August 03, 2025
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     दुर्ग / शौर्यपथ / वर्तमान में लॉक डाउन ३ का समय चल रहा है लॉक डाउन ३ में केंद्र ने राज्यों के प्रवासी मजदूरो के गृह नगर लौटने की अनुमति दे दी अनुमति मिलते ही लाखो की संख्या में मजदुर अपने गृह ग्राम लौट रहे है . ये मजदुर निजी साधनों ट्रको / बसों / टैक्सी आदि साधनों के द्वारा सड़क मार्ग से अपने गृह ग्राम जा रहे है . लॉक डाउन के तीसरे चरण में सरकार द्वारा नरमी बरती जा रही है ऐसे में इन श्रमिको के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के मंशा अनुरूप कोई भूखा ना रहे के सोंच को सार्थक करते हुए दुर्ग जिले में राष्ट्रिय राजमार्ग में कुम्हारी टोल प्लाजा एवं बाफना टोल प्लाजा में निशुल्क भोजन की व्यवस्था की गयी है जो सुबह ९ बजे से रात १० बजे तक अनवरत ज़ारी है . भोजन देते समय सोशल डिस्टेंस का ख़ास ध्यान रख कर राहगीरों को भोजन एवं पौष्टिक पेय दिया जा रहा है .
      लॉकडाउन में फंसे हजारों की संख्या में मजदूर वापस अपने मूल निवास स्थान लौट रहे है। इन मजदूरों को नेशनल हाइवे में बाफना टोल प्लाजा के पास जिला के कांग्रेस जनों के द्वारा निशुल्क भोजन और पेयजल की व्यवस्था की गई है। इंदर ढाबा के पास पंडाल लगाया गया है जहाँ से आज लगभग 1500 यात्रियों को निशुल्क भोजन के पैकेट प्रदान की गई। ट्रक, बस, ऑटो, मोटर सायकिल में मुंबई से अधिकतर मजदूर छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, बंगाल लौट रहे है। उन्हें भोजन का पैकेट और पानी पाउच दिया जा रहा है। आज देवकर, परपोड़ी, बेरला, खैरागढ़ जाने वाले पैदल यात्रियों के लिए गाड़ी की व्यवस्था कर उन्हें गन्तव्य स्थान की ओर भेजा गया। यात्रियों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंश का पालन करने की नसीहत भी दी गई। आज के व्यवस्था में सहयोग प्रदान करने वालो में प्रदीप चौबे, प्रतिमा चंद्रकार, लक्ष्मण चंद्रकार, राजेश यादव, आर एन वर्मा, निर्मल कोसरे, नीलेश चौबे, मुकेश चंद्रकार, अजय गोलू गुप्ता, अजय शर्मा, क्षितिज चंद्रकार, संदीप श्रीवास्तव, दीपक चावड़ा, अनिल जैन, निखिल खिचरिया, अशोक बघेला, विनय गुप्ता, विमल यादव, राजा विक्रम बघेल, सन्नी साहू, मालिक, गोपाल देवांगन, राजकुमार, दीपक जैन, चंद्र मोहन गभने, सिद्धार्थ कोटवानी, संजय यादव, गुरदीप सिंह भाटिया आदि उपस्थिति प्रदान कर यात्रियों सेवा कर रहे है।

  दुर्ग / शौर्यपथ / जब चारों ओर केवल कोरोना संक्रमण से बचाव व प्रभाव की ही चर्चा हो रही है ऐसे समय दुर्ग केलाबाड़ी निवासी बीएसपी के क्रेन ऑपरेटर बी बी उपाध्याय की बहन सिंचाई विभाग से रिटायर्ड क्लर्क श्रीमती चन्द्रकला शर्मा (63 वर्ष) ने समाज के प्रति सकात्मक सोच रखते हुए आज अपने देहदान की वसीयत नवदृष्टि फाउंडेशन के कुलवंत भाटिया,राज आढतिया ,हरमन दुलाई,प्रभुदयाल उजाला को सौंपी,चन्द्रकला की भाभी रानी उपाध्याय व भतीजी श्रुति उपाध्याय वसीयत के साक्षी बने श्रुति ने कहा उन्हें अपनी बुआ के निर्णय पर गर्व हो रहा है व इसे वह अपने साथियों के साथ शेयर कर उन्हें भी जागरूक करने का प्रयास करेंगी, कुलवंत भाटिया ने परिवार को देहदान व नेत्रदान की प्रक्रिया विस्तार से समझाई व जानकारी दी कि अभी देहदान व नेत्रदान की प्रक्रिया को कोरोना की वजह से स्थगित रखा गया है लेकिन जल्द ही इसे प्रारम्भ किया जायेगा, राज आढतिया ने उपध्याय परिवार के देहदान सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर दिए हरमन दुलाई व प्रभुदयाल उजाला ने चन्द्रकला शर्मा को प्रशस्ति पात्र दे उनके निर्णय के स्वागत किया।
् नव दृष्टि फाउंडेशन के अनिल बल्लेवार, कुलवंत भाटिया, राज आढ़तिया,मुकेश आढतिया,प्रवीण तिवारी,चेतन जैन,हरमन दुलई,प्रभु दयाल उजाला,प्रमोद बाघ,रितेश जैन,जितेंद्र हासवानी,गोपी रंजन दास,धर्मेंद्र शाह,पियूष मालवीय,मुकेश राठी,संतोष राजपुरोहि,दीपक बंसल ने चन्द्रकला शर्मा के निर्णय की सराहना की

   शौर्यपथ / सत्य वह नहीं है जो असत्य है। सत्य स्वयं में एक अनुभव है जो मन की कंदराओं से निकल कर आपको वास्तविकता से जोड़ता है। सत्य की संपूर्ण विलक्षण अनुभूति जिसे हुई है वह भी अभिव्यक्ति के स्तर पर स्वयं को अकिंचन ही समझता है कि किन शब्दों में उसे बताया या समझाया जाए। > संवेदना के धरातल पर सत्य निर्मल है, निर्विकार है। सत्य से साक्षात्कार करने के लिए स्वयं का शब्द, वाक्य, अलंकार और अभिव्यंजना से सराबोर होना जरूरी नहीं है बल्कि जरूरी है सहजता से उसे मन के भीतर ही कहीं पा लेना। युवा पत्रकार प्रवीण तिवारी ने अपनी नवीनतम पुस्तक 'सत्य की खोज' में अत्यंत सरल, स्पष्ट, सटीक और संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली रूप में इस विषय की कुशल पड़ताल की है।
प्रवीण तिवारी पेशे से पत्रकार हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों में उन्होंने अपनी एक नई पहचान स्थापित की है और वह है आध्यात्मिकता के स्तर पर पहुंचा पैनी पैठ का एक युवा चिंतक। इस छवि के अनुरूप ही उनकी इस पुस्तक ने साहित्य संसार में वैचारिक दस्तक दी है। प्रवीण ने -सत्य क्या है, सत्य की खोज की आवश्यकता, अभ्यास, बाधाएं, अस्त्र, खोज और गीता, सत्य की कुंजी, सत्य के साथ अनुभव और अंत में सत्य की प्राप्ति जैसे सरलतम बिंदुओं के माध्यम से पड़ाव दर पड़ाव अपनी अभिव्यक्ति को विस्तार दिया है। लेखक ने सत्य की खोज के बहाने समाज में एक सरल व्यक्तित्व के निर्माण, रक्षण और निरंतर उसके विकास और उससे भी आगे निखार पर जोर दिया है। मन की मलीनता से लेकर व्यवहार के स्तर पर व्यक्त होने वाली जटिलताओं को लेखक ने सूक्ष्मता से परखा और महसूस किया है। व्यवहारगत कमियों और खामियों को भी इस खूबी से वर्णि‍त किया है कि वह हम अपने आप में पाते हैं पर उसके प्रति नकारात्मक भाव नहीं लाते हुए उससे मुक्ति पाने का मार्ग तलाशते हैं। लेखक ने क्लैप-बाय-क्लैप अपने पन्नों को पलटने के लिए बाध्य किया है। हर पूर्व चैप्टर में वह अगले के लिए जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण की उन जिज्ञासाओं की संतुष्टि भी पाठक को अगले पन्ने पर मिलती है। अगर लेखक प्रश्न उठाता है तो हर संभावित उत्तरों की सूची भी उसकी मंजूषा में है।
लेखक की सोच जितनी स्पष्ट है लेखन भी उतना ही सरल है। 'सत्य की खोज' जैसे विषय पर लिखी यह पुस्तक किसी साधारण से पाठक को असाधारण रूप से चैतन्य करने की क्षमता रखती है। जीवन के प्रति नितांत नया और तेजस्वी दृष्टिकोण देती यह पुस्तक हर उस पाठक को पढ़नी चाहिए जो व्यर्थ के आडंबरों में उलझा है। वैचारिक मंथन के स्थान पर जो वैचारिक प्रलाप को प्राथमिकता देता है।
पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि इसमें उपदेश नहीं है, उदाहरण है। कथनी नहीं है, करनी है। प्रपंच नहीं है, प्रयास है। भव्य अलंकरण नहीं है, सरल आचरण है। एक जगह लेखक लिखता है - सत्य की खोज में निकलने वालों की सबसे बड़ी बाधा असत्य से प्रियता है। इस प्रियता से मुक्ति ही संपूर्ण पुस्तक का मूल है। भावों की मधुरता और भाषा की प्रवाहमयता से पूरी पुस्तक एक सांस में पढ़ जाने की ताकत रखती है। यकीनन सरलता से गंभीर चिंतन करती यह पुस्तक आकर्षित करती है। लेखक : प्रवीण तिवारी 

शौर्यपथ लेख 

१. जीवन का सत्य- हम जन्म क्यों लेते हैं ? – प्रस्तावना
प्रायः हमसे यह प्रश्‍न पूछा जाता है, ‘जीवन का सत्य क्या है ?’ अथवा ‘जीवन का उद्देश्य क्या है ?’ अथवा ‘हम जन्म क्यों लेते हैं ?’ जीवन के उद्देश्य के संदर्भ में अधिकतर हमारी अपनी योजना होती है; किंतु आध्यात्मिक दृष्टि से सामान्यतः जन्म के दो कारण हैं । ये दो कारण हमारे जीवन के उद्देश्य को मूलरूप से परिभाषित करते हैं । ये दो कारण हैं :

विभिन्न लोगों के साथ अपना लेन-देन पूरा करने के (चुकाने के) लिए ।
आध्यात्मिक प्रगति कर ईश्‍वर से एकरूप होने का अंतिम ध्येय साध्य करने के लिए, जिससे कि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिले ।
२. जीवन का सत्य – अपना लेन-देन चुकाना (पूर्ण करना)
अनेक जन्मों में हुए हमारे कर्म एवं क्रियाआें के परिणामस्वरूप हमारे खाते में भारी मात्रा में लेन-देन इकट्ठा होता है । ये लेन-देन हमारे कर्मों के स्वरूप के अनुसार अच्छे अथवा बुरे होते हैं । सर्वसाधारण नियमानुसार वर्तमान युग में हमारा ६५% जीवन प्रारब्धानुसार (जो कि हमारे नियंत्रण में नहीं है) और ३५% जीवन हमारे क्रियमाण कर्म अनुसार (इच्छानुसार नियंत्रित) होता है । हमारे जीवन की सर्व महत्वपूर्ण घटनाएं अधिकतर प्राब्धानुसार ही होती हैं, यही जीवन का सत्य है । इन घटनाआें में जन्म, परिवार (कुल), विवाह, संतान, गंभीर व्याधियां तथा मृत्यु का समय आदि अंतर्भूत हैं । जो सुख और दुःख हम अपने परिजनों को तथा परिचितों को देते हैं अथवा उनसे पाते हैं; वे हमारे पिछले लेन-देन के कारण होता है । ये लेन-देन निर्धारित करते हैं कि जीवन में हमारे सम्बंधों का स्वरूप, तथा उनका आरंभ और अंत कैसे होगा ।
वर्तमान जन्म में हमारा जो प्रारब्ध है, वह वास्तव में हमारे संचित का मात्र एक अंश है; जो अनेक जन्मों से हमारे खाते में जमा हुआ है ।

हमारे जीवन में यद्यपि पूर्व निर्धारित इस लेन-देन और प्रारब्ध को हम पूरा करते भी हैं; तथापि जीवन के अंत में अपने क्रियमाण (ऐच्छिक) कर्मों द्वारा उसे बढाते भी हैं । जीवन के अंत में यह हमारे समस्त लेन-देन में संचित के रूप में जोडा जाता है । परिणामस्वरूप इस नए लेन-देन को चुकाने के लिए हमें पुनः जन्म लेना पडता है और हम जन्म-मृत्यु के चक्र में फंस जाते हैं ।
संदर्भ : जन्म-मृत्यु के चक्र में हम कैसे फंस जाते हैं, इसका विवरण ‘जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष)’ इस लेखमें प्रस्तुत है ।

३. जीवन का सत्य- आध्यात्मिक प्रगति
किसी भी साधना पथ पर आध्यात्मिक विकास का चरम है परमेश्‍वर में विलीन होना । इसका अर्थ है, हममें तथा हमारे सर्व ओर विद्यमान ईश्‍वर को अनुभव करना, जो हमारी पंचज्ञानेंद्रियों, मन तथा बुद्धि के परे है । यह १००% आध्यात्मिक स्तर पर संभव होता है । वर्तमान युग में अधिकतर लोगों का आध्यात्मिक स्तर २०-२५% है और उन्हें आध्यात्मिक विकास हेतु साधना करने में कोई रूचि नहीं रहती । उनका अधिकाधिक तादात्म्य अपनी पंच ज्ञानेंद्रियों, मन और बुद्धि से रहता है । इसका प्रभाव हमारे जीवन में व्यक्त होता है, उदाहरणार्थ, जब हम अपने सौंदर्य पर अधिक ध्यान देते हैं अथवा हमें अपनी बुद्धि अथवा सफलता का अहंकार होता है ।
साधना द्वारा हमारा जब समष्टि आध्यात्मिक स्तर ६०% अथवा व्यष्टि आध्यात्मिक स्तर ७०% हो जाता है, तब हम जन्म-मृत्यु के चक्रसे मुक्त हो जाते हैं । इसके उपरांत हम अपने शेष लेन-देन को महर्लोक और आगे के उच्च सूक्ष्म लोकों में चुका सकते हैं (पूर्ण कर सकते हैं) । ६०% (समष्टि) अथवा ७०% (व्यष्टि) आध्यात्मिक स्तर के आगे पहुंचे कुछ जीव मानवता का आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने में रूचि रखते हैं ।
अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने पर ही आध्यात्मिक विकास संभव है । जो आध्यात्मिक मार्ग इन छः मूलभूत सिद्धांतों का अवलंब नहीं करते, उनके अनुसार साधना करने वालों का विकास बाधित हो जाता है ।
४. हमारे जीवन के लक्ष्यों के संदर्भ में जीवन का सत्य क्या है ?
हममें से अधिकतर लोगों के जीवन के कुछ लक्ष्य होते हैं, उदाहरणार्थ डॉक्टर बनना, धनवान बनना और प्रतिष्ठा कमाना अथवा किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करना । लक्ष्य जो भी हो, अधिकांश लोगों के लिए वह प्राय: एवं प्रमुखत: सांसारिक ही होता है । हमारी संपूर्ण शिक्षा प्रणाली इस प्रकार से विकसित की गई है कि हम इन सांसारिक लक्ष्यों का अनुसरण कर सकें । अभिभावक होने के नाते हम भी अपने बच्चों के सामने ये सांसारिक लक्ष्य रखकर उन्हें शिक्षित करते हैं, तथा ऐसे व्यवसायों के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिनसे उन्हें हमसे अधिक आर्थिक लाभ मिले ।
किसी के मन में यह प्रश्‍न उभर सकता है कि इन सांसारिक लक्ष्यों का, जीवन के आध्यात्मिक ध्येय एवं पृथ्वी पर जन्म लेने के कारणों के साथ सामंजस्य कैसे हो सकता है ? उत्तर बहुत ही सरल है । हम सांसारिक लक्ष्यों के पीछे इसलिए भागते रहते हैं कि हमें संतोष एवं आनंद (सुख) प्राप्त हो । सामन्यतः अप्राप्य ऐसे सर्वोच्च और चिरंतन सुख की अभिलाषा ही हमारे प्रत्येक कृत्य की अंगभूत प्रेरणा होती है । किंतु वास्तव में सांसारिक लक्ष्यों की पूर्ति होने पर भी प्राप्त सुख और संतोष अल्पकाल के लिए ही टिकता है । हम कोई अन्य सुख पाने का स्वप्न देखने लगते हैं ।
‘परम और चिरस्थायी सुख’ की प्राप्ति केवल साधना द्वारा ही संभव है, जो छः मूल सिद्धांतों पर आधारित है । सर्वोच्च श्रेणी के सुखको आनंद कहते हैं, जो ईश्‍वर का गुणधर्म है । जब हम ईश्‍वर से एकरूप हो जाते हैं तब हमें भी उस चिरस्थायी आनंद की अनुभूति होती है । इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने दैनिक जीवन में जो कुछ कर रहे हैं, वह छोडकर केवल साधना पर ही ध्यान केंद्रित करें । अपितु इसका आशय यह है कि सांसारिक जीवन के साथ साधना के संयोजन से परम और चिरस्थायी सुख की प्राप्ति संभव है। यही जीवन का सत्य है। साधना के लाभ का विस्तृत विवेचन ‘चिरस्थायी सुख के लिए आध्यात्मिक शोध‘ के स्तंभ में दिया है ।
संक्षेप में हमारे जीवन के लक्ष्य, आध्यात्मिक प्रगति के आशय से जितने अनुरूप होंगे, उतना ही हमारा जीवन अधिक समृद्ध होगा और उतना ही हमें कष्ट अल्प होगा। यही जीवन का सत्य है। निम्नलिखित उदाहरण से यह स्पष्ट होगा कि आध्यात्मिक विकास एवं परिपक्वता के फलस्वरूप, जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसे परिवर्तित होता है ।
५. सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक उद्देश्य के बीच सामंजस्य के उदाहरण
एस.एस.आर.एफ. में हमारे साथ ऐसे कई स्वयंसेवक हैं, जो यथाक्षमता अपना समय तथा कुशलता ईश्‍वर की सेवा में अर्पित कर रहे हैं । उदाहरणार्थ,

हमारे एक सदस्य सूचना प्रौद्योगिकी (आइ.टी) के परामर्शदाता हैं और वे अपने अवकाश में हमारे जालस्थल के तकनीकी कार्य संभालते हैं ।
संपादकीय विभाग की एक सदस्या मनोरोग-चिकित्सक हैं और वे अपलोड की जानेवाली जानकारी चिकित्सकीय तथा आध्यात्मिक दृष्टि से जांचने में सहायता करती हैं ।
एस.एस.आर.एफ. की एक अन्य सदस्या अपने व्यवसाय के लिए विविध देशों में यात्रा करती हैं । वे अपने अवकाश में उस देश के समविचारी संगठनों को एस.एस.आर.एफ. के जालस्थल की जानकारी देती हैं ।
एक गृहिणी आध्यात्मिक कार्यक्रमों में आनेवालों के लिए खाद्यपदार्थ बनाने में सहायता करती हैं ।
अपनी दिनचर्या का अध्यात्मीकरण करने से एस.एस.आर.एफ. के सदस्यों के जीवन में भारी सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं । आनंद में वृद्धि होना और दुःख की मात्रा अल्प होना, ये महत्वपूर्ण परिवर्तन हैं । जीवन के किसी दुःखभरे प्रसंग में अथवा दर्दनाक स्थिति में वे अनुभव करते हैं, मानो किसी ने उनके आस-पास सुरक्षा कवच बना दिया है ।

६. जीवन का सत्य – बार-बार जन्म लेने में अनुचित क्या है ?
कभी-कभी लोग सोचते हैं कि बार-बार जन्म लेने में अनुचित क्या है ? जैसे ही हम वर्तमान कलियुग में (संघर्ष के युग में) आगे बढेंगे, वैसे जीवन समस्याआें तथा दुःखों से घिर जाएगा । आध्यात्मिक शोध द्वारा यह पता चला है कि विश्‍वभर में औसतन ३०% समय मनुष्य खुश रहता है तथा ४०% समय वह दुखी ही रहता है । शेष ३०% समय मनुष्य उदासीन रहता है । इस दशा में उसे सुख-दुख का अनुभव नहीं होता । उदा. जब कोई व्यक्ति रास्ते पर चल रहा होता है अथवा कोई व्यावहारिक कार्य कर रहा होता है तब उसके मन में सुखदायक अथवा दुखदायक विचार नहीं होते, वह केवल कार्य करता है ।

इसका प्राथमिक कारण है कि अधिकतर व्यक्तियों का आध्यात्मिक स्तर अल्प होता है । इसीलिए अनेकों बार हमारे निर्णय एवं आचरण से अन्यों को कष्ट होता है । साथ ही, वातावरण में रज-तम फैलाता है । फलस्वरूप नकारात्मक कर्म और लेन-देन का हिसाब बढता है । इसीलिए अधिकतर मनुष्यों के लिए वर्तमान जन्म की अपेक्षा आगे के जन्म दुखदायी होते हैं ।

यद्यपि विश्‍व ने आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की है, तथापि सुख (जो हमारे जीवन का मुख्य ध्येय है) के संदर्भ में, हम पिछली पीढियों की अपेक्षा निर्धन हैं ।यही जीवन का सत्य है ।

हम सब सुख चाहते हैं; परंतु प्रत्येक का अनुभव है कि जीवन में दुख आते ही हैं । ऐसे में अगले जन्म में और भविष्य के जीवन में सर्वोच्च तथा चिरंतन सुख प्राप्त होने की निश्‍चिति नहीं है । जीवन का सत्य है, केवल आध्यात्मिक उन्नति और ईश्‍वर से एकरूपता ही हमें निरंतर और स्थायी सुख दे सकते हैं।

रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल और निर्देशन पर राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन के कारण अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के श्रमिकों, छात्रों, संकटापन्न और चिकित्सा की आवश्यकता वाले व्यक्तियों की छत्तीसगढ़ वापसी के लिए 21 स्पेशल ट्रेनों का इंतजाम किया गया है। इन स्पेशल ट्रेनों में श्रमिकों की राज्य वापसी का सिलसिला बीते 11 मई से शुरू भी हो गया है।
प्रदेश के श्रम मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के प्रवासी श्रमिक जो अन्य राज्यों में लॉकडाउन के कारण फंसे हुए हैं, उन्हें 21 ट्रेनों के माध्यम से छत्तीसगढ़ वापस लाने का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशन पर श्रम विभाग के अधीन गठित छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मण्डल द्वारा अभी तक नोडल अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 9 ट्रेनों में आने वाले 11 हजार 946 श्रमिकों के लिए छह रेल्वे मण्डलों को कुल 71 लाख 93 हजार 230 रूपए का भुगतान भी किया जा चुका है।
डॉ. डहरिया ने बताया कि इन 21 स्पेशल ट्रेनों में अहमदाबाद से बिलासपुर के लिए दो ट्रेन, विजयावाड़ा आन्ध्रप्रदेश से बिलासपुर एक ट्रेन, अमृतसर पंजाब से चांपा एक ट्रेन, विरामगम अहमदाबाद से बिलासपुर चांपा एक ट्रेन, लखनऊ उत्तरप्रदेश से रायपुर के लिए तीन ट्रेन, लखनऊ से भाटापारा के लिए दो ट्रेन, मुजफ्फरपुर बिहार से रायपुर एक ट्रेन, दिल्ली से बिलासपुर के लिए एक ट्रेन, मेहसाना गुजरात से बिलासपुर चांपा एक ट्रेन, लिंगमपल्ली हैदराबाद तेलंगाना से दुर्ग, राजनांदगांव होते बिलासपुर एक ट्रेन, हैदराबाद तेलंगाना से दुर्ग रायपुर होते हुए बिलासपुर एक ट्रेन, दिल्ली से बिलासपुर-रायपुर एक ट्रेन, खेड़ा नाडियाड गुजरात से बिलासपुर-चांपा एक ट्रेन, साबरमती अहमदाबाद से बिलासपुर-चांपा एक ट्रेन, कानपुर उत्तरप्रदेश से बिलासपुर, भांटापारा, रायपुर, दुर्ग एक ट्रेन और इलाहाबाद उत्तरप्रदेश से बिलासपुर,भाटापारा, रायपुर, दुर्ग दो ट्रेन शामिल है।
डॉ. डहरिया ने बताया कि गुजरात-अहमदाबाद से बिलासपुर ट्रेन में 1208 श्रमिक छत्तीसगढ़ वापस लौटे हैं। इसी तरह साबरमती से बिलासपुर ट्रेन में 1212 श्रमिक, विरामगम-रायपुर ट्रेन से 1210 श्रमिक, मेहसाना-बिलासपुर ट्रेन से 1200 श्रमिक, दिल्ली से रायपुर ट्रेन में 1400 श्रमिक, लखनऊ से भाटापारा रायपुर ट्रेन में 1584 श्रमिक, खेड़ा नाडियाड से चांपा ट्रेन में 1710 श्रमिक, साबरमती से चांपा ट्रेन में 1222 तथा अमृतसर पंजाब से चांपा स्पेशल ट्रेन में 1200 श्रमिक लौटेंगे।
राज्य सरकार ने इन ट्रेनों में सफर के लिए ऑनलाइन लिंक भी जारी किया है -
http:cglabour.nic.in/covid19MigrantRegistrationService.aspx

इस लिंक में एप्लाई कर लोग इन ट्रेनों के माध्यम से छत्तीसगढ़ वापस आ सकेंगे। इसके अलावा 24 घंटे संचालित हेल्पलाइन नम्बर 0771-2443809, 91098-49992, 75878-21800, 75878-22800, 96858-50444, 91092-83986 तथा 88277-73986 पर संपर्क किया जा सकता है।

धमतरी /शौर्यपथ
बिहान योजना जहां महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायक सिद्ध हो रहा, वहीं उनकी आय का जरिया बन आत्म विश्वास बढ़ाने में भी कारगार हो रहा है। जिले में 8372 समूह में 92 हजार 878 महिलाएं जुड़ ना केवल कपड़ा सिलाई, सब्जी उत्पादन, रेडी-टू-ईट बना रहीं, बल्कि जैविक खाद का निर्माण कर स्थानीय स्तर पर ही बेच रही हैं।
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लाॅकडाउन अवधि के दौरान भी यह महिलाओं का समूह जैविक खाद तैयार कर बेच रहा है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्रीमती नम्रता गांधी बताती हैं कि नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के जरिए कृषि क्षेत्र में 71 बिहान समूह की महिलाओं को रोजगार के बेहतर अवसर मिले हैं। गांव में जहां गौठान बनाए गए हैं, वहां चारागाह भी विकसित किए गए हैं। गौठान में बने नाडेप टांके से महिलाओं द्वारा जैविक खाद का उत्पादन किया जा रहा है। गौरतलब है कि अब तक समूहों द्वारा 73 मीट्रिक टन जैविक खाद तैयार कर 43 मीट्रिक टन खाद 10 रूपए 23 पैसे प्रति किलो की दर पर किसानों के अलावा उद्यानिकी और वन विभाग को बेचा जा रहा है। अब तक समूहों को कुल चार लाख 48 हजार 820 रूपए की आमदनी हुई है। इसी तरह धमतरी जनपद पंचायत के ग्राम मुजगहन की जय मां विंध्यवासिनी महिला स्व सहायता समूह की सदस्यों द्वारा 35 क्विंटल जैविक खाद तैयार कर अब तक 30 क्विंटल बेचा गया है। इससे उन्हें दो लाख 40 हजार रूपए की आमदनी हुई है। मनरेगा के तहत जाॅबकार्डधारी इन महिलाओं को लाॅकडाउन की अवधि में जैविक खाद बेच परिवार का भरण-पोषण के लिए आय तो मिला, साथ ही कृषि कार्य के लिए जैविक खाद मिलना किसानों के लिए भी काफी सहयोगी रही।

पशुधन विकास विभाग से बटेर के चूजे लेकर व्यवसाय किया प्रारंभ

    सुकमा / शौर्यपथ /  स्वाद के शौकीनों में अब बटेर की मांग बढ़ने लगी है। बाजार में बटेर की मांग को देखते हुए सुकमा जिले में इसके व्यावसायिक पालन को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। पशुधन विकास विभाग द्वारा बटेरपालन के लिए स्वसहायता समूह की महिलाओं को प्रोत्साहित करने के साथ ही आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि वे आसानी से बटेर का व्यावसायिक पालन कर सकें।

          पशुधन विकास विभाग के उप संचालक शेख जहीरुद्दीन ने बताया कि बटेर पालन योजना से जहां स्वाद के शौकीनों के लिए आसानी से बटेर उपलब्ध होगा, वहीं स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि होगी। विभाग द्वारा इस योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली स्वसहायता समूह की महिलाओं को बटेर सहित आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराया गया है। उन्होंने बताया कि सौतनार की तुलसी डोंगरी स्वसहायता समूह, संतोषी मां स्वसहायता समूह, मां दुर्गा स्वसहायता समूह, लक्ष्मी स्वसहायता समूह, नर्मदा स्वसहायता समूह और सूरज स्वसहायता समूह की महिलाएं बटेरपालन प्रारंभ कर चुकी हैं। इसके लिए सभी स्वसहायता समूहों को 80-80 नग बटेर के चुजे और 16-16 किलो दाना उपलब्ध कराया गया। इन महिलाओं को बटेरपालन और रखरखाव का प्रशिक्षण दिया गया है

          पिछले कुछ वर्षो में अंडे और मांस का कारोबार तेजी से बड़ा है जिसके लिए ब्रायलर फार्मिंग करते हैं ,जिसमें मुनाफा भी मिलता है लेकिन बीमारीयों का डर भी बना रहता है। ऐसे में बटेर पालन कर कम खर्च में ही ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता हैं।

          समूह बटेर पालन कर अपनी आय बढ़ा सकेंगे। इनके आहार में भी ज्यादा खर्च नहीं आता है। ये  घर में बने कनकी, मक्का आदि को भोजन के रुप में ग्रहण करते हैं। एक बंद पिंजरे में ही इसका पालन पोषण किया जाता हैं। इनके मांस की मांग भी बहुत ज्यादा है। उपसंचालक ने बजाया कि एक बटेर 7 सप्ताह में ही अंडे देना शुरु कर देती है इनका जीवनकाल 2 साल का होता है। ये अपने जीवनकाल में 400 से 500 अण्डे देती है ।

         बटेर में बीमारी का खतरा भी कम पाया जाता है ये जल्दी बीमार भी नहीं होते और न ही इन्हें वेक्सीनेशन की जरूरत पड़ती है इसका मांस मुर्गे की अपेक्षा ज्यादा महंगा बिकता है। इनको खिलाने पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता है इनका पालन कम स्थान में ही किया जा सकता है जिससे इसे कम लागत में ही शुरू किया जा सकता है।

साकार होगा उत्पादन को बढ़ाने का सपना: आधुनिक कृषि से आय बढ़ाने का बुलंद हुआ हौसला

     कोण्डागांव / शौर्यपथ / सपने कई लोग देखा करते हैं पर उन्हें साकार करने का दम कुछ ही रखते हैं, ऐसे ही स्वप्नशील जनजातीय समुदाय के प्रयत्नशील कृषकों को राज्य सरकार की अनुसूचित जन जाति ट्रेक्टर ट्राली योजना द्वारा उनके सपनों को पंख लगाने का प्रयत्न किया जा रहा है। ज्ञात हो कि रघुराम नाग, पिता रामसाय नाग विकासखण्ड बडे़राजपुर के एक छोटे से गांव ढोन्ढरा का एक कृषक है जो की अपनी पुश्तैनी बारह एकड़ भूमि पर वर्षों से कृषि कार्य में कार्यरत है। उंसके द्वारा आधुनिक कृषि पर रुचि देख कर जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति के कार्यपालन अधिकारी बाबू भाई श्रीवास ने इस संबंध में जानकारी प्रदान की। इसके पश्चात उसने कलेक्टोरेट में स्थित जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति कार्यालय में संपर्क कर अनुसूचित जनजाति ट्रेक्टर ट्राली योजना के तहत ऋण से ट्रेक्टर प्राप्त करने की योजना का लाभ लेकर कृषि कार्य को और बेहतर बनाने की इच्छा व्यक्त की। इसके लिए उन्होंने जिला अत्यावसायी सहकारी समिति के कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया, प्राप्त आवेदनों का स्क्रूटनिंग कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति के द्वारा किया गया। जिसमें रघुराम नाग को इस योजना के हितग्राही के रूप में चयनित हुआ। जिस पर आज जिले के विधायक मोहन मरकाम एवं कलेक्टर नीलकण्ठ टीकाम ने रघुराम को ट्रेक्टर की चाबी उसके बेहतर भविष्य की कामना करते हुए प्रदान किया गया।
    उल्लेखनीय है कि राज्य शासन ने जनजातीय उन्नतशील किसानो को सहायता के लिए बाजार दरों से कम दरों पर जिले के किसी जनजातीय कृषक को अनुसूचित जनजाति ट्रेक्टर ट्राली योजना के तहत लाभ प्रदान किया जाता है।
इस संबंध में कृषक रघुराम ने बताया कि वह ट्रेक्टर प्राप्त कर बहुत खुश है और उसने शासन एवं जिला प्रशासन के सहयोग के लिए धन्यवाद भी दिया और कहा कि वह योजना के तहत ट्रेक्टर मिलने से अपने सभी खेती-किसानी का कार्य समय कर सकेगा और खेती के बाद बचे समय में वे इसका उपयोग परिवहन के रूप में भी करेगा। जिससे उसकी आय में वृद्धि के साथ खाली वक्त में आजीविका भी प्राप्त होगी। रघुराम अपने खेतों में खरीफ के मौसम में धान की कृषि करते हैं एवं अन्य मौसमों में मौसमी फल सब्जी और दालों का उत्पादन करते हैं। इस मौके पर विधायक एवं कलेक्टर ने रघुराम को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जिले के अन्य जनजातीय कृषकों को भी आगे आकर अपने सपनों को पूरा करने के लिए शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने की जरुरत है इसके लिए शासन-प्रशासन हर संभव मदद करेगा।

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