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अशोक करिहार आत्महत्या मामला बना प्रशासन के लिए बड़ा सवाल ?
शौर्यपथ समाचार / विशेष रिपोर्ट / दुर्ग
दुर्ग नगर निगम में कार्यरत सफाई कामगार अशोक करिहार की आत्महत्या ने निगम प्रशासन, विशेषकर उपायुक्त महेंद्र साहू की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 27 सितंबर 2022 की सुबह जब अशोक करिहार अपने ही घर में फांसी पर झूलते मिले, तब न केवल उनका परिवार बल्कि पूरा नगर निगम सकते में आ गया।
बीमारी और छुट्टी के लिए संघर्ष बना मौत की वजह?
अशोक करिहार, जो लंबे समय से विभिन्न बीमारियों से पीडि़त थे, ने छुट्टी के लिए आवेदन दिया था। सूत्रों के अनुसार, उनके पास उपलब्ध वैध छुट्टियां थीं, लेकिन इसके बावजूद उपायुक्त महेंद्र साहू, जो छुट्टी स्वीकृत करने के अधिकृत अधिकारी थे, ने छुट्टी मंजूर नहीं की।
यह भी चर्चा में आया कि छुट्टी स्वीकृति से संबंधित नोटशीट में जानबूझकर हेराफेरी की गई। रिश्वत की मांग और मानसिक प्रताडऩा की संभावना को लेकर भी चर्चा तेज है। इसी के चलते अशोक करिहार ने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया।
सुसाइड नोट: सिस्टम पर गंभीर आरोप
घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक कथित सुसाइड नोट वायरल हुआ जिसमें अशोक करिहार ने अधिकारियों की प्रताडऩा का जि़क्र करते हुए अपने पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने की बात लिखी थी। हालांकि इस नोट की आधिकारिक पुष्टि अब तक नहीं हो पाई है, लेकिन नगर निगम में इस नोट को लेकर कई चर्चाएं हुईं।
संदेहास्पद गति से हुई अनुकंपा नियुक्ति
अशोक करिहार की मृत्यु के मात्र 12 दिन के अंदर उनके पुत्र अनिल करिहार को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान कर दी गई। इस प्रक्रिया में जो बात सबसे अधिक चौंकाती है वह यह कि मृत्यु प्रमाण पत्र और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बिना ही नियुक्ति पूरी कर दी गई।
10 अक्टूबर 2022 को अशोक करिहार के पुत्र ने नौकरी भी ज्वाइन कर ली , जबकि मृत्यु प्रमाण पत्र 19 अक्टूबर को निर्गत हुआ। इसका अर्थ यह है कि बिना मृत्यु की पूरी औपचारिक पुष्टि के ही नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर दी गई।
पूर्ववर्ती आवेदकों की अनदेखी
जबकि नगर निगम में अन्य लगभग 40 परिवार अनुकंपा नियुक्ति के लिए वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे हैं, ऐसे में इतनी तेजी से सिर्फ अशोक करिहार के पुत्र की नियुक्ति होना संदेह को और गहरा करता है। क्या यह उपायुक्त महेंद्र साहू और अशोक करिहार के बीच हुए विवाद की भरपाई का प्रयास था? या फिर यह उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों के संबंधों और प्रभाव का परिणाम?
संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग?
स्थापना शाखा के प्रमुख के रूप में महेंद्र साहू की भूमिका अब सवालों के घेरे में है। यदि सत्यता यही है कि बिना नियमों का पालन किए, एक विवादित परिस्थिति में, मात्र राजनीतिक या प्रशासनिक संबंधों के दम पर नियुक्ति की गई, तो यह न केवल संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग है, बल्कि भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा भी है।
प्रशासन को देना चाहिए जवाब
यह मामला अब उच्च स्तरीय जांच की मांग करता है। यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु के पीछे प्रशासनिक उत्पीडऩ की भूमिका है, तो यह मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन है। नगर निगम प्रशासन और राज्य शासन को इस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए और दोषियों को दंडित करना चाहिए।
सार
दुर्ग नगर निगम का यह प्रकरण दर्शाता है कि कैसे एक आम सफाई कर्मचारी को सिस्टम की बेरुखी ने आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया और कैसे बाद में उस मौत का इस्तेमाल संभवत: कुछ अधिकारी अपने कर्तव्यों से बचाव और लाभ के लिए करते दिखाई दे रहे हैं।
प्रश्न यह है कि—क्या इस मामले की जांच होगी या फिर एक और मौत सिर्फ आंकड़ा बनकर रह जाएगी?
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