्कूली जिंदगी में ही एक मोड़ वह भी आया, जब दोस्तों से कन्नी काटकर घर भागने वाली इस लड़की ने उनकी नुमाइंदगी करने का दावा पेश कर दिया। दीपा ने स्कूली चुनाव लड़ा और उसमें जीत भी हासिल की। उसके बाद तो जैसे उनका कायांतरण ही हो गया। खुद उनके शब्द हैं, ‘उस जीत ने मुझे जिम्मेदार बना दिया, और मैं आत्मविश्वास से भरी एक लड़की के रूप में खिलने के लिए अपने खोल से बाहर आ गई।’
चेन्नई के ‘प्रिंस मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल’से निकलकर दीपा शहर के ही ‘एथिराज कॉलेज फॉर वीमेन’ पहुंच गईं, जहां से उन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। और इसके बाद एमबीए। आरपीजी रिटेल ग्रुप में प्रशिक्षण के दौरान दीपा और अरविंद ने विवाह करने का फैसला किया था। लेकिन न तो दीपा का परिवार इस शादी के पक्ष में था, और न ही अरविंद का। इसके बावजूद दोनों विवाह-बंधन में बंध गए। शादी के नौवें महीने ही दीपा एक बेटे की मां बन गईं और उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। अब सारा आर्थिक बोझ अरविंद के कंधे पर आ गया। दीपा को काफी बुरा लगता था कि वह पति की कोई मदद नहीं कर पा रही हैं। उसी समय उनके पुराने बॉस का फोन आया कि दीपा उनके बेटे की बर्थडे पार्टी का आयोजन देख लें।
यह 2002 के आसपास की बात है। दीपा ने ‘गो ग्रीन’नाम से थीम पार्टी का आयोजन किया, और रिटर्न गिफ्ट में सबको पौधे दिए गए। इस पार्टी में शरीक होने वाले लोगों को आइडिया काफी पसंद आया, और फिर दीपा का बिजनेस चल पड़ा। उसके बाद वह बच्चों के लिए समर कैंप का आयोजन करने लगीं। ‘लीडरशिप फॉर किड्स’कार्यक्रम के जरिए वह बच्चों को अपना जीवन बदलने के लिए प्रेरित करती थीं। उनका यह काम भी अच्छा चल निकला।
लेकिन जिंदगी इंसान का इम्तिहान लेना कब छोड़ती है? कारोबार में साझेदार की नीयत बदल गई और दीपा का सब कुछ लुट गया। कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपना घर, कार, सब कुछ बेचना पड़ा। यहां तक कि बेटे को उसके स्कूल से निकालना पड़ा, क्योंकि वह उसकी फीस नहीं चुका सकती थीं। लगभग उसी वक्त वह एक बेटी की भी मां बन गई थीं।
किसी तरह जीना था। मगर कैसे? दीपा ने बसंत नगर समुद्र तट पर बच्चों को बैलून बेचना शुरू किया। ‘बीच’ पर आने वाले बच्चों से पैसे लेकर वह उन्हें कहानियां सुनातीं और फिर बैलून बेचतीं। बच्चे उनकी कहानियों के मुरीद होकर खूब आने लगे। इस आइडिया पर स्थानीय मीडिया की नजर पड़ी, उन्होंने दीपा को खूब छापा। अखबार में पढ़कर मदुरई के एक स्कूल ने उन्हें अपने यहां दास्तानगोई के लिए बुलाया। उसी समय दीपा ने ‘स्कूल ऑफ सक्सेस’ की नींव रखी। आज उनका समूह 2,500 से ज्यादा स्कूलों में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए कहानी सुनाने से लेकर प्रशिक्षण देने तक का कार्यक्रम आयोजित करता है। दीपा स्कूलों से कोई निश्चित फीस नहीं लेतीं, बल्कि उन्हें ही यह अख्तियार सौंप देती हैं। अब तक तीन लाख से अधिक बच्चे-बच्चियां स्कूल ऑफ सक्सेस से लाभ उठा चुके हैं।
प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह
मेरी कहानी / शौर्यपथ / विदेश जाने की खुशी ऐसी थी कि पंख लग गए थे। मन सुने-सुनाए लंदन में पहुंचकर टहलने लगा था और तन को वहां पहुंचाने के लिए जल-जहाज का टिकट भी खरीद लिया गया था। बडे़ भाई साहब लंदन में ही रहते थे, तो उन्होंने छोटे को बुला भेजा कि आ जाओ, यहीं से इंजीनिर्यंरग पढ़ लो, जिंदगी संवर जाएगी। पिता भी फूले नहीं समा रहे थे। बड़ा बेटा पहले ही विलायत जा जमा था और अब दूसरा भी उसी नक्शेकदम पर चले, तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है? पिता ने अंग्रेज शिक्षकों के स्कूल में बेटे को पढ़ाया भी यही सोचकर कि बेटा पठानों के इलाकाई खून-खराबे से अलग रहकर दुनिया के लायक बनेगा। एक तरह से पिता का सोचा हुआ ही साकार हो रहा था।
बेटे को इस बात की भी खुशी थी कि एक ठंडे देश में जाकर रहना-पढ़ना होगा। उन दिनों गरमी की छुट्टियां चल रही थीं। उस अलीगढ़ में कॉलेज बंद हो गया था, जहां बहुत गरमी थी। पेशावरी इलाके से अलग माहौल उसे बेचैन कर देता था। यह खुशी थी कि अब मंजिल अलीगढ़ नहीं, इंग्लैंड है। स्कूल में पढ़ाने वाले अंग्रेज शिक्षक रेवेरेंड विगरैम के भी आनंद का ठिकाना न था। आर्थिक रूप से सक्षम पिता बहराम खान कितनी खुशी से बेटे को लंदन भेज रहे थे, इसका पता इसी से चलता है कि जिस जमाने में दस ग्राम सोना 20 रुपये का भी नहीं था, तब पिता ने बेटे को 3,000 रुपये थमा दिए थे। अब न धन की कमी थी और न लंदन पहुंचकर ठौर-कौर की चिंता। देखते-देखते वह दिन भी आ गया, जब लंदन के लिए निकलना था। पूरा बिस्तर-सामान बंध चुका था। चंद मिनटों में घर से रवानगी थी। छह फुट से भी लंबा हो चला नौजवान बेटा लंबे-लंबे डग भरता मां के पास पहुंचा कि चलते-चलते आशीर्वाद ले लिया जाए।
झुककर अभिवादन करते हुए बेटे ने कहा, ‘मां, अब मैं चलूं’।
मां कुछ नहीं बोली। बेटे ने हाथ बढ़ाया और मां ने बेटे के हाथ को अपनी हथेलियों से घेर लिया। बेटा मां के पास बैठ गया। मां की हथेलियां बेटे की हथेलियों पर कसती गईं। बेटे की हथेलियां इतनी निर्मोही नहीं थीं कि मां की हथेलियों से खुद को छुड़ा लें। वैसे भी ऐसा नाजुक वक्त जब गुजरता है, तब थामने वाली हथेलियां सीधे दिल थामने लगती हैं। मां ने पूरे दिल से थाम लिया था। बेटे के दिल में भी नमी उमड़ने लगी थी, लेकिन वह बही पहले मां की आंखों से। मां के कांपते होंठों से गुहार फूटी, ‘नहीं, तुम नहीं।...मेरी आखिरी औलाद’।
फिर तो आंसू रोके न रुके। वह मां अड़ गई, जो बडे़ बेटे को पहले ही विलायत के हाथों गंवा चुकी थी। वह वहीं निकाह कर घर-बार बसा चुका था। परदेश को लोग इतना अपना क्यों मान लेते हैं कि अपना सगा घर-गांव पराया हो जाता है? बड़ा गया, अब छोटा भी चला जाएगा, तो फिर पीछे साथ कौन रह जाएगा? क्या यही इल्म है, जिसे हासिल करने जाने वाले लौटते नहीं हैं? कोई मां क्या इसलिए अपनी औलाद को अपने साये में पोसती है कि वह बच्चा जब सायादार हो जाए, तो किसी परदेश को फल-छांव दे और देश में बूढ़े मां-बाप सिर पर साये को मोहताज हो जाएं? एक पल को बेटे ने सोचा, क्या वह मां के बिना रह सकता है, और वह भी ऐसी मां, जो हथेलियां थामे जार-जार रो रही है? और ऐसी मां को यूं गंवाकर कौन-सी कमाई करने वह परदेश जा रहा है? यह वही मां है, जिसने खूंखार पठानी लड़ाइयों-झंझावातों से बचाकर सीने से लगाए पाला है।
फिर क्या था, फैसला हो गया। जो मन लंदन जा चुका था, वह मां की गोद में सिमट आया। तय हो गया, कहीं नहीं जाना, यहीं मां की निगहबानी में रहना है। मां की ही सेवा करनी है। अपनी मां, अपनी जमीन, अपना मुल्क, इनका भला क्या विकल्प है? मां ने रोक लिया। 3,000 रुपये पिता को वापस हो गए। भाई को खत चला गया कि अपना देश प्यारा है। फिर अलीगढ़ भी लौटना न हुआ। पढ़ाई छूट गई। वहीं अपने खेतों में पसीना लहलहाने लगा। तब तक जो इल्म हासिल हो चुका था, वह भी कम न था। महज 20 की उम्र में मां के उस दुलारे ने स्कूल खोलकर जननी जन्मभूमि की सेवा शुरू कर दी। पठानों के तमाम इलाकों में एक सेकुलर, सेवाभावी, एकजुट भारत के निर्माण के लिए उन्होंने स्वयंसेवकों का एक संगठन बनाया- खुदाई खिदमतगार। मातृभूमि की इतनी सेवा हुई कि अंग्रेजों को चुभने लगी। गिरफ्तारी के वारंट जारी होने लगे। अंग्रेज खोजने लगे कि कहां हैं वह अब्दुल गफ्फार खान, उर्फ बादशाह खान, उर्फ बच्चा खान? वही, जिन्हें दुनिया आज ‘सरहदी गांधी’ के नाम से जानती है। महात्मा गांधी के परमप्रिय, सत्य-अहिंसा के झंडाबरदार। विभाजन के दुर्भाग्य से पाकिस्तान के हिस्से में चले गए ऐसे पहले स्वजन-विदेशी, जो भारत रत्न हैं।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय