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रसोई / शौर्यपथ / क्या आपको पता है कि राजमा जितना चाव से भारत में खाया जाता है, इसे मेक्सिको में भी उतना ही पसंद किया जाता है। कहीं राजमा मसाला-वड़ा खाया जाता है, तो कहीं राजमा को सलाद के रूप में परोसा जाता है। आप बनाइए नाश्ते में राजमा कटलेट्स।
1- भारत में राजमा के शौकीन बहुत लोग हैं। पर क्या आपको इसके सेहत के गुण पता हैं? राजमा में जितनी कैलोरी होती है, वो हर आयु वर्ग के लोगों की सेहत के लिए सही होती है। आप इसे सलाद और सूप के रूप में भी ले सकते हैं। वहीं इसमें उच्च मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन क्रिया को सही बनाए रखने में मदद करते हैं। यह ब्लड शुगर के स्तर को भी नियंत्रित करने में मददगार होता है।
2-कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर राजमा को सब्जी के तौर पर बना ही सकते हैं, राजमा कटलेट जैसी रेसिपी भी आजमा सकते हैं। आपको चाहिएराजमा 1 कप, लाल मिर्च पाउडर 1 छोटा चम्मच, बारीक कटा हुआ लहसुन आधा चम्मच, हरा धनिया, बारीक कटी अदरक आधा चम्मच, 2 मध्यम साइज के टमाटर कटे हुए, दो प्याज बारीक कटे हुए, भूना जीरा पाउडर एक छोटा चम्मच और नमक स्वादानुसार।
3-राजमा कटलेट बनाने के लिए रात में भिगोया एक कप राजमा सुबह एक चुटकी नमक और आधा या पौन कप पानी संग उबाल कर ठंडा होने पर मिक्सी में दरदरा पीसें। एक बर्तन में दरदरा पीसा राजमा और बाकी सारी सामग्री डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए। हाथ में थोड़ा सा मिश्रण लेकर इसे हल्के हाथों से दबाकर चपटा कर कटलेट का आकार दें। अब एक पैन में तेल मध्यम आंच पर गर्म करें। तेल बस सेंकने के लिए चाहिए। गर्म तेल में एक-एक करके कटलेट डालें और मध्यम आंच पर फ्राई करें। सुनहरा सिक जाने पर चटनी संग परोसें।
रसोई / शौर्यपथ / आप अगर ऐसे ब्रेकफास्ट ऑप्शन की तलाश में हैं, जो स्वाद के साथ सेहत से भरा भी हो, तो चिली सोया सबसे बेस्ट है।आइए, जानते हैं रेसिपी-
सामग्री :
सोयाबीन नगेट्स - 100 ग्राम
लहसुन पेस्ट- 1/2 चम्मच
तेल- 2 चम्मच
बारीक कटा हरा प्याज- 1 कप
कटी हुई हरी मिर्च- 2
सोया सॉस- 2 चम्मच
विनिगर- 2 चम्मच
नमक- स्वादानुसार
विधि :
सोयाबीन नगेट्स को आधे घंटे के लिए पानी में भिगोने के बाद पानी निचोड़ दें। एक बाउल में सोया नगेट्स, एक चम्मच नमक और लहसुन का पेस्ट डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। कढ़ाही में तेल गर्म करें और उसमें हरे प्याज को डालकर थोड़ी देर भूनें। हरी मिर्च डालें और कुछ सेकेंड पकाएं। अब कड़ाही में बचा हुआ नमक, सोया सॉस, विनिगर और सोयाबीन डालें, अच्छी तरह से मिलाएं। तेज आंच पर दो-चार मिनट पकाएं और सर्व करें।
लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में लोग घर में ही हैं। ऐसे में घर पर रहते हुए जितनी हेल्दी चीजें कर ले उतना अच्छा है। घर में हैं तो अपने पुराने तांबे के बर्तन बाहर निकाल लें और उसका इस्तेमाल करें। पहले के समय में खाना पकाने से लेकर खाने तक के लिए तांबे के बर्तन ही देखने को मिलते थे और उसकी वजह से लोगों को बीमारियां भी कम होती थीं। इन बर्तनों में खाना पकाना भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। कि आयुर्वेद में कहा गया है कि कॉपर यानी तांबे के बर्तन का पानी पीना सेहत के लिए फायदेमंद है। इसके पानी के सेवन से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और कई बीमारियां आसानी से खत्म हो जाती हैं। तांबा जल्दी से तापमान में बदलाव पर प्रतिक्रिया देता है और खाना पकाने के लिए एक शानदार विकल्प हो सकता है। कोरोना वायरस के कारण क्वॉरेंटीन में हैं तो किचन में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद हो सकता है। तांबा इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और नई कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करने के लिए जाना जाता है।
किचन में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल इसके कई गुणों के कारण फायदेमंद है। यह अपने एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुणों के लिए जाना जाता है। तांबा घावों को जल्दी से भरने के लिए एक शानदार जरिया है। तांबे के बर्तनों में पका खाना खाने से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे किडनी और लिवर स्वस्थ रहते हैं।
जर्नल ऑफ हेल्थ, पॉपुलेशन एंड न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि तांबा भोजन में वायरस और बैक्टीरिया के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है और उन्हें मार सकता है। यानी किचन में कुछ तांबे के बर्तन एक जबर्दस्त रोगाणुरोधी के रूप में कार्य कर सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तांबे के बर्तन कितने पुराने या ऑक्सीकृत हैं, इन बर्तनों में भोजन रखने और खाना पकाने से भोजन रोगाणु मुक्त हो सकता है।
तांबे के बर्तनों में खाना पकाने से इनमें उपस्थित तांबा भी खाने के साथ मिलकर शरीर में जाता है और कई तरह से फायदा पहुंचाता है। कि तांबा मनुष्यों के लिए आवश्यक खनिजों में से एक है। तांबा शरीर में प्रोटीन के एक प्रकार कोलेजन बनाने में मदद करता है और आयरन को अवशोषित करता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन का काम आसानी से हो पाता है। तांबे के बर्तन में पका खाना खाने से जोड़ों का दर्द और सूजन की दिक्कत कम हो जाती है।
जब भी तांबे के बर्तन में खाना पका रहे हों, तो गैस जलाने से पहले बर्तन में हमेशा भोजन अवश्य रखें। पैन के तल को ढकने के लिए पर्याप्त भोजन और तरल होना चाहिए। जलने से बचाने के लिए हमेशा अपने भोजन को कम से मध्यम आंच में पकाएं। अपने हाथ से बर्तन धोने के लिए एक सौम्य साबुन का प्रयोग करें। तांबे के बर्तन में स्पंज या तौलिए का प्रयोग न करें। वैकल्पिक रूप से, तांबे के बर्तन को साफ करने के लिए बेकिंग सोडा और पानी का इस्तेमाल करके भी देख सकते हैं।
शौर्यपथ / हालात को स्वीकारना और विपरीत परिस्थिति में भी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना हिम्मत की बात होती है। ऐसे ही लोग अपनी मंजिल पाने का हुनर रखते हैं। मुश्किल हालात में मजबूत फैसले लेने में ये टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं-
खुद से सवाल करें कि क्या चाहते हैं आप
हर किसी का काम करने, सोचने-समझने का तरीका अलग होता है। कुछ तुरंत कदम उठा लेते हैं, तो कुछ हर तरह से सोच-समझकर आगे बढ़ते हैं। किस हालात में हम कैसी प्रतिक्रिया देंगे, क्या कदम उठाएंगे, यह इस पर भी निर्भर है कि हम खुद से क्या चाहते हैं?
जल्दबाजी में न करें फैसला
धैर्य रखना आसान नहीं होता। जो रखते हैं, वे जानते हैं कि उसका उन्हें फायदा ही हुआ है। सब्र की वजह से कई मुश्किल सवाल खुद हल हो जाते हैं और कई बड़े काम बिगड़ने से बच जाते हैं। धैर्य, शांति से यह स्वीकारना है कि हमारे काम उन तरीकों से भी पूरे हो सकते हैं, जो सोचे नहीं थे।’
घबराहट में वो न बनें, जो आप नहीं हैं
कठिन हालात में भी अच्छे व्यवहार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। बेचैन होकर बिफरना, छोटी सी बात पर रिश्तों से मुंह मोड़ लेना या अपने जरा से फायदे के लिए दूसरों का बड़ा नुकसान कर देना बड़ा ही आसान होता है। मुश्किल है, तो उसे बचाए रखना, जो दरअसल आप हैं। कहा जाता है कि अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति वो सब पा लेता है, जो पाने की वह इच्छा रखता है।
धर्म संसार / शौर्यपथ / शनिदेव का नाम आते ही अक्सर लोग सहम जाते हैं या फिर असहज हो जाते हैं। उनके प्रकोप से खौफ खाने लगते हैं। शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि न्यायधीश या कहें दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं।
शनि देव न्याय के देवता हैं, उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। वह अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम देने वाले ग्रह हैं शनिदेव।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना कर उनको प्रसन्न किया जाता है। अगर कोई शनिदेव के कोप का शिकार है तो रूठे हुए शनिदेव को मनाया भी जा सकता है। शनि जयंती का दिन तो इस काम के लिये सबसे उचित माना गया है।
कब है शनि जयंती
इस बार शनि जयंती 22 मई 2020 शुक्रवार के दिन है। ज्येष्ठ मास में अमावस्या को धर्म कर्म, स्नान-दान आदि के लिहाज से यह बहुत ही शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। इस दिन को ही शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। शनि जयंती पर विशेष पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
क्यों खास है ज्येष्ठ अमावस्या
ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को न्यायप्रिय ग्रह शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिवस को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि दोष से बचने के लिये इस दिन शनिदोष निवारण के उपाय विद्वान ज्योतिषाचार्यों के करवा सकते हैं। इस कारण ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं शनि जयंती के साथ-साथ महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं। इसलिये उत्तर भारत में तो ज्येष्ठ अमावस्या विशेष रूप से सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी मानी जाती है।
क्यों नाराज रहते हैं शनि देव
शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में विस्तार से दिया गया है। उसके अनुसार सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र शनिदेव हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं।
इसलिए उन्होंने अपनी छाया (संवर्णा) को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।
धर्म संसार / शौर्यपथ /कल वट सावित्री का व्रत है। इसको लेकर राजधानी पटना के बाजारों में गुरुवार को महिलाएं पूजन सामग्री खरीदतीं नजर आईं। हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्रि व्रत रखती हैं। जो स्त्री इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। अत: इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। इस दिन सुबह घर की सफाई कर स्नान करें। इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें। जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।
खेल/ शौर्यपथ / भारतीय बल्लेबाज रोबिन उथप्पा उस टीम का हिस्सा था, जिसने 2007 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में पाकिस्तान को हराकर पहला आईसीसी टी-20 वर्ल्ड कप जीता था। टी-20 वर्ल्ड कप 2007 में भारत और पाकिस्तान के बीच ग्रुप स्टेज में 'बॉल आउट' से भी एक मैच का फैसला हुआ था। इस 'बॉल आउट' में भारत ने पाकिस्तान को मात दी थी। इन पुरानी यादों को ताजा करते हुए रोबिन उथप्पा ने हाल ही में बताया किस तरह धोनी की रणनीति की वजह से भारत 'बॉल आउट' में पाकिस्तान के खिलाफ जीता था।
2007 के टी-20 वर्ल्ड कप में 'बॉल आउट' का इस्तेमाल किया गया। मैच टाई होने की स्थिति में इस नियम के जरिये विजेता का फैसला किया जाता था। पहला 'बॉल आउट' ग्रुप गेम के दौरान कड़ी प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया था। इस 'बॉल आउट' में भारत ने नॉन रेगुलर बॉलर्स को उतारा और जीत हासिल की थी।
धोनी की पोजिशन से मिली बॉल आउट में बड़ी मदद
राजस्थान रॉयल्स के पॉडकास्ट में इश सोढ़ी से बात करते हुए रोबिन उथप्पा ने बताया कि किस तरह धोनी की प्लानिंग और समझदारी ने भारत को पाकिस्तान के खिलाफ टी-20 वर्ल्ड कप 2007 में बॉल आउट जीतने में मदद की थी। उथप्पा ने कहा, ''एक बात थी जो धोनी ने बहुत अच्छी तरह से की थी, वह यह थी कि धोनी विकेट के पीछे पाकिस्तानी कीपर की तरह नहीं खड़े हुए थे। बॉल आउट के दौरान पाकिस्तानी विकेटकीपर कामरान अकमल वहीं खड़े हुए थे, जहां आमतौर पर विकेटकीपर खड़े होते हैं। विकेट से काफी पीछे की तरफ।''
उन्होंने आगे बताया, ''स्टम्स के पीछे कुछ कदम पीछे की तरफ, लेकिन महेंद्र सिंह धोनी स्टम्प्स के ठीक पीछे बैठ गए थे। धोनी की पोजिशन ने हमारे लिए काम आसान कर दिया था। हम बस धोनी को बॉल कर थे और इसी ने हमें विकेट पर मारने का बेस्ट चांस दिया। हमने बस यही किया।''
भारत-पाकिस्तान के बीच टाई के बाद खेला गया बॉल आउट
मैच में भारत और पाकिस्तान दोनों ने निर्धारित 20 ओवर में 141 रन बनाए थे। मैच टाई हुआ और फिर 'बॉल आउट' खेला गया। रोबिन उथप्पा ने यह भी बताया कि भारतीय टीम अपने ट्रेनिंग सेशन में बॉल आउट की प्रैक्टिस करती थी, लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया था। इस प्रैक्टिस ने भी भारत को जीतने में मदद की।
सहवाग ने किया बॉल आउट का आगाज
बॉल आउट की शुरुआत वीरेंद्र सहवाग ने की। उन्होंने पहले ही चांस में विकेट को हिट किया और भारत के लिए पहला प्वॉइंट कमाया। इसके बाद पाकिस्तान की तरफ से यासिर अराफत ने शुरुआत की और पहला ही मौका चूक गए। इसके बाद दूसरी गेंद डालने के लिए हरभजन सिंह और उन्होंने सीधा विकेटों को अपना निशाना बनाया। भारत को दूसरा प्वॉइंट मिलते ही पाकिस्तान बैकफुट पर चला गया।
रोबिन उथप्पा ने डाली बॉल आउट की आखिरी गेंद
अब पाकिस्तान ने अपने बेस्ट बॉलर उमर गुल को भेजा, लेकिन उन्होंने भी मौका गंवा दिया और भारत शानदार मौका मिला। इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से भारत की तरफ से तीसरी बॉल डालने के लिए रोबिन उथप्पा आए। उन्होंने परफेक्शन के साथ गेंद डाली, जो सीधा विकेटों पर लगी। अब पाकिस्तान के पास आखिरी मौका था। इस बार शाहिद अफरीदी गेंद डालने के लिए आए, लेकिन वह भी चूक गए और इस तरह भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ यादगार जीत हासिल की।
मनोरंजन / शौर्यपथ / ऋषि कपूर 30 अप्रैल को इस दुनिया को छोड़कर चले गए थे। उनका पूरा परिवार और दोस्त उन्हें काफी मिस कर रहे हैं। हाल ही में रणधीर ने अपने भाई को याद करते हुए बताया कि उनका परिवार उन्हें बहुत मिस कर रहा है।
रणधीर ने कहा, 'हमारा परिवार हर दिन ऋषि को याद कर रहा है। भगवान की हम पर कृपा है वो हमे इस दुख से लड़ने की ताकत दे रहे हैं। हम दोनों दोस्त, परिवार, खाना और फिल्मों के मामले में काफी कॉमन थे।'
रणधीर ने आगे कहा, 'लोगों ने हमें बहुत प्यार दिया है। हमारे पास कई मैसेज आए। कुछ लोगों ने ऋषि के साथ अपना एक्सपीरियंस शेयर किया। सबको रिप्लाई करना हमारे लिए मुमकिन नहीं था, लेकिन मैं अब सबको धन्यवाद कहना चाहूंगा। वहीं ऋषि के फैन्स से मैं यही कहना चाहता हूं कि ऋषि को उनकी फिल्मों के लिए और उनकी मुस्कान के लिए के लिए हमेशा याद रखें।'
नीतू ने परिवार की फोटो शेयर कर कहा- काश हमेशा ऐसे रहते
नीतू कपूर ने कुछ दिनों पहले अपने पूरे परिवार की फोटो शेयर की थी। फोटो में वह ऋषि कपूर,बेटे रणबीर, बेटी रिद्धिमा कपूर और नातिन के साथ नजर आ रही हैं।
नीतू ने इस फोटो को शेयर करते हुए लिखा था, 'काश यह फोटो ऐसे ही हमेशा कम्प्लीट रहती जैसी है। उन्होंने साथ में हार्ट इमोजी भी बनाया है।'
मनोरंजन / शौर्यपथ / बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस के तले बनी वेब सीरीज पाताल लोक को बहुत पसंद किया जा रहा है। इसे दर्शकों से अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। पॉप्युलैरिटी के साथ ही यह सीरीज अब विवादों में आ गई है। आरोप है कि सीरीज में नेपाली कम्युनिटी का अपमान किया गया है। इसके लिए लॉयर गिल्ड मेंबर वीरेन सिंह गुरुंग ने सीरीज के प्रोड्यूसर अनुष्का शर्मा को लीगल नोटिस भेजा है।
वीरेन ने कहा है कि 'पाताल लोक' के दूसरे एपिसोड में एक सीन है, जिसमें पूछताछ के दौरान एक महिला पुलिस नेपाली किरदार पर जातिवादी गाली का इस्तेमाल करती है। अगर केवल नेपाली शब्द का इस्तेमाल किया गया होता तो कोई दिक्कत नहीं थी पर इसके बाद का जो शब्द है उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। अनुष्का शर्मा इस शो की निर्माताओं में से एक हैं, इसलिए हमने उन्हें नोटिस भेजा है।
गुरुंग ने बताया कि इस मामले में अनुष्का शर्मा की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर जवाब नहीं मिलता है वह इस मामले को आगे लेकर जाएंगे।
बता दें कि वेब सीरीज पाताल लोक में जयदीप अहलावत, नीरज काबी, अभिषेक बनर्जी, स्वस्तिका मुखर्जी, निहारिका, जगजीत, गुल पनाग जैसे कलाकारों ने काम किया है। इस वेब सीरीज को सुदीप शर्मा ने लिखा है। वहीं, इसका निर्देशन अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय ने किया है।
जीना इस्सी का नाम /शौर्यपथ / अमेरिका के न्यू जर्सी प्रांत में एक छोटा-सा नगर है मेंदम बोरो। छोटा, मगर बहुत प्यारा। एक दशक पहले तक वहां महज पांच हजार लोग बसा करते थे। सुविधा, शांति और सुकून का आलम यह कि अमेरिकियों को यहां बसने वाले लोगों से रश्क होता है। इसी नगर में स्टीव और नैंसी डॉयने के घर नवंबर 1986 में एक बेटी पैदा हुई। नाम रखा गया मैगी। पिता स्टीव को तो जैसे उनके ईश्वर ने हजार नेमतों से नवाज दिया था। फूड स्टोर में मैनेजर की अपनी नौकरी उन्होंने इसलिए छोड़ दी, ताकि उनकी गुड़िया की परवरिश में कोई कमी न रहे, अलबत्ता मां रियल एस्टेट क्षेत्र में नौकरी करती रहीं।
घर का कोना-कोना स्नेह और अपनत्व से आबाद था। मैगी अपनी दोनों बहनों के साथ उम्र की सीढ़ियां चढ़ती गईं। साल 2005 का वाकया है। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, और आगे ग्रेजुएशन की शुरू होने वाली थी। अमेरिकी शिक्षा-व्यवस्था अपने बच्चों को इन दोनों के बीच ‘गैप-ईयर’ का एक अवसर देती है, ताकि वे इस अंतराल में देश-दुनिया को देखें-समझें या कोई और अनुभव बटोर सकें।
मैगी उस समय 19 साल की थीं। उन्होंने ‘लीपनाऊ’ संगठन के साथ यात्रा करने का फैसला किया। वह पहले ऑस्ट्रेलिया गईं, फिर फिजी होते हुए भारत पहुंचीं। उन्होंने अपनी योजना में एक सेमेस्टर को भारतीय अनाथालय के अनुभव से भी जोड़ रखा था। यहीं पर उनकी मुलाकात नेपाली बच्चों से हुई। वर्षों के गृह युद्ध के शिकार ये यतीम-गरीब बच्चे किसी के साथ भारत चले आए थे। इन बच्चों के दिल से मैगी के दिल का तार जुड़ गया। बच्चे इसरार करते- दीदी, हमारे देश चलो, हमारे गांव भी देखो न।
नेपाल में हालात कुछ सुधरा, तो एक युवती के साथ मैगी नेपाल निकल पड़ीं। वह हिमालय की गोद में बसा बहुत खूबसूरत गांव था। उसके पास से ही एक नदी बहती थी। कुदरत ने इस भूभाग पर अपना भरपूर प्यार लुटाया था, मगर उसे इंसानी फितरतों की नजर लग गई थी। शाही सेना और बागियों की भिड़ंत के जख्म गांव में जगह-जगह से रिस रहे थे। झुलसे हुए पूजा स्थल और मकानों पर जबरन कब्जा इसके उदाहरण थे। जिस लड़की के साथ मैगी उस गांव तक पहुंचीं, उसके घर को भी बागियों के शिविर में तब्दील कर दिया गया था।
मैगी ने पढ़ा था कि जब भी कहीं जंग छिड़ती है या अराजकता फैलती है, तो उसका कहर सबसे ज्यादा औरतों व बच्चों पर टूटता है। यह सब एक नंगे सच के रूप में उनके सामने था। गांव के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। कैसे जाते? गुरबत ने उनके मां-बाप को यह सोचने की मोहलत ही कहां दी थी? मैगी ने देखा था कि बच्चे शहर में हथौड़ा पकडे़ पत्थर तोड़ रहे थे।
यह सब देख उनका युवा मन आहत था। तभी एक रोज उनकी मुलाकात हेमा से हुई। महज सात साल की मासूम बच्ची का बचपन पत्थर तोड़ने और कचरा बटोरने में बीता जा रहा था। वह बहुत प्यारी बच्ची थी। मैगी जब भी उसको देखतीं, वह पूरी गर्मजोशी से नेपाली में बोलती- नमस्ते दीदी! मैगी कहती हैं- ‘मैं उसमें खो जाती थी। मेरी अंतरात्मा मुझसे कुछ कह रही थी। मैं जानती थी कि दुनिया में करोड़ों हेमाएं हैं। सोचती, मैं सबके लिए भले कुछ न कर सकूं, पर क्या इस एक की जिंदगी भी नहीं बदल सकती?’
मैगी हेमा को लेकर स्कूल गईं और उसकी फीस के तौर पर सात डॉलर जमा किए, उन्होंने हेमा के लिए स्कूल ड्रेस, किताबें और दूसरे जरूरी सामान भी खरीदे, ताकि वह बगैर किसी एहसास-ए-कमतरी के स्कूल में पढ़ सके। इस काम से मैगी को एक अजीब-सी खुशी मिली। फिर तो जैसे उन पर परोपकार का नशा सवार हो गया। सोचा, ‘अगर मैं एक बच्ची की मदद कर सकती हूं, तो पांच की क्यों नहीं?’ फिर तो यह आंकड़ा बढ़ता चला गया।
वह बेचैन हो उठीं। उन्हें अनाथ बच्चों की खातिर एक पनाहगाह, उनके भोजन, किताब-कॉपी, पोशाक आदि के लिए पैसे की दरकार थी। मैगी ने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान पार्टटाइम काम से बच्चों की देखभाल करके पांच हजार डॉलर जमा किए थे। उन्होंने अपने घर फोन करके माता-पिता से वह राशि मंगवाई। हजारों किलोमीटर दूर बैठे मां-बाप कुछ चिंतित तो हुए, मगर बेटी के जुनून को देखते हुए उन्हें मैगी का साथ देना ही मुनासिब लगा। इसके बाद तो मैगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनकी जिंदगी को दिशा मिल चुकी थी। अपनी कोशिशों से मैगी ने हजारों डॉलर जुटाए और सुर्खेत घाटी में जमीन खरीदा। साल 2010 में उन्होंने कोपिला वैली स्कूल की नींव रखी। आज इस स्कूल में सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से कई तो अपने परिवार की पहली संतान हैं, जिनकी जिंदगी में शिक्षा का प्रकाश फूटा है। स्कूल के अलावा भी इससे जुड़ी कई अन्य संस्थाएं स्थानीय लोगों का भला कर रही हैं। मैगी की एक जैविक संतान है, मगर वह कई अनाथ बच्चों की कानूनी मां हैं। सीएनएन ने उन्हें साल 2015 में हीरो ऑफ द ईयर से नवाजा।
(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह)