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नई दिल्ली / शौर्यपथ / तमिलनाडु में हिंदी को लेकर उस वक्त एक नया विवाद खड़ा हो गया जब द्रमुक ने आरोप लगाया कि आयुष विभाग द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन बैठक में योग और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े उन पेशेवरों को बैठक छोड़कर जाने को कहा गया, जो हिंदी नहीं समझ सकते थे. विपक्षी दल ने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के प्रमुख एम के स्टालिन ने आरोप लगाया कि इस प्रकरण ने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के अधिकारियों के जरिये हिंदी थोपने के एजेंडे का “पर्दाफाश” हो गया है. वहीं, पार्टी सांसद कनिमोई ने आयुष मंत्री श्रीपद येस्सो नाइक को पत्र लिखकर मामले में जांच की मांग की है.
यह मामला हाल ही में कनिमोई द्वारा किये गए उस दावे के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक कर्मी ने उनके हिंदी नहीं बोल पाने पर पूछा था क्या वह भारतीय हैं? इसके बाद एक बार फिर “हिंदी थोपे जाने” की बहस शुरू हो गई.
स्टालिन ने एक बयान में आरोप लगाया कि आयुष सचिव राजेश कोटेचा ने “हिंदी को लेकर अहंकार और आक्रामकता भरा व्यवहार दिखाते हुए योग और प्राकृतिक चितित्सा से जुड़े 37 पेशेवरों को धमकाते हुए कहा कि अगर वे हिंदी नहीं जानते हैं तो ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र छोड़कर चले जाएं.” उन्होंने इसकी निंदा की.
स्टालिन ने शनिवार को कहा, “यह शर्मनाक है कि सचिव स्तर के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने भाषायी पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर ऐसा असभ्य व्यवहार किया.” उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि ऐसी घटना फिर न हो और मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी से कहा कि वह मोदी सरकार पर दबाव डालें कि केंद्र सरकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम और बैठकें सिर्फ अंग्रेजी में ही हों.
उन्होंने आरोप लगाया, “केंद्र की भाजपा सरकार हिंदी को अपना पहला एजेंडा रखकर लगातार काम कर रही है,” और अन्य भाषाओं खासकर तमिल को हाशिये पर डालने की कोशिश कर रही है.
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