August 04, 2025
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आयुक्त बर्मन का ट्रान्सफर विधायक वोरा की जीत या हार ... Featured

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दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग निगम आयुक्त इन्द्रजीत बर्मन जो दुर्ग निगम के सबसे युवा आयुक्त के रूप में जाने जाते है हालाँकि अब उनका ट्रांसफर कबीरधाम सयुक्त कलेक्टर के पद पर हो गया . आयुक्त बर्मन और दुर्ग निगम के मुखिया धीरज बाकलीवाल दोनों में आपसी सामंजस्य शुरू से ही नहीं बैठा या सीधे तौर पर कहा जाए तो दुर्ग के विधायक के अनुसार आयुक्त नहीं चले और दुर्ग निगम आयुक्त का ट्रांसफर हो गया . सत्ता पक्ष ख़ुशी मना रही है कि उनके लगातार शिकायतों का परिणाम रहा आयुक्त का ट्रान्सफर और इस बात को विधायक की हर बातो को बढ़ा चढ़ा कर समाचार बनाने वाले कुछ निजी वेब पोर्टल वालो ने भी लिखा और इस तरह लिखा कि विधायक वोरा से सामंजस्य नहीं बना पाने के कारण आयुक्त का स्थानान्तरण हो गया . वैसे आज आयुक्त बर्मन का स्थानान्तरण तो हो गया किन्तु उनके पद में कोई कटौती नहीं हुई जबकि ट्रांसफर कराने का दम भरने वाले कई छुटभैये नेता आज पद में है कल रहेंगे या नहीं ये भी निश्चित नहीं है .
वैसे आयुक्त बर्मन ने दुर्ग शहर को एक तरह से बर्बाद ही कर दिया था . जब से आयुक्त बर्मन ने दुर्ग निगम का पदभार संभाला निगम में फर्जी ठेकेदारों को लापरवाही से कार्य करने वाले ठेकेदारों को प्रतिबंधित किया वही गुपचुप ठेका पद्दति को खत्म करके ओपन ठेका चालू करवाया आयुक्त बर्मन के इस कार्य से चाटुकारों को काम मिलने में दिक्कत होने लगी जो कि सत्ताधारी नेताओ के चाटुकारिता के दम पर कार्य हांसिल करते थे . खैर अब एक बार फिर चाटुकारों को कार्य मिलने लगेगा और खुल कर कमीशन का खेल चलेगा पर इससे हमारे जनप्रतिनिधियों को क्या मतलब क्योकि चुनाव में अभी काफी समय है अभी तो अपने समर्थको का भला करना है .
         आयुक्त की दूसरी गलती यह रही की जिस नाली और नालो की सफाई का कार्य लाखो के ठेका से होता था और जिसे चंद लोग ख़ास लोग लेकर लीपापोती करके बड़े बड़े बिल निकाल लेते थे उस कार्य को बिना खर्च किये निगम के कर्मचारियों से ही करा लिया . आखिर क्या फायदा हुआ आयुक्त बर्मन को इससे उलटे ठेकेदारों की लाखो की कमाई पर रोक लग गयी यक्त बर्मन को ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योकि पैसा कोई उनकी जेब से तो जा नहीं रहा जनता के टेक्स का पैसा था जिसका भुगतान ठेकेदारों को करना था कम से कम कुछ चाटुकार ठेकेदारों का तो भला हो जाता चार घर की रोटी की व्यवस्था तो हो जाती . जनता के पैसे का क्या जनता तो है ही पिसने के लिए . आखिर अभी भी तो जनता के पैसे से कार्य हो रहा है और नाम हमारे सम्मानीय विधायक का लिखा जा रहा है . दुर्ग के लाडले विधायक जो तीन बार विधायक रह चुके है ये अलग बात है कि तीन बार हार भी हुई है किन्तु राजनीती में हार जीत लगी रहती है . वर्तमान में तो शहर में विकास की धारा बह रही है कहा बह रही ये सिर्फ पोस्टर में ही नजर आता है . वैसे वर्तमान समय में विकास की धारा शहर के मुक्तिधाम तक पहुँच चुकी है जहा दान की जमीन पर निगम मद से भव्य समाधी स्थल बन रहा है . अब ये अलग बात है कि समाधी स्थल बनाने की अनुमति अभी न तो निगम प्रशासन से मिली और ना जिला प्रशासन से मिली . वैसे भी जिला प्रशासन की जमीन तो है नहीं वो उसे भी किसी परिवार ने दान किया है ताकि आम जनता अपने मृत परिजनों का अंतिम संस्कार कर सके किन्तु भविष्य में अब एक समाधी स्थल दुर्ग में भी होगा जहां बड़े बड़े नेताओ की समाधी बनेगी . शुरुवात तो हो चुकी है तो मंजिल तक ज़रूर पहुंचेगी . आम जनता का क्या है मुक्ति धाम में जब समाधि स्थल की श्रृंखला तैयार हो जाएगी तो कही भी किसी एक कोने में परिजनों का अंतिम संस्कार कर देंगे . आम जनता और कीड़े मकोड़े में आज के जमाने में ज्यादा अंतर नहीं है . वैसे मैंने भी विचार किया था कि मेरे बेटे के नाम से किसी चौक का नाम रखा जाए किन्तु मई तो आम जनता हूँ मेरी क्या औकात किन्तु एक दिन खुद अपनी जमीन लेकर एक भव्य मूर्ति और सुन्दर बगीचा बनाने का वादा किया है मैंने शौर्य से जिसे जनता को समर्पित करूँगा आम जनता के लिए जिस तरह मुक्ति धाम की जमीन को एक परिवार ने आम जनता के लिए समर्पित किया है .
           आयुक्त बर्मन एक प्रशासनिक अधिकारी है आज उनका ट्रांसफर जरुर हुआ है पर क्या नए आने वाले आयुक्त विधायक से सामंजस्य बैठा पायेंगे क्योकि महापौर से सामंजस्य बैठना उतना जरुरी नहीं जितना विधायक से सामंजस्य बैठाना ज़रूरी है क्योकि सारा कार्य विधायक की मंशा के अनुरूप होता है . वैसे दुर्ग की जनता के साथ अक्सर यही होता आया है अभी तक पूर्व की भाजपा सरकार के समय यही कांग्रेस पूर्व महापौर को कठपुतली के रूप में प्रचारित करते थे ये अलग बात है कि पूर्व महापौर के प्रेस विज्ञप्ति में मंशारूप शब्द में किसी का नाम नहीं होता था अब तो खुले आम मंशारूप चल रहा है जब सब कुछ मंशारूप चल रहा तो महापौर क्या शहर में सिर्फ शासकीय संसाधनों के उपभोग के लिए है जब उनका कोई लक्ष्य ही नहीं उनकी कोई सोंच ही नहीं तो क्यों शासकीय संसाधनों पर हक जता रहे . खैर दुर्ग की जनता सब जानती है इसलिए निगम के किसी भी उथल पुथल का जिम्मेदार महापौर को नहीं मानती महापौर एक शालीन व्यक्ति है सभी के जज्बातों को समझते है सभी का आदर करते है घमंड नाम का कोई स्थान नहीं है उनके अंदर एक साफ़ और निर्मल छवि के युवा महापौर के रूप में बाकलीवाल को पाकर जनता यहाँ तक की विपक्ष भी उनके व्यवहार की कायल थी किन्तु हस्तक्षेप में मौन रहने के आज उन पर भी कठपुतली का आरोप लगने लगा और निगम के बदहाल व्यवस्था पर आम जनता सवाल उठाने लगी . बात आम जनता तक रहती तो सही था किन्तु अब तो कई कांग्रेसी भी अंदर ही अंदर चिन्न भिन्न है सिवाय उनके जिनके पास शौचालय साफ करने की लम्बी फेहरिस्त है , चखना सेंटर चलाने का मौन स्वीकृत है , निगम के ठेके में जिनका बड़ा योगदान है , राशन दुकानों की भरमार है . ये अलग बात है कि ऐसी सुविधा सिर्फ चंद लोगो के पास है फिर भी ये सब राजनीती का हिस्सा है . आज जीत जनप्रतिनिधि की हुई है आयुक्त का क्या आज यहाँ कार्य कर रहे कल कही और कार्य करेंगे उन्हें तो कही ना कही कार्य करना है किन्तु जनप्रतिनिधि का क्षेत्र सिमित होता है ऐसे में कोई उनकी बात ना सुने ये तो गलत बात है . अब तो बस यही दुआ है कि नए आयुक्त ऐसे आये जो हमारे शहर के लाडले , मृदु भाषी , सरल हृदयी विधायक की मंशा के अनुरूप चले जैसा कि महापौर जी आदरणीय धीरज बाकलीवाल जी चलते है ताकि शहर में विकास की गंगा बहे और एक बार फिर शहर के नालो की सफाई का कार्य लाखो की निविदा से शुरू हो , निगम के कार्यो का ठेका रिंग बना कर हो , कार्यकर्ताओ का भला हो , अधिकारियों की मनमानी चले ताकि पुरे निगम में एक खुशनुमा वातावरण बना रहे और चौतरफा जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक मुखिया का गुणगान होता रहे . जनता का क्या है वो तो पिछले १० सालो से कठपुतली महापौर को देख रही है ५ साल और सही जब जनता ही चाहती है कि यही सब चलता रहे तो फिर मेरे विचार से ऐसा ही होना चाहिए ताकि कोई मुद्दा ही नहीं रहे विपक्ष का क्या वो तो छोटी छोटी बात का भी विरोध करेगी और अपना राजनितिक धर्म निभाएगी .

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