August 05, 2025
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लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / आयुर्वेद में नीम का प्रयोग प्राचीन काल से ही औषधि के रूप में किया जा रहा है। नीम कई गुणों से भरपूर है। इससे कई तरह के रोग साधे जा सकते हैं। इतना ही नहीं नीम की पत्तियां मौसमी संक्रमण से भी बचाती है। नीम त्वचा संबंधित सभी बीमारियों को भी दूर करता है। नीम से 40 प्रकार की गंभीर बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। नीम खाने से शरीर का खून भी साफ होता है, लेकिन क्या आज दुनियाभर में फैल रही संक्रामक महामारी कोविड-19 के इलाज में नीम एक असरदार औषधि मानी जा सकती है, आइए इस बारे में जानते हैं -
     कोरोना वायरस के लिए आयुर्वेदिक औषधि नीम पर शोध
नीम का पावडर, नीम का तेल या नीम का पेस्ट बनाकर किसी भी तरह के संक्रमण पर लगा सकते हैं। इसी तर्ज पर कोरोना महामारी के संक्रमण से बचने के लिए आयुर्वेदिक औषधियों पर भी कई तरह के शोध किए जा रहे हैं। इन्हीं में से एक शोध किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी द्वारा नीम पर किया जा रहा है, जिसमें यह जानने की कोशिश की जा रही है कि नीम में मौजूद तत्व कोरोना वायरस पर क्या प्रभाव डालते हैं? आयुर्वेदिक डॉक्टरों के अनुसार, नीम में कई ऐसे गुण मौजूद हैं, जो कोरोना महामारी से बचाव कर सकते हैं।
      डॉक्टरों ने उम्मीद जताई है कि कोरोना से बचने के लिए बहुत जल्द ही नीम का इस्तेमाल अधिक मात्रा में लोगों के द्वारा किया जाने लगेगा। नीम की पत्ती, छाल, नीम की गोलियां, नीम का तेल और नीम के दातुन का उपयोग संक्रमण रोकने के लिए किया जा सकता है, जिस पर फिलहाल कई प्रयोग चल रहे हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने नीम पर शोध के लिए खास प्रोजेक्ट तैयार किया है।
    ये है नीम की खासियत
नीम में तीन कम्पोनेंट्स - हाइप्रोसाइड, मिम्बाफ्लेवोन और रूटीन होते हैं, जिसमें से हाइप्रोसाइड कम्पोनेंट कोरोना वायरस से लड़ने में सबसे अधिक सक्षम माना जा रहा है। जो लोग नीम का अब तक अधिक उपयोग नहीं करते आए हैं, उन्हें नीम का सेवन शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि नीम मे एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। नीम से इम्यूनिटी भी बढ़ती है।

इम्युनिटी बढ़ाने के लिए रोज पिएं नीम का काढ़ा
इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए नीम का काढ़ा पिया जा सकता है। यह हर प्रकार से शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होगा। नीम की पत्ती के सेवन से कैंसर जैसी बीमारियां भी ठीक की जा सकती हैं। कोरोना एक आरएनए वायरस है, जो रिसेप्टर के जरिए इंसानों में प्रवेश करता है। नीम में मौजूद मुख्य तत्व हाइप्रोसाइड शरीर की कोशिकाओं में मौजूद रिसेप्टर को खत्म करने का काम करता है। इससे कोरोना वायरस के फैलने की आशंका कम हो जाएगी। नीम के काढ़े के सेवन से कोरोना वायरस संक्रमण शरीर में फैलने में सक्षम नहीं हो पाएगा, साथ ही स्वस्थ कोशिकाओं पर इसका कोई असर नहीं हो पाएगा।

घर पर ऐसे बनाएं नीम की पत्तियों का काढ़ा
नीम का काढ़ा बनाने के लिए एक कटोरे में दो कप पानी डालकर 15 से 20 नीम की पत्तियां डालकर उबालें, जब तक यह पानी आधा नहीं हो जाता। यह ज्यादा कड़वा होता है इसलिए बेहतर स्वाद के लिए उबालते समय इसमें थोड़ा नमक भी डाल सकते हैं। इस काढ़े को यदि कोरोना संक्रमित व्यक्ति को पिलाया जाए तो उसके जल्दी ही ठीक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, इसके अलावा डायबिटिक मरीज के लिए भी यह एक असरदार औषधि है। आयुर्वेदिक डॉक्टरों के मुताबिक कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति को यदि शुरुआत से ही नीम की पत्तियों का काढ़ा पिलाते हैं, तो बीमारी गंभीर रूप नहीं लेगी।

 

खाना खजाना / शौर्यपथ / भिंडी बनाने के कई तरीके हैं लेकिन आज हम आपको ऐसा तरीका बताने जा रहे हैं, जो आपको जरूर पसंद आएगा। आइए, जानते हैं शाही भिंडी की रेसिपी-

सामग्री :
भिंडी- 300 ग्राम, लाल मिर्च पाउडर- 1/2 चम्मच, हल्दी पाउडर- 1/4 चम्मच, गरम मसाला पाउडर- 1/2 चम्मच, फ्रेश क्रीम- 2 चम्मच, कसूरी मेथी- 1/2 चम्मच, तेल- 2 चम्मच, घी- 1 चम्मच
कटा प्याज- 1, काजू- 1/4 कप, टमाटर- 1, लहसुन- 4 कलियां, कद्दूकस किया अदरक- 1 चम्मच, इलायची- 2, लौंग- 2, दालचीनी- 1 टुकड़ा, हरी मिर्च- 1, शाही जीरा- 1 चम्मच

विधि :
भिंडी को धोकर काट लें। एक पैन में एक चम्मच तेल गर्म करें और उसमें शाही जीरा डालें। जब जीरा पकने लगे तो उसमें इलायची, दालचीनी और लौंग डालकर कुछ सेकेंड भूनें। प्याज, अदरक और लहसुन डालें। प्याज के मुलायम होने तक पकाएं। अब पैन में काजू और हरी मिर्च डालें। अब पैन में टमाटर डालें और मध्यम आंच पर भूनें। जब सभी सामग्री अच्छी तरह से पक जाए तो गैस ऑफ कर दें और मिश्रण को ठंडा होने के लिए छोड़ दें। जब मिश्रण ठंडा हो जाए तो उसे ग्राइंडर में डालकर पीस लें। अब उसी पैन में घी गर्म करें और उसमें भिंडी को डालकर पकाएं। जब भिंडी आधी पक जाए तो उसमें आवश्यकतानुसार नमक छिड़क दें। ध्यान रखें कि भिंडी जले नहीं। भिंडी को बाउल में निकाल लें। अब उसी पैन में एक चम्मच तेल और गर्म करें और उसमें मसालों का तैयार पेस्ट, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर और गरम मसाला पाउडर डालें। अच्छी तरह से मिलाकर मसालों को पकाएं। भिंडी को अब ग्रेवी में डालकर मिलाएं। ग्रेवी अगर गाढ़ी हो तो उसमें आवश्यकतानुसार गर्म पानी डालें। एक उबाल लाने के बाद आंच धीमी करके दो से तीन मिनट तक पकाएं। सबसे अंत में क्रीम और कसूरी मेथी डालकर मिलाएं। गर्मागर्म सर्व करें।

 

धर्म संसार /शौर्यपथ / ज्योतिषीय गणना के अनुसार, अगले एक महीने तक ग्रह-नक्षत्रों में भारी उलटफेर देखने को मिल रहा है। 5 जून से 5 जुलाई 2020 तक एक महीने में तीन ग्रहण पड़ रहे हैं जो भीषण विपदा का संकेत दे रहे हैं। ज्योतिषीय गणना में ग्रणह के प्रभावों को बताती एक पुरानी कहावत "एक पाख दो गहना, राजा मरे या सेना" गांवों में प्रचलित है। इस कहावत का अर्थ है एक पखवाड़े यानी 15 दिन में दो ग्रहण होना से या तो राजा की हत्या होती है या सेना मारी जाती है। यानी भीषण विपदा का संकेत है।
इस बार 21 जून 2020 को सूर्य ग्रहण और 5 जुलाई को चंद्रग्रहण हैं जो करीब 15 दिन में ही पड़ रहे हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि एक पखवाड़े में दो ग्रहण ही नहीं एक महीने ( 5 जून से 5 जुलाई 2020 तक ) में तीन ग्रहण होने जा रहे हैं जो कि ज्योतिष के जानकारों को डराने वाले संकेत दे रहे हैं।
दैवीय आपदा या युद्ध का खतरा-
पंडित राजीश शास्त्री के अनुसार, एक मास में तीन ग्रहण के साथ ही सूर्य, मंगल व गुरु ग्रहों का परिवर्तन व वक्री होने की वजह से भयंकर आपदा के संकेत मिल रहे हैं। इन ग्रहण की वजह से कहा जा रहा हैं कि प्राकृतिक आपदा, जल प्रलय, विश्व स्तर पर युद्ध किसी राजनेता की हत्या जैसी घटनाएं घट सकती हैं। प्राकृतिक आपदाओं जैसे अत्याधिक वर्षा, समुद्री चक्रवात, तूफान, भूकंप और महामारी आदि से जन-धन की हानि का खतरा है। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश को जून के अंतिम माह और जुलाई में भयंकर वर्षा की आशंका है। इस साल मंगल जल तत्व की मीन राशि में पांच माह तक बैठेंगे। ऐसे में वर्षा असामान्य रूप से अत्यधिक होगी और महामारी का भय रहेगा।
05 जून से 05 जुलाई 2020 तक पड़ेंगे ये तीन ग्रहण-
5 जून 2020 को चंद्र ग्रहण
5 जून को लगने वाला चंद्रग्रहण भारत समेत यूरोप, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में दिखाई देगा। यह चंद्र ग्रहण 5 जून की रात 11:15 बजे से शुरू होकर और 6 जून 2:34 बजे तक रहेगा। यह चंद्र ग्रहण वृश्चिक राशि और ज्येष्ठ नक्षत्र में लग रहा है। पांच जून रात 12:54 बजे पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। इसकी कुल अवधि 3 घंटे 15 मिनट की होगी।
21 जून 2020 को सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण 21 जून की सुबह 9:15 बजे से दोपहर 15:03 बजे तक भारत, दक्षिण पूर्व यूरोप और एशिया। 21 जून को खंडग्रास सूर्य ग्रहण होगा। यह ग्रहण भारत में दिखाई देगा। भारत के अलावा यह सूर्यग्रहण एशिया, अफ्रिका और यूरोप में दिखाई देगा। यह सूर्य ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र और मिथुन राशि में लगेगा।
5 जुलाई 2020 को चंद्र ग्रहण :
5 जुलाई को भी चंद्रग्रहण लगेगा, लेकिन ये दोनों ग्रहण मांद्य ग्रहण है, जिस कारण से इनका किसी भी राशि पर कोई असर नहीं होगा। चंद्र ग्रहण सुबह 8: 37 बजे से 11:22 बजे तक अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में दिखाई देगा।
राशियों में ग्रहण का असर :
मेष, सिंह, कन्या और मकर राशि वालों को लिए यह ग्रहण काल शुभ रहने वाला है।
वृषभ, तुला, धनु, और कुंभ राशि वालों को मध्यम लाभ देगा।
तीन राशियों के लिए अशुभ फल ला रहा ग्रहण-
कर्क, वृश्चिक और मीन राशि वालों को अशुभ फल देगा। इसमें वृश्चिक राशि वालों को विशेष ध्यान रखना होगा। कंकण आकृति ग्रहण होने के साथ ही यह ग्रहण रविवार को होने से चूड़ामणि योग भी बना रहा है। इसमें स्नान, दान, जप और हवन करना कोटि गुना महत्व देगा।
ग्रहण का सूतक:
सूर्य ग्रहण का सूतक 20 जून को रात्रि 10:20 से आरंभ हो जाएगा। सूतक काल में बालक, वृद्ध एवं रोगी को छोड़कर अन्य किसी को भोजन नहीं करना चाहिए। इस अवधि में खाद्य पदार्थो में तुलसी दल या कुशा रखनी चाहिए।गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ग्रहण काल में सोना और देर तक नहीं बैठना चाहिए। चाकू, छुरी से सब्जी,फल आदि काटना भी निषिद्ध माना गया है।

लाइफस्टाइल /शौर्यपथ / अगर मेहनत के साथ भाग्य का साथ मिल जाए तो सफलता मिलने से कोई रोक नहीं सकता। हमारी रोजमर्रा के जीवन में हमें कई ऐसे संकेत मिलते हैं जो कुछ न कुछ शुभ होने का संदेश देते हैं। यह संकेत हमें उस वक्त के सदुपयोग करने का अवसर देते हैं। वास्तु में कुछ ऐसे ही शुभ संकेतों के बारे में बताया गया है, आइए जानते हैं इनके बारे में।

सुबह उठते ही दही और दूध का दिख जाना संकेत देता है कि आज आपका दिन बहुत शुभ होने वाला है। पूजा करते समय दीपक की ज्योति का ज्यादा बढ़ जाना भी संदेश देता है कि आपके ऊपर भगवान की कृपा है। पूजाघर में अगरबत्ती से निकला धुआं यदि भगवान की मूर्तियों की तरफ जाता है तो यह भी शुभ संकेत देता है। अगरबत्ती को जलाने से पहले ही घर में खुशबू फैल जाए तो समझ लें कि भगवान आपसे प्रसन्न हैं। अगर आपके दरवाजे पर कोई कुछ मांगने आए तो कोशिश करें कि उसे खाली हाथ न जाने दें। भूखंड की खुदाई करते समय यदि कंकड़-पत्थर मिले तो यह शुभ संकेत हैं। पकी हुई साबुत ईंट मिलें तो यह भी शुभ है। घर के दरवाजे पर गाय आ जाए तो यह भी शुभ संकेत है। चमगादड़ अगर घर में अपना घर बना ले तो इसे शुभ संकेत माना जाता है। अगर कोई कुत्ता आपके घर पर आ जाए तो यह भी शुभ संकेत माना जाता है।

 

नजरिया / शौर्यपथ / दिल्ली में आप (आम आदमी पार्टी) सरकार की ताजा रायशुमारी सवालों के घेरे में है। उसने लोगों से यह पूछा है कि क्या कोरोना-काल में दिल्ली के अस्पतालों के बेड सिर्फ दिल्लीवालों के लिए आरक्षित होने चाहिए? इसके साथ ही, उसने पड़ोसी राज्यों से जुड़ी दिल्ली की सीमा भी फिलहाल बंद कर दी है। सवाल यह है कि जब नोएडा, गुरुग्राम जैसे इलाके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, यानी एनसीआर का हिस्सा हैं, तो दिल्ली सरकार का यह कदम क्या सही है? सवाल यह भी कि जिस मकसद से एनसीआर की संकल्पना की गई थी, क्या वह आज पूरा हो रहा है? एनसीआर की सोच दशकों पुरानी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आबादी के बोझ को थामने और यहां की औद्योगिक गतिविधियों को सीमित करने के लिए इसे मूर्त रूप दिया गया था। इसीलिए 1985 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड का गठन भी किया गया। आलम यह था कि शुरुआती वर्षों में किसी भी नई औद्योगिक इकाई को दिल्ली में स्थापित होने की इजाजत नहीं दी गई। नतीजतन, उत्तर प्रदेश के नोएडा और हरियाणा के गुरुग्राम जैसे इलाके ‘औद्योगिक हब’ बनकर उभरे। मगर लोगों में दिल्ली का आकर्षण कम नहीं हुआ। यही कारण है कि राजधानी क्षेत्र के आसपास के इलाकों में कंक्रीट की बहुमंजिली इमारतें खड़ी हुईं और नए-नए टाउनशिप बसाए गए। यहां रहने वाले लोग आज भी खुद को दिल्लीवासी ही समझते हैं।

अगर योजना मुताबिक काम हुआ होता, तो निश्चय ही एनसीआर आज ‘ग्रेटर दिल्ली’ माना जाता। मगर इससे जुड़े सभी राज्यों की अपनी-अपनी सियासत ने स्थिति यह बना दी है कि आज इसके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं। राज्य सरकारों में आपसी तालमेल बनाने की जरूरत थी, दीर्घकालिक नीति बननी चाहिए थी और संजीदगी से उन पर काम होना चाहिए था, पर ऐसा नहीं हो सका। इसलिए एनसीआर की विफलता इससे संबंधित सभी सरकारों की विफलता है। हालांकि, आज भी यदि कुछ प्रयास किए जाएं, तो बात बन सकती है। सबसे पहले तो स्वास्थ्य-सेवा के क्षेत्र में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा।

अरविंद केजरीवाल जिस मसले को आज उठा रहे हैं, उनसे मेरा वास्ता 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में ही पड़ा था, जब मैं स्वास्थ्य सचिव थी। उस वक्त भी एम्स जैसे केंद्रीय अस्पतालों का कहना था कि अंतर-राज्यीय प्रवासियों की भारी संख्या उनके बुनियादी ढांचे को बिगाड़ रही है। ‘बाहरी’ लोगों के कारण सुपर स्पेशिएलिटी सेवा पर बुरा असर पड़ रहा है, जबकि यह सुविधा उन्हीं को मिलनी चाहिए, जिन्हें राज्य सरकार के अस्पताल रेफर करते हैं। इसी तरह, सफदरगंज जैसे अस्पताल मानते थे कि एम्स चुनिंदा मामलों को अपने यहां रखकर शेष उन्हें स्थानांतरित कर देता है, जिससे वे खुद को भेदभाव का शिकार मानते हैं। इन्हीं समस्याओं का हल निकालते हुए सभी मरीजों को अपॉइंटमेंट देने की व्यवस्था बनाई गई, जिसका दुष्प्रभाव यह पड़ा कि अस्पताल हद से अधिक बोझ से हांफने लगे। होना यह चाहिए था कि केंद्र या दिल्ली राज्य सरकार के अधीन अस्पतालों में भी, बाहरी लोगों को सिर्फ विशेषज्ञ सुविधा मिले। पर लोक-लुभावन राजनीति के कारण ऐसा नहीं हो सका, और हमारे बेहतरीन अस्पताल खुद बीमार रहने लगे। जाहिर है, यह सियासत नहीं, अस्पताल-प्रबंधन का मसला है। हमें इसी नजरिए से इसे देखना चाहिए।

दूसरा मुद्दा पुलिसिंग का है। दिल्ली-एनसीआर में पुलिस-सेवा से जुड़ी ऐसी कोई संयुक्त कमेटी बननी चाहिए थी, जो सूचनाएं आदि साझा करती। इससे कई मुश्किलों का हल निकल सकता था। जैसे, अभी कोई अपराधी एक राज्य में अपराध कर आसानी से एनसीआर के दूसरे राज्य में चला जाता है। तीसरा मसला यातायात-व्यवस्था का है। दिल्ली की सीमा से गुजरने वाली सड़कों पर जाम की स्थिति छिपी नहीं है। ऐसे में, संबंधित राज्यों के साथ तालमेल बनाते हुए यदि ऐसी किसी एजेंसी का गठन किया जाता, जो सीमा पर गाड़ियों की आवाजाही नियंत्रित करती, तो वह दिल्ली ही नहीं, एनसीआर के भी हित में होता। इससे बढ़ते प्रदूषण को भी कुछ हद तक थामा जा सकता था। कुल मिलाकर, एनसीआर की संकल्पना आज विफल लग रही है। इसे राजनीति और प्रशासनिक तौर पर महत्व ही नहीं दिया गया।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)शैलजा चंद्रा, पूर्व मुख्य सचिव, दिल्ली सरकार

 

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / अमेरिका में श्वेत-अश्वेत के बीच तनाव की वापसी दुखद और चिंताजनक है। अमेरिका अपनी रंगभेदी नीतियों को करीब आधी सदी पीछे छोड़ आया था, मगर वास्तव में बदलाव एक हद तक कागजी ही बना हुआ है। रंगभेद की जमीनी हकीकत न केवल निराश करती है, बल्कि अमेरिका के लोकतांत्रिक समाज पर सवालिया निशान भी लगाती है। अमेरिका में अश्वेतों की आबादी 13 प्रतिशत ही है, लेकिन पुलिस के हाथों मारे जाने वालों में उनकी संख्या श्वेतों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा है। अमेरिका की इस स्याह हकीकत की चर्चा लगातार होती रही है, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि तमाम अमेरिकी राज्यों में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। और एक सुखद पक्ष यह कि इन प्रदर्शनों में श्वेत भी समान रूप से शामिल हैं।

जॉर्ज का दोष ऐसा नहीं था कि पुलिस के हाथों उसकी मौत होती। वह गिरफ्तारी का विरोध कर रहा था, लेकिन तीन पुलिस वाले उसे जमीन पर गिराकर उस पर सवार हो गए। एक पुलिस अफसर ने तो इतनी निर्ममता दिखाई कि लगभग नौ मिनट तक वह जॉर्ज की गरदन पर अपने घुटने के बल सवार रहा। जॉर्ज गुहार लगाता रहा कि उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही है, लेकिन उसकी गुहार बेकार गई। इस मौत के वीडियो को लोगों ने वायरल कर दिया और अब अमेरिकी पुलिस बल अपने लोगों के रोष के निशाने पर है। अमेरिका के 70 से ज्यादा शहरों में प्रदर्शन या कहीं-कहीं उपद्रव भी हुुए हैं। वैसे लोगों का यह रोष नया नहीं है। अमेरिका में अनेक लोगों के मन में श्वेत वर्चस्व या रंग को लेकर श्रेष्ठता भाव बना हुआ है। घृणा का यह भाव न केवल अतार्किक, बल्कि अमानवीय भी है। इससे अमेरिकी समाज की बदनामी होती है। अमेरिकी समाज में रंगभेद दूर करने की तमाम जमीनी और किताबी कोशिशों के बावजूद वहां जो स्थिति है, उसकी प्रशंसा नहीं हो सकती। जब भी अश्वेतों के प्रति घृणा की बात उठती है, तो अमेरिका की चर्चा जरूर होती है। इस प्रदर्शन व उपद्रव के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बहुत चिंतित हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि निर्दोष लोगों के जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, तो सरकार सेना भी तैनात कर सकती है। अमेरिका के लिए यह दोहरी मुसीबत का समय है। एक तरफ वह कोरोना जैसी महामारी से बड़े पैमाने पर जूझ रहा है, वहीं रंगभेद विवाद अमेरिकी प्रशासन के गले की नई हड्डी बन गया है।

अब पूरी दुनिया की नजर अमेरिका पर है। अमेरिका को महामारी और मानवीयता, दोनों ही मोर्चों पर परीक्षा से गुजरना होगा। जब महामारी ने मौत का जाल फैला रखा हो, तब तो लोगों के प्रति उदारता और मानवीयता का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। इस बीच अमेरिकी प्रशासन के लिए यह जरूरी है कि वह रंगभेद समर्थकों के साथ पूरी कड़ाई से पेश आए। रंगभेद को रोकने के लिए अमेरिकी सरकार को पहले से कहीं ज्यादा चौकस होना चाहिए। वहां पुलिस बल को भी शिक्षित-प्रशिक्षित करने की जरूरत है। पुलिस पर भी यह जिम्मेदारी है कि वह लोगों को आश्वस्त करे। अमेरिका में शांति और एकजुटता की जल्द से जल्द वापसी होनी चाहिए। सबके प्रति उदारता से ही अमेरिकी समाज में सभ्यता और अनुशासन की रौनक लौटेगी और दुनिया के दूसरे देश उससे अच्छे सबक लेंगे।

 

यह किसकी जिम्मेदारी
मेलबॉक्स /शौर्यपथ /जिस देश में अनाज का भंडारण खपत से तीन गुना ज्यादा हो, वहां कोई मां भूख से क्यों मर रही है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि देश में अन्न का बफर स्टॉक रहने के बाद भी मजदूरों की मौत हुई है। ऐसा ही एक दर्दनाक वीडियो बिहार से आया, जहां एक महिला के शव पर पड़ी चादर से उसका अबोध बच्चा खेल रहा था। कहा गया है कि श्रमिक स्पेशल टे्रन में भूख-प्यास से इस महिला ने दम तोड़ दिया था। उसका शव मुजफ्फरपुर स्टेशन पर पड़ा था। इसके लिए किसे दोषी माना जाए? खबर है कि कुछ रियायतों के साथ ‘लॉकडाउन’ की अवधि अब 30 जून तक बढ़ाई जा रही है। ऐसी स्थिति में मजदूूरों को, जो पिछले दो महीने से भी अधिक समय से अपने घर जाने के लिए यहां-वहां धक्के खा रहे हैं, उनको उनके घर पहुंचाने के लिए सरकारें फौरन समुचित प्रबंध करें, इसके साथ ही उनके खाने और पानी का भी इंतजाम हो।
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद

 फिर खुली कलई

दुनिया का सबसे शक्तिशाली और सभ्य कहा जाने वाला धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र अमेरिका इन दिनों श्वेत-अश्वेत संघर्ष से जूझ रहा है। वहां जनता और प्रशासन का संघर्ष रुकने की बजाय और बढ़ता जा रहा है, जो एक गंभीर बात है। अमेरिका में पहले ही एक लाख से अधिक लोग कोरोना महामारी में अब तक मारे जा चुके हैं। दूसरी तरफ, चीन के साथ भी उसका वाक्-युद्ध लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका में जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव पर श्वेत-अश्वेत संघर्ष, कोरोना संघर्ष और चीन से तनातनी का असर पड़ना स्वाभाविक ही है और अब तो यही प्रमुख चुनावी मुद्दे भी होने वाले हैं। आखिर चालीस शहरों में कफ्र्यू लगाने की स्थिति कोई मामूली बात नहीं। अश्वेतों के प्रति नस्लवादी नफरत ने अमेरिका के भद्र लोक की कलई खोल दी है।
शकुंतला महेश नेनावा
गिरधर नगर, इंदौर

 मास्क बना हथियार

कोरोना वायरस दिन-प्रतिदिन भयानक रूप धारण करता जा रहा है। देश में अब इस वायरस से ग्रस्त लोगों की संख्या दो लाख से ऊपर जा रही है। इस महामारी के साथ मनुष्य का जो युद्ध चल रहा है, उसमें जीत के लिए फेस मास्क एक अहम हथियार बन गया है। अब लोग किसी भी कारण से घर से निकल रहे हैं, तो मास्क पहनकर ही बाहर आ रहे हैं। सरकार का भी निर्देश है कि अगर कोई नागरिक बिना मास्क पहने घर से बाहर निकलता है, तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। देश-विदेश में फेस मास्क अब एक अहम उत्पाद बन गया है और अब तो बजार में रंग-बिरंगे मास्क बिकने शुरू हो गए हैं। चीन में जब जिंदगी पटरी पर लौटने लगी, तब वहां की कंपनियां तेजी से फेस मास्क बनाने लगीं। वहां रोजाना हजारों की संख्या में अब मास्क की मांग आने लगी है। भारत ने भी फेस मास्क बनाकर निर्यात का काम शुरू कर दिया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अब लोगों को अपनी जान बचाने के लिए फेस मास्क जैसे हथियार को हमेशा अपने साथ रखना होगा।
निशा, दिल्ली विश्वविद्यालय

सरकार की उदारता

देश जिस संकट के दौर से अभी गुजर रहा है, इसमें सरकार की सबसे अहम भूमिका है। उसके द्वारा अब तक लिए गए निर्णय अत्यधिक महत्वपूर्ण रहे हैं। कोरोना के प्रसार पर रोक लगाने के लिए सरकार द्वारा अनेक तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। उसने कृषि और कुटीर उद्योगों में आ रही मुश्किलों पर गौर करते हुए उचित हल निकाला है। लेकिन सवाल अब भी यही उठता है कि क्या परिस्थितियां पहले की तरह सामान्य हो पाएंगी? आम जनता की सारी उम्मीदें सरकार से ही लगी हुई हैं। सरकार का यह कर्तव्य ही नहीं, जिम्मेदारी भी है कि वह लोगों को आ रही समस्याओं के समाधान निकाले और आम जनता को चिंता-मुक्त करे

मिताली, नई दिल्ली

 

ओपिनियन / शौर्यपथ / पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं में तनातनी जारी है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। हालांकि पिछले कई वर्षों में जिस तरह बातचीत से तनाव कम किए गए, इस बार भी सफलता मिल सकती है, लेकिन इस वक्त अहम सवाल यह है कि क्या चीन के सैनिक उस जमीन को खाली करने पर राजी हो जाएंगे, जो उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करके अपने कब्जे में ले ली है?

चीन तभी संतुष्ट होगा, जब जमीनी हकीकत बदल जाए। इसके लिए कुछ मीटर पीछे तक दोनों सेना को लौटने के लिए कहा जाए और कब्जाई गई ज्यादातर जमीन बीजिंग को सौंप दी जाए। चीन कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करने पर भी सहमत हो सकता है, लेकिन बदले में वह कई रियायतों की उम्मीद करेगा, जिनमें वास्तविक नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी ढांचागत विकास कार्यों को रोकना भी शामिल हो सकता है। संभव है, बनाए गए ढांचों को तोड़ने की मांग भी करे। 2017 में जब डोका ला विवाद हुआ था, तब भी दोनों तरफ की सेनाएं पीछे हटी थीं। चीन ने सड़क-निर्माण की अतिरिक्त गतिविधियां तो रोक दी थीं, लेकिन कब्जे वाले इलाके में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का काम उसने जारी रखा। कुल मिलाकर, जमीनी सच्चाई चीन के हित में बदल गई थी, हालांकि आगे किसी दखल को लेकर भारत ने पहले ही अपनी कार्रवाई रोक दी थी। इसीलिए चीन के इस व्यवहार का जब तक भारत कोई प्रभावी काट नहीं ढूंढ़ लेता, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इस तरह की घटनाओं के होने की न सिर्फ आशंका बनी रहेगी, बल्कि ऐसी घटनाएं ज्यादा तीव्रता से हो सकती हैं।

चीन के इस खेल का एक और पहलू है। भारत-चीन सीमा पर ही नहीं, दक्षिण चीन सागर, ताइवान जलडमरूमध्य और पीत सागर पर भी ऐसा ही कुछ चल रहा है। चीन की हर कार्रवाई, जब तक कि वह किसी दूसरी कार्रवाई से जुड़ी हुई न हो, एक मजबूत व जवाबी सैन्य प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक धमकी नहीं मानी जा सकती। हालांकि, बदलते वक्त में इसी तरह की ‘एकल कार्रवाई’ की शृंखला इलाके में शक्ति-संतुलन में उल्लेखनीय बदलाव का वाहक बनती है। इसी कारण दक्षिण चीन सागर और कई विदेशी द्वीपों पर चीन का कब्जा व सैन्यीकरण उस स्थिति में पहुंच गया है कि सिर्फ सैन्य प्रतिक्रिया (संभवत: युद्ध) से ही बीजिंग को रोका जा सकता है। जाहिर है, जोखिम भरा यह कदम शायद ही कोई उठाए। हां, ताकतवर मुल्कों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे चीन के आगामी अतिक्रमण को रोकने के प्रयास करें।

चीन के इस खेल को हमने वर्षों से भारत-चीन सीमा पर देखा है। यहां छोटी-छोटी गतिविधियां लगातार होती रही हैं, जिनका भारतीय पक्ष विरोध करते रहे हैं, मगर वे चीन द्वारा हड़पी जा रही जमीन को फिर से वापस पाने के लिए किसी सैन्य आक्रमण का रास्ता अपनाने को तैयार नहीं हैं। हमें कब्जा जमाने की चीन की इस नीति को समझना होगा और इसके खिलाफ एक प्रभावी रणनीति बनानी होगी। उन इलाकों में, जहां हमें सामरिक लाभ हासिल है, वहां वास्तविक नियंत्रण रेखा की अस्पष्टता का अपने हित में उपयोग करना होगा। इसके बाद ही यथास्थिति बहाल करने के लिए सौदेबाजी करते समय हम कुछ दबाव बनाने की स्थिति में होंगे।

चीन के इस खेल के तीसरे पक्ष पर भी ध्यान देने की जरूरत है। दरअसल, चीन किसी भी देश की आर्थिक और सैन्य क्षमताओं को सावधानीपूर्वक आंकने के बाद ही अपना रुख तय करता है। यह कभी-कभी गलत भी हो सकता है, क्योंकि चीन के नेता अपनी सोच को लेकर आत्म-केंद्रित होते हैं। दूसरे देशों के साथ आपसी संबंधों में सामरिक चपलता, यहां तक कि विश्वासघात के प्रति भी, वहां सांस्कृतिक पूर्वाग्रह है। इसी कारण, 1962 के युद्ध के बाद सीमा पर पुरानी स्थिति बहाल करने संबंधी चीन का दावा ऐसा कथित राहत-पैकेज था, जो प्रचलित यथास्थिति को ही औपचारिक जामा पहनाता रहा। 1985-86 में पूर्वी क्षेत्र में वांडुंग की घटना के बाद भी पैकेज प्रस्ताव को इस तरह फिर से परिभाषित किया गया कि पूर्व में, जो सबसे बड़ा विवादित क्षेत्र है, सार्थक छूट हासिल करने के लिए भारत को एक समझौते की दरकार है, जिसके बदले में चीन पश्चिमी क्षेत्र में उचित, हालांकि अपरिभाषित छूट हासिल करेगा। फिर इसके बाद यह संदेश दिया गया कि किसी भी समझौते में चीन को तवांग सौंपना होगा।

अब जो हम देख रहे हैं, वह बताता है कि चीन अपने उसी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। उसके व्यवहार से पता चलता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के सटीक सीमांकन पर अस्पष्टता से उसे यह अवसर मिला है कि वह स्थानीय व सामरिक लाभ हासिल करने के लिए कुछ जगहों पर विवाद को हवा दे, साथ-साथ ऐसा माहौल भी बनाया जाए कि भारत के साथ किसी समझौते में उसका हाथ मजबूत है।

कुछ विश्लेषकों का सुझाव है कि चीन को उकसाने वाला ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए कि भारत मजबूर होकर अमेरिका के करीब जाए। इसका निहितार्थ यह भी है कि चीन जिन देशों को अपना विरोधी मानता है, उनसे उसकी दूरी भारत पर दबाव घटा सकती है। हालांकि यह अजीब तर्क है। यह संकेत करता है कि भारत की विदेश नीति पर फैसला तो वाशिंगटन में हो रहा है, लेकिन उसे चीन की प्राथमिकताओं के मुताबिक बदल दिया जाना चाहिए? भारत की विदेश नीति को नई दिल्ली में बनाया जाना चाहिए, जो देश के सर्वोत्तम हित में है। यह नई दिल्ली का अनुभव रहा है कि अन्य तमाम ताकतवर मुल्कों के साथ-साथ भारत और अमेरिका के आपसी मजबूत रिश्तों से चीन की चुनौती का बेहतर प्रबंधन करने की क्षमता और कुशलता बढ़ती है। भारत दुनिया से जितना अलग-थलग होगा, चीन का उस पर उतना ही ज्यादा दबाव पड़ने का खतरा बढ़ेगा।

बेशक अभी अमेरिका के साथ किसी तरह के सैन्य समझौते की संभावना नहीं है, लेकिन दुनिया के ताकतवर राष्ट्रों का एक मजबूत व विश्वसनीय जवाबी प्रतिक्रिया-तंत्र बनाना एक विवेकपूर्ण रणनीति है, जो चीन की परभक्षी नीतियों के प्रति भारत की चिंताओं को समझे। हालांकि, चीन के साथ शक्ति-संतुलन बनाने के लिए भारत को अपनी क्षमता भी दुरुस्त करनी होगी, जो कि मौजूदा विवाद के मूल में है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) श्याम सरन, पूर्व विदेश सचिव

 

 

// सर्वाधिक परिवारों को 100 दिनों का रोजगार देने में देश में दूसरे स्थान पर
// इस साल अब तक 25.97 लाख ग्रामीणों को काम, 1114 करोड़ का मजदूरी भुगतान
// मुख्यमंत्री और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री ने लॉक-डाउन के दौरान उत्कृष्ट कार्य के लिए पंचायत प्रतिनिधियों और मैदानी अधिकारियों की पीठ थपथपाई

  रायपुर / शौर्यपथ / मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के विभिन्न मानकों पर लॉक-डाउन के बावजूद छत्तीसगढ़ का उत्कृष्ट प्रदर्शन जारी है। मुख्यमंत्री बघेल के निर्देश पर चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 के शुरूआती दो महीनों में ही प्रदेश ने साल भर के लक्ष्य का 37 फीसदी काम पूरा कर लिया है। इस वर्ष अप्रैल और मई माह के लिए निर्धारित लक्ष्य के विरूद्ध प्रदेश में 175 प्रतिशत काम हुआ है। इन दोनों मामलों में छत्तीसगढ़ देश में सर्वोच्च स्थान पर है। दो माह के भीतर सर्वाधिक परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराने में छत्तीसगढ़ दूसरे स्थान पर है। यहां 1996 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार दिया जा चुका है।
चालू वित्तीय वर्ष में अब तक पांच करोड़ तीन लाख 37 हजार मानव दिवस रोजगार का सृजन कर 25 लाख 97 हजार ग्रामीण श्रमिकों को काम उपलब्ध कराया गया है। इस दौरान 1114 करोड़ 27 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान भी किया गया है। कोविड-19 का संक्रमण रोकने लागू देशव्यापी लॉक-डाउन के बावजूद प्रदेश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखने में मनरेगा के अंतर्गत व्यापक स्तर पर शुरू किए कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विपरीत परिस्थितियों में इसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को रोजी-रोटी की चिंता से मुक्त करने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है।
मुख्यमंत्री बघेल और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने लॉक-डाउन के दौरान मनरेगा में उत्कृष्ट कार्यों के लिए पंचायत प्रतिनिधियों और मैदानी अधिकारियों की पीठ थपथपाई है। उन्होंने प्रदेश भर में सक्रियता एवं तत्परता से किए गए कार्यों की सराहना करते हुए सरपंचों, मनरेगा की राज्य इकाई तथा जिला एवं जनपद पंचायतों की टीम को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच यह बड़ी उपलब्धि है। उनकी कोशिशों से कोविड-19 से बचाव और लाखों लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही बड़ी संख्या में आजीविकामूलक सामुदायिक एवं निजी परिसंपत्तियों का निर्माण हुआ है।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मनरेगा के अंतर्गत चालू वित्तीय वर्ष के प्रथम दो महीनों अप्रैल और मई के लिए दो करोड़ 88 लाख 14 हजार मानव दिवस रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया था। इसके विरूद्ध प्रदेश ने पांच करोड़ तीन लाख 37 हजार मानव दिवस रोजगार का सृजन कर 175 प्रतिशत उपलब्धि हासिल की है। यह इस वर्ष के लिए निर्धारित कुल लेबर बजट साढ़े तेरह करोड़ मानव दिवस का 37 प्रतिशत है। चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 1996 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया है। मनरेगा में प्रदेश में प्रति परिवार औसत 23 दिनों का रोजगार प्रदान किया गया है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 16 दिन है। इस मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में शीर्ष पर है।
प्रदेश में मनरेगा श्रमिकों को समयबद्ध मजदूरी भुगतान के लिए मस्टर रोल बंद होने के आठ दिनों के भीतर द्वितीय हस्ताक्षर कर 98 प्रतिशत फण्ड ट्रांसफर ऑर्डर जारी कर दिए गए हैं। बीते अप्रैल और मई महीने के दौरान कुल 1114 करोड़ 27 लाख रुपए का मजदूरी भुगतान श्रमिकों के खातों में किया गया है। कोविड-19 के चलते विपरीत परिस्थितियों में श्रमिकों के हाथों में राशि पहुँचने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अच्छा असर पड़ा है। इसने रोजगार की चिंता से मुक्त करने के साथ ही ग्रामीणों की क्रय-क्षमता भी बढ़ाई है। प्रदेश भर में काम कर रहे मजदूरों की संख्या मई महीने के आखिरी में 25 लाख 27 हजार पहुंच गई है। अप्रैल के आखिरी में यह संख्या 15 लाख 74 हजार तथा मार्च के आखिरी में 57 हजार 536 थी। अभी प्रदेश की 10 हजार 155 ग्राम पंचायतों में कुल 44 हजार 964 कार्य चल रहे हैं। इनसे मौजूदा लॉक-डाउन में ग्रामीण जन-जीवन में आया ठहराव दूर हो गया है।

दुर्ग / शौर्यपथ / कलेक्टर डा. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने आज पुलगांव नाका स्थित वृद्धाश्रम का निरीक्षण किया। यहां उन्होंने व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया और बुजुर्गों से बातचीत की। वहां पर उपलब्ध सुविधाओं से उन्होंने संतोष जताया। उन्होंने कहा कि अभी सफाई व्यवस्था पूरी तरह मुकम्मल नहीं है। अभी मानसून आने से पूर्व पूरे कैंपस की अच्छे से सफाई कराइये और हर दिन बेहतर सफाई होनी चाहिए। अधिकारी इसकी लगातार मानिटरिंग करें।
कलेक्टर ने बुजुर्गों से पूछा कि आप लोगों को यहां सभी सुविधाएं मिल रही हैं न। बुजुर्गों ने सुविधाओं से संतोष जताया। कलेक्टर ने पूछा कि नाश्ता और खाना किस समय पर मिलता है और इसकी गुणवत्ता कैसी रहती है। बुजुर्गों ने बताया कि खाना समय पर मिल जाता है और अच्छा रहता है। इस संबंध में हम लोग संतुष्ट हैं। विभागीय अधिकारी समय-समय पर आते रहते हैं और व्यवस्था के बारे में पूछते रहते हैं। यहां हमारी देखभाल करने वाला स्टाफ भी काफी अच्छा है। स्वास्थ्यगत परेशानी हो तो यहां कार्यरत नर्स से कह देते हैं।
कलेक्टर ने बुजुर्गों से कहा कि आप सभी कोरोना संक्रमण के संबंध में भी सजग रहें। बीच-बीच में हाथों को सैनिटाइज करते रहें। मास्क हमेशा लगाए रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का हमेशा ध्यान रखें रहें। कलेक्टर ने अधिकारियों से आश्रम में रह रहे बुजुर्ग जनों के स्वास्थ्य जांच के बारे में जानकारी ली। अधिकारियों ने बताया कि महीने में तीन बार स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाता है। इसके अतिरिक्त यहां एक नर्स भी रहती हैं जो हमेशा बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर नजर रखती है। किसी तरह की दिक्कत आने पर तुरंत अस्पताल भेजे जाने की कार्रवाई की जाती है।
कलेक्टर ने समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों से कहा कि वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग नागरिक अच्छा समय बिताएं। हम उनका पूरा ख्याल रख पाए, इस बाबत जिस तरह से प्रयास किए जा सकते हैं। वे सुनिश्चित कराएं। इसके अतिरिक्त कैंपस काफी सुंदर हो, साफ सुथरा हो। इसके अतिरिक्त बुजुर्गों के आराम से बैठने के लिए एक बहुत छोटा सा गार्डन भी बनाने के निर्देश उन्होंने दिए। समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि वे नियमित रूप से संस्था की मानिटरिंग करते हैं और बुजुर्गों से पूछकर उनकी सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर आश्रम में सैनिटाइजेशन के साथ ही इस संबंध में लगातार जागरूकता फैलाने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। इस दौरान एसडीएम खेमलाल वर्मा, नजूल अधिकारी एवं डिप्टी कलेक्टर अरुण वर्मा सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

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