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खेल / शौर्यपथ / अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने सोमवार को दावा किया कि ऑस्ट्रेलिया में इस साल खेले गए टी20 विश्व कप को रिकॉर्ड लोगों ने देखा और इस वैश्विक संस्था के डिजीटल चैनलों के जरिये रिकॉर्ड एक अरब एक करोड़ बार इससे जुड़े वीडियो देखे गए। यह आंकड़ा 2018 में खेली गई प्रतियोगिता की तुलना में 20 गुना अधिक है। आईसीसी ने विज्ञप्ति में कहा कि फरवरी-मार्च में आयोजित किए गए टूर्नामेंट के वीडियो को महिला क्रिकेट की पूर्व की सबसे सफल प्रतियोगिता वनडे विश्व कप 2017 की तुलना में 10 गुना अधिक बार देखा गया।
इन दोनों टूर्नामेंट में भारत उप विजेता रहा था, लेकिन दर्शकों की संख्या के मामले में उसने अहम योगदान दिया। आईसीसी ने कहा, ''विश्व कप के इन आंकड़ों से यह (2020 महिला टी20) विश्व कप 2019 (पुरुष वनडे) के बाद आईसीसी की सबसे सफल प्रतियोगिता बन गई और फाइनल को विश्व भर में सर्वाधिक दर्शकों ने देखा।''
इसमें कहा गया है, ''भारत के फाइनल में पहुंचने से दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ी, क्योंकि 2018 की तुलना में नाकआउट चरण की दर्शक संख्या 423 प्रतिशत अधिक थी। विज्ञप्ति के अनुसार, ''भारत में कुल आठ करोड़ 61 लाख 50 हजार घंटे टूर्नामेंट देखा गया जो कि 2018 के टूर्नामेंट की तुलना में 152 प्रतिशत अधिक है। भारत के फाइनल में पहुंचने और प्रसारक स्टार स्पोर्ट्स के भारतीय मैचों का पांच भाषाओं (अंग्रेजी, हिन्दी, तमिल, तेलुगु और कन्नड़) में प्रसारण करने से यह सफलता मिली।
बता दें कि दोनों टूर्नामेंट में भारत उप विजेता रहा था, लेकिन दर्शकों की संख्या ने आंकड़ों में प्रमुख योगदान दिया। यह आंकड़े आईसीसी पुरुष क्रिकेट विश्व कप 2019 के बाद आईसीसी का दूसरा सबसे सफल इवेंट है। भारत के फाइनल में पहुंचने से दर्शकों के उत्साह में वृद्धि आई और 2018 की तुलना में नॉकआउट चरण की दर्शक संख्या 423 प्रतिशत अधिक थी।
नई दिल्ली / शौर्यपथ / भारत में पिछले 24 घंटे में संक्रमण के 14,993 नए मामले सामने आए हैं और 312 लोगों की मौत हुई है.स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ताज़ा आँकड़ों के बाद भारत में संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 4 लाख 40 हज़ार हो गई है.मरने वालों की संख्या बढ़कर 14,011 हो गई है.
भारत में संक्रमण के सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र में हैं जहाँ संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख 35 हज़ार से अधिक है.वहाँ छह हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. राजधानी दिल्ली संक्रमण के लिहाज़ से दूसरे स्थान पर है. वहाँ कुल 62 हज़ार से अधिक लोग संक्रमित हैं. 2,233 हो गई है. संक्रमण के लिहाज़ से तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है.
नई दिल्ली / शौर्यपथ / भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तीन दिवसीय रूस यात्रा पर हैं. इस दौरान वे रूस के उच्च सैन्य अधिकारियों के साथ वार्ता करेंगे और दूसरे विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी पर सोवियत विजय की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित भव्य सैन्य परेड में शामिल होंगे.
कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र चार महीने तक यात्रा पर लगे प्रतिबंध के बाद किसी वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री की यह पहली विदेश यात्रा है.रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यह रूस यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब लद्दाख में चीन के साथ भारत का गतिरोध बरक़रार है.
सोमवार को मॉस्को रवाना होने से पहले राजनाथ सिंह ने एक ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा कि "तीन दिवसीय यात्रा पर मॉस्को रवाना हो रहा हूँ. यह यात्रा भारत-रूस रक्षा और सामरिक साझेदारी को मज़बूत करने के लिए बातचीत का अवसर देगी."
भारतीय रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि 'चीन के साथ सीमा पर तनाव होने के बावजूद रक्षा मंत्री ने रूस की यात्रा स्थगित नहीं की क्योंकि रूस के साथ भारत के दशकों पुराने सैन्य संबंध हैं और रक्षा मंत्री रूस के उच्च अधिकारियों के साथ दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने को लेकर कई बैठकें करने वाले हैं.'भारतीय मीडिया में रक्षा मंत्री के इस दौरे को भारत की सैन्य क्षमता बढ़ाने की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. कई अख़बारों ने लिखा है कि 'लद्दाख एलएसी पर चीन के साथ जारी कशीदगी के दरमियान भारत के रक्षा मंत्री अपने हथियारों को पूरी तरह से कारगर बनाने और मारक क्षमता को बढ़ाने के लिए रूस गए हैं ताकि चीन को हड़काया जा सके.' मगर विश्लेषकों का मानना है कि 'भारत सरकार देर से जागी है, और कोविड-19 महामारी की वजह से अब रूस से भारत को मिलने वाले हथियारों और डिफ़ेंस सिस्टम की डिलीवरी में अतिरिक्त समय लगेगा. पर जल्द से जल्द इनकी डिलीवरी के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस से तक़ादा ज़रूर करेंगे.'
रूस से रक्षा सौदों में देरी
मॉस्को में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ल ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि "भारत बहुत लंबे समय से कई महत्वपूर्ण रक्षा सौदों को टालता आ रहा है. कभी कहा जाता है कि पैसे नहीं हैं, कभी कोई अन्य कारण बता दिया जाता है. जैसे मल्टी-यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों के मामले में हुआ, रूस ने कहा था कि 60 हेलीकॉप्टर तैयार ले लीजिए और 140 हेलीकॉप्टर हम इंडिया में बना देंगे. लेकिन भारतीय ब्यूरोक्रैट्स सौदेबाज़ी में लग गये, कहने लगे तैयार हेलीकॉप्टर 40 ही लेंगे, फिर क़ीमत को लेकर चर्चा चलती रही और 2014 से अब तक इन पर निर्णय नहीं हो पाया."
विनय शुक्ल के अनुसार "अगर भारत के पास ये (एंबुलेंस) हेलीकॉप्टर होते, तो जो सैनिक गलवान घाटी में मेडिकल हेल्प ना मिल पाने की वजह से मारे गए, उन्हें बड़ी आसानी से बचाया जा सकता था." उन्होंने बताया, "हेलीकॉप्टर वाला अकेला रक्षा सौदा नहीं है, रूस के साथ राइफ़लें बनाने का करार हुआ, तो रूस ने फ़टाफ़ट जॉइंट वेंचर की कार्यवाही पूरी की, अमेठी के पास फ़ैक्ट्री भी बनाई, वो भी ब्यूरोक्रेसी में फंस गई. सुखोई और मिग विमान भारतीय वायु सेना की रीढ़ हैं, पर उनकी ख़रीद की प्रक्रिया भी अटकी हुई है. और जब तक मुसीबत नहीं आ जाती, ये अटकी ही रहती हैं. तो जो निवेश कर रहा है और अपनी तकनीक दे रहा है, उसकी कद्र नहीं है. ये बात रूस की ओर से भारत की मौजूदा सरकार के सामने रखी जा चुकी है और निवेशकों ने सरकार की गंभीरता पर भी सवाल उठाये हैं. इसलिए जो देरी है, वो भारत सरकार की वजह से है."
रूस का एस-400 डिफ़ेंस सिस्टम
भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के रूस रवाना होने के बाद से ही एस-400 डिफ़ेंस सिस्टम की भी चर्चा हो रही है.कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 'रूस ने इस डिफ़ेंस सिस्टम की डिलीवरी डेट आगे खिसका दी है जो भारत के लिए चिंता का विषय है.'रूस में बनने वाले 'एस-400: लॉन्ग रेंज सरफ़ेस टू एयर मिसाइल सिस्टम' को भारत सरकार ख़रीदना चाहती है. ये मिसाइल ज़मीन से हवा में मार कर सकती है. एस-400 को दुनिया का सबसे प्रभावी एयर डिफ़ेंस सिस्टम माना जाता है. इसमें कई ख़ूबियाँ हैं. जैसे एस-400 एक साथ 36 जगहों पर निशाना लगा सकता है.
पर भारत को यह डिफ़ेंस सिस्टम मिलने में देरी क्यों? इसे समझाते हुए विनय शुक्ल ने कहा, "अमरीका ने धमकी दी थी कि अगर भारत ने रूस से यह सिस्टम खरीदा तो वो भारत पर प्रतिबंध लगायेगा. इससे भारतीय बैंक डर गये, ख़ासकर वो बैंक जिनका पैसा अमरीका से होने वाले व्यापार में लगा है. इसलिए उन भारतीय बैंकों से बात करनी पड़ी जिन्हें अमरीका से ख़तरा ना हो. इससे काफ़ी वक़्त ख़राब हुआ और एस-400 की एडवांस पेमेंट देर से हुई. हालांकि रूस ये कह रहा है कि वो अब भी जल्द से जल्द भारत को इसे देने का प्रयास करेगा."
शुक्ल ने बताया कि "चीन से पहले रूस ने भारत को अपना लॉन्ग रेंज सरफ़ेस टू एयर मिसाइल सिस्टम 'एस-400' ऑफ़र किया था. लेकिन भारत इसे ख़रीदने के लिए तभी राज़ी हुआ जब चीन ने इसे ख़रीद लिया. हथियारों के मामले में चीन की रूस पर काफ़ी निर्भरता है. चीन ने रूस में बनने वाले फ़ाइटर जेट के इंजन कॉपी करने की बहुत कोशिश की, मगर वो वैसे नहीं बन पाये, जैसे रूस वाले बनाते हैं. इसलिए चीन को इनका लाइसेंस लेना पड़ता है. और रूस यह कंट्रोल हमेशा अपने हाथ में रखेगा."
"मसलन, रूस ने चीन को एस-400 दिया तो है, पर वो वैसा सिस्टम नहीं है, जैसा वो भारत को देना वाला है. रूस कहता है कि चीन को उसने एस-400 अमरीका से अपनी रक्षा करने के लिए दिया है, उनकी रेंज कम है. मगर भारत को एस-400 की सबसे लंबी रेंज वाली मिसाइलें दी जाएंगी." ऐसी उम्मीद की जा रही है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के इस दौरे के अंत में 'भारत को एस-400 डिफ़ेंस सिस्टम मिलने के बारे में' कोई आधिकारिक सूचना दी जाएगी. ( साभार बीबीसी )
मनोरंजन / शौर्यपथ / फिर दूसरे ने पूछा कि क्या न्यासा का फिल्मों में आने का मन है तो काजोल ने इसका जवाब भी ना में ही दिया।
बता दें कि न्यासा अभी 17 साल की हैं और उनकी बॉलीवुड में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन फिर भी न्यासा की काफी अच्छी फैन फॉलोइंग है। सोशल मीडिया पर उनकी फोटोज आते ही वायरल हो जाती हैं। हालांकि न्यासा को लाइमलाइट पसंद नहीं है।
बेटी के ट्रोल होने पर काजोल ने कही थी यह बात
दरअसल, न्यासा को कई बार उनके आउटफिट्स को लेकर ट्रोल किया जा चुका है जिससे काजोल और अजय दोनों को काफी दुख पहुंचा था। काजोल ने एक इंटरव्यू में इस बारे में कहा था, 'मैं सोचती हूं कि मेरी बेटी का सोशल मीडिया पर ट्रोल होना काफी दुखद और परेशान करने वाला है। एक पेरेंट के नाते हम हमेशा अपने बच्चों को प्रोटेक्ट करते हैं। तो जब सोशल मीडिया पर न्यासा ट्रोल होती हैं तो काफी बुरा लगता है'।
काजोल ने आगे कहा था, 'सच कहूं, तो अच्छी बात है कि न्यासा यहां नहीं है। उसे इन सभी के बारे में कुछ पता ही नहीं है। न्यासा जब ट्रोल हुईं तो वह सिंगापुर में थीं, लेकिन सोशल मीडिया तो सोशल मीडिया होता है। यह हर कहीं है। तब आपको अपने बच्चों को समझाना होता है कि ट्रोलर्स सोसाइटी के वो गिने-चुने लोग होते हैं जिनके कुछ भी करने से आपको फर्क पड़ना ही नहीं चाहिए। अगर मैं अपने बेटे को यह सिखा रही हूं कि लड़कियों की इज्जत करो तो बेटी को मैं यह सिखा रही हूं कि आपकी खुद की इज्जत खुद से ही शुरू होती है'।
रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शिक्षण सत्र 2020-21 में प्रयास आवासीय विद्यालय में कक्षा 9वीं में और एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों में कक्षा 6वीं में प्रवेश के लिए चयन परीक्षा की तिथियों में संशोधन किया गया है। संशोधित कार्यक्रम के अनुसार प्रयास आवासीय विद्यालयों के कक्षा 9वीं में प्रवेश के लिए परीक्षा 14 जुलाई को सुबह 10.30 से 1.00 बजे तक आयोजित की जाएगी। इसी प्रकार एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों में कक्षा 6वीं में प्रवेश हेतु चयन परीक्षा संशोधित तिथि के अनुसार 16 जुलाई को प्रातः 10.30 से 12.30 बजे तक आयोजित होगी।
राज्य शासन के आदिम जाति तथा अनुसूचित जनजाति विकास विभाग द्वारा इस संबंध में सभी जिलों के सहायक आयुक्तों को प्रवेश हेतु चयन परीक्षा के संशोधित कार्यक्रम के अनुसार व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए व्यापक प्रचार-प्रसार करने के निर्देश दिए है। उल्लेखनीय है कि प्रयास आवसीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए पूर्व में चयन परीक्षा 24 जून को और एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों में प्रवेश हेतु चयन परीक्षा 26 जून को होनी थी। इन परीक्षाओं की तिथियों में संशोधन किया गया है। अब संशोधित कार्यक्रम के अनुसार प्रयास आवासीय विद्यालय में प्रवेश हेतु चयन परीक्षा 14 जुलाई को और एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय में प्रवेश हेतु चयन परीक्षा 16 जुलाई को निर्धारित की गई है।
रायपुर / शौर्यपथ / खाद्य एवं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने आज सीतापुर विकासखंड के ग्राम पंचायत धरमपुर में वन विभाग के उच्च तकनीक रोपणी का शिलान्यास किया। वन विभाग द्वारा धरमपुर में करीब 5 हेक्टेयर क्षेत्र में कैम्पा योजना के तहत उन्नत तकनीक रोपणी विकसित किया जाएगा। पौधों की रोपणी उन्नत तकनीक से होगी जिससे पौधे स्वस्थ एवं उन्नत होंगे। इस मौक पर मंत्री भगत ने कहा कि जीवन के लिए पेड़ और जंगलों का होना बहुत जरुरी है। पेड़ से हमें जीवन दायनी ऑक्सीजन मिलती है। ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए अब शहरों में ऑक्सीजोन बनाकर पेड़ों को सहेजने का काम किया जा रहा है। गांव में अभी ऐसी स्थिति नही आई है। लेकिन जंगलों को नही बचाएंगे तो यहां भी स्थित बिगड़ सकती है इसलिये जंगलों को बचाएं और अधिक से अधिक पेड़ लगाएं।
मंत्री ने मैनपाट जनपद पंचायत परिसर में वृक्षारोपण किया। उन्होंने 5 नवीन ग्राम पंचायतों में नवीन भवन का शिलान्यास एवं 64 लोगों को स्वेच्छानुदान राशि का चेक वितरित किया। इसी प्रकार बतौली विकासखंड में 2 नवीन ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन निर्माण के लिए भूमिपूजन किया तथा 67 हितग्राहियों को स्वेच्छानुदान राशि का चेक वितरित किया। साथ ही सीतापुर जनपद के 132 लोगों को स्वेच्छानुदान का चेक प्रदान किया। इस मौके पर मैनपाट जनपद पंचायत अध्यक्ष श्रीमती उर्मिला खेस, मुख्य वन संरक्षक श्री एबी मिंज, डी एफओ,एस डीएम सहित अन्य अधिकारी एवं नागरिक उपस्थित थे।
रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री सुपोषण मिशन गंभीर रूप से कुपोषित नौनिहालों की सेहत में तेजी से सुधार का जरिया बन रहा है। पोषण पुनर्वास केंद्रों में डॉक्टरों की बेहतर देखभाल और पोषक आहार से वे न केवल सुपोषित हो रहे हैं, बल्कि उनका शारीरिक-मानसिक विकास भी अच्छे से हो रहा है। दुर्ग जिले के विकासखंड मुख्यालय पाटन स्थित एन.आर.सी. ने भी एक माता-पिता के अरमानों को पंख दे दिए हैं।
गुढ़ियारी गांव के ईश्वर और ममता अपने आठ माह के बेटे गौरीशंकर की सेहत को लेकर काफी चिंतित थे। कुपोषण ने उन्हें अपने बेटे को बैठते, क्रॉल करते और चलते हुए देखने से वंचित कर रखा था। गौरीशंकर आठ महीने के बच्चे की तरह न तो बैठ पाता था और न ही क्रॉल कर पाता था। जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा था मां-बाप की चिंता भी बढ़ रही थी क्योंकि वह काफी सुस्त रहने लगा था। ऐसे में मुख्यमंत्री सुपोषण मिशन ने उन्हें उम्मीद की किरण दिखाई। गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नजर गौरीशंकर पर पड़ी तो वह उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर गई। डॉक्टरों ने जांच के दौरान पाया कि उसका वजन काफी कम है और वह गंभीर रूप से कुपोषित है। डॉक्टरों ने तुरंत पोषण पुनर्वास केंद्र पाटन में भर्ती करने की सलाह दी।
पाटन के खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. आशीष शर्मा बताते हैं कि गौरीशंकर 4 जून को पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती हुआ। उसे बेहतर पोषण की ज़रूरत तो थी, पर साथ ही एक और गंभीर समस्या थी। वह बैठ नहीं पाता था, पलट भी नहीं पाता था। इसलिए उसके लिए एक विशेष दिनचर्या तैयार की गई जिसमें पोषण आहार के साथ फिजियोथेरेपी और व्यायाम भी शामिल था। एन.आर.सी. की पूरी टीम ने इसे एक मिशन के रूप में लिया। फिजियोथेरिपिस्ट डॉ. लीना चुरेन्द्र की फिजियोथेरिपी और व्यायाम से गौरीशंकर को काफी मदद मिली। केंद्र के स्टॉफ ने उसके पोषण और मेडिकेशन का पूरा ख्याल रखा।
डॉ. शर्मा आगे बताते हैं कि 4 जून को जब गौरीशंकर को लाया गया तब उसका वजन 4.65 किलोग्राम था। लगातार देखभाल से उसका वजन बढ़ने लगा और 21 जून को जब उसका वज़न किया गया तो वह 5.800 किलोग्राम का हो गया था। जो बच्चा बैठ नहीं पाता था वह आज बैठने लगा और सहारा देने पर खड़ा भी होने लगा। कुपोषण का स्तर भी कम हुआ है। अब वह गंभीर कुपोषित से मध्यम कुपोषित में आ गया है। हम उसे सामान्य की श्रेणी में लाने की कोशिश कर रहे हैं। डिस्चार्ज होने के बाद भी उसकी लगातार मॉनिटरिंग की जाएगी।
बेटे को स्वस्थ होता देख माँ को भी मिली राहत
गौरीशंकर की माँ ममता बताती है कि आज अपने बच्चे को स्वस्थ देखकर बहुत खुशी होती है। जब वो बैठ नहीं पाता था तो उसके पिता और मैं दिन-रात उसकी ही चिंता में लगे रहते थे। हमारी आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं थी कि इलाज करा पाते। लेकिन पोषण पुनर्वास केंद्र में सारा इंतज़ाम निःशुल्क हो गया। ममता ने बताया कि यहाँ पूरी टीम ने उसके बच्चे की अच्छी तरह देखभाल की। यहां माँ और बच्चे दोनों के रहने की व्यवस्था है। केंद्र में तीन बार के भोजन और स्वस्थ दिनचर्या के बारे में बताया जाता है। डिस्चार्ज होने के बाद घर में क्या सावधानी रखनी है, खान-पान कैसा होना चाहिए यह भी बताया जाता है। ममता पोषण पुनर्वास केंद्र के डॉक्टरों और स्टॉफ का आभार व्यक्त करते हुए कहती है कि मुख्यमंत्री सुपोषण मिशन से उनके बेटे को नया जीवन मिला है।
दुर्ग / शौर्यपथ / नगर पालिक निगम दुर्ग द्वारा पशुपालकों (डेयरी संचालको) को गोकुल धाम पुलगांव स्थान्तरित किये जाने का प्रयास चल रहा है . डेयरी संचालको के मन में शंशय है कि अगर वो स्थानांतरित हो गए तो गोकुल नगर की समस्याओ से दोचार होना पड़ेगा और बरसाती मौसम्मे ये लगभग असंभव सा दिख रहा है कई संचालक जान तो चाहते है किन्तु पशुपालकों द्वारा गंभीर समस्या यह कि गोकुल धाम में व्यवस्था कुछ भी नही ,निगम के द्वारा बोला जाता है जानवरो के लिए पूरी व्यवस्था है, लेकिन जमीनी स्तर में कुछ भी व्यवस्था नही की गई गोकुल धाम में .
गोकुल धाम में न तो सडक है और न ही नाली ऊपर से डेयरी संचालको से शपथ पत्र भरवाया जा रहा है की साफ सफाई व जानवरो को खुला न छोड़े, गोकुलधाम में रायपुर राजनादगांव के तर्ज मे न टीनसेड तैयार करके दिया जा रहा है और ना ही पक्का मार्ग व्यवस्था के नाम पर सिर्फ पानी की व्यवस्था किये जाने से जानवरो की सेवा नही किया जा सकता , अगर डेयरी व्यथापन करते है बारिश काल के समय व्यवस्था जरूरी है .
दुर्ग शहर में लगभग 300 के आस पास डेयरी है गोकुलधाम सिर्फ 80 डेयरी की जगह है
गोकुलधाम में कुल 80 डेयरी संचालको के लिए जगह है किन्तु शहर में लगभग 300 डेयरी है ऐसे में अगर सभी 80 संचालक चले भी गए तो जानवरो के तालाब की व्यवस्था की गई है लेकिन छोटा है
जानवरो के लिए चारागाह नही है गोकुलधाम से लगे जगहों में सब्जी फल की बाडी है , गोकुलधाम डेयरी के लिए बनाया गया लेकिन वहाँ कुछ बिल्डिंग ठेकेदार रह रहे है और अपने बिल्डिंग में काम आने वाले वाहन खड़े किये है वही जानवरो को रखने के लिए किसी भी प्रकार से जमीन समतल नही है वहाँ गड्ढे कीचर की भरमार है,साथ ही गोबर फेकने के लिए भी जगह नही है .डेयरी व्यथापन करे तो साथ मे परिवार को रखना पड़ेगा जिसके लिए किसी भी प्रकार व्यवस्था है और न ही जानवरो के सुरक्षा है .
ऐसे अनेक कारण है अभी कुछ महीनों कॅरोना वायरस से व्यवसाय में बहुत हानि उठाना पड़ा है एकाएक व्यथापन और वहां पहुचकर व्यवस्थित कर पाना मुश्किल है पूर्व में कुछ डेयरी वहां व्यथापन की गई है लेकिन व्यवस्था से परेसान है, पूर्व में पशुपालक का जानवर गलती से बाडी में चरने घुस गई उसे बाडी संचालक के द्वारा पशु के पीछे लड़की घुसा दिया गया था, पूर्व में शहर के कुत्तों को वहां छोड़ दिया गया था कुछ जानवरो को नुकसान भी पहुचा ऐसे हालात में डेयरी व्यथापन कैसे करे साथ मे परिवार को पालना मुश्किल होगा बहुत से डेयरी को 10 दिन में व्यथापन किये जाने की नोटिस निगम द्वारा भेजा गया है साथ ही साफ सफाई के लिए 10000/- की चालान काटा गया है , डेयरी संचालन के मुश्किल बढ़ती जा रही है . क्या प्रशासन कोई सार्थक कदम उठाएगा जिससे शहर भी साफ़ सुथरा रहे और गोकुल नगर में डेयरी सञ्चालन भी सुचारू रूप से चले
दुर्ग / शौर्यपथ / लंगूरवीर मंदिर समिति के सदस्य मानव सोनकर ने रविवार को पत्रकारवार्ता में बताया कि मंदिर के जीर्णोंद्वार के बाद लंगूरवीर मंदिर का स्वरूप बदला है। 23 जून को भव्य गुंबदों में शिखर कलश चढ़ेगा। कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करवाने मंदिर परिसर व प्रांगण में गोले बनाए जाएंगे। गौरतलब है कि शहर के शनिचरी बाजार स्थित प्रसिद्ध लंगूरवीर मंदिर अब जीर्णोंद्वार के बाद अपने नए स्वरूप में आ गया है। मंदिर के भव्य गुंंबद में शिखर कलश चढ़ावा का कार्य ही शेष रह गया है। लंगूरवीर मंदिर समिति द्वारा दो दिवसीय शिखर कलश चढ़ावा कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इसकी शुरूआत 22 जून को पूजा अर्चना के साथ शुरू हो गई।
नजरिया /शौर्यपथ /भारत सात बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का अस्थाई सदस्य रह चुका है। अब उसके सामने अपने आठवें कार्यकाल को खास बनाने की चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्य के रूप में 2012 में अपना सातवां कार्यकाल पूरा करने के तत्काल बाद भारत ने सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए अपना अभियान शुरू कर दिया था। इस दिशा में सार्वजनिक रूप से साल 2013 में पहला ठोस कदम उठाया गया था, जब अफगानिस्तान ने भारत के पक्ष में सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्यता के लिए अपना दावा करने की योजना से कदम पीछे खींच लिए थे। तब संयुक्त राष्ट्र में एशिया प्रशांत समूह के अन्य 54 सदस्य देशों में से कोई देश भारत को चुनौती देने के लिए आगे नहीं आया था। वह पाकिस्तान भी नहीं, जिसने सुरक्षा परिषद में भारत के चुनाव का स्वागत करने से इनकार कर दिया था।
इस बार 2019 में भी एशिया-प्रशांत देशों के समूह ने सर्वसम्मति से भारत को अपने उम्मीदवार के रूप में समर्थन दिया, जिसके परिणामस्वरूप पिछले सप्ताह भारत को 192 वोटों में से 184 के साथ जोरदार जीत हासिल हुई। अस्थाई सदस्यता की राह में किसी देश ने भारत का विरोध नहीं किया। यह एक ऐसी मुश्किल जीत है, जो कई सुखद संयोगों से मिली है। 1 जनवरी, 2021 से शुरू होने वाला भारत का दो साल का कार्यकाल अपने अंतिम वर्ष में देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ और पहली बार दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के साथ सामने आएगा। अब सवाल उठता है, सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए प्रचार के साथ इस पूरे कार्य या पैकेज को कैसे अंजाम दिया जाए? क्या भारत इस बार फिर स्थाई सदस्यता के लिए जोर लगाने को ठीक से तैयार है?
बेशक, भारत ने 2011 से शुरू हुए अपने सातवें कार्यकाल का उपयोग न केवल स्थाई सदस्यता के अपने दावे को चमकाने के लिए, बल्कि इसे मुमकिन बनाने के लिए भी किया था। कुछ भारतीय विशेषज्ञों ने इसे स्थाई सदस्यता के लिए पूर्वाभ्यास भी कहा था। तब भारत ने कोशिश की, हालांकि उसकी कोशिशों का कोई तात्कालिक नतीजा नहीं निकला था, पर भारत इस मामले या मांग को आगे बढ़ाने में जरूर कामयाब हुआ था। सरकारों के बीच वार्ता, जिसे इंटर गवर्नमेंट निगोशिएशन (आईजीएन) भी कहते हैं, आगे बढ़ी थी और साल 2015 में पाठ (या लिखत-पढ़त) आधारित वार्ताओं तक पहुंच गई थी।
भारत ने 1 जनवरी से अपना आठवां कार्यकाल शुरू करने की योजना बनाई है। इसी इरादे से एक नए व्यापक विचार के तहत बहुपक्षीय तंत्र बनाने को प्राथमिकताओं में शामिल किया गया है। यह अपनी स्थाई सदस्यता के लिए पूरे पैकेज के तहत फिर कोशिश करने का एक और तरीका है। साथ ही, अन्य प्राथमिकताएं भी हैं, जैसे आतंकवाद के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अनुमोदन व्यवस्था का गैर-राजनीतिकरण करना, लेकिन कुल मिलाकर, भारत के लिए सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उचित ही शीर्ष पर है। ठीक इसी समय भारत अपनी अस्थाई सदस्यता का उपयोग इस तरह करे, ताकि पता चले कि इसकी क्या सार्थकता है और क्या नहीं है। सुरक्षा परिषद में किसी फैसले पर ‘हां’ या ‘नहीं’ वोट करना एक अनुपस्थित वोट के आत्म-औचित्य की तुलना में कहीं अधिक दम और चरित्र रखता है।
सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थाई सदस्य के साथ गुट न बनाना एक खूबी हो सकती है। स्थाई सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन के साथ गुट नहीं बनाते हुए दशकों तक गुटनिरपेक्षता से बंधे रहना उस वक्त भारत के लिए ठीक रहा था। अब भारत सहज आधार पर अपना एक स्टैंड ले और इसके साथ ही किसी स्थाई सदस्य देश के साथ मुखर-पक्षधरता को आजमाए, तो इसके बड़े रणनीतिक फायदे मुमकिन हैं।
235 ई, 43वीं स्ट्रीट, न्यूयॉर्क सिटी, इसी इमारत में साल 1993 से भारत का स्थाई आयोग मौजूद है। मैनहट्टन के पड़ोस में यह इमारत सिर्फ इसलिए नहीं खड़ी है, क्योंकि यह सबसे ऊंची है, बल्कि यह दिवंगत आर्किटेक्ट चाल्र्स कोरिया की साहसिक और मुखर वास्तु-कला के अपने चरित्र के कारण भी शोभायमान है। यह समय है, जब हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वैसे ही भाव-स्वभाव के साथ पेश आएं। यशवंत राज, अमेरिका में हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता