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टैली प्रमोटर: सार्वजनिक बोलने की कला का अदृश्य सहायक
शौर्यपथ लेख / सार्वजनिक मंच पर बोलते समय आत्मविश्वास और प्रवाह बनाए रखना किसी भी वक्ता के लिए एक चुनौती हो सकता है। चाहे वह कोई राजनेता हो, टेलीविजन एंकर हो, या कोई कॉर्पोरेट लीडर, हर कोई चाहता है कि उसकी बात श्रोताओं तक बिना किसी रुकावट या भटकाव के पहुंचे। यहीं पर टैली प्रमोटर (Teleprompter), जिसे आमतौर पर ऑटोक्यू (Autocue) भी कहा जाता है, एक अमूल्य उपकरण के रूप में सामने आता है। यह एक ऐसा तकनीकी चमत्कार है जो वक्ता को अपनी स्क्रिप्ट को सीधे पढ़ते हुए भी, दर्शकों से सीधा नेत्र संपर्क बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
टैली प्रमोटर की कार्यप्रणाली: एक ऑप्टिकल भ्रम
टैली प्रमोटर का संचालन एक साधारण लेकिन प्रभावी ऑप्टिकल सिद्धांत पर आधारित है। इसमें मुख्य रूप से दो प्रमुख घटक होते हैं:
* मॉनिटर या डिस्प्ले स्क्रीन: यह स्क्रीन आमतौर पर वक्ता के सामने, कैमरे के ठीक नीचे या स्टेज पर छिपाकर रखी जाती है। इस पर भाषण या स्क्रिप्ट का टेक्स्ट लगातार स्क्रॉल करता रहता है।
* बीम स्प्लिटर मिरर (Beam Splitter Mirror): यह टैली प्रमोटर का सबसे महत्वपूर्ण और चालाक हिस्सा होता है। यह एक विशेष प्रकार का आधा-परावर्तक (half-reflective) शीशा होता है, जो लगभग 45 डिग्री के कोण पर झुका हुआ होता है। इसे कैमरे के लेंस के ठीक सामने इस तरह से लगाया जाता है कि वक्ता इस शीशे के माध्यम से देख सके।
कैसे काम करता है?
* मॉनिटर पर चल रहा टेक्स्ट इस बीम स्प्लिटर मिरर पर परावर्तित (reflect) होता है। वक्ता जब शीशे की ओर देखता है, तो उसे यह टेक्स्ट हवा में तैरता हुआ या शीशे पर दिखाई देता है।
* यह शीशा जादुई रूप से केवल एक ही दिशा में परावर्तन (reflection) करता है। इसका मतलब है कि वक्ता को शीशे में टेक्स्ट दिखाई देता है, लेकिन शीशे के दूसरी ओर से (यानी कैमरे या दर्शकों की तरफ से) यह टेक्स्ट बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता। दर्शकों को केवल वक्ता का चेहरा और आँखें ही दिखाई देती हैं, जिससे उन्हें लगता है कि वक्ता बिना किसी नोट्स के सीधे उनसे बात कर रहा है।
* एक कुशल ऑपरेटर वक्ता की बोलने की गति के अनुसार टेक्स्ट की स्क्रॉलिंग स्पीड को नियंत्रित करता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वक्ता को कभी भी अगले वाक्य का इंतजार नहीं करना पड़ता या उसे बहुत तेज़ी से नहीं पढ़ना पड़ता।
टैली प्रमोटर के लाभ: क्यों यह सार्वजनिक बोलने वालों की पहली पसंद है
टैली प्रमोटर सिर्फ एक सहायक उपकरण नहीं, बल्कि सार्वजनिक बोलने की कला में क्रांति लाने वाला एक साधन है। इसके कई महत्वपूर्ण फायदे हैं:
* अखंड नेत्र संपर्क (Uninterrupted Eye Contact): यह सबसे बड़ा लाभ है। वक्ता को बार-बार नीचे नोट्स देखने या ऊपर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती। वह लगातार कैमरे में या दर्शकों की आँखों में देखकर बात कर पाता है, जिससे एक गहरा जुड़ाव स्थापित होता है।
* आत्मविश्वास और प्राकृतिक प्रवाह (Confidence and Natural Flow): स्क्रिप्ट याद करने का तनाव दूर हो जाता है। वक्ता जानता है कि शब्द उसके सामने हैं, जिससे वह अधिक आत्मविश्वासी होकर बोलता है। यह भाषण को अधिक प्राकृतिक और धाराप्रवाह बनाता है।
* गलतियों में कमी (Reduced Errors): भूलने की संभावना या शब्दों के चुनाव में गलती होने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। यह विशेष रूप से लाइव प्रसारण या महत्वपूर्ण भाषणों के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ कोई गलती स्वीकार्य नहीं होती।
* समय का सटीक प्रबंधन (Precise Time Management): ऑपरेटर के नियंत्रण के कारण, भाषण को निर्धारित समय-सीमा के भीतर आसानी से पूरा किया जा सकता है। यह विशेष रूप से टेलीविजन शो या सम्मेलनों के लिए उपयोगी है जहाँ समय की पाबंदी महत्वपूर्ण होती है।
* पेशेवर प्रस्तुति (Professional Presentation): टैली प्रमोटर का उपयोग एक पॉलिश और पेशेवर छवि प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि वक्ता ने अपनी तैयारी पूरी की है और वह अपने दर्शकों के प्रति गंभीर है।
टैली प्रमोटर के प्रकार: विभिन्न आवश्यकताएं, विभिन्न समाधान
आधुनिक समय में टैली प्रमोटर विभिन्न रूपों में उपलब्ध हैं, जो अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा करते हैं:
* ऑन-कैमरा टैली प्रमोटर (On-Camera Teleprompter): यह सबसे आम प्रकार है, जहाँ शीशा सीधे कैमरे के लेंस के सामने लगा होता है। यह टेलीविजन समाचार, इंटरव्यू और फिल्म निर्माण में उपयोग होता है।
* स्टैंड-अलोन या प्रेसिडेंशियल टैली प्रमोटर (Stand-Alone or Presidential Teleprompter): ये आमतौर पर दो पारदर्शी शीशे होते हैं जो स्टेज के दोनों ओर खड़े होते हैं। इनका उपयोग सार्वजनिक भाषणों, सम्मेलनों और बड़ी सभाओं में किया जाता है, जहाँ वक्ता को एक बड़े दर्शक वर्ग को संबोधित करना होता है।
* मोबाइल या टैबलेट टैली प्रमोटर (Mobile or Tablet Teleprompter): छोटे बजट या व्यक्तिगत उपयोग के लिए, आजकल स्मार्टफ़ोन और टैबलेट को भी टैली प्रमोटर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इनके लिए विशेष ऐप्स और छोटे स्टैंड उपलब्ध हैं।
* फ्लैट स्क्रीन टैली प्रमोटर (Flat Screen Teleprompter): ये ऐसे मॉनिटर होते हैं जो सीधे डेस्क या पोडियम में एकीकृत होते हैं, और इनका उपयोग अक्सर समाचार डेस्क पर या स्टूडियो सेटिंग्स में किया जाता है।
निष्कर्ष:टैली प्रमोटर एक ऐसा तकनीकी नवाचार है जिसने सार्वजनिक बोलने की दुनिया को बदल दिया है। यह वक्ताओं को उनकी बात को सटीकता, आत्मविश्वास और प्रभावशीलता के साथ प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करता है। यह दर्शकों और वक्ता के बीच एक अदृश्य पुल का काम करता है, जिससे संचार अधिक प्रामाणिक और आकर्षक बन जाता है। चाहे वह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घोषणा हो, एक व्यावसायिक प्रस्तुति हो, या एक दैनिक समाचार बुलेटिन, टैली प्रमोटर यह सुनिश्चित करता है कि संदेश स्पष्ट रूप से और प्रभावी ढंग से वितरित हो, बिना किसी नोट्स की आवश्यकता के।
क्या आप टैली प्रमोटर के किसी अन्य तकनीकी पहलू या इसके उपयोग के उदाहरणों के बारे में जानना चाहेंगे?
दुर्ग। शौर्यपथ।
नगर पालिका निगम दुर्ग में नवनियुक्त महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में ही अपनी कार्यशैली की ऐसी अमिट छाप छोड़ दी है, जिसे जनता पीढ़ियों तक याद रखेगी! दुर्ग निगम क्षेत्र इन दिनों खुशहाली के ऐसे वातावरण में जी रहा है कि मानो स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो।
दुर्ग नगर निगम अब केवल नगर निगम नहीं, बल्कि "विकास तीर्थ" बन चुका है, जहां आकर योजनाएं मोक्ष प्राप्त करती हैं और समस्याएं स्वर्गवास को प्राप्त हो जाती हैं।
जन-जन की महापौर: सुलभता की नई मिसाल
पूर्व के शासनकाल में शहरी सरकार के मुखिया से मिलने के लिए महीनों गुजर जाते थे, क्योंकि वे चाटुकारों से घिरे रहते थे। परंतु वर्तमान समय में ऐसी स्थिति बिल्कुल भी नहीं है। अब आम जनता महापौर से आसानी से मिल सकती है! मानो महापौर महोदया हर समय जनता-जनार्दन के लिए ही उपलब्ध हों। यह सुलभता ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।" लोग अब राशन की दुकान से कम और महापौर के दर्शन से ज़्यादा तृप्ति पा रहे हैं।"
दुर्ग का कायाकल्प: सुंदरता और स्वच्छता का संगम
क्या सड़कें, क्या गलियां – हर तरफ स्वच्छता का अद्भुत साम्राज्य! आधे घंटे की बारिश तो छोड़िए, अगर प्रलय भी आ जाए तो नालियों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी। पूरे शहर में कहीं भी पानी का जमावड़ा देखने को नहीं मिलता है; सड़कें गड्ढा रहित होकर ऐसी हो गई हैं जैसे घर का आंगन हो।
" ऐसी सफाई तो कभी इंसान के मन में भी नहीं देखी गई, जैसी दुर्ग की गलियों में देखी जा रही है! अब कचरा खुद चलकर स्वेच्छा से डंपिंग यार्ड में चला जाता है।"
"रात के समय शहर में घूमने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे चांद की रोशनी अपनी छटा बिखेर रही हो, हर कोना जगमगा रहा है।"
शहर के मध्य सुराना कॉलेज के सामने का क्षेत्र जो कभी बदबूदार वातावरण से घिरा रहता था, अब खुशबूदार वातावरण में निर्मित है। कभी यहां कचरे का ढेर होता था, अब सुंदर उद्यान बन चुके हैं। चौक-चौराहों की बात करें तो उनकी सुंदरता अद्भुत है, मानो हर चौराहा कला का एक नायाब नमूना हो। कचरा निष्पादन के लिए बड़ी-बड़ी डंपिंग मशीनें लग चुकी हैं, जिससे शहर की गंदगी का नामोनिशान मिट गया है।
अतिक्रमण मुक्त दुर्ग: न्याय और व्यवस्था का राज
दुर्ग निगम क्षेत्र की सड़कें अतिक्रमण मुक्त हो गई हैं, और आम जनता के यातायात में अतिक्रमणकारियों के कारण हो रही बाधाएं अब दूर हो गई हैं। हर तरफ खुशी का वातावरण है।
"सड़कों से अतिक्रमण इस कदर हट गया है कि अब हर वाहन को चलने से पहले सड़क से अनुमति लेनी पड़ती है कि कहीं वह उसकी स्वच्छता तो नहीं बिगाड़ रहा।"
अवैध रूप से बिल्डिंग/घर बनाने वालों को ख्वाब में भी अब निगम के भवन विभाग जाना पड़ता है, और शहर में अवैध प्लाटिंग पूरी तरह बंद हो गई है। सड़कों पर अब आवारा गाय कहीं नजर नहीं आतीं – वे भी शायद महापौर के शासन से प्रभावित होकर अनुशासित हो गई हैं! इंदिरा मार्केट अब प्रदेश का सबसे सुंदर बाजार नजर आने लगा है। व्यापारियों ने बरामदे का स्थान खाली कर दिया है ताकि आम जनता के आवागमन में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।
जिस भावभूमि बिल्डर द्वारा निगम की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था, वह अब कब्जा मुक्त हो चुका है। यह महापौर की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि उन्होंने न्याय और व्यवस्था को सर्वोपरि रखा है। गोठान की गायों के लिए भरपूर चारा उपलब्ध कराने में शहरी सरकार की अहम भूमिका नजर आ रही है, जो पशु कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
भ्रष्टाचार का युग समाप्त: पारदर्शिता और ईमानदारी का नया दौर
घोटाले की बात करें तो अब घोटाले की बात बहुत दूर नजर आती है। आम जनता के सपनों में भी घोटाले नजर नहीं आते। अब तो आम जनता निगम के नोटिस को देखते ही कांप जाती है – भ्रष्टाचार का निगम के दरवाजे में आगमन बिल्कुल बंद हो चुका है।
"जिन अफसरों पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, अब वे ध्यान और प्रायश्चित में लीन हो चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ तो हिमालय की ओर भी प्रस्थान कर चुके हैं।"
"निगम के कर्मचारी रोज सुबह उठकर शहरी सरकार के कार्यों की आराधना करते हैं, मानो वे देवता समान हों।"
भले ही शहरी सरकार भाजपा की है, परंतु शहरी सरकार की न्याय प्रणाली में सुशासन एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा है। जिस अपंजीकृत संस्था राम रसोई के भूमि आवंटन पर विवाद उत्पन्न हुआ था, उस मामले पर शहरी सरकार ने दस्तावेजों का निरीक्षण किया और सभी गलतियों को संज्ञान में लेते हुए, भाजपा नेता और राम रसोई के संरक्षक चतुर्भुज राठी से राजनीतिक संबंधों को न निभाते हुए, निष्पक्ष कार्यवाही की और बस स्टैंड को एक व्यवस्थित बस स्टैंड के रूप में बना दिया।
"यह महापौर का ही जादू है कि अब कागजों में भी सच्चाई झलकने लगी है – दस्तावेज़ भी डर के मारे झूठ बोलने से परहेज़ करते हैं।"
राजस्व वसूली में क्रांति: निगम बना आत्मनिर्भर
राजस्व वसूली के मामले में तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साल भर में कम से कम ₹100 करोड़ की राजस्व वसूली हो जाएगी, जो कि एक अभूतपूर्व उपलब्धि है!
"करदाता अब अपनी खुशी से टैक्स देने पहुंचते हैं, कुछ तो अतिरिक्त टैक्स देकर निकलते हैं यह कहते हुए कि "राशि कम लग रही है, कुछ और लें!"
प्रदेश सरकार से दुर्ग निगम में करोड़ों रुपए के कार्य अब तक महापौर के सानिध्य में आ चुके हैं, और ऐसी चर्चा है कि कई हजार करोड़ रुपए भी अब आने वाले समय में दुर्ग निगम में आ जाएंगे।
शहरी सरकार, प्रदेश सरकार और उनके जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा तालमेल बैठाकर चल रही है कि मानो राज्य सरकार पैसे लेकर निगम के दरवाजे पर खड़ी हो, मिन्नतें कर रही हो कि दुर्ग निगम ये पैसे ले ले!
सामंजस्य और सम्मान: विपक्ष भी हुआ नतमस्तक
पूर्व की शहरी सरकारो ने हमेशा विपक्ष का अपमान किया है, परंतु वर्तमान समय में शहरी सरकार के द्वारा विपक्ष के नेताओं का भी पूरा सम्मान किया जा रहा है। उन्हें बड़े-बड़े कार्यालय दिए गए हैं ताकि वे जनता की बातों को सुन सकें और अपनी बातों को शहरी सरकार के सामने रख सकें।
अतिश्योक्ति " नगर निगम के मंत्रिमंडल में इतनी एकता है कि एक मंत्री खांसी भी करता है तो दूसरा टॉवल लेकर दौड़ पड़ता है। ऐसी सामूहिक भावना केवल महापौर के करिश्मे से संभव हो पाई है।"यह लोकतंत्र में सद्भाव की अद्भुत मिसाल है!
शहरी सरकार के मंत्रिमंडल की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर मंत्री आपस में अपनी कार्यो की रूपरेखा को भली-भांति उचित ढंग से निर्वाहन कर रहा है। आपसी मतभेद की कहीं बातें नजर नहीं आ रही हैं, और शहर के विधायक के साथ सामंजस्य की अद्भुत मिसाल सबके सामने नजर आ रही है। शासकीय सुविधाओं का दोहन करने के बजाय आम जनता की सुविधाओं के लिए शहरी सरकार कटिबद्ध है।
अब नगर निगम के कर्मचारियों की सुबह 'सुशासन मंत्र' के जाप से शुरू होती है और रात 'महापौर चालीसा' के पाठ से समाप्त होती है।
निष्कर्ष: स्वर्णिम युग का प्रारंभ
पूर्व की शहरी सरकार के कार्यकाल को अब जनता बिल्कुल भूल चुकी है। ऐसी कोई बातें हैं जिनकी व्याख्या करते-करते सुबह से रात हो जाएगी, परंतु वर्तमान की शहरी सरकार की कार्यप्रणाली और सुशासन की बातें कभी खत्म नहीं होंगी। हर दृष्टिकोण से वर्तमान की शहरी सरकार, महापौर श्रीमती अलका बाघमार के सानिध्य में नई ऊंचाइयों को छू रही है, और हम धन्य हैं कि हम इस स्वर्णिम युग के साक्षी हैं!
"यदि वर्तमान महापौर जी इसी गति से कार्य करती रहीं, तो संभावना है कि आने वाले दिनों में संयुक्त राष्ट्र भी दुर्ग निगम को 'ग्लोबल रोल मॉडल फॉर अर्बन गवर्नेंस' घोषित कर देगा।"
भाजपा नेता के अपंजीकृत संस्था पर कार्यवाही हो गई ( विकाश के चश्मे से )
मुक्तिधाम में पशु मृत आत्मा को श्रधांजलि देते हुए ( विकाश के चश्मे से )
सडको पर अब आवारा पशु नजर नहीं आते (विकास के चश्मे से )
इंदिरा मार्केट का सुन्दर रूप बरामदा हुआ कब्ज़ा मुक्त (विकास के चश्मे से )
लेखक: शरद पंसारी
(यह व्यंग्य लेख नगर निगम दुर्ग की प्रेस विज्ञप्तियों में दर्शाए गए विकास और जमीनी सच्चाई के तुलनात्मक विश्लेषण पर आधारित है। विकास के चश्मे से शहर में विकास कार्य और सुशासन चरम सीमा पर है )