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० ऑन लाइन प्लेटफार्म पर अब तक 70 हजार रुपये से अधिक की बिक्री
० महिला समूहों द्वारा अब तक 1.5 करोड़ रुपये के खाद की ब्रिकी
राजनांदगांव / शौर्यपथ / प्रदेश के राजनांदगांव जिले में स्व सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा निर्मित वर्मी कंपोस्ट की बिक्री स्थानीय स्तर पर किये जान के साथ-साथ अब ऑन-लाइन प्लेटफार्म अमेजन के माध्यम से भी की जा रही है। इससे अब इन स्वसहायता समूह की महिलाओं को देशभर से आर्डर मिलने लगे हैं। अमेजन के माध्यम से अब तक 70 हजार रुपए से अधिक के वर्मी कंपोस्ट की बिक्री की जा चुकी है। इससे पहले स्वसहायता समूहों द्वारा हस्तनिर्मित राखियां भी अमेजन पर बिक्री के लिए उतारी जा चुकी हैं।
राजनांदगांव जिले के गांव-गांव में बनाए गए गोठानों के माध्यम से स्वसहायता समूहों द्वारा आजीविका संबंधी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। पिछले हरेली तिहार से शुरू की गई गोधन न्याय योजना के तहत किसानों और पशुपालकों से 2 रूपए किलो की दर से खरीदे जा रहे गोबर से गोठानों में वर्मी कंपोस्ट का निर्माण इन समूहों द्वारा किया जा रहा है। जिले में 358 गोठनों में तैयार किये जा रहे वर्मी कंपोस्ट की बिक्री शासकीय विभागों तथा आम किसानों को की जाती रही है, लेकिन अब इन स्वसहायता समूहों की महिलाओं ने अमेजन के माध्यम से अपने लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी बाजार तलाश लिया है। इस ऑनलाइन माध्यम से उत्पाद की बिक्री के लिए उन्हें जिला प्रशासन द्वारा मदद की जा रही है। अब तक मुंबई, बैंगलुरू, मध्यप्रदेश, रांची, कोलकाता सहित अनेक महानगरों से आर्डर मिल चुके हैं। गोधन न्याय योजना के तहत जिले में अब तक 76 हजार मि्ंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जा चुका है तथा 52 हजार मि्ंटल खाद की बिक्री जिले के स्वसहायता समूहों द्वारा की जा चुकी है। समूह की महिलाओं के खाते में अब तक 1.5 करोड़ रूपये जमा हो चुके है। गोठानो में वर्मी कंपोस्ट के निर्माण तथा अन्य वस्तुओं के उत्पादन के कार्य में एक हजार से अधिक महिलाएं जुटी हुई हैं।
गौठानों में चल रहे तरह-तरह के नवाचारों के अंतर्गत इस बार स्वसहायता समूहों ने देशभर में बिकने वाली विदेशी राखियों को टक्कर देने के लिए आर्गेनिक राखियां तैयार कर बाजार में उतारा है। उनके द्वारा निर्मित राखियां जिले के शहरों के प्रमुख चौक-चौराहों पर तो बेची ही जा रही हैं, इनकी भी बिक्री अमेजन के माध्यम से की जा रही है। हस्तशिल्प के कदरदानों के बीच बांस के छिलकों, सब्जियों के बीजों, पंखुड़ियों और अनाज के दानों से तैयार की गई ये राखियां कम समय में ही लोकप्रिय हो चुकी हैं।
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