August 18, 2025
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  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के संभावित विदेश दौरे से पहले विस्तार की चर्चा तेज़
  90-सदस्यीय विधानसभा में संवैधानिक सीमा अनुसार अधिकतम 14 मंत्री (मुख्यमंत्री सहित) संभव—वर्तमान में 11
  क्या 33% महिला भागीदारी की ‘आदर्श परिपाटी’ मंत्रिमंडल में दिखेगी?

 रायपुर/विशेष संवाददाता शौर्यपथ
  छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार की अटकलें एक बार फिर परवान चढ़ गई हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि 18 से 21 अगस्त के बीच किसी भी दिन मंत्रिमंडल में नए चेहरों को जगह मिल सकती है। फिलहाल सरकार में मुख्यमंत्री सहित 11 मंत्री हैं; संवैधानिक सीमा के अनुरूप तीन रिक्त पद भरे जा सकते हैं। चर्चा यह भी है कि इस विस्तार में महिला प्रतिनिधित्व को प्रमुखता दी जाएगी ताकि 33% आरक्षण की ‘आदर्श परिपाटी’ का संदेश कैबिनेट स्तर पर भी जाए।

मुख्य विवरण
संवैधानिक ढाँचा: अनुच्छेद 164(1A) के तहत 90-सदस्यीय विधानसभा में मंत्रिपरिषद की अधिकतम संख्या 14 तय है (मुख्यमंत्री सहित)।
वर्तमान स्थिति: सरकार में 11 मंत्री कार्यरत; 3 स्थान रिक्त।
चर्चा: 18–21 अगस्त के बीच विस्तार की संभावना—आधिकारिक घोषणा शेष।
राजभवन के ‘दरबार हॉल’ का नाम ‘छत्तीसगढ़ मंडपम’ किए जाने व यहीं शपथ समारोह की तैयारी की चर्चा—औपचारिक पुष्टि प्रतीक्षित।

महिला प्रतिनिधित्व: नारा नहीं, नीति
   वर्तमान मंत्रिपरिषद में महिला मंत्रियों की संख्या 1 है। यदि कैबिनेट 14 तक भरता है, तो 33% के आदर्श मानक के हिसाब से कम-से-कम 5 महिलाओं की हिस्सेदारी का लक्ष्य प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर नीतिगत भागीदारी का संकेत देगा। विस्तार में कम-से-कम 1–2 नई महिला चेहरों को शामिल किए जाने की चर्चा है। बस्तर से लता उसेंडी और दुर्ग संभाग से भावना बोहरा (जिन्हें 2024 में ‘उत्कृष्ट विधायक’ के रूप में सम्मानित किए जाने का उल्लेख है) जैसे नाम सियासी चर्चा में हैं।
  केंद्र स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘नारी शक्ति वंदन’ (33% आरक्षण) के पैरोकार रहे हैं और यह विधेयक संसद से पारित हो चुका है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के लिए यह विस्तार ‘आदर्श राज्य’ की छवि गढ़ने का अवसर बन सकता है।

संभावित दावेदारों की भूमिका: दिए गए नाम सियासी चर्चाओं में चल रहे संभावित विकल्प हैं; आधिकारिक सूची/घोषणा शेष है। उद्देश्य सभी प्रमुख दावेदारों की भूमिका और संभावित संकेत को समग्रता से रखना है।

1) गजेन्द्र यादव: दुर्ग से कांग्रेस के पिछले तीस सालो से लगातार हार / जीत के बावजूद प्रत्याशी रहे अरुण वोरा को चुनावी मैदान में आसान शिकस्त दी आसान इसलिए कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ कांग्रेसी ही मैदान में परदे के पीछे खड़े रहे शहर की जनता भी लगातार एक ही कांग्रेस प्रत्याशी के नामांकन से उब चुकी थी निष्क्रियता और चाटुकारिता से घिरे विधायक की छवि के कारण दुर्ग विधान सभा में चुनावी मौसम में यह चर्चा रही कि भाजपा से कोई भी प्रत्याशी मैदान में होगा जीत निश्चित है ऐसे में भाजपा प्रत्याशी गजेन्द्र यादव को आसान और बड़ी जीत मिली.वर्तमान समय में विधायक यादव और महापौर बाघमार की राजनैतिक दुरी संगठन के कार्यकर्ताओ की विधायक से दुरी के साथ साथ दल्बद्लुओ की फौज का करीबी होना चर्चा का विषय है तो सामाजिक स्तर पर यादव समाज के प्रतिनिधितत्व एक बड़ा फेक्टर साथ दे रहा है .

2) राजेश अग्रवाल (सरगुजा)

क्षेत्रीय महत्व: सरगुजा संभाग का प्रतिनिधित्व मज़बूत करता है, जहाँ संतुलन साधना आवश्यक माना जा रहा है। उत्तरी छत्तीसगढ़ की प्राथमिकताओं—सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई—पर फोकस।
3) गुरु खुशवंत साहिब (रायपुर संभाग ): गुरु खुशवंत साहिब प्रदेश के एक बड़े वर्ग के धार्मिक guru के रूप में जाने जाते है ऐसे में प्रदेश सरकार इस बड़े वर्ग को भी साधने के लिए इन्हें मौका दे सकती है . एससी /एसटी वर्ग को प्रतिनिधितव मिलने से इस वर्ग के मतदाता का रुझान भी पार्टी की तरफ ज्यादा रहेगा ऐसे में इनकी दावेदारी की भी प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है और इन्हें केबिनेट में जगह मिलने की बात से चर्चो का बाजार गर्म है .
4) राजेश मूणत : लंबे समय से सक्रिय और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की जानकारी रखने वाले वरिष्ठ नेता।अनुभवी हाथों से विभागीय डिलीवरी में तेजी लाने का संकेत। किन्तु पिछली बार भाजपा की सत्ता में रहने के दौरान महत्तवपूर्ण विभाग कीई जिम्मेदारी सँभालने वाले पूर्व मंत्री राजेश मुड़त के कई विभागीय कार्यो में अनियमितता और कमीशनखोरी की चर्चो से पूर्व की भाजपा सरकार को काफी नुकसान हुआ था और सत्ता हाथ से जाने का एक बड़ा कारण भी मुड़त को माना गया .
5) अमर अग्रवाल: भाजपा के कद्दावर नेता के रूप में पहचान अनुभवी होने के साथ साथ प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ विधायक व लम्बे प्रशासनिक कार्यो का अनुभव किन्तु बड़ी अड़चन यह कि प्रदेश सरकार की वर्तमान राजनितिक गलियारों में चर्चा के अनुसार नए एवं युवा विधायको को यह मौका देने का जोर कही ना कही अमर अग्रवाल जैसे वरिष्ठ भाजपा विधायक को दरकिनार करता नजर आ रहा है वर्तमान समय में मंत्री मंडल में नए विधायको को जिम्मेदारी मिली जो सरकार की मंशा के अनुरूप जोश के साथ कार्य को अंजाम दे रहे है वही नै पीढ़ी को आगे करने की रणनीति कार्यकर्ताओ में भी उम्मीद की किरण के रूप में एक सार्थक माहौल को जन्म दे रही जो संगठन के लिए भी काफी महत्तवपूर्ण है भविष्य की राजनीती के
6) भावना बोहरा (दुर्ग संभाग ): भावना बोहरा : महिला सशक्तिकरण की नई पहचान

पंडरिया विधानसभा से पहली बार चुनाव जीतने वाली विधायक भावना बोहरा ने अपने सामाजिक और विकास कार्यों से जनता के बीच गहरी छाप छोड़ी है। धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाने वाली बोहरा को 2024 में उत्कृष्ट विधायक सम्मान भी मिला। व्यावसायिक पृष्ठभूमि से आने के बावजूद उन्होंने क्षेत्र की समस्याओं पर पकड़ बनाकर प्रशासनिक दक्षता दिखाई है।
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यदि प्रदेश सरकार उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान देती है तो यह न केवल महिला आरक्षण और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम होगा, बल्कि भाजपा संगठन को भी महिलाओं के बीच सशक्त नेतृत्व प्रदान करेगा।
  निष्कर्षक संकेत: यदि तीन रिक्त स्थान में 2 पुरुष + 1 महिला या 1 पुरुष + 2 महिलाएँ का फार्मूला अपनता है, तो क्षेत्रीय-सामाजिक संतुलन के साथ महिला प्रतिनिधित्व का संदेश भी जाता है। दूसरी ओर 3 पुरुष विकल्प चुनने की स्थिति में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाने का रोडमैप अगले फेरबदल में स्पष्ट करना होगा।
‘हरियाणा मॉडल’ का संदर्भ
 चर्चित ‘हरियाणा मॉडल’ का आशय संख्या-संतुलन और कार्य-वितरण वाले संकुचित-सक्षम कैबिनेट से है। छत्तीसगढ़ पहले से 14 की संवैधानिक सीमा में आता है; अतः यहाँ ‘मॉडल’ का अर्थ प्रशासनिक कार्यकुशलता और संतुलित प्रतिनिधित्व की कार्यशैली से है, न कि किसी कानूनी अपवाद से।
चुनावी गणित बनाम शासन-प्राथमिकताएँ
 विधानसभा चुनावों के चक्र में प्रायः अंतिम वर्ष चुनावी मोड में बीतता है। ऐसे में इस विस्तार के बाद नए मंत्रियों के पास करीब दो वर्ष होंगे—अपने विभागीय प्रदर्शन से संदेश देने के लिए। क्षेत्रीय संतुलन (रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा, बस्तर), सामाजिक संतुलन (ST/SC/OBC/सामान्य/धार्मिक-भाषाई समुदाय) और राजनीतिक योगदान/संगठनात्मक सक्रियता—इन तीनों कसौटियों पर संतुलित चयन सरकार की प्राथमिकताओं का संकेत देगा।

कैबिनेट विस्तार सरकार के राजनीतिक मनोविज्ञान और शासन-दृष्टि की परीक्षा है। यदि महिला प्रतिनिधित्व को अर्थपूर्ण ढंग से बढ़ाया जाता है, तो यह संदेश जाएगा कि छत्तीसगढ़ में नारी शक्ति केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं, बल्कि निर्णय-निर्माण की मेज़ पर बराबरी से बैठी है।आधिकारिक निर्णय आते ही नामों/तिथियों/स्थल का उल्लेख अद्यतन किया जाएगा।

  रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल को रेलवे से सशक्त कनेक्टिविटी देने वाली दल्लीराजहरा–रावघाट रेल परियोजना का कार्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। 95 किलोमीटर लंबी इस परियोजना के तारोकी से रावघाट खंड की लंबाई 77.5 किलोमीटर है, जिसमें यूटिलिटी शिफ्टिंग का कार्य शत-प्रतिशत पूर्ण हो चुका है। बड़े और छोटे पुलों के साथ-साथ ट्रैक बिछाने का काम अब अंतिम चरण में है, जिससे इस महत्वाकांक्षी परियोजना के दिसंबर 2025 तक पूर्ण होने की दिशा में ठोस प्रगति हुई है।
  इस रेल परियोजना के पूरा होने से बस्तर क्षेत्र पहली बार राज्य की राजधानी से सीधे रेलवे द्वारा जुड़ जाएगा। इससे बस्तर आने-जाने वाले यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ेंगी और खनिज परिवहन की दिशा में नई गति मिलेगी। बस्तर के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में यह कनेक्टिविटी एक बड़ा बदलाव लाएगी और स्थानीय लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहायक होगी।
  यह रेलवे लाइन रावघाट लौह अयस्क खदानों और सेल/भिलाई इस्पात संयंत्र के बीच सीधी कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। वर्तमान में दल्लीराजहरा की खदानों से लौह अयस्क की उपलब्धता घट रही है, ऐसे में यह परियोजना न केवल औद्योगिक जरूरतों को पूरा करेगी बल्कि क्षेत्र के आर्थिक विकास की रीढ़ साबित होगी। रेल विकास निगम लिमिटेड के अनुसार, 17.5 किलोमीटर भूमि अधिग्रहण कार्य संपन्न हो चुका है। 21.94 लाख घन मीटर मिट्टी कार्य में से अधिकांश पूरा हो चुका है। तीन में से दो बड़े पुल तैयार हो गए हैं, जबकि 61 में से 55 छोटे-मोटे पुलों का निर्माण पूर्ण हो चुका है। बैलेस्ट प्रोक्योरमेंट और भवन निर्माण कार्य भी अगस्त–सितंबर 2025 तक पूर्ण होने की संभावना है।
  उल्लेखनीय है कि कुल 95 किलोमीटर लंबे इस रेलमार्ग में 16 प्रमुख पुल, 19 रोड ओवर ब्रिज, 45 रोड अंडर ब्रिज और 176 छोटे पुलों का निर्माण शामिल है। केवल 17.5 किलोमीटर लंबे तारोकी–रावघाट खंड में ही 3 प्रमुख पुल, 5 रोड ओवर ब्रिज, 7 रोड अंडर ब्रिज और 49 छोटे पुल बनाए जा रहे हैं। इन सभी कार्यों में तकनीकी सटीकता और सुरक्षा मानकों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है, ताकि यह परियोजना लंबे समय तक टिकाऊ और सुरक्षित रहे।
  वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित इस क्षेत्र में निर्माण कार्य एक बड़ी चुनौती रहा है। परियोजना को बाधित करने के लिए नक्सलियों द्वारा किए गए 12 हमलों में अब तक 4 मजदूरों की मौत और 2 सुरक्षाकर्मियों की शहादत हो चुकी है। इसके अलावा निर्माण कार्य में प्रयुक्त उपकरणों और मशीनों में आगजनी की घटनाएं भी हुई हैं। इसके बावजूद, एसएसबी सुरक्षा कवच मिलने के बाद परियोजना में उल्लेखनीय प्रगति हुई। परियोजना के पूरा होने के बाद बस्तर क्षेत्र में खनिज परिवहन, रोजगार, स्थानीय व्यापार और यात्री सुविधाओं में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। यह रेलवे लाइन खनिज परिवहन को नई दिशा देने के साथ-साथ पूरे क्षेत्र को मुख्यधारा से जोडऩे का कार्य करेगी। इससे क्षेत्र में निवेश के अवसर बढ़ेंगे और बुनियादी ढांचे का विस्तार होगा।


  नवंबर 2025 तक तारोकी–रावघाट खंड पर ट्रेन परिचालन शुरू होने की संभावना व्यक्त की गई है। इस परियोजना के पूरा होते ही बस्तर अंचल एक नई विकास यात्रा पर अग्रसर होगा, जहां रेल पटरी पर दौड़ती गाडिय़ां न केवल खनिज और सामान पहुंचाएंगी, बल्कि रोजगार, अवसर और विकास का संदेश भी लेकर आएंगी।

रायपुर / शौर्यपथ /
छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और इसके पीछे सरकार की प्रोत्साहन योजनाएं बड़ा कारण बन रही हैं। केंद्र सरकार की दो प्रमुख योजनाओं—फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड) एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स फेज-2 (FAME-II) और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024 (EMPS-2024)—के तहत पिछले तीन वर्षों में राज्य के खरीदारों को 138 करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी मिली है।

केंद्रीय भारी उद्योग राज्य मंत्री भूपतिराजु श्रीनिवास वर्मा ने मंगलवार को लोकसभा में यह जानकारी रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल के प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।

FAME-II योजना (अप्रैल 2019 – मार्च 2024) के तहत अप्रैल 2022 से मार्च 2024 के बीच छत्तीसगढ़ में 33,552 इलेक्ट्रिक वाहन बिके। इस अवधि में खरीदारों को 121.26 करोड़ रुपये की सब्सिडी का लाभ दिया गया।

वहीं, EMPS-2024 योजना, जो सिर्फ छह महीने (अप्रैल–सितंबर 2024) के लिए प्रभावी रही, के दौरान 13,091 इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहन बिके और खरीदारों को 16.74 करोड़ रुपये की राहत दी गई।

अधिकारियों के अनुसार, इन योजनाओं के तहत खरीदारों को अलग से आवेदन करने की आवश्यकता नहीं होती। सब्सिडी सीधे वाहन की खरीद कीमत से घटा दी जाती है और बाद में यह राशि भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा मूल उपकरण निर्माता कंपनियों (OEMs) को भुगतान कर दी जाती है। इस कारण राज्य में कोई भी भुगतान लंबित नहीं है।
  पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि बैटरी चालित स्कूटर, तिपहिया और कारों की बढ़ती बिक्री न सिर्फ ईंधन पर निर्भरता कम करेगी, बल्कि प्रदूषण घटाने में भी मददगार साबित होगी। सरकार के सतत सहयोग के साथ, छत्तीसगढ़ में स्वच्छ और हरित परिवहन की ओर बदलाव अब और तेज़ी पकड़ रहा है।

दुर्ग / शौर्यपथ विशेष
   राजनीति में कुछ लोग आते हैं, पद पाते हैं और समय के साथ गुमनाम हो जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जो पद से नहीं, अपने कार्य से पहचाने जाते हैं। दुर्ग भाजपा के निर्वतमान जिलाध्यक्ष जितेंद्र वर्मा ऐसे ही नेता हैं, जिन्होंने संगठन को केवल चलाया नहीं, बल्कि उसमें नई ऊर्जा भर दी। आज, 10 अगस्त, उनका जन्मदिन है—और यह तारीख न केवल उनके जीवन का, बल्कि दुर्ग भाजपा के इतिहास का भी एक अहम दिन है।
जब चुनौती थी पहाड़ जैसी…
   प्रदेश में कांग्रेस की सरकार, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गृह जिला दुर्ग, और भाजपा की स्थिति—पांच विधानसभा में से एक भी सीट अपने पास नहीं। ऐसे कठिन समय में पार्टी ने पाटन के एक छोटे से गांव से उठाकर जितेंद्र वर्मा को दुर्ग जिले की कमान सौंपी। चुनौती केवल कांग्रेस को टक्कर देने की नहीं थी, बल्कि टूटे-बिखरे संगठन को एकजुट कर नई राह पर ले जाने की थी।
संगठन को दी नई दिशा, कार्यकर्ताओं में जगाई आग
  जिला अध्यक्ष बनने के बाद जितेंद्र वर्मा ने हर गुट के कार्यकर्ताओं को बराबरी से महत्व दिया। अपने राजनीतिक गुरुओं के साथ जुड़े कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी और "एक आवाज, एक लक्ष्य" का मंत्र दिया। परिणाम—सड़कों पर आंदोलन की कतारें लंबी हुईं, कार्यकर्ताओं में जोश लौटा, और दुर्ग भाजपा एकजुट होकर मैदान में उतरी।
विधानसभा में रचा जीत का इतिहास
उनकी रणनीति और नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में दुर्ग भाजपा ने चमत्कार कर दिखाया—

    साजा से ईश्वर साहू
    अहिवारा से डोमन लाल कोर्सेवाड़ा
    दुर्ग ग्रामीण से ललित चंद्राकर
    दुर्ग शहर से गजेंद्र यादव

    इन नए चेहरों ने जीत दर्ज की, जबकि सांसद विजय बघेल ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उनके गढ़ पाटन में बांधे रखा, जिससे अन्य सीटों पर भाजपा की जीत आसान हुई।
रिकॉर्ड सदस्यता और सामंजस्य की मिसाल
  अपने कार्यकाल में जितेंद्र वर्मा ने संगठनात्मक स्तर पर नए आयाम गढ़े। हाल के सदस्यता अभियान में दुर्ग भाजपा ने पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मंडल अध्यक्षों के चुनाव में जिस सामंजस्य और आपसी तालमेल का प्रदर्शन हुआ, वह कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
व्यक्तिगत कठिनाइयों में भी निभाई जिम्मेदारी
   नगरीय निकाय चुनाव के दौरान जब उनके प्रिय पिताजी गंभीर रूप से बीमार थे और वे स्वयं स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे, तब भी उन्होंने चुनावी मैदान में डटे रहकर जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। नतीजा—निकाय चुनाव में दुर्ग भाजपा की चारों ओर जीत।
धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव
   कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजनों के माध्यम से उन्होंने जिले की धार्मिक भावनाओं को एक सूत्र में पिरोया। इससे न केवल संगठन, बल्कि समाज के हर वर्ग में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी।
एक मजबूत विरासत छोड़कर गए
   5 जनवरी को नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के साथ वे पद से मुक्त हुए, लेकिन वे संगठन को मजबूती, सामंजस्य और जीत की परंपरा का खजाना सौंप गए—एक ऐसी विरासत जिसे आने वाले वर्षों तक याद रखा जाएगा।
  आज उनके जन्मदिन पर मित्र, संगठन के साथी और शुभचिंतक लगातार शुभकामनाएं दे रहे हैं। शौर्यपथ परिवार भी उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई और दीर्घायु की शुभकामनाएं देता है।

— शौर्यपथ विशेष संपादकीय टीम

शौर्यपथ विशेष रिपोर्ट

   "अगर केंद्र, राज्य और नगर निगम में एक ही पार्टी की सरकार होगी, तो विकास दौड़ेगा!"
    यह था भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुश्री सरोज पांडे का वादा, जब उन्होंने दुर्ग की जनता से "ट्रिपल इंजन" का समर्थन मांगा था।
   लेकिन आज, जब ट्रिपल इंजन से चलने वाला दुर्ग शहर गड्ढों, गंदगी और गुटबाजी के दलदल में फंसा है, जनता खुद सवाल पूछ रही है - "वादा किया था रोशनी का, फिर क्यों पसरा है अंधेरा?"

 जब सरोज पांडे थीं महापौर: दुर्ग बना था विकास का पर्याय
   महापौर रहते सुश्री सरोज पांडे ने दुर्ग नगर निगम को विकास की दिशा में एक नई पहचान दी थी।चौड़ी सड़कें,सुव्यवस्थित बाजार,सुंदर उद्यान,और सफाई व्यवस्था -
उस दौर में दुर्ग को "छोटा स्मार्ट सिटी" कहने लगे थे लोग।
  आज उसी शहर में, जहां उन्होंने विकास की नींव रखी, वहीं अब बदहाल व्यवस्थाएं और टूटी उम्मीदें एक कटु सच्चाई बन चुकी हैं।
 आज का दुगर्: नालियां जाम, सड़कों पर जान का खतरा ,अतिक्रमण से जकड़े बाजार ,आवारा पशुओं से भरा शहर ,अधूरी सड़कें , और राजेंद्र चौक जैसे व्यावसायिक हब पर सरकारी सुस्ती ,नगर निगम की 6 महीने की सत्ता और राज्य सरकार के 20 महीनों के कार्यकाल में सुधार की बजाय गिरावट ही सामने आई है।
 नालियों की सफाई अब भी "प्रक्रिया में" है, पार्कों की घास सूख रही है, और जनता धूल, दुर्गंध और दुश्वारियों के बीच जूझ रही है।
 गुटबाजी का गड्ढा: महापौर बनाम विधायक
  शहर के दो जिम्मेदार चेहरे - महापौर और स्थानीय विधायक – आमने-सामने हैं। कोई काम अगर हो भी गया, तो उसका श्रेय लेने की राजनीतिक होड़ जारी है। सामंजस्य और टीमवर्क जैसे शब्द शहरी प्रशासन की डिक्शनरी से नदारद हो चुके हैं। विपक्ष को परिषद में बोलने तक का मौका नहीं देना लोकतांत्रिक मर्यादा का खुला उल्लंघन है।

 गरीबों पर सख्ती, रसूखदारों को संरक्षण
  इंदिरा मार्केट हो या कपड़ा लाइन - जहां आम ठेलेवालों को हटाया जा रहा है, वहीं बड़े दुकानदारों द्वारा बरामदे पर कब्जा बरकरार है।
भाजपा नेता के संरक्षण में राम रसोई को गलत दस्तावेजों के आधार पर करोड़ों की भूमि का आवंटन भी अब चर्चा में है, लेकिन कार्रवाई शून्य।

 जनता पूछ रही - "अब किससे लें जवाब?"
  क्या जवाब दें वो भाजपा संगठन जो विपक्ष में रहकर हर गड्ढे पर धरना देता था? या वो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे, जिन्होंने वादा किया था कि "ट्रिपल इंजन" से दुर्ग दौड़ेगा?"
अब जब वही इंजन धुएं में उलझ गया है, तो जनता सिर्फ इंतज़ार में है कि -"कोई आए, और इन सवालों का ईमानदारी से जवाब दे!"

 आईना देखिए, पोस्टर नहीं
  यह सिर्फ बदहाल दुर्ग की रिपोर्ट नहीं, बल्कि उन तमाम वादों का आइना है, जो वोट से पहले बड़े-बड़े मंचों पर बोले गए थे।
महापौर रहते सरोज पांडे का विकास मॉडल आज खुद सवाल कर रहा है - "क्या भाजपा की आज की नगर सरकार उस स्तर को भी छू पाई?"
अब जनता तय करेगी -बातों के ट्रिपल इंजन से शहर नहीं चलता, ज़मीन पर पसीने से काम करना होता है।

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