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लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कई बार जीवन में ऐसे मोड़ आ जाते हैं जब व्यक्ति का अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं रहता और वो जाने-अनजाने कुछ ऐसा कर बैठता है जिसकी वजह से भविष्य में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। तो क्या इसका मतलब ये हुआ कि व्यक्ति को अपने क्रोध को मन के भीतर ही दबाए रखना चाहिए, बिल्कुल नहीं। आप कल्पना करके देखिए यदि किसी चिमनी के भीतर कोयला जलाकर रख दें लेकिन चिमनी से भाप बाहर निकलने का रास्ता न हो तो क्या होगा। स्वाभाविक है चिमनी फट जाएगी।
ठीक वैसे ही भावनात्मक रूप से चोटिल व्यक्ति यदि अपने मन से नकारात्मक भावनाओं को बाहर निकालने की जगह अपने मन के भीतर इकट्ठा करता रहेगा तो भविष्य में यह आदत उसके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। ऐसे में आइए जानते हैं कैसे इन 5 उपायों को करके व्यक्ति मानसिक शांति बनाए रखने के साथ अपने गुस्से को भी बाहर निकाल सकता है।
व्यायाम करें -
मन से सभी नकारात्मक विचारों को निकालने के लिए वर्कआउट करें। वर्कआउट के दौरान एंडोर्फिन हॉर्मोन , जिसे हम हैप्पी हॉर्मोन भी कहते हैं शरीर से रिलीज होते हैं। जिससे व्यक्ति की मानसिक सेहत पर अच्छा असर पड़ता है।
गहरी सांस लें-
जब कभी आपको लगे कि आप अत्याधिक गुस्से में हैं तो भड़ास निकालने का बेहतर तरीका है कि एक कदम पीछे आएं और गहरी सांस लें।किसी भी परिस्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया न दें।
दोस्तों से करें खुलकर बात-
दोस्तों से बात करने से भावनाओं को बाहर आने का मौका मिलता है। लेकिन ध्यान रखें सिर्फ भरोसेमंद दोस्त के साथ ही अपनी भावनाओं को साझा करें, जो आपका सही मार्गदर्शन भी करें।
भावनाओं को कागज पर उतारें-
यदि आपके पास कोई भरोसेमंद दोस्त नहीं है तो खुद को अकेला न समझें, अपनी डायरी में पूरी ईमानदारी से अपनी भावनाओं को दर्ज करें। जब आप शांत हो जाएं, इस डायरी को दोबारा पढ़ें। आपको महसूस होगा कि आपके गुस्से ने कैसे आपकी तर्क शक्ति को ढक लिया था। जिसके बाद आप अपनी कमजोरियों पर काम कर सकेंगे।
दृष्टिकोण में करें बदलाव-
अमेरिका के ड्रेक्सल विश्वविद्यालय में किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि आप चाहें तनाव की किसी भी स्थिति में हों आर्ट आपके तनाव को कम कर आपको बेहतर महसूस करवाने में मदद करती है। तो देर किस बात की, एक खाली कैनवास लें और उस पर अपने गुस्से और हताशा को व्यक्त करने वाले अपनी मर्जी के रंग उड़ेल दें।
मनोरन्जन / शौर्यपथ / बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है। इसमें वह खुद की फिल्म ‘एमएस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी’ देखते नजर आ रहे हैं। हाथ में किताब है और नजरों के सामने टीवी। टीवी पर फिल्म चल रही है। फिल्म में सीन चल रहा है जब सुशांत धोनी के रूप में क्रिकेट पिच पर खड़े होते हैं। सुशांत बैठे धोनी-धोनी रे नारे लगाते नजर आते हैं। सुशांत के करियर की यह फिल्म एक ऐसी फिल्म रही, जिसने उनके फैन बेस को बढ़ाकर दोगुना कर दिया था। बॉक्स ऑफिस पर यह ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी। दुनिया में सुशांत के फैन बन गए थे।
आपको बता दें कि सुशांत खुद एक बहुत बड़े धोनी फैन थे। धोनी के साथ क्रिकेट पिच पर खेलने का सपना उनका हमेशा से था और फिल्म के जरिए यह पूरा भी हुआ। धोनी फिल्म के लिए सुशांत ने काफी मेहनत की थी। उनके हू-ब-हू रूप में आने के लिए उन्होंने वीडियो में धोनी को क्रिकेट फील्ड पर खेलते हुए करीब 100 बार देखा था। फिल्म में कोई कह ही नहीं सकता था कि धोनी और सुशांत में कोई फर्क है। सुशांत इस तरह से धोनी के किरदार में ढले थे कि वह तारीफ के पात्र बने थे।
फिल्में करने से पहले सुशांत सिंह राजपूत ने टीवी की दुनिया में अपना सिक्का जमाया। उन्होंने सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ से शुरुआत की और घर-घर में मानव देशमुख के नाम से जाने गए। शो इतना हिट हुआ कि अंकिता लोखंडे संग सुशांत की जोड़ी बेस्ट साबित हुई। बाद में हालांकि, दोनों रियल लाइफ में भी साथ आ गए। करीब 6 साल तक रिलेशनशिप में रहे। लेकिन फिल्मी दुनिया में कदम रखने के बाद दोनों का ब्रेकअप हो गया था। बताते चलें कि पिछले हफ्ते सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून को घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मुंबई पुलिस केस की छानबीन में जुटी है।
नजरिया / शौर्यपथ / प्रधानमंत्री ने कोरोना-19 महामारी से लड़ते हुए कई सूत्र दिए हैं। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देते हुए एक नारा दिया है, ‘लोकल के लिए बनो वोकल’। कहने का अभिप्राय कि भारतवर्ष में खूब संसाधन हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार के उपयोगी सामान हम विश्व स्तर पर बना सकते हैं। भारत में असंख्य कुशल हाथ हैं, जिनका उपयोग करके प्राकृतिक संपदाओं से बहुत कुछ बनाया जा सकता है। वैसे भी भारत में बहुत कुछ सदियों से बनाया जाता रहा है। ऐसी-ऐसी चीजें बनाई जाती रही हैं, जिनके लिए बड़ी मशीनों की जरूरत नहीं होती। भारत का बना हुआ ढाका का मलमल, राजस्थान और गुजरात की कशीदाकारी, कश्मीर के कालीन और भी सामान देश ही नहीं, विदेश में भी बहुत प्रसिद्ध रहे हैं।
महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई लड़ते हुए स्वदेशी अपनाने की बात मौखिक रूप से ही नहीं कही, बल्कि उन्होंने चरखे को स्वावलंबन का प्रतीक बना लिया था। देखते-देखते हर घर में चरखा चलने लगा था। सूत के कपडे़ बनने लगे थे, बाद में धागों को रंगकर डिजाइनदार कपड़े बनने लगे थे। स्वतंत्रता मिलने से पहले ही गांव-गांव में चरखा समितियां बनाई गई थीं और खादी की साड़ी पहन सिर पर पल्लू रख विशेष आत्मविश्वास से भरी महिलाएं घर-घर से निकलती थीं। सूत व कपड़े की रंगाई-धुलाई के काम में लगकर आमदनी बढ़ाती थीं। स्वदेशी अपनाने के क्रम में मिल में बना तेल लोग नहीं अपनाते थे। गांव के कोल्हू पर अपने खेत से निकले हुए राई, सरसों के तेल का उपयोग करते थे। स्वतंत्रता मिलने के बाद सरकार ने भी केंद्रीय और राज्य स्तर पर खादी भंडार का निर्माण कराया। चरखे चलते रहे, पर धीरे-धीरे मिल के कपडे़ घर-घर आने लगे और हम गांधी के आंदोलन को भूल गए। अब पुन: ‘लोकल के लिए वोकल’ की बात उठी है, तो स्वदेशी का नारा फिर जोर पकड़ने लगा है।
1998 से 2004 तक मैं केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष थी। उन दिनों भी महिलाओं के हाथ में हुनर सिखाने एवं उनके हुनर से बने सामान बेचने की बात बहुत प्रसिद्ध थी। मैंने इस कार्य के लिए कई नारे दिए थे, जैसे- हुनर हो हर हाथ में, दिल में प्रेम का भाव। भेद मिटे हर द्वार से, जग में आए समभाव। और, जब आया हाथों में हुनर, हुलसा हिया, रंग गई चुनर। उन दिनों पूरे देश में बहुत-सी संस्थाओं द्वारा जूट, बांस, लाख ऐसे अन्यान्य प्रकार के उत्पादों का बाजार लगाया जाता था। कहीं-कहीं इसे ‘मेला’ भी कहा जाता था। आज ऐसे मेलों के तेज विकास की जरूरत है। ऐसे मेलों में खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने से लेकर सजावट के तमाम सामान लोगों को उपलब्ध होने चाहिए। ऐसे सामान की मांग होगी, तो ऐसे सामान बनाने वालों की संख्या और आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। महिलाओं और गरीब घरों की स्थिति सुधरेगी।
इस क्षेत्र के कार्यों में गति देने के लिए मैंने एक अभिनव कार्यक्रम बनाया था, जिसके तहत संस्थाओं को विभिन्न औषधीय वृक्ष लगाने का कार्य सौंपा गया था। अध्ययन करके हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पांच ऐसे पौधों को अपने घर के पास कम-से-कम जमीन में भी लगाया जाए, पांच वर्षों में उससे मिली आमदनी इतनी हो जाएगी, जिससे एक पांच सदस्यीय परिवार के भोजन, कपड़े का इंतजाम आसानी से हो जाएगा।
देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर शहर में हाथ के बने सामान बेचने के लिए विशेष बाजार या बिक्री केंद्र की व्यवस्था हो। बाजार या बिक्री केंद्र के कर्मचारी ही सामान गांव से लेकर आएं और उत्पादकों व संस्थाओं को कीमत भी दें। इन महिलाओं या पुरुषों को पैकेजिंग के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि उनके सामान विदेशी बाजारों को भी आकर्षित कर सकें। इसी विशेष बिक्री केंद्र द्वारा ये जानकारियां दी जाएं कि कौन-कौन-से सामान की देश के बड़े शहरों व विदेश में मांग है? यदि इतनी सुविधा उत्पादकों, स्वयं सहायता समूहों, संस्थाओं को मिल जाए, तो इनकी आमदनी बढ़ जाएगी।
आज भारत ही नहीं, विश्व के विभिन्न देशों ने ‘पुन: भारतीयता की ओर’ यात्रा शुरू की है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा पुन: भारतीयता की ओर आने का प्रयास ही है। कोविड-19 भारत के लिए भी संकट काल में वरदान साबित हो सकता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति, परिवार व गांवों में आत्मविश्वास होता है, लेकिन दूसरों पर निर्भरता से स्वाभिमान की भी रक्षा नहीं होती।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)मृदुला सिन्हा, पूर्व राज्यपाल, गोवा
सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ /वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सीमा के मोल्डी इलाके में हुई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की बैठक का नतीजा न सिर्फ दोनों देशों के अरबों नागरिकों के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए सुकून भरा कहा जाएगा। गलवान घाटी में 15 जून के हिंसक संघर्ष के बाद भारत और चीन के रिश्ते किस नाजुक मोड़ पर पहुंच गए थे, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाना चाहिए कि भारत ने अपनी सेना को मौके पर हथियारों के इस्तेमाल की छूट दे दी है, बल्कि लेफ्टिनेंट कमांडर स्तर के दोनों वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को सहमति के बिंदु पर पहुंचने के लिए 10 घंटे से भी अधिक बात करनी पड़ी है। खबर है कि दोनों देश एलएसी पर अपनी-अपनी सेना को पीछे हटाने को तैयार हो गए हैं। निस्संदेह, दोनों पक्षों से इसी समझ-बूझ की दरकार थी। लेकिन यह समझदारी जमीनी स्तर पर दिखनी चाहिए, क्योंकि 6 जून को भी सैन्य अधिकारी एक सहमति बना चुके थे। उसके बाद 15 जून की दुखद घटना घटी।
अपने 20 जवानों की शहादत से भारतीय जनता बेहद आहत और आक्रोशित है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि चीन से लगी सरहद पर दशकों से शांति थी, जिसे चीन ने भंग किया। हाल के दिनों में पूर्वी लद्दाख में उसका रवैया दादागिरी भरा रहा है और भारत को यह कतई मंजूर नहीं है। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, हरेक देश अपनी सरहद की हिफाजत के लिए सर्वोच्च पराक्रम दिखाता है, और अंतत: प्रतिपक्षियों को वार्ता की मेज पर बैठना पड़ता है। इसलिए श्रेष्ठतम रणनीति यही है कि नुकसान के बाद वार्ता करने की बजाय बातचीत के जरिए नुकसान की आशंका निर्मूल कर दी जाए। जब तक दोनों देशों के बीच सीमा-विवाद का निपटारा निर्णायक रूप से नहीं होता, तब तक ऐसी स्थितियों की आशंका से बचने का एकमात्र रास्ता यही है कि सीमा पर हम अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करें। निस्संदेह, हाल के वर्षों में इस दिशा में काम हुए भी हैं। सड़कें बनी हैं, हेलीपैड बने हैं, मगर चीन के मुकाबले ये अब भी कुछ नहीं हैं। अब हम अच्छे रिश्तों के आधार पर भी अपनी सीमाओं और सैन्य जरूरतों से गाफिल नहीं रह सकते।
भारत की सरहदें खास तौर से दो पड़ोसियों की अलग-अलग रणनीति का निशाना बनती रही हैं। पाकिस्तान जहां अपनी दहशतगर्दी की विदेश नीति को अंजाम देने के लिए इससे घुसपैठ की ताक में रहता है, तो चीन विस्तारवादी रणनीति के तहत इसके अतिक्रमण के फिराक में। बीजिंग अब एक दबाव के तौर पर भी इस नुस्खे को आजमाने लगा है। यह महज संयोग नहीं है कि पिछले दो महीने से कोविड-19 के संक्रमण के मामले में वह डब्ल्यूएचओ में घिरता हुआ महसूस कर रहा था, और लगभग इसी समय उसने लद्दाख में अपनी सक्रियता बढ़ाई, यह जानते हुए कि भारत डब्ल्यूएचओ में एक जिम्मेदार ओहदे पर बैठ रहा है। इसलिए उससे लगी सीमाओं को लेकर हमें एक मुकम्मल नीति बनानी होगी। इसमें दो राय नहीं कि भारत और चीन आज दुनिया की दो बड़ी शक्तियां हैं। उनमें सीमित सैन्य टकराव भी किसी एक के लिए कम नुकसानदेह नहीं होगा। इसलिए समझदारी इसी में है कि दोनों देश बातचीत से अपने मतभेदों को पाटें और ऐसा माहौल बनाएं, जिससे सीमा-विवाद पर ठोस बातचीत का रास्ता खुले। महामारी से कराह रही मानवता को आज इन दोनों से सर्वश्रेष्ठ अक्लमंदी की आशा है।
मेलबॉक्स /शौर्यपथ / आत्मनिर्भर भारत की सफलता का ब्रह्मास्त्र है, वेस्ट मैटेरियल यानी अनुपयोगी सामान का पुनर्चक्रण। हमें समझना होगा कि कोई भी सामान अनुपयोगी नहीं होता, बस उसके रिसाइकिल करने की देर होती है। आज पुनर्चक्रण का यह काम मेट्रो या बड़े शहरों तक सीमित है, वह भी शत-प्रतिशत नहीं। यह जान लेना चाहिए कि चीन का माल इसलिए सस्ता होता है, क्योंकि वह पुनर्चक्रण में विश्वास करता है। यदि हमारे यहां भी ऐसी कोई व्यवस्था लागू हो जाए, तो उत्पादों की कीमतें काफी कम हो जाएंगी। इससे हम चीन की वस्तुओं को दाम के आधार पर टक्कर दे सकेंगे। सामूहिकता से भरे इन प्रयासों से नए रोजगार का भी सृजन होगा और पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाए रखने में भी हम कामयाब हो सकेंगे। इसलिए विकासवाद के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के होने वाले बेतरतीब दोहन को सीमित करके हमें पुनर्चक्रण की तरफ बढ़ना चाहिए।
विकास पंडित, बड़वानी, मध्य प्रदेश
एकजुटता जरूरी
आज हमारा देश एक साथ कई मोर्चों पर उलझा हुआ है। कोविड-19, भुखमरी, आर्थिक विकास, पलायन के साथ-साथ अब चीन व नेपाल के साथ हमारा सीमा-विवाद भी गहरा गया है। देशप्रेमी अपनी लालसा को शांत करके हर परिस्थिति में सरकार और देश के साथ खडे़ हैं, पर विघ्न संतोषी सरकार और देश के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। वे देश में धार्मिक अफवाह भी फैला रहे हैं। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया मंचों पर देश को टुकड़ों में बांटा जा रहा है। इसके जवाब में आम जनता में एकजुटता जरूरी है। लगता है, अंग्रेजों का गुलाम रहकर और अपनी संतानों को खोकर भी कुछ लोग आज तक यह नहीं समझ पाए हैं कि आपस में दुश्मनी रखना मजहब भी नहीं सिखाता है। हमें इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए।
ममता रानी, काशीपुर
उल्टा पड़ता दांव
चीन का कमोबेश अपने सभी पड़ोसी देशों से सीमा-विवाद है। सिर्फ जमीनी सीमा ही नहीं, वह दक्षिण चीन सागर में भी अपना दावा जताता रहा है। हालांकि, वहां अमेरिका के प्रत्यक्ष विरोध के कारण उसकी दाल नहीं गल रही है। चीन अब तक इसलिए बढ़ता रहा है, क्योंकि वह अपनी ताकत का प्रदर्शन करके सामने वाले देश को झुका देता है। यही हथकंडा उसने भारत के खिलाफ भी अपनाने की गुस्ताखी की है। पहले जरूर उसने हमारे कुछ क्षेत्रों को हथिया लिया है, लेकिन इस बार सरकार ने साफ कर दिया है कि उसकी एक भी मनमानी भारतीय सीमा के अंदर नहीं चलेगी। चीन की विस्तारवादी नीति पहली बार उस पर ही भारी पड़ती नजर आ रही है। गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों को निशाना बनाना उसे कितना भारी पड़ा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हमारे सैनिकों से ज्यादा उसके सैनिकों की जान गई है। यह साफ बताता है कि भारत से उलझना अब चीन के लिए हर मोर्चे पर भारी पड़ने वाला है।
धीरज पाठक, शास्त्री नगर, चैनपुर
पुराने बनाम नए नोट
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्तमान में जारी किए जा रहे छोटे साइज के नए नोटों के कागज पुराने और अपेक्षाकृत निम्न गुणवत्ता के प्रतीत होते हैं। इस कारण जहां पुराने नोटों का जीवन लंबा महसूस हो रहा है, वहीं नए नोट जल्दी खराब हो रहे हैं। ऐसे में, केंद्र सरकार से अनुरोध है कि वह आरबीआई को इस बात के लिए निर्देशित करे कि उच्च गुणवत्ता के कागजों का ही नए नोटों में इस्तेमाल हो। इसके साथ ही प्लास्टिक कोटेड नोट भी जारी किए जाएं, ताकि पड़ोसी देशों से नकली नोटों की आने वाली खेप रोकी जा सके। इससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों से भी बचा जा सकेगा।
प्रमोद अग्रवाल गोल्डी, हल्द्वानी,
ओपिनियन /शौर्यपथ /अपनी युवावस्था में मैंने मैकमोहन रेखा पर लंबी दूरी के गश्ती दल का नेतृत्व किया है। एक बार हमारे दल को खांगला जाना था। हमें देर हो गई और शाम गहराने लगी थी, लेकिन हमें अपना काम पूरा करना था। गश्ती के दौरान भटककर हम सीमा के उस पार करीब एक किलोमीटर तक चले गए थे। हमने अपने दल को दो टीमों में बांटा और चीनी सैनिकों की नजर में आए बिना हम अगली सुबह खांगला पहुंच गए। एक युवा अधिकारी के रूप में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से यह मेरा पहला परिचय था। बाद में मैंने अरुणाचल प्रदेश में एलएसी डिवीजन और उसके बाद लद्दाख में 14वीं कोर की कमान संभाली। मैं कई बार गलवान घाटी से गुजर चुका हूं। यहां की पर्वत शृंखलाओं पर सीमा-रेखाएं एक भूलभुलैया हैं। यहां न कोई सीमा-रेखा है और न सीमा के करीब कोई पोस्ट। अभी पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की जो सीमा-रेखा, यानी एलएसी है, वह 1962 की खूनी जंग का नतीजा है। यह युद्ध दोनों देशों के बीच में यहीं सबसे ऊबड़-खाबड़ और असह्य इलाके में लड़ा गया था। लड़ाई अक्तूबर-नवंबर में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ), गलवान और हॉट स्प्रिंग्स, पैंगोंग झील के आर-पार, रजांगला और डेमचोक इलाकों में हुई थी। अत्यधिक कम तापमान और जान-माल की व्यापक क्षति के कारण उस युद्ध को रोक दिया गया था और चीन के सैनिक अपने ठिकानों पर वापस चले गए थे। इसी तरह, भारतीय सेना भी पास के ठिकानों पर लौट आई थी। तब से राजनीतिक तौर पर औपचारिक सीमांकन न हो पाने की वजह से दोनों देशों की सेनाएं यहां डटी हुई हैं। दोनों के बीच में सीमा-बंटवारे को लेकर 22 बार बातचीत हो चुकी है, पर नतीजा अब तक सिफर रहा है। भारत पूरे अक्साई चिन पर अपना दावा जारी रखे हुए है, तो चीन सीमा के पास वाले क्षेत्रों पर अपना दावा करता है, जिसे भारत ‘चीनी धारणा’ वाली सीमा रेखा कहता है।
दरअसल, अंग्रेजों ने इन सीमाओं को तय किए बिना छोड़ दिया था। उसके नक्शे में कई सीमाएं दिखाई देती हैं, जिनमें से एक कुन-लुन पहाड़ों के साथ चल रही है, जिसे जॉनसन-अर्दग रेखा कहा जाता है। इसके मुताबिक, अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। एक अन्य रेखा, जो काराकोरम रेंज के करीब है, उसे मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड रेखा कहा जाता है। एक रेखा सुदूर पश्चिम में है, जो फॉरेन ऑफिस रेखा है। आजादी के बाद इसे तय करने का काम जम्मू और कश्मीर के शासकों, तिब्बत और भारत व चीन के हुक्मरानों पर छोड़ दिया गया था। मगर अब तक इसमें सफलता नहीं मिल सकी है।
भारत ने अपना नक्शा 1954 में ही जारी कर दिया था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय रेखा बताती है कि अक्साई चिन भारत का हिस्सा है। फिर भी, चीन ने 1955 में यहां से गुजरता हुआ पश्चिमी राजमार्ग बनाया, जो तिब्बत को काशगढ़ और शिनजियांग से जोड़ता है। जैसा कि भारत का दावा है, चीनियों ने इस संवेदनशील राजमार्ग के पश्चिमी हिस्से को सुरक्षित रखने की सोची होगी। चिप-चाप नदी और गलवान नदी के जलक्षेत्रों के बीच काराकोरम रेंज के साथ चलने वाली रिज लाइनों पर प्रभावी होने से चीन की यह मंशा बखूबी पूरी हो सकती थी, और उसके बाद चांग-चेनमो रेंज के पश्चिम में रिज लाइनों के साथ दक्षिण-पूर्व में आगे बढ़ना उसके मुफीद होता। इन इलाकों को अपने कब्जे में रखने की कोशिश चीन इसलिए करता है, ताकि भारतीय सुरक्षा बलों को पश्चिमी राजमार्ग से दूर रखा जा सके। यहां आर्टिलरी और निगरानी का दायरा बढ़ाना बताता है कि वह अपनी रेखा को आगे बढ़ाकर पश्चिम की तरफ ले जाना चाहता है। मगर भारतीय सेना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा में किए जाने वाले किसी भी बदलाव को रोकने के लिए संकल्पित है। उल्लेखनीय है कि एलएसी का पहली बार इस्तेमाल खुद चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन-लाई ने साल 1959 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिखे पत्र में किया था।
आज, पूर्वी लद्दाख में 800 किलोमीटर से अधिक सीमा-रेखा है, जिसमें लगभग 550 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा है। चीनी गश्ती दल यह सुनिश्चित करते हैं कि वे दर्रे को बंद और जलग्रहण क्षेत्र को अपने कब्जे में रखें, ताकि भारतीय सैनिक जमीन पर और आगे न बढ़ सकें। वे ऐसे ट्रैक बनाते रहते हैं, जो आमतौर पर पश्चिमी राजमार्ग से निकलते हैं और उत्तरोत्तर एलएसी की ओर बढ़ते हैं, ताकि वे दर्रे या क्रॉसिंग प्वॉइंट पर हावी हो सकें। हॉट स्प्रिंग्स और गलवान में दोनों तरफ सड़कें व ट्रैक बनाए गए हैं। चीन को इस इलाके का ज्यादा फायदा मिलता है, क्योंकि उसकी तरफ यह अपेक्षाकृत खुला व समतल है और अपने पश्चिमी राजमार्ग की सुविधा भी उसे हासिल है।
एलएसी को लेकर न तो कोई सर्वे हुआ है और न ही जमीन पर सीमांकन। यह नक्शे पर मोटी कलम के साथ खींची गई रेखा है। इससे जमीन पर 100 मीटर तक अंतर हो सकता है, इसीलिए रेखा के इस पार या उस पार कुछ मीटर की दूरी पर बना टेंट भी समस्या पैदा कर सकता है। हालांकि, चीन के सैनिकों ने एलएसी के पास जहां तंबू गाड़ा, वहां से गलवान नाला सीधे दिखाई देता है, जहां भारत के लिहाज से संवेदनशील दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड जाती है, इसीलिए यह भारत को नागवार गुजरा है। इस तरह के मामलों के शांतिपूर्ण निपटारे के लिए 1993 के बाद से दोनों देशों के बीच में कई समझौते हुए हैं। साल 1996 में हुआ एक समझौता कहता है कि इस तरह के सीमा-विवादों के निपटारे में सैन्य हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा।
चूंकि सीमा को लेकर अब तक अंतिम सहमति नहीं बन सकी है, इसलिए दोनों पक्ष कई बार आमने-सामने आ चुके हैं। इनमें साल 2013 में पूर्वी लद्दाख के डेपसांग, डेमचोक और चुमार में हुआ तनाव भी एक है। गलवान हालिया घटनाओं का चरम बिंदु है। इसका खतरनाक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि दोनों राष्ट्रों के पास परमाणु हथियारों से संपन्न बड़ी सेनाएं हैं। क्या दोनों देश अभी युद्ध का जोखिम उठा सकते हैं, जब पूरी दुनिया के साथ वे भी कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहे हैं? बहस का मुद्दा यह भी है कि चीन इस समय ऐसा कोई तनाव क्यों चाहेगा?
(ये लेखक के अपने विचार हैं) पीजेएस पन्नू, डिप्टी चीफ, इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ
शौर्यपथ लेख / रामदेव एक नाम एक ब्रांड है आज भारत में . बाबा रामदेव की पहचान योग गुरु के रूप में शुरू हो कर पतंजलि के ब्रांड पर पहुँच गयी . रामदेव पूरी दुनिया को योग की शिक्षा देने के कारण प्रसिद्द हुए और योग से निरोग की बात करते करते राजनीती में प्रवेश कर लिए २०११-से २०१४ तक बाबा रामदेव राजनीती में काफी सक्रीय रहे . तात्कालिक कांग्रेस सरकार पर लगातार हमला करने वाले रामदेव ने रामलीला मैदान में आन्दोलन शुरू कर दिया और अंत सलवार सूट के प्रसंग में हुआ . रामदेव ने २०१४ के चुनाव के पहले तात्कालिक सरकार को खूब परेशान किया आम जनता को भाजपा की सरकार आने पर पेट्रोल की कीमत ३५ रूपये तक मिलने की बात कही . आम जनमानस में रामदेव की बाते घर कर गयी और महंगाई की मार , पेट्रोल की बदती कीमत , सीमा पर जवानो के बलिदान के प्रसंगों का बहुत चतुराई से उपयोग किया . उपयोग इस लिए कहा जा सकता है कि २०१४ के बाद रामदेव ने कभी पेट्रोल की बढती कीमत पर कभी कुछ नहीं कहा ये तो रामदेव जाने और रामजी जाने . ऐसा नहीं कि नई सरकार आने के बाद पेट्रोल की कीमत कम हुई , महंगाई कम हुई , सीमा पर जवानो की शहादत कम हुई ,बेरोजगारी कम हुई , शिक्षका स्तर सुधरा , स्वास्थ्य का स्तर सुधरा किन्तु योग गुरु बाबा रामदेव मौन रहे या हो सकता है योग गुरु से व्यापारी रामदेव की राह पर व्यस्त हो जिस तरह रामदेव का व्यापार २०१४ के बाद तेजी से बढ़ा कई बार मन में ये सवाल उठता है कि रामदेव का दिखावा सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए और अपने व्यापार की बढ़ोतरी के लिए ही था ? रामदेव योग से निरोग के साथ आयुर्वेद से निरोग का रास्ता अपनाते गए और भारत के बाज़ार के कई हिस्सों में कब्ज़ा कर लिया स्वदेशी का नारा देते हुए सामानों का मूल्य बढ़ाते गए और आज बाज़ार में ये स्थिति है कि महंगाई की मार झेल रही देशभक्त इंसान रामदेव के महंगे प्रोडक्ट खरीद रही है किन्तु बाबा रामदेव वर्तमान में महंगाई पर मौन है , तेल की बढती कीमत पर मौन है , बेरोजगारों की समस्या पर मौन है , स्वास्थ्य पर मौन है देशी वाहन से विदेशी वाहन के सफर में आज स्वदेशी का पाठ पढ़ाने वाले बाबा आखिर एक बार फिर जनता की भावनाओ के साथ खेलते हुए आयुर्वेद मंत्रालय के नियमो की पेजिदगीयो का फायदा उठाते हुए कोरोना संक्रमण के खौफ से जी रही दुनिया के सामने कोरोनिल ले आये . कोरोनिल एक आयुर्वेद दवा है और आयुर्वेद दवा का इंसानी शरीर में नकारात्मक असर ना के बराबर होता है ये सब जानते है .
आम जनमानस में ये धारणा है और कई वैज्ञानिक प्रमाण भी है कि आयुर्वेद की पद्दति से बनी दवा अगर शरीर को फायदा नहीं दे सकती तो नुक्सान भी नहीं होगा यही सबसे बड़ी खासियत है आयुर्वेद की किन्तु आयुर्वेद के नाम से बनी दवा से कोरोना ठीक होने का दावा करने वाले पतंजली के मालिक रामदेव को इस वैश्विक महामारी में क्या भारत सरकार के आयुष मंत्रालय को भरोसे में नहीं लेना चाहिए था . वो भी ऐसे वक्त जब सरकार कोरोना आपदा का दंश झेल रही है और देश में आर्थिक स्थिति चौपट जैसी है इस संजीवनी बूटी के परिक्षण के लिए पतंजलि को केंद्र सरकार को भरोसे में लेने से देश हित और देशभक्ति का उदाहरन तो पेश होता ही स्वदेशी की ताकत पर आम जनता को भी गर्व होता किन्तु केंद्र सरकार को भरोसे में लिए बिना आयुष मंत्रालय को भरोसे में लिए बिना कोरोना की दवा को बाज़ार में उतारने की आखिर क्या जल्दी थी रामदेव को आखिर क्या सन्देश देना चाहते है योग गुरु से व्यापारी गुरु बने रामदेव भारत सरकार और आम जनता को .
आम जनता सहित पूरी दुनिया यही प्रार्थना कर रही है कि कोई तो बना दे कोरोना की दवा . जब ऐसी स्थिति है तो व्यापारी रामदेव ने आखिर केंद्र सरकार को और आयुष मंत्रालय को भरोसे में क्यों नहीं लिया क्या केंद्र सरकार के कार्यो पर रामदेव को भरोसा नहीं रहा . हम तो अब भी यही प्रार्थना कर रहे है कि कोरोनिल से कोरोना का सफल इलाज हो सके और यह दवा कलयुग में संजीवनी का काम करे . वर्तमान में तो आयुष मंत्रालय ने इस दवा के प्रचार प्रसार पर रोक लगा दी है किन्तु यही दुआ करते है कि बाबा रामदेव की दवा और दावा सही हो .... ( शरद पंसारी )
नई दिल्ली / शौर्यपथ / कोरोना को ठीक करने के दावे के साथ लांच की गई बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि की दवा कोरोनिल के प्रचार-प्रसार पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है। सरकार ने इस दवा के लिए किए जा रहे दावों की जांच करने का फैसला किया है। आयुष मंत्रालय ने पतंजलि को चेतावनी दी है कि ठोस वैज्ञानिक सबूतों के बिना कोरोना के इलाज का दावे के साथ दवा का प्रचार-प्रचार किया गया तो उसे ड्रग एंड रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून के तहत संज्ञेय अपराध माना जाएगा।
बाबा रामदेव ने जैसे ही मंगलवार को कोरोना को सात दिन में पूरी तरह ठीक करने के दावे के साथ दवा को लांच किया, आयुष मंत्रालय हरकत में आ गया। इसके बाद आयुष मंत्रालय ने तत्काल पतंजलि को दवा के प्रचार-प्रसार के विज्ञापनों पर रोक लगाने को कह दिया। मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया कि यदि इसके बाद दवा का विज्ञापन जारी रहा, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पतंजलि ने ऐसी किसी दवा के विकसित करने और उसके ट्रायल की कोई जानकारी मंत्रालय को नहीं दी है।
उन्होंने कहा कि मंत्रालय की अनुमति से कई आयुर्वेदिक दवाओं का कोरोना के इलाज में ट्रायल किया जा रहा है, लेकिन उनमें पतंजलि की दवा शामिल नहीं है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब पूरी दुनिया कोरोना का इलाज खोजने के लिए जूझ रही है और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में बिना वैज्ञानिक सबूत के किसी दवा से इलाज का दावा खतरनाक साबित हो सकता है और करोड़ों लोग इस भ्रामक प्रचार के जाल में फंस सकते हैं। इसीलिए इस दवा के प्रचार-प्रसार वाले विज्ञापनों पर तत्काल रोक लगाने के साथ ही पतंजलि को जल्द-से-जल्द कोरोनिल दवा में इस्तेमाल किए गए तत्वों का विवरण देने को कहा गया है।
पतंजलि को यह भी बताना होगा कि इस दवा का ट्रायल किन-किन अस्पतालों में और कितने मरीजों पर किया गया। ट्रायल शुरू करने के क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआरआइ) में दवा का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होता है। पतंजलि से सीटीआरआइ के रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ ट्रयल के परिणाम का पूरा डाटा देने को कहा गया है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पूरी पड़ताल और तथ्यों के सही पाए जाने के बाद की इस दवा को कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की अनुमति दी जाएगी। दरअसल आयुर्वेदिक दवा को विकसित करने और बेचने से पहले आयुष मंत्रालय से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन जिस राज्य में इस दवा का उत्पादन किया जा रहा है, वहां के लाइसेंसिंग अथारिटी से इसके लिए अनुमति लेना अनिवार्य है। आयुष मंत्रालय ने उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग अथारिटी से इस दवा को दी गई मंजूरी और लाइसेंस की प्रति देने को कहा है।
पतंजलि की दवा को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में लाइसेंस
पतंजलि की दवा कोरोनिल को उत्तराखंड आयुष विभाग की तरफ से लाइसेंस जारी किया है। आयुष मंत्रालय ने विभाग से इस बारे में जानकारी मांगी है। विभाग के लाइसेंसिंग अधिकारी डॉ. यतेंद्र सिंह रावत का कहना है कि दिव्य फार्मेसी के नाम पर 12 जून को लाइसेंस जारी किया गया है। लाइसेंस में कोरोनिल वटी समेत दो अलग-अलग मात्रा वाली श्वासारी दवा को इम्यूनिटी बूस्टर बताया गया है। अब कंपनी को नोटिस जारी कर पूछा जाएगा कि वह किस आधार पर इम्यूनिटी बूस्टर की दवाओं को कोविड-19 की दवा बता रही है।
पतंजलि की दवा पर आयुष मंत्रालय की गलतफहमी दूर : बालकृष्ण
पतंजलि की दवा के विज्ञापन पर रोक लगाने के मामले पर आचार्य बालकृष्ण का बयान आया है। आचार्य बालकृष्ण पतंजलि योगपीठ के महामंत्री हैं। उन्होंने ट्वीट किया है, 'केंद्र सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहन देती आई है। पतंजलि की दवा को लेकर आयुष मंत्रालय को जो भी गलतफहमी थी, वह दूर कर दी गई है। पतंजलि ने आयुर्वेदिक दवाओं की जांच (रेंडमाइज्ड प्लेसबो कंट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल) के सभी आधिकारिक मानकों को सौ प्रतिशत पूरा किया है। इसकी सभी जानकारी हमने आयुष मंत्रालय को दे दी है, अब कहीं कोई संशय नहीं रह गया है।'
पतंजलि ने कोरोना वायरस की दवा
आपको बता दें कि योग गुरु स्वामी रामदेव ने कोरोना वायरस की दवा कोरोनिल को मंगलवार को बाजार में उतारा और दावा किया कि आयुर्वेद पद्धति से जड़ी-बूटियों के गहन अध्ययन और शोध के बाद बनी यह दवा शत- प्रतिशत मरीजों को फायदा पहुंचा रही है। यहां पतंजलि योगपीठ में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि पूरे विश्व में पहला ऐसा आयुर्वेदिक संस्थान है, जिसने जड़ी-बूटियों के गहन अध्ययन और शोध के बाद कोरोना महामारी की दवाई प्रामाणिकता के साथ बाजार में उतारी है ।
उन्होंने कहा कि यह दवाई शत-प्रतिशत मरीजों को फायदा पहुंचा रही है। उन्होंने कहा कि 100 मरीजों पर नियंत्रित क्लिनिकल ट्रायल किया गया, जिसमें तीन दिन के अंदर 69 प्रतिशत और चार दिन के अंदर शत-प्रतिशत मरीज ठीक हो गये और उनकी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव से नेगेटिव हो गयी। ( साभार जागरण मिडिया ग्रुप )
कृष्णा टंडन की रिपोर्ट
जांजगीर चांपा / शौर्यपथ / विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक नारायण चंदेल का फेसबुक अकाउंट सैयद कमल नामक हैकर ने हैक कर लिया है। इस मामले का शिकायत विधायक ने पुलिस अधीक्षक सहित जांजगीर थाना में की है। विधायक नारायण चंदेल ने लोगों से अपील की है कि किसी भी तरह का मैसेज यदि उनके फेसबुक एकाउंट से किया तो इस पर तत्काल विधायक को सूचित किया जाए, हालांकि विधायक नारायण चंदेल ने अपना फेसबुक अकाउंट फिलहाल बंद कर दिया है जांजगीर चाम्पा क्षेत्र का विधायक जो विधानसभा का पूर्व उपाध्यक्ष भी रह चुका है इस तरह का अचानक फेसबुक अकाउंट हैक हो जाने से विधायक काफी सोच में पड़ गए है।
दुर्ग / शौर्यपथ / भिलाई नगर के स्कूल शकुंतला विद्यालय के छात्र हर साल की भांति इस साल भी टॉप टेन में अपना स्थान बनाकर भिलाई सहित विद्यालय का नाम रौशन करने का काम किया है। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल रायपुर द्वारा घोषित हॉयर सेकेण्डरी एवं हाई स्कूल परीक्षा 2020 का आज परीक्षा परिणाम घोषित किया गया। महामारी के गहन अंधकार में शकुन्तला विद्यालय क्रमांक - 2 के 2 विद्यार्थियों ने प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त कर अंकों की रिमझिम फुहारों से खुशनुमा माहौल बनाकर दुर्ग संभाग में सकारात्मकता का संचार कर दिया।
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल की प्रावीण्य सूची में कक्षा बारहवीं के छात्र सौरभ साहू ने 96.20 प्रतिशत (500 मे से 481 अंक) के साथ चौथे स्थान प्राप्त किया एवं कक्षा दसवीं में महक यादव 97.8 प्रतिशत (600 में 587 अंक) के साथ आठवां स्थान प्राप्त किया। कक्षा बारहवीं की नेहा वर्मा मात्र एक अंक से प्रावीण्य सूची में आने से चूक गई। विद्यालय के छात्रों के प्राविण्य सूचि में आने पर विद्यालय के डायरेक्टर संजय ओझा, प्राचार्य विपिन ओझा सहित सभी शिक्षक और स्टाफ ने इन छात्रों को बधाई दी है।
इस साल भी उत्कृष्ट रहा विद्यालय का परिणाम
शकुन्तला विद्यालय क्र-2, रामनगर भिलाई विद्यालय के हॉयर सेकेण्डरी का परीक्षाफल 97.68: प्रतिशत रहा। कुल सम्मिलित 389 विद्यार्थियों में से 264 विद्यार्थी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये । 90 प्रतिशत से अधिक विद्यार्थियों की संख्या 19 रही । गणित में 68, भौतिक शास्त्र में 189, रसायन शास्त्र में 192, जीव विज्ञान में 93, अंग्रेजी में 203, हिन्दी में 216 एवं वाणिज्य 73 विद्यार्थियों ने विशेष योग्यता प्राप्त की । शाला स्तर पर नेहा वर्मा 94.8: द्वितीय स्थान, कागज वर्मा 94.6: तृतीय स्थान एवं देवेन्द्र कुमार 94.2: एवं नेहा निशाद 94: अकों के साथ चैथे एवं पांचवें स्थान पर रहें । आयुश भोई और देवेन्द्र ने भौतिक शास्त्र में 100 में 100 तथा रसायन में जितादिव्य पॉल ने 100 में 100 अंक प्राप्त किये ।
इसी क्रम में हाई स्कूल का परीक्षाफल 95.3: रहा। कुल 192 विद्यार्थी सम्मिलित हुये । जिसमें 18 विद्यार्थियों ने 90 प्रतिषत से अधिक अंक अर्जित किये ।
शाला स्तर पर षाष्वत मिश्रा 95.8:, प्रणय पाण्डेय एवं वर्तिका षर्मा 95.8: के साथ द्वितीय एवं षानिया अंजुम 94.6: के स्थान तृतीय स्थान वंदना बारिक 94 प्रतिषत के साथ चैथे स्थान एवं राहुल देवांगन 93.8: के साथ पांचवें स्थान पर रहे । इसी प्रकार दसवीं बोर्ड परीक्षा परिणाम में विशयवार 100 में 100 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी गणित में शानिया अंजुम, शाष्वत मिश्रा, मोहित चैधरी तथा विज्ञान में महक यादव, अदिति शर्मा, वर्तिका शर्मा हैं ।
विद्यालय का हॉयर सेकेण्डरी एवं हाई स्कूल परीक्षा परिणाम उत्कृष्ट रहा । विद्यार्थियों की व्यक्तिगत प्रोन्नति का आधार उनका परिश्रम है, जिसके कारण विद्यालय उन्नति के उत्तरोत्तर सोपान की ओर अग्रसर है ।
शकुन्तला गु्रप ऑफ स्कूल्स के इस उत्कृष्ट परीक्षा परिणाम के लिए डायरेक्टर संजय ओझा, प्राचार्य प्रशासक एस.एस.गौतम, प्राचार्यद्वय विपिन ओझा, आरती मेहरा, प्रबंधक ममता ओझा, मेंनेजर व्ही दुबे, अभय दुबे, विभोर ओझा, उपप्राचार्य रंजना कुमार, अनीता नायर, हेड मिस्ट्रेस अर्चना मेश्राम, सीनियर मिस्ट्रेस बलजीत कौर, प्रभारी राजेश वर्मा, शिक्षक बी.एस.राजपूत, मनोज पाण्डेय, ममता बोस, शशि शाह, सुनीता सक्सेना, रूशाली माहूले, कविता साहू, शीला रौतेला, मुक्ता शाहा, विजय लक्ष्मी, अमित कुमार, प्रतिक साहू, उपेन्द्र देवांगन, मेघा नफाडे, संगीता भंडारी, आर.के.मिश्रा, सरिता सिंह, प्रीति सरवन, तृप्ति अग्रवाल, संगीता दुबे, कविता चैधरी, के.पी.तिवारी, साहिष्ता, छाया, सीमा दुबे, हरदीप कौर आदि ने विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को बधाई देते हुये हर्ष व्यक्त किया।