August 03, 2025
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         शौर्यपथ / पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भारी तबाही मचाता हुआ अम्फान तूफान भारत से गुजर चुका है। जब हवा 195 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ रही हो और तेज बारिश का उसे साथ मिले, तो उसकी राह में आने वाली हर चीज का नुकसान स्वाभाविक है। मगर अम्फान में अच्छी बात यह रही कि इसमें मौत की संख्या थामने में हम बहुत हद तक सफल रहे। हां, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को क्षति जरूर पहुंची है, पर कुछ जरूरी मानकों का पालन किया गया होता, तो इसे भी सीमित रखना संभव था। फिलहाल, अम्फान से हुई तबाही का ठीक-ठीक आकलन लगाया जा रहा है।
किसी भी तूफान से लड़ने के लिए पूर्व-सूचना सबसे कारगर हथियार मानी जाती है। इसका अर्थ है कि संकट के आने का अंदेशा कब लगाया गया, और इस बाबत संबंधित शासन-प्रशासन को सूचना कब जारी की गई? यह सूचना जितनी सटीक होती है, जान-माल का नुकसान कम करने में शासन-प्रशासन को उतनी ही ज्यादा मदद मिलती है। भारतीय मौसम विभाग इस पहलू पर पिछले काफी समय से गंभीरता से काम कर रहा है, जिसके अच्छे नतीजे आए हैं। अक्तूबर 2013 में ही ओडिशा में आए फैलिन तूफान की पूर्व-सूचना से हमें काफी फायदा मिला था और संकट आने से पहले ही लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाकर उनकी जान बचाई गई थी, जबकि उस वक्त अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने बड़ी संख्या में लोगों की मौत का अंदेशा जताया था।
आज भीषण तूफान जैसी आपदा से यदि लोगों की जान बचाई जा रही है, तो इसका श्रेय काफी हद तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को दिया जा सकता है। इसकी स्थापना से पहले कुदरती आपदाओं को सिर्फ इस रूप में देखा जाता था कि आपदा के बाद बचाव और राहत के काम किस तरह किए जाएं। अब इस सोच में बदलाव आया है। अब आपदा से पहले बचाव के तरीके, उससे निपटने की तैयारी और नुकसान कम करने संबंधी उपायों पर ध्यान दिया जाता है, साथ ही आपदा के बीत जाने के बाद राहत और पुनर्निर्माण के कामों पर। एक समग्र रणनीति का ही नतीजा है कि अब आपदा में एक पूरा तंत्र सक्रिय हो जाता है, जो न सिर्फ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को बाहर निकालता है, बल्कि उनके ठहरने और खाने-पीने का भी पूरा इंतजाम करता है। इसी कारण अम्फान तूफान गुजर जाने के तुरंत बाद ओडिशा में जनजीवन सामान्य होने लगा।
यह सही है कि कोरोना-संक्रमण के काल में अम्फान जैसे संकट से लोगों को बचाना कम जोखिम भरा नहीं है। प्रभावित क्षेत्रों से लाखों लोगों को बाहर निकालना और उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर एक साथ रखने से कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा है। जब पीने का पानी ही सीमित मात्रा में हो, तब यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि लोग बार-बार साबुन से हाथ धोएंगे। मगर, पिछले दो महीने के जागरूकता अभियान ने लोगों को इतना सजग तो बना ही दिया है कि वे स्वयं सावधानी बरतने लगे हैं। संभव है, उन्हें मास्क, सैनिटाइजर वगैरह भी उपलब्ध कराए गए हों। लिहाजा, उनकी हालत उन प्रवासी मजदूरों जैसी नहीं होगी, जो बिना किसी तूफान के ही मुश्किलों से लड़ रहे हैं।
बहरहाल, किसी आपदा के दौरान दो बातों का खास ध्यान रखा जाता है। पहली बात, जान की रक्षा करना, और दूसरी, सरकारी और निजी संपत्ति का कम से कम नुकसान। चक्रवाती तूफान में इस तरह के नुकसानों को रोकना इसलिए मुश्किल होता है, क्योंकि हवा की तेज गति, समुद्र की ऊंची लहरें और मूसलाधार बारिश आपस में मिलकर संकट को भयावह बना देती हैं। हालांकि, पूर्व सूचना के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कई कदम भी अब मददगार साबित होने लगे हैं। जैसे, वे अब आधुनिक जीपीएस का इस्तेमाल करने लगे हैं। वे हवा की गति, समुद्री लहरों की ऊंचाई और बारिश की तीव्रता का आकलन करके प्रभावित इलाकों की पहचान करने लगे हैं और वहां से लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लेते हैं। अपने यहां 2008 में ही चक्रवाती तूफान संबंधी दिशा-निर्देश तैयार कर लिए गए थे। उससे पहले 2006 से ही चक्रवाती तूफान और अन्य आपदाओं के मद्देनजर मॉक ड्रिल का काम सभी राज्यों में शुरू हो गया था। इससे भी राज्यों को काफी फायदा मिला है।
दिक्कत तब आती है, जब ऐसे दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज किया जाता है। पश्चिम बंगाल में साल 2009 के आइला तूफान में जब काफी नुकसान हुआ था, तब प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर मैं प्रभावित इलाकों में गया था। हमारी टीम का प्रस्ताव था कि पश्चिम बंगाल में भी ओडिशा या आंध्र प्रदेश की तरह तूफान राहत केंद्र बनाए जाएं। इन वर्षों में इस पर कितना काम हुआ है, यह तो मुझे पता नहीं, लेकिन वहां इसके लिए जगह का मिलना मुश्किल था, और फिर उसके डिजाइन को बदलने की जरूरत थी, क्योंकि वहां मिट्टी भुरभुरी थी। इससे लागत भी बढ़ रही थी।
हर आपदा से हमें सीखने का मौका मिलता है। अम्फान भी हमारे लिए ऐसा ही सबक लेकर आया है। इस तूफान का डॉक्यूमेंटेशन यानी दस्तावेजीकरण होना चाहिए। आमतौर पर हम यह तो ध्यान रखते हैं कि किस काम से हमें कितना फायदा मिला, मगर यह भूल जाते हैं कि किस काम को न करने से कितना ज्यादा नुकसान हुआ। इसके साथ-साथ यह आकलन भी किया जाना चाहिए कि किसी काम को गलत तरीके से करने से हमें नुकसान तो नहीं हुआ? हमें अपनी सफलता और विफलता, सब कुछ बतौर रिकॉर्ड दर्ज करना चाहिए और अगली आपदा से निपटने की रणनीति बनाने में उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
इसी तरह, एक अध्ययन यह भी होना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का इन तूफानों पर कितना असर हुआ है। बेशक पिछले कुछ वर्षों में चक्रवाती तूफान की बारंबारता बढ़ गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसकी वजह जलवायु परिवर्तन है। हां, जलवायु परिवर्तन से कम समय में तेज बारिश की आशंका जरूर बढ़ गई है, जिससे काफी नुकसान होता है। रही बात भौतिक संपत्तियों के नुकसान की, तो इसे लेकर जो दिशा-निर्देश हैं, उनमें कहा गया है कि उसी आपदा को मानक बनाकर निर्माण-कार्य होने चाहिए, जिससे सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान हुआ है। इससे अगली बार उस तीव्रता की आपदा उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती। परेशानी की बात यह है कि इस पर अमल नहीं हो रहा, जबकि इसमें तुलनात्मक रूप से बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं होता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

राजीव गांधी किसान न्याय योजना लोगों के जीवन में लाएगी बदलाव: श्रीमती सोनिया गांधी
छत्तीसगढ़ के किसानों के जीवन में खुशहाली का नया दौर शुरू: श्री भूपेश बघेल
राजीव गांधी किसान न्याय योजना की हुई शुरूआत
5750 करोड़ की राशि चार किश्तों में किसानों को मिलेगी: पहली किश्त 1500 करोड़ रूपए किसानों के खातों में ऑनलाईन अंतरित
वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए योजना का हुआ शुभारंभ

    रायपुर /शौर्यपथ / पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व.श्री राजीव गांधी के शहादत दिवस पर श्रीमती सोनिया गांधी और श्री राहुल गांधी की विशेष उपस्थिति में छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना - राजीव गांधी किसान न्याय योजना का शुभारंभ वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए हुआ। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने निवास कार्यालय में अपने मंत्रिमण्डल के सहयोगियों के साथ इस योजना के तहत किसानों को दी जाने वाली 5750 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि अंतरित की। इस कार्यक्रम में वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए वरिष्ठ नेता श्री मोतीलाल वोरा, सांसद श्री पी.एल. पुनिया, श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला सहित प्रदेश के जिलों से सांसद, विधायक और हितग्राही कृषक शामिल हुए।
शुभारंभ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा संासद श्री राहुल गांधी ने कहा कि कोरोना संकट की स्थिति को देखते हुए मैंने प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया था कि गरीबों को इस वक्त कर्ज की नहीं बल्कि नगद राशि की जरूरत है। इसका बढिय़ा रास्ता छत्तीसगढ़ सरकार ने निकाला है। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसने किसानों को मदद पहुंचाने के लिए उनके खाते में सीधे राशि दी है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ सरकार संकट के समय में, लोगों की मदद कैसे की जा सकती है, इसका देश को रास्ता दिखाया है। चाहे कोरोना संकट हो और कोई भी विपत्ति हम गरीबों का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा कि हमें गरीबों की मदद करने के लिये उनके साथ खड़ा होना पड़ेगा। हमें मामूल है कि राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इस हालत में भी छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों को राहत पहुंचाने हेतु लिया गया यह निर्णय, कोई छोटा काम नहीं है। उन्होंने कहा कि किसानों एवं गरीबों की मदद करने का निर्णय हमने सोच-समझकर लिया है। यह किसी व्यक्ति विशेष का निर्णय नहीं है। यह छत्तीसगढ़ की आवाज है। यह रास्ता छत्तीसगढ़ के लोगों ने ही हमें बताया है। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके मंत्रिमण्डल के सभी सहयागियों और छत्तीसगढ़ की जनता को बधाई और शुभकामनाएं दी।
इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा-राजीव जी की भावना के अनुरूप छत्तीसगढ़ सरकार ने गरीब आदिवासी किसानों की मदद के लिए बड़ा कदम उठाया है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से किसानों को सीधे उनके खाते में राशि देने की शुरूआत की गई है। इस योजना के दूसरे चरण में ग्रामीण भूमिहीन मजदूरों को शामिल करने का निर्णय अपने आप में अनोखा है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गरीब किसानों को मदद पहुंचाने की अनुकरणीय योजना है। इससे आदिवासियों, ग्रामीणों एवं गरीबों के जीवन में बदलाव आएगा, खुशहाली आएगी। ऐसी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू कर जन-जन तक लाभ पहुंचाना राजीव जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि राजीव जी का यह मानना था कि खेती विकास की पूंजी है। भारत के विकास के लिये किसानों एवं गरीबों को मदद पहुुंचाना जरूरी है। उन्होंने इस क्रांतिकारी योजना के लिये मुख्यमंत्री बघेल की सरकार के साथ ही प्रदेश के गरीबों, किसानों एवं मजदूरों को शुभकामनाएं दी।
मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना की मूलभावना हमारे लिये मार्गदर्शिका है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इसके माध्यम से हम किसानों एवं कमजोर वर्ग के लोगों को न सिर्फ सम्मान से जीने का अवसर उपलब्ध कराएंगे बल्कि गरीबी का कलंक मिटाने में भी सफल होंगे। राजीव गांधी किसान न्याय योजना से राज्य के किसानों के जीवन में खुशहाली का नया दौर शुरू होगा। उन्होंने कहा कि इस योजना से लाभान्वित होने वालों में 90 प्रतिशत लघु-सीमांत किसान अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं गरीब तबके के हैं। इस योजना की प्रथम किश्त की राशि 1500 करोड़ रूपये हम सीधे किसानों के खाते में अंतरित कर रहे हैं। योजना के तहत राज्य के 19 लाख किसानों को इस वर्ष 5750 करोड़ रूपये दिए जाएंगे। इसके अंतर्गत धान की खेती के लिये किसानों को प्रति एकड़ 10 हजार रूपये तथा गन्ना की खेती के लिये प्रति एकड़ 13000 रूपये आदान सहायता दी जाएगी। मुख्यमंत्री बघेल ने आगे कहा कि हमनें अब तक धान खरीदी, कर्जमाफी, फसल बीमा, सिंचाई कर की माफी और प्रोत्साहन राशि को मिलाकर किसानों को 40 हजार 700 करोड़ रूपये उनके खातों में सीधे अंतरित किए है।
उन्होंने कहा कि राज्य के किसानों के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है। आज हम पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी का पुण्य स्मरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी के आधुनिक भारत निर्माण के स्वप्न दृष्टा राजीव जी यह दृष्टिकोण था कि- 'भारत में गरीबी उन्मूलन तथा आत्मनिर्भर भारत' निर्माण के लक्ष्य की प्राप्ति किसानों की आर्थिक दशा में सुधार के बिना संभव नहीं है। श्री राहुल गांधी की न्याय की वृहद अवधारणा के क्रियान्वयन की दिशा में और उनक मार्गदर्शन में प्रथम कदम है '' राजीव गांधी किसान न्याय योजना'' । मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि सोनिया जी और राहुल जी के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ देश के प्रथम राज्यों में से है जो कि स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के पालन करने में दृढ़ संकल्पित है।

   दुर्ग / शौर्यपथ / श्रमिक सेवा केंद्र दुर्ग में आधुनिक भारत के निर्माता भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 30 वी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। पूर्व महापौर आर एन वर्मा ने कहा कि उनकी कम्प्यूटर क्रांति की वजह से आज पूरा देश डिजिटल युग में जी रहा है जिनको लाने का श्रेय राजीव गांधी को जाता है। उनकी आधुनिक सोच ने भारत को तेजी विश्व के अग्रिम देशों की पंक्ति में पहुँचा दिया। पूर्व साडा अध्यक्ष लक्ष्मण चंद्राकर ने कहा कि पंचायतीराज और नगरीय निकाय में संविधान संशोधन के द्वारा सत्ता का विकेंद्रीकरण कर लोकतंत्र को मजबूत बनाने के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति को जोड़ने के लिए उन्होंने 18 वर्ष के युवाओं को मताधिकार का अधिकार प्रदान कर भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा प्रदान की। आज भी हजारों मजदूर साथियों को श्रमिक सेवा केंद्र से भोजन पैकेट, पानी पाउच, चना, बुस्किट, चिप्स आदि केंद से बांटा गया। उन्हें श्रद्धांजलि देने वालो में प्रतिमा चंद्रकार, आरएन वर्मा,लक्ष्मण चंद्राकर, राजेश यादव, क्षितिज चंद्राकर, नीलेश चौबे, मुकेश चंद्राकर, विशाल देशमुख, अजय गोलू गुप्ता, अशोक बघेला, विनाय गुप्ता, महेश टावरी, अजय शर्मा, दीपक चावड़ा, विमल यादव, हनुमान यादव, आर मलिक, मेहंदी भाई, सदाबहार, निखिल खिचरिया, भूपेश वर्मा, राजा विकम्र बघेल, सन्नी साहू, विजय चंद्राकर, सिध्देश्वर जैन, सिद्धार्थ चंद्राकर, दीपक जैन, आनंद देव चंद्राकर, एम पी गोयल, नासिर खोखर आदि उपस्थित थे।

       रसोई / शौर्यपथ / क्या आपको पता है कि राजमा जितना चाव से भारत में खाया जाता है, इसे मेक्सिको में भी उतना ही पसंद किया जाता है। कहीं राजमा मसाला-वड़ा खाया जाता है, तो कहीं राजमा को सलाद के रूप में परोसा जाता है। आप बनाइए नाश्ते में राजमा कटलेट्स।

1- भारत में राजमा के शौकीन बहुत लोग हैं। पर क्या आपको इसके सेहत के गुण पता हैं? राजमा में जितनी कैलोरी होती है, वो हर आयु वर्ग के लोगों की सेहत के लिए सही होती है। आप इसे सलाद और सूप के रूप में भी ले सकते हैं। वहीं इसमें उच्च मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन क्रिया को सही बनाए रखने में मदद करते हैं। यह ब्लड शुगर के स्तर को भी नियंत्रित करने में मददगार होता है।

2-कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर राजमा को सब्जी के तौर पर बना ही सकते हैं, राजमा कटलेट जैसी रेसिपी भी आजमा सकते हैं। आपको चाहिएराजमा 1 कप, लाल मिर्च पाउडर 1 छोटा चम्मच, बारीक कटा हुआ लहसुन आधा चम्मच, हरा धनिया, बारीक कटी अदरक आधा चम्मच, 2 मध्यम साइज के टमाटर कटे हुए, दो प्याज बारीक कटे हुए, भूना जीरा पाउडर एक छोटा चम्मच और नमक स्वादानुसार।

3-राजमा कटलेट बनाने के लिए रात में भिगोया एक कप राजमा सुबह एक चुटकी नमक और आधा या पौन कप पानी संग उबाल कर ठंडा होने पर मिक्सी में दरदरा पीसें। एक बर्तन में दरदरा पीसा राजमा और बाकी सारी सामग्री डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए। हाथ में थोड़ा सा मिश्रण लेकर इसे हल्के हाथों से दबाकर चपटा कर कटलेट का आकार दें। अब एक पैन में तेल मध्यम आंच पर गर्म करें। तेल बस सेंकने के लिए चाहिए। गर्म तेल में एक-एक करके कटलेट डालें और मध्यम आंच पर फ्राई करें। सुनहरा सिक जाने पर चटनी संग परोसें।

 

      रसोई / शौर्यपथ / आप अगर ऐसे ब्रेकफास्ट ऑप्शन की तलाश में हैं, जो स्वाद के साथ सेहत से भरा भी हो, तो चिली सोया सबसे बेस्ट है।आइए, जानते हैं रेसिपी-

सामग्री :
सोयाबीन नगेट्स - 100 ग्राम
लहसुन पेस्ट- 1/2 चम्मच
तेल- 2 चम्मच
बारीक कटा हरा प्याज- 1 कप
कटी हुई हरी मिर्च- 2
सोया सॉस- 2 चम्मच
विनिगर- 2 चम्मच
नमक- स्वादानुसार

 

विधि :
सोयाबीन नगेट्स को आधे घंटे के लिए पानी में भिगोने के बाद पानी निचोड़ दें। एक बाउल में सोया नगेट्स, एक चम्मच नमक और लहसुन का पेस्ट डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। कढ़ाही में तेल गर्म करें और उसमें हरे प्याज को डालकर थोड़ी देर भूनें। हरी मिर्च डालें और कुछ सेकेंड पकाएं। अब कड़ाही में बचा हुआ नमक, सोया सॉस, विनिगर और सोयाबीन डालें, अच्छी तरह से मिलाएं। तेज आंच पर दो-चार मिनट पकाएं और सर्व करें।

 

       लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में लोग घर में ही हैं। ऐसे में घर पर रहते हुए जितनी हेल्दी चीजें कर ले उतना अच्छा है। घर में हैं तो अपने पुराने तांबे के बर्तन बाहर निकाल लें और उसका इस्तेमाल करें। पहले के समय में खाना पकाने से लेकर खाने तक के लिए तांबे के बर्तन ही देखने को मिलते थे और उसकी वजह से लोगों को बीमारियां भी कम होती थीं। इन बर्तनों में खाना पकाना भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है।  कि आयुर्वेद में कहा गया है कि कॉपर यानी तांबे के बर्तन का पानी पीना सेहत के लिए फायदेमंद है। इसके पानी के सेवन से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और कई बीमारियां आसानी से खत्म हो जाती हैं। तांबा जल्दी से तापमान में बदलाव पर प्रतिक्रिया देता है और खाना पकाने के लिए एक शानदार विकल्प हो सकता है। कोरोना वायरस के कारण क्वॉरेंटीन में हैं तो किचन में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद हो सकता है। तांबा इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और नई कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करने के लिए जाना जाता है।

किचन में तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल इसके कई गुणों के कारण फायदेमंद है। यह अपने एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुणों के लिए जाना जाता है। तांबा घावों को जल्दी से भरने के लिए एक शानदार जरिया है। तांबे के बर्तनों में पका खाना खाने से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे किडनी और लिवर स्वस्थ रहते हैं।
जर्नल ऑफ हेल्थ, पॉपुलेशन एंड न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि तांबा भोजन में वायरस और बैक्टीरिया के साथ प्रतिक्रिया कर सकता है और उन्हें मार सकता है। यानी किचन में कुछ तांबे के बर्तन एक जबर्दस्त रोगाणुरोधी के रूप में कार्य कर सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तांबे के बर्तन कितने पुराने या ऑक्सीकृत हैं, इन बर्तनों में भोजन रखने और खाना पकाने से भोजन रोगाणु मुक्त हो सकता है।

तांबे के बर्तनों में खाना पकाने से इनमें उपस्थित तांबा भी खाने के साथ मिलकर शरीर में जाता है और कई तरह से फायदा पहुंचाता है। कि तांबा मनुष्यों के लिए आवश्यक खनिजों में से एक है। तांबा शरीर में प्रोटीन के एक प्रकार कोलेजन बनाने में मदद करता है और आयरन को अवशोषित करता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन का काम आसानी से हो पाता है। तांबे के बर्तन में पका खाना खाने से जोड़ों का दर्द और सूजन की दिक्कत कम हो जाती है।

जब भी तांबे के बर्तन में खाना पका रहे हों, तो गैस जलाने से पहले बर्तन में हमेशा भोजन अवश्य रखें। पैन के तल को ढकने के लिए पर्याप्त भोजन और तरल होना चाहिए। जलने से बचाने के लिए हमेशा अपने भोजन को कम से मध्यम आंच में पकाएं। अपने हाथ से बर्तन धोने के लिए एक सौम्य साबुन का प्रयोग करें। तांबे के बर्तन में स्पंज या तौलिए का प्रयोग न करें। वैकल्पिक रूप से, तांबे के बर्तन को साफ करने के लिए बेकिंग सोडा और पानी का इस्तेमाल करके भी देख सकते हैं।

 

     शौर्यपथ / हालात को स्वीकारना और विपरीत परिस्थिति में भी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना हिम्मत की बात होती है। ऐसे ही लोग अपनी मंजिल पाने का हुनर रखते हैं। मुश्किल हालात में मजबूत फैसले लेने में ये टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं-

खुद से सवाल करें कि क्या चाहते हैं आप
हर किसी का काम करने, सोचने-समझने का तरीका अलग होता है। कुछ तुरंत कदम उठा लेते हैं, तो कुछ हर तरह से सोच-समझकर आगे बढ़ते हैं। किस हालात में हम कैसी प्रतिक्रिया देंगे, क्या कदम उठाएंगे, यह इस पर भी निर्भर है कि हम खुद से क्या चाहते हैं?

 

जल्दबाजी में न करें फैसला
धैर्य रखना आसान नहीं होता। जो रखते हैं, वे जानते हैं कि उसका उन्हें फायदा ही हुआ है। सब्र की वजह से कई मुश्किल सवाल खुद हल हो जाते हैं और कई बड़े काम बिगड़ने से बच जाते हैं। धैर्य, शांति से यह स्वीकारना है कि हमारे काम उन तरीकों से भी पूरे हो सकते हैं, जो सोचे नहीं थे।’

 

घबराहट में वो न बनें, जो आप नहीं हैं
कठिन हालात में भी अच्छे व्यवहार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। बेचैन होकर बिफरना, छोटी सी बात पर रिश्तों से मुंह मोड़ लेना या अपने जरा से फायदे के लिए दूसरों का बड़ा नुकसान कर देना बड़ा ही आसान होता है। मुश्किल है, तो उसे बचाए रखना, जो दरअसल आप हैं। कहा जाता है कि अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति वो सब पा लेता है, जो पाने की वह इच्छा रखता है।

 

         धर्म संसार / शौर्यपथ / शनिदेव का नाम आते ही अक्सर लोग सहम जाते हैं या फिर असहज हो जाते हैं। उनके प्रकोप से खौफ खाने लगते हैं। शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि न्यायधीश या कहें दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं।

शनि देव न्याय के देवता हैं, उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं। वह अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम देने वाले ग्रह हैं शनिदेव।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना कर उनको प्रसन्न किया जाता है। अगर कोई शनिदेव के कोप का शिकार है तो रूठे हुए शनिदेव को मनाया भी जा सकता है। शनि जयंती का दिन तो इस काम के लिये सबसे उचित माना गया है।

कब है शनि जयंती
इस बार शनि जयंती 22 मई 2020 शुक्रवार के दिन है। ज्येष्ठ मास में अमावस्या को धर्म कर्म, स्नान-दान आदि के लिहाज से यह बहुत ही शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। इस दिन को ही शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। शनि जयंती पर विशेष पूजा करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

क्यों खास है ज्येष्ठ अमावस्या
ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को न्यायप्रिय ग्रह शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिवस को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि दोष से बचने के लिये इस दिन शनिदोष निवारण के उपाय विद्वान ज्योतिषाचार्यों के करवा सकते हैं। इस कारण ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं शनि जयंती के साथ-साथ महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं। इसलिये उत्तर भारत में तो ज्येष्ठ अमावस्या विशेष रूप से सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी मानी जाती है।

क्यों नाराज रहते हैं शनि देव
शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में विस्तार से दिया गया है। उसके अनुसार सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र शनिदेव हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं।

इसलिए उन्होंने अपनी छाया (संवर्णा) को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।

 

          धर्म संसार / शौर्यपथ /कल वट सावित्री का व्रत है। इसको लेकर राजधानी पटना के बाजारों में गुरुवार को महिलाएं पूजन सामग्री खरीदतीं नजर आईं। हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्रि व्रत रखती हैं। जो स्त्री इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। अत: इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। इस दिन सुबह घर की सफाई कर स्नान करें। इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।

इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें। जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।

 


        जीना इस्सी का नाम /शौर्यपथ / अमेरिका के न्यू जर्सी प्रांत में एक छोटा-सा नगर है मेंदम बोरो। छोटा, मगर बहुत प्यारा। एक दशक पहले तक वहां महज पांच हजार लोग बसा करते थे। सुविधा, शांति और सुकून का आलम यह कि अमेरिकियों को यहां बसने वाले लोगों से रश्क होता है। इसी नगर में स्टीव और नैंसी डॉयने के घर नवंबर 1986 में एक बेटी पैदा हुई। नाम रखा गया मैगी। पिता स्टीव को तो जैसे उनके ईश्वर ने हजार नेमतों से नवाज दिया था। फूड स्टोर में मैनेजर की अपनी नौकरी उन्होंने इसलिए छोड़ दी, ताकि उनकी गुड़िया की परवरिश में कोई कमी न रहे, अलबत्ता मां रियल एस्टेट क्षेत्र में नौकरी करती रहीं।

घर का कोना-कोना स्नेह और अपनत्व से आबाद था। मैगी अपनी दोनों बहनों के साथ उम्र की सीढ़ियां चढ़ती गईं। साल 2005 का वाकया है। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, और आगे ग्रेजुएशन की शुरू होने वाली थी। अमेरिकी शिक्षा-व्यवस्था अपने बच्चों को इन दोनों के बीच ‘गैप-ईयर’ का एक अवसर देती है, ताकि वे इस अंतराल में देश-दुनिया को देखें-समझें या कोई और अनुभव बटोर सकें।

मैगी उस समय 19 साल की थीं। उन्होंने ‘लीपनाऊ’ संगठन के साथ यात्रा करने का फैसला किया। वह पहले ऑस्ट्रेलिया गईं, फिर फिजी होते हुए भारत पहुंचीं। उन्होंने अपनी योजना में एक सेमेस्टर को भारतीय अनाथालय के अनुभव से भी जोड़ रखा था। यहीं पर उनकी मुलाकात नेपाली बच्चों से हुई। वर्षों के गृह युद्ध के शिकार ये यतीम-गरीब बच्चे किसी के साथ भारत चले आए थे। इन बच्चों के दिल से मैगी के दिल का तार जुड़ गया। बच्चे इसरार करते- दीदी, हमारे देश चलो, हमारे गांव भी देखो न।

नेपाल में हालात कुछ सुधरा, तो एक युवती के साथ मैगी नेपाल निकल पड़ीं। वह हिमालय की गोद में बसा बहुत खूबसूरत गांव था। उसके पास से ही एक नदी बहती थी। कुदरत ने इस भूभाग पर अपना भरपूर प्यार लुटाया था, मगर उसे इंसानी फितरतों की नजर लग गई थी। शाही सेना और बागियों की भिड़ंत के जख्म गांव में जगह-जगह से रिस रहे थे। झुलसे हुए पूजा स्थल और मकानों पर जबरन कब्जा इसके उदाहरण थे। जिस लड़की के साथ मैगी उस गांव तक पहुंचीं, उसके घर को भी बागियों के शिविर में तब्दील कर दिया गया था।

मैगी ने पढ़ा था कि जब भी कहीं जंग छिड़ती है या अराजकता फैलती है, तो उसका कहर सबसे ज्यादा औरतों व बच्चों पर टूटता है। यह सब एक नंगे सच के रूप में उनके सामने था। गांव के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। कैसे जाते? गुरबत ने उनके मां-बाप को यह सोचने की मोहलत ही कहां दी थी? मैगी ने देखा था कि बच्चे शहर में हथौड़ा पकडे़ पत्थर तोड़ रहे थे।

यह सब देख उनका युवा मन आहत था। तभी एक रोज उनकी मुलाकात हेमा से हुई। महज सात साल की मासूम बच्ची का बचपन पत्थर तोड़ने और कचरा बटोरने में बीता जा रहा था। वह बहुत प्यारी बच्ची थी। मैगी जब भी उसको देखतीं, वह पूरी गर्मजोशी से नेपाली में बोलती- नमस्ते दीदी! मैगी कहती हैं- ‘मैं उसमें खो जाती थी। मेरी अंतरात्मा मुझसे कुछ कह रही थी। मैं जानती थी कि दुनिया में करोड़ों हेमाएं हैं। सोचती, मैं सबके लिए भले कुछ न कर सकूं, पर क्या इस एक की जिंदगी भी नहीं बदल सकती?’

मैगी हेमा को लेकर स्कूल गईं और उसकी फीस के तौर पर सात डॉलर जमा किए, उन्होंने हेमा के लिए स्कूल ड्रेस, किताबें और दूसरे जरूरी सामान भी खरीदे, ताकि वह बगैर किसी एहसास-ए-कमतरी के स्कूल में पढ़ सके। इस काम से मैगी को एक अजीब-सी खुशी मिली। फिर तो जैसे उन पर परोपकार का नशा सवार हो गया। सोचा, ‘अगर मैं एक बच्ची की मदद कर सकती हूं, तो पांच की क्यों नहीं?’ फिर तो यह आंकड़ा बढ़ता चला गया।

वह बेचैन हो उठीं। उन्हें अनाथ बच्चों की खातिर एक पनाहगाह, उनके भोजन, किताब-कॉपी, पोशाक आदि के लिए पैसे की दरकार थी। मैगी ने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान पार्टटाइम काम से बच्चों की देखभाल करके पांच हजार डॉलर जमा किए थे। उन्होंने अपने घर फोन करके माता-पिता से वह राशि मंगवाई। हजारों किलोमीटर दूर बैठे मां-बाप कुछ चिंतित तो हुए, मगर बेटी के जुनून को देखते हुए उन्हें मैगी का साथ देना ही मुनासिब लगा। इसके बाद तो मैगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उनकी जिंदगी को दिशा मिल चुकी थी। अपनी कोशिशों से मैगी ने हजारों डॉलर जुटाए और सुर्खेत घाटी में जमीन खरीदा। साल 2010 में उन्होंने कोपिला वैली स्कूल की नींव रखी। आज इस स्कूल में सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से कई तो अपने परिवार की पहली संतान हैं, जिनकी जिंदगी में शिक्षा का प्रकाश फूटा है। स्कूल के अलावा भी इससे जुड़ी कई अन्य संस्थाएं स्थानीय लोगों का भला कर रही हैं। मैगी की एक जैविक संतान है, मगर वह कई अनाथ बच्चों की कानूनी मां हैं। सीएनएन ने उन्हें साल 2015 में हीरो ऑफ द ईयर से नवाजा।
(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह)

 

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