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नई दिल्ली /शौर्यपथ /सुप्रीम कोर्ट सोमवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है। पीठ ने मामले में नोटिस जारी किया और जांच में सहयोग के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं को न्याय मित्र नियुक्त किया है। साथ ही मामले की सुनवाई 7 नवंबर को तय की है। हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की 16 साल की उम्र में यौवन हासिल करने के बाद अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने नोटिस जारी किया और अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किया। पीठ ने कहा, "इस मामले पर विचार करने की जरूरत है।"
दरअसल, एनसीपीसीआर की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह एक "गंभीर मुद्दा" है और फैसले में टिप्पणियों पर रोक लगाने की मांग की। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे की जांच करेगी और मामले की सुनवाई 7 नवंबर को तय की है।
हाई कोर्ट ने क्यों सुनाया था फैसला
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने 13 जून को पठानकोट के एक मुस्लिम दंपति की याचिका पर यह आदेश पारित किया था, जिन्होंने सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि मामले में विचार करने का मुद्दा शादी की वैधता के संबंध में नहीं था, बल्कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उनके जीवन और आजादी पर मंडरा रहे खतरे की आशंका को दूर करने के लिए था।
आदेश में क्या था
उच्च न्यायालय ने कहा था, "अदालत इस तथ्य पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती है कि याचिकाकर्ताओं की आशंकाओं को दूर करने की आवश्यकता है। केवल इसलिए कि याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवार के सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया है, उन्हें भारत के संविधान में परिकल्पित मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।"
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