August 05, 2025
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

           मनोरंजन / शौर्यपथ / बाहुबली एक्टर राणा दग्गुबाती इन दिनों गर्लफ्रेंड मिहिका बजाज के साथ सगाई को लेकर चर्चा में हैं। इस दौरान दोनों की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं। चर्चा है कि दोनों इसी साल शादी के बंधन में बंधने वाले हैं। इस बीच राणा दग्गुबाती की एक ऐसी तस्वीर वायरल हो रही है, जिसे देखकर उनके फैन्स भी चौंक गए।

इस फोटो में राणा को पहचानना भी मुश्किल हो रहा है। एक्टर ने इस फोटो को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर बहुत समय पहले शेयर किया था। फोटो में वह अपने दोस्तों के साथ नजर आ रहे हैं। तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने कैप्शन में लिखा, ये थ्रोबैक तस्वीर कई सदियों पुरानी है। मुझे तो ऐसा ही महसूस हो कि मेरी इस तस्वीर को लेकर कोई याद नहीं है। फोटो में राणा काफी दुबले और यंग नजर आ रहे हैं।

मामूम हो कि दग्गुबाती ने गर्लफ्रेंड मिहिका बजाज संग सगाई कर सभी फैन्स को सरप्राइज दिया है। सोशल मीडिया पर मिहिका संग अपनी पुरानी फोटो शेयर करते हुए राणा ने लिखा, ‘और उसने हां कह दिया’। जैसे ही राणा ने यह न्यूज सोशल मीडिया पर शेयर की बॉलीवुड सेलेब्स समेत कई फैन्स ने उन्हें बधाई देनी शुरू कर दी।

गौरतलब है कि राणा साउथ इंडस्ट्री के साथ ही हिंदी सिनेमा में भी सक्रिय हैं। राणा साल 2011 में 'दम मारो दम' में नजर आए थे। इस फिल्म में वह बिपाशा बसु के अपोजिट नजर आए थे। इसके अलावा वह 'हाउसफुल 4', 'द गाजी अटैक', 'बेबी' और 'ये जवानी है दीवानी' जैसी फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं।

 

           मनोरजन / शौर्यपथ / लॉकडाउन में इन दिनों बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद सुर्खियों में बने हुए हैं। वह पिछले कई दिनों से मुंबई में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने का काम कर रहे हैं। सोनू के इस कदम की हर तरफ चर्चा हो रही है। इतना ही नहीं उन्होंने सोशल मीडिया पर एक नंबर जारी कर दिया है, जिसमें कॉल करके कोई भी मदद मांग सकता है। इस बीच एक यूजर ने सोनू सूद से कहा कि वह अपनी गर्लफ्रेंड से चाहता है। इस पर सोनू ने भी मजेदार जवाब दिया।

एक शख्स ने सोनू सूद को टैग कर ट्वीट करते हुए कहा, 'सोनू सूद भैया, एक बार मेरी गर्लफ्रेंड से मिलवा दीजिए, बिहार ही जाना है। सोनू ने इस शख्स के ट्वीट को भी नजरअंदाज नहीं किया और बहुत ही मजेदार जवाब दिया है। उन्होंने रिप्लाई देते हुए कहा, 'थोड़े दिन दूर रहकर देख ले भाई। सच्चे प्यार की परीक्षा भी हो जाएगी।'

इससे पहले एक यूजर ने सोनू सूद से शराब की दुकान तक पहुंचाने की बात कही थी इस पर भी सोनू ने बेहतरीन जवाब दिया था। सोनू ने कहा था कि भई ठेके से घर तक पहुंचाना हो तो बता देना। हाल ही में सोनू ने फीवर डिटजिटल 100 Hours 100 Stars में बात करते हुए कहा था, 'जो लोग इन दिनों बोर हो रहे हैं आप दूसरों के लिए समय निकाल सकते हैं। मैं अपने दोस्तों से भी कहता हूं कि आप थोड़ा एक्स्ट्रा खाना बनाएं और किसी जरूरतमंद इंसान या उनके परिवार को दें। अगर ऐसा होता है तो कोई भी खाली पेट नहीं सोएगा।'

 

          नजरिया / शौर्यपथ / वे डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य पेशेवर हैं, जो भारत से संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) आए थे। कुछ लोग यहां अध्ययन के लिए इस योजना के साथ आए थे कि अगर सब ठीक रहा, तो यहीं बस जाएंगे। और कुछ अन्य ऐसे भी हैं, जो बिंदीदार लाइनों वाले उस अनुबंध के साथ यहां स्थाई निवास के इरादे से पहुंचे थे, जिसे ग्रीन कार्ड भी कहा जाता है और जिससे अंतत: नागरिकता हासिल हो जाती है।
अपने ग्रीन कार्ड का इंतजार करते उनमें से कुछ बूढ़े भी हो रहे हैं। वे असुरक्षित, निराश और अब पहले से कहीं अधिक भयभीत भी हो गए हैं। यदि कोरोना वायरस महामारी द्वारा पैदा आर्थिक संकट के कारण उनमें से कुछ की नौकरी चली गई, तो वे ग्रीन कार्ड के लिए अपनी पात्रता गंवा देंगे। कुछ की नौकरी जा भी चुकी है। ऐसे लोगों को प्रत्यर्पण का सामना करना पडे़गा। ऐसा ही उन लोगों के परिवारों के साथ भी होगा, जो कोरोना संक्रमण की वजह से जान गंवा चुके हैं।
वे हताश हैं और इतने हताश कि अपने विस्मय की हद तक वे एक शक्तिशाली अमेरिकी सीनेटर से मुकाबला कर रहे हैं। लोग आश्वस्त हैं कि यही इकलौता आदमी है, जो उनके और ग्रीन कार्ड के बीच खड़ा है : रिचर्ड डर्बिन, इलिनोइस के वरिष्ठ डेमोके्रटिक सीनेटर। ग्रीन कार्ड के भारतीय उम्मीदवार विश्वास करते हैं कि डर्बिन उनका प्रत्यर्पण कराने के लिए दृढ़ हैं। डर्बिन उनके साथ ही उनके उन बच्चों का भी प्रत्यर्पण कराएंगे, जो अमेरिका के अलावा किसी अन्य देश को जानते भी नहीं हैं। ग्रीन कार्ड के लिए आशावान ये लोग अगले सप्ताह से टीवी और अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन चलाने की योजना बनाए बैठे हैं, ताकि अपनी तकलीफ से ज्यादा से ज्यादा लोगों को अवगत करा सकें। इमिग्रेशन वॉयस, एक एक्टिविस्ट ग्रुप है, जो फिलहाल इन भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यह गु्रप ग्रीन कार्ड प्रतीक्षा अवधि में कटौती के लिए कानूनों में संशोधन करने की दिशा में अभियान चला रहा है। इस एक्टिविस्ट गु्रप ने सीनेटर रिचर्ड डर्बिन पर ‘नस्लवादी’ होने का आरोप भी लगाया है।
अमेरिका हर साल रोजगार-आधारित और परिवार-आधारित लगभग दस लाख ग्रीन कार्ड देता है। अमेरिका ने कार्य-आधारित श्रेणी में किसी एक देश के आवेदकों के लिए सात प्रतिशत की कैप या कोटा तय कर रखा है। दूसरे देशों के प्रत्याशियों की तुलना में भारतीय प्रत्याशियों की संख्या प्रतीक्षा पंक्ति में बहुत ज्यादा है। जो लोग बच जाते हैं, बैकलॉग में जुड़ जाते हैं। इनमें ज्यादातर भारतीय होते हैं। जुड़ते-जुड़ते यह प्रतीक्षा सूची इतनी लंबी हो गई है कि अमेरिका के एक परंपरावादी थिंक-टैंक कैटो इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि अभी कोई अगर आवेदन करे, तो उसे लगभग 150 वर्षों तक इंतजार करना पड़ सकता है, जाहिर है, यह एक असंभव स्थिति है।
समस्या के समाधान के लिए वर्षों से प्रयास चल रहे हैं। एक समाधान है, जो डेमोक्रेट और रिपब्लिकन, दोनों को सबसे अधिक स्वीकार्य है, वह है देश के लिए लगे सात प्रतिशत के कैप को हटाना। इसके लिए संशोधन को पिछले अगस्त में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पारित किया गया था, लेकिन सीनेट में इसके पारित होने को सिर्फ एक सीनेटर रिचर्ड डर्बिन ने रोक दिया था। उन्होंने उस संशोधन के जवाब में एक प्रतिकूल विधेयक पेश कर दिया, जो ग्रीन कार्ड की संख्या के विस्तार के कारण निर्मित बैकलॉग के मुद्दे को संबोधित करने की कोशिश करता है।
भारत सरकार इन लोगों की मुश्किलों से वाकिफ है। यूएस सिटिजनशिप के अनुसार, इन भारतीयों की संख्या 3,06,000 है, जबकि एक अन्य संस्था इमीग्रेशेन वॉयस के अनुसार, इनकी संख्या 15 लाख है। भारत सरकार अमेरिका में अपने हितचिंतकों के साथ खामोशी से इस मुद्दे को उठाती है, लेकिन वह बहुत कुछ करने में असमर्थ है। स्थितियों की विषमता के आगे भारत सरकार विवश है। भारत सरकार लगातार यह पैरवी कर रही है कि अमेरिका भारत से ज्यादा अप्रवासियों को अपने यहां स्वीकार करे।
यह अमेरिका में रहने की आशा के साथ वहां अध्ययन या काम करने की योजना बनाने वाले भारतीयों के लिए एक बड़ा संदेश है। ग्रीन कार्ड की कतार में शायद जीवन की सार्थकता नहीं है। इस कतार की दूसरी छोर पर रिचर्ड डर्बिन जैसा कोई इंतजार कर रहा है और यह कोई सोच की आत्म-केंद्रित परिभाषा या मानसिकता भर नहीं है। यशवंत राज, अमेरिका में हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता

 

           सम्पादकीय / शौर्यपथ / देश में ज्यादातर यात्राएं रद्द हैं, तो स्वाभाविक है, लेकिन किन्हीं जरूरी तय यात्राओं का आखिरी चरण में रद्द होना निंदनीय ही नहीं, दुखद भी है। 25 मई को विशेष हवाई सेवा की शुरुआत हुई और पहले ही दिन 80 से ज्यादा फ्लाइट्स का रद्द होना न जाने कितने लोगों को परेशानी में डाल गया। अव्वल तो हवाई अड्डे पहुंचना ही टेढ़ी खीर है। भारी खर्च करके पहुंच भी गए, तो फ्लाइट का रद्द हो जाना व्यापक विफलता के सिवा और क्या है? कहना न होगा, इन दिनों यात्राओं के साथ हमने बहुत बुरा सुलूक करना शुरू कर दिया है। पैदल यात्रा हो या हवाई यात्रा हर जगह लोगों को परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है, तो इसके लिए सिवाय प्रशासन के कोई और जिम्मेदार नहीं है। जिनकी यात्राएं रद्द हो गईं, उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा? बेशक, कोरोना काल में फ्लाइट के रद्द होने के कारण बढ़ जाएंगे। छोटे-छोटे कारणों से भी फ्लाइट को रद्द करना आम हो जाएगा। अत: यह बहुत जरूरी है कि जिनकी फ्लाइट रद्द हो गई, उनको अगली फ्लाइट से मंजिल तक पहुंचाया जाए। स्वास्थ्य जांच, सैनिटाइजेशन इत्यादि कुछ कारण हैं, जिनका महत्व बहुत बढ़ गया है। इसके अलावा, राज्य सरकारों को भी यह शक्ति मिली हुई है कि वे जब चाहें, अपने यहां विभिन्न कारणों से फ्लाइट को आने-जाने से रोक सकती हैं। जब तक कोरोना है, यह चिंता और चुनौती हमारे साथ रहने वाली है।
आने वाले दिनों में एयरलाइंस संचालकों को ज्यादा चौकसी और सेवा भाव से काम करना है। लोग बहुत जरूरी होने पर ही यात्रा पर निकल रहे हैं, वे पर्यटन या कहीं स्नेह मिलन के लिए नहीं जा रहे हैं। जो यात्राएं जीवन या व्यापार के लिए बहुत आवश्यक हैं, अभी उन्हीं की जरूरत है। तो लोगों की यह मजबूरी एयरलाइंस के भी ध्यान में रहनी चाहिए, तभी कोरोना के समय में उनकी सार्थकता सिद्ध होगी। टैक्सी सेवा हो या रेल या हवाई सेवा, हर तरह की परिवहन सेवाओं को लोगों और देश की नई उम्मीदों पर मुकम्मल उतरना है। इन सेवाओं के संचालक जितनी संवेदना के साथ सक्रिय होंगे, उतने ही कम विवाद होंगे और लोगों को भी सुविधा होगी। मिसाल के लिए, ईद के दिन भी सुप्रीम कोर्ट को एयरलाइंस के खिलाफ सुनवाई करनी पड़ी है, तो यह कोई प्रशंसनीय बात नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन को भी याद दिलाया है कि एयरलाइंस की आर्थिक सेहत से ज्यादा जरूरी है, लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा। एयरलाइंस अपने फायदे के लिए किसी सीट को खाली नहीं छोड़ रहे हैं। जब यह चर्चा कोरोना की शुरुआत से ही हो रही है कि हवाई जहाज में बीच की सीट खाली रहेगी, तब हवाई जहाज में बीच की सीट खाली करवाने के लिए भला सुप्रीम कोर्ट को क्यों आगे आना पड़ा है? क्या आने वाले दिनों में रेल और बसों में भी बीच की सीट या बर्थ को खाली रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पडे़गा?
यह बहुत संभलकर और नियोजित तरीके से आगे बढ़ने का समय है। जो महाराष्ट्र शरुआत में हवाई सेवा के लिए तैयार नहीं था, वह भला क्यों तैयार हो गया? महाराष्ट्र या मुंबई जैसे जो शहर कोरोना के हॉटस्पॉट बने हुए हैं, उन्हें भला बाकी देश से क्यों जोडे़ रखा जाए? बेशक, तमाम परिवहन सेवाएं शुरू हों, लेकिन ध्यान रहे, वे बीमारी या परेशानी का माध्यम कतई न बनें।

 

         शौर्यपथ / किसी भी उद्योग के लिए दो घटक अहम होते हैं। एक, पूंजी और दूसरा, मजदूर। हालांकि, कोरोना-काल में मजदूरों की दयनीय दशा को देखते हुए पूंजी की महत्ता अधिक प्रभावी लग रही है, लेकिन श्रम शक्ति के बिना भी उद्योगों का चलना मुश्किल है। ऐसे में, प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद उन्हें रोजगार देना एक बड़ी चुनौती है। राज्य सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन कुछ और भी करने की जरूरत है। अगर मजदूरों को संगठित करके अपने ही प्रदेशों में रखा जाए, तो बाहर के उद्योगपति अवश्य वहां उद्योग लगाने को मजबूर होंगे, जहां मजदूर मिलेंगे। इसलिए बिहार जैसे राज्यों के पास कई संभावनाएं हैं। मगर इसके लिए सरकार और मजदूरों के बीच एक विश्वास का रिश्ता होना चाहिए। अभी प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर बनने की बात कही है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
क्यों दें ऐसी परीक्षा
आज दरभंगा की ज्योति ने जो करनामा किया है, उस पर बिहार ही नहीं, पूरे भारत और विश्व को नाज है, क्योंकि वह अपने पिता को गुरुग्राम से दरभंगा तक साइकिल पर ले आई। अब सारे लोग ज्योति के स्वागत के लिए उमड़ रहे हैं। कोई उन्हें मिठाई दे रहा है, तो कोई पढ़ाने का भरोसा। रोजगार देने तक के वादे किए जा रहे हैं। मगर क्या किसी भी बच्ची या बच्चे को ऐसा सम्मान पाने के लिए इस तरह की कठोर परीक्षा देनी होगी? आज ज्योति के नाम की गूंज अमेरिका तक पहुंच चुकी है, इसलिए सभी उसे सिर-आंखों पर बिठाए हुए हैं। लेकिन समाज में ऐसी कई ज्योति हैं, जो मुश्किल हालात में हैं। उन पर लोगों की नजर नहीं है, क्योंकि वे खबरों में नहीं हैं। क्या इस तरह की पब्लिसिटी बंद नहीं हो जानी चाहिए? ऐसी नौबत ही न आने दें कि किसी बच्ची को ऐसी दुखद परीक्षा से गुजरना पड़े।
लौटती कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, जो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में बुझ-सी गई थी, आहिस्ते-आहिस्ते अपनी पकड़ बनाने लगी है। कोरोना या अन्य किसी भी घटना में कांग्रेस खुद को जनता से जोड़ रही है। एक समय था, जब वह लोगों से कट गई थी। सोशल मीडिया पर तो मानो थी ही नहीं। लेकिन अब उसने वहां भी भाजपा की तर्ज पर खुद को खड़ा किया है। मजदूरों की समस्या को सर्वप्रथम कांग्रेस ने ही उठाया और मदद की जिम्मेदारी ली। फिर तो मजदूरों पर बात चल निकली। आगामी चुनाव में कांगे्रस को यह सक्रियता फायदा पहुंचा सकती है।
शिक्षा का बदलता स्वरूप
लंबे समय से यह बात कही जा रही है कि स्कूल-कॉलेज में ऑनलाइन पढ़ाई संभव नहीं है, लेकिन मौजूदा परिस्थिति में लगता है कि हमारे लिए ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है। इस वैश्विक महामारी में बच्चे कितने दिनों तक स्कूल नहीं जा पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। ऐसे में, सरकार ने निर्देश जारी किए हैं कि स्कूली बच्चों के लिए नए सत्र की शुरुआत ऑनलाइन शिक्षा से की जाए। अब सवाल यह है कि ऑनलाइन शिक्षा किस हद तक सफल होगी? फिलहाल इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं दिया जा सकता, परंतु गांव के बच्चों को इससे परेशानी हो सकती है। वहां संचार के साधन भी बमुश्किल उपलब्ध हैं। बिजली की उपलब्धता भी एक समस्या है। फिर जन-जागरूकता, संसाधनों की व्यवस्था और सुरक्षा के उपाय पर भी सोचना जरूरी है। हालांकि एक राहत भी है। अभी हम देख रहे थे कि छोटा बच्चा भी पांच-छह किलो का बस्ता ढोकर स्कूल जाता था। ऑनलाइन शिक्षा में बच्चों को इस समस्या से नहीं जूझना होगा।

           ओपिनियन / शौर्यपथ / इस फैसले का इससे बुरा वक्त कोई और नहीं हो सकता था। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कहा कि वे अपने यहां डिजिटल मीटर सुनिश्चित करें, ताकि किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्सिडी खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके। इस फैसले का चारों दक्षिणी राज्यों में भारी विरोध शुरू हो गया है।
बीते रविवार को तमिलनाडु बिजली विभाग के अधिकारी कडलूर जिले में कुछ खेतों पर गए और वहां डिजिटल मीटर लगाने पर जोर दिया। इसका किसानों ने भारी विरोध किया। यह खबर जैसे ही टीवी पर प्रसारित हुई, मुख्यमंत्री ई के पलानीसामी हरकत में आ गए, और बिजली विभाग के प्रभारी मंत्री ने आनन-फानन में फैसला वापस लेने की घोषणा की। पड़ोसी तेलंगाना में चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने भी एक कैबिनेट प्रस्ताव पास करके बिजली सब्सिडी वापस लेने से इनकार कर दिया है। सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि मुफ्त बिजली चुनावी वायदा है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता। इसी तरह, आंध्र प्रदेश ने भी इस फैसले को लागू करने से मना कर दिया है।
केरल में मुख्यमंत्री पी विजयन ने विद्युत संशोधन विधेयक-2020 पर चिंता जताई है और कहा है कि इससे राज्य सरकार उपभोक्ताओं को दी जाने वाली विभिन्न तरह की सब्सिडी जारी नहीं रख पाएगी। मुख्यमंत्री ने केंद्र को याद दिलाया कि बिजली समवर्ती सूची का हिस्सा है और यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि राज्य के अधिकारों का हनन न हो। भाजपा शासित कर्नाटक ने तो अभी तक ऐसा कोई रुख नहीं दिखाया है, लेकिन एक संयुक्त बयान में कई बिजली संघ और किसान नेताओं ने इस कदम का कड़ा विरोध किया है। संघों ने चिंता जताई है कि जब पूरा देश एक खतरनाक महामारी से लड़ रहा है, तब केंद्र ढांचागत सुधार की ओर बढ़ रहा है, जबकि ऐसे सुधारों में गंभीर विचार-विमर्श की दरकार होती है।
केंद्र ने इससे पहले भी दो बार विद्युत अधिनियम में संशोधन के प्रयास किए थे। नए संशोधनों के साथ वह कोशिश कर रहा है कि राज्य भी अपने बिजली कानून बदलने में उसका साथ दें। मगर यह मुद्दा विवादास्पद हो गया है, क्योंकि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन सुधारों को केंद्र की तरफ से राज्यों को कोरोना से लड़ने के लिए दी जाने वाली रियायतों से जोड़ दिया है। वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में राज्य अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का पांच प्रतिशत कर्ज उठा सकेंगे, जो फिलहाल तीन फीसदी है। इससे राज्यों को 4.28 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त धन मिलेगा। लेकिन इसके लिए अन्य तमाम शर्तों में एक बिजली सुधार भी शामिल है।
किसान मीटर लगाए जाने के खिलाफ हैं, क्योंकि उन्हें अभी तक मुफ्त में बिजली मिलती रही है। उन्हें डर है कि मीटर लगाकर सरकार दरअसल, बिजली बिल वसूलना चाहती है। दूसरी तरफ, सरकार का तर्क है कि ऐसा करके वह बिजली चोरी से होने वाली बर्बादी रोकना चाहती है और सिस्टम को सुधारना चाहती है। मीटर लग जाने के बाद बिजली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं की पहचान कर सकेंगी और यह सुनिश्चित कर सकेंगी कि वादे के मुताबिक उन्हें बिजली मिलती रहे। केंद्र प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी का विस्तार किसानों तक करना चाहता है। इस योजना के तहत, किसानों से डिजिटल मीटर लगाने और बिजली बिल जमा करने को कहा जा रहा है। उपयुक्त साक्ष्य पेश करते ही बैंक खातों में डीबीटी के जरिए सब्सिडी जमा करने का वायदा है। मगर किसानों की कई आपत्तियां हैं। उनका पहला तर्क तो यही है कि पर्याप्त नकदी न रहने की वजह से वे बिजली बिल नहीं चुका सकते। फिर, वे इस पूरी प्रक्रिया को अव्यावहारिक भी बता रहे हैं, क्योंकि पूर्व में भी खेतों में मीटर लगाने के प्रयास किए गए थे, पर उनका विफल अंत हुआ था। एक तर्क यह भी है कि कृषि क्षेत्र पहले से ही संकट में है और राहत मांग रहा है। ऐसे में, मीटर लगाने का आदेश देकर सरकार उन पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है। तमिलनाडु में मुफ्त बिजली का लाभ पाने वाले किसानों की संख्या 21 लाख है, जबकि तेलंगाना में 25 लाख और आंध्र प्रदेश में 23 लाख है।
किसानों और राज्य बिजली विभाग में काम करने वाले लोगों की एक अन्य चिंता भी है। उन्हें लगता है कि यह पिछले दरवाजे से निजीकरण की कोशिश है। उनका मानना है कि केंद्र सरकार निजी क्षेत्र को राज्यों में बिजली वितरण की अनुमति देने की जुगत में है। और, यदि निजी कंपनियों को सब्सिडी या मुफ्त बिजली देने को कहा जाएगा, तो वे कतई रुझान नहीं दिखाएंगी, क्योंकि उनका उद्देश्य मुनाफा कमाना रहता है।
राज्य सरकारों के लिए भी स्थिति सुखद नहीं है। वे किसानों को मुफ्त बिजली दे रही हैं और अन्य तमाम श्रेणियों के उपभोक्ताओं को सब्सिडी बांट रही हैं। इन सबके बाद ही सरकारी बिजली कंपनियों को भुगतान किया जाता है। यह भुगतान भी नियमित या मासिक आधार पर नहीं होता। उन्हें पैसे तभी दिए जाते हैं, जब राज्य सरकार उसे वहन करने में सक्षम होती है। दूसरी ओर, बिजली वितरण करने वाली सरकारी कंपनियां मनमाफिक बिजली नहीं खरीद पातीं, क्योंकि उन्हें बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों का बिल चुकाना होता है। इस तरह, यह पूरा दुश्चक्र ही बिजली क्षेत्र को अस्थिर बना देता है। केंद्र का मानना है कि नए सुधारों से बिजली क्षेत्र अधिक कुशलता से काम कर सकता है।
निजी कंपनियों ने इस कदम का स्वागत किया है, क्योंकि उनको लगता है कि इस क्षेत्र को उनके लिए खोल दिए जाने से अधिक निवेश लाया जा सकता है। वे भुगतान तंत्र को मजबूत बनाए जाने और सरकारी व निजी क्षेत्र की संस्थाओं के बीच अधिकारियों के अधिकारों को स्पष्ट किए जाने की पक्षधर हैं। दिल्ली में बिजली की आपूर्ति निजी हाथों में है। इससे यहां वितरण में सुधार हुआ है, बिजली की चोरी कम हुई है और उपभोक्ताओं की जेब पर भी बोझ नहीं बढ़ा है। बेशक, मौजूदा मुश्किल समय में एक विवादास्पद मसले पर खुले दिमाग से चर्चा मुश्किल है। मगर केंद्र सरकार अभूतपूर्व आर्थिक मंदी का सामना कर रही है, और कोरोना संकट में उसके पास विकल्प बहुत सीमित हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार

 

  दुर्ग / शौर्यपथ / प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और दुर्ग जिला में युवा कांग्रेस अध्यक्ष अंकुश पिल्लई निर्वाचित है . भिलाई के महापौर और विधायक देवेन्द्र यादव के करीबी माने जाने वाले अंकुश पिल्लई ने थाना भिलाई नगर में एक बोर्ड लगवा दिया जिसमे सौजन्य से में अपना नाम अंकित कर दिया जिसकी चर्चा सोशल मिडिया में जोरो पर है कोई इसे सही कह रहा कोई इसे गलत कह रहा है . हो सकता है ये विधि सम्मत कार्य हो या ना हो . अंकुश पिल्लई की जो पहचान आज भिलाई में है वो व्यक्तिगत से ज्यादा कांग्रेसी नेता के रूप में है . कांग्रेस के कार्यकर्ता होने से कांग्रेस पार्टी ने पिल्लई को अध्यक्ष पद से नवाज़ा किन्तु थाने में लगे बोर्ड पर सौजन्य अंकुश पिल्लई के नाम की पट्टिका लगने से आम जनता या कोई भी ऐसा प्रार्थी जो पुलिस थाना जाएगा एक बार अंकुश पिल्लई को जरुर फोन कर मदद की गुहार लगाएगा क्योकि नंबर भी अंकित है और परेशानी के समय व्यक्ति अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधि को ही याद करता है ऐसे समय में महापौर व विधायक के सबसे करीबी को हीं याद करेगा इस तरह से देखे तो अंकुश पिल्लई ने समाज सेवा करने के लिए बोर्ड में अपना नाम अंकित किया है किन्तु क्या किसी भी थाने में ऐसा बोर्ड लगाना उचित है क्या ये सही प्रथा है .
पुलिस विभाग निष्पक्षता से कार्य के लिए जानी जाती है लाख आरोप लगे किन्तु जब भी व्यक्ति को कोई परेशानी होती है तो न्याय के लिए सबसे पहले पुलिस थाने ही जाता है आज देवेन्द्र यादव ताकतवर नेता है अंकुश पिल्लई उनका ख़ास सिपहसलार है हो सकता है ये बोर्ड कभी भी ना हटे जब तक कांग्रेस का राज है किन्तु सत्ता किसी एक की मुट्ठी में नहीं होती आज इधर तो कल उधर .क्या ऐसे ही सुशासन का वादा कर विधायक की खुर्शी पायी है देवेन्द्र यादव ने ? देवेन्द्र यादव भिलाई निगम के महापौर के साथ विधायक की भूमिका भी निभा रहे है वर्तमान में . अभी ढेढ़ साल भी नहीं हुए जब विधान सभा चुनाव में प्रेम प्रकाश पाण्डेय की दबंगई के खिलाफ सुशासन की बात की थी और आम जनता ने कांग्रेस के वादों को मान कर जीत दिलाई थी . आज क्या ये सौजन्य बोर्ड फिर से वही शासन की ओर आगाज तो नहीं जिसके खिलाफ कांग्रेस को जीत मिली थी .
आज प्रदेश के मुखिया अगर चाहे तो क्या प्रदेश के हर थाने में ऐसा बोर्ड लगवा सकते है किन्तु उनके द्वारा ऐसा नहीं किया गया . किन्तु शायद ये अंकुश पिल्लई की ताकत का ही चमत्कार है कि थाने में सौजन्य बोर्ड में किसी संस्था का नाम नहीं अपना नाम लिखवा दिया या हो सकता है अंकुश पिल्लई खुद ही एक संस्था हो और भविष्य में सत्ता के शिखर पर जाए किन्तु कोई भी जनप्रतिनिधि अगर इस प्रकार कानून के दरवाजे पर अपना प्रचार करे तो क्या ये संभव आम जनता जो कांग्रेस के किसी नेता से पीड़ित हो वो थाना जाने में घबराये . चार दिनों से सोशल मिडिया पर चर्चा तो खूब हो रही है किन्तु खबर नहीं बनी कही ऐसा तो नहीं कि अंकुश पिल्लई या अंकुश पिल्लई के राजनितिक गुरु विधायक यादव का डर शामिल हो .
हो सकता है ये लेख लिखने के बाद कांग्रेस का युवा मोर्चा या उनके समर्थक खबर प्रकाशित होने पर समाचार पत्र के जिम्मेदार पर किसी प्रकार का शारीरिक , मानसिक , आर्थिक चोट पहुचाने का प्रयास करे और सफल भी हो जाए किन्तु सच्चाई तो यही है कि थाने के प्रवेश द्वारा में किसी नेता का सौजन्य बोर्ड समाज के आम आदमी के लिए चिंता का विषय है . अंकुश पिल्लई एक बार आम जनता की भावना को समझाते तो ऐसा नहीं करते , महापौर देवेन्द्र यादव अगर आम जनता की मानसिकता का विचार करते तो अभी तक मामले को संज्ञान में लेकर कोई पहल करते .
सौजन्य बोर्ड में मेरी नज़र में पुलिस विभाग की कोई गलती नजर नहीं आती . सत्ता जिस पार्टी की रहती है और प्रशासन का मुखिया जिस पार्टी का होता है उस पार्टी से पुलिस प्रशासन भी कोई विवाद नहीं करता और ये तो बहुत ही छोटा मामला है किन्तु यही छोटा मामला आम जनता जो वर्दीधारी पुलिस को दुर्ग से ही देखकर सहम जाता है उस जनता के लिए ये चिंता का विषय है .देखे आगे क्या होता है सौजन्य बोर्ड की राजनीती का अंजाम क्योकि आगाज तो हो चुका है और वो किसी ना किसी मंजिल तक तो जाएगा ही ...

    दुर्ग / शौर्यपथ / झीरम घाटी की दर्दनाक घटना जिसने प्रदेश सहित देश के कांग्रेसी नेताओ को झंझोर कर रख दिया था अज सात साल हो गए इस दर्दनाक घटना को . प्रदेश सरकार ने २५ मई को शहीदों की याद में ब्लाक स्तर से लेकर जिला मुख्यालय तक झीरम घाटी में शहीद हुए नेताओ और जवानो के लिए श्रधांजलि सभा का आयोजन किया .
उसी परिपेक्ष्य में आज दिनांक 25 मई को प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष पूर्णचंद कोको पाढ़ी जी के निर्देशानुसार दुर्ग युवा कांग्रेस द्वारा 25 मई 2013 को झीरम घाटी में शहीद हुए कांग्रेसियों और जवानों की पुण्यतिथि को श्रद्धांजलि दिवस के रूप में इंदिरा मार्केट दुर्ग में 2 मिनट का मौन रख श्रद्धांजलि दी गई, इस श्रद्धांजलि कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दुर्ग नगर निगम के सभापति राजेश यादव जी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी महामंत्री राजेन्द्र साहू जी, भिलाई जिला अध्यक्ष श्रीमती तुलसी साहू जी युवा कांग्रेस प्रदेश सचिव जयंत देशमुख जी, युवा कांग्रेस नेता अहमद चौहान, वरिष्ठ युवा नेता इलियास चौहान, विक्रांत ताम्रकार, जितेंद्र राठी, पुष्पेंद्र साहू, शफीक खान, हिमांशु यादव, रियाज़ सुलड़ा, सुरेश सोनी, सरवर चौहान, संदीप साहू आदि उपस्थित थे.!

कोरोना संक्रमित की ताज़ा जानकारी और भारत की वर्तमान स्थिति

   नई दिल्ली / रायपुर / शौर्यपथ / ताजा जानकारी के अनुसार भारत दुनिया के टॉप 10 देशो में शामिल हो गया . वृहद् जनसँख्या के कारण भारत में कोरोना का प्रसार उतनी तेजी से नहीं हो रहा जिसकी कल्पना अन्य देशो द्वारा की जा रही थी . प्रवासी मजदूरो के गृह नगर जाने और लगातार टेस्टिंग होने से भारत में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की संख्या लगातार बढ़ रही है . एक अनुमान के मुताबिक मजदूरो के आवागम की स्थिति में संक्रमित लोगो की संख्या में और इजाफा होने के कयास लगाए जा रहे है . प्रवासी मजदूरो के अपने अपने प्रदेश में लौटने के बाद स्थिति नियंत्रण में होने की संभावना है . वर्तमान में अधिकतर मरीजो की ट्रेवल हिस्ट्री मिल रही है . भारत में वर्तमान समय में 1,38,845 केस की पुष्टि की गयी है जो प्रति 10 लाख की जनसँख्या में 102 है वही 57,721 मरीज स्वास्थ्य लाभ ले चुके है एवं ४०२१ लोगो की मौत हो चुकी है .
देश में सबसे ज्यादा मरीज महाराष्ट्र में मिले है जिनकी संख्या 50 हजार के पार हो चुकी है वही अगर छत्तीसगढ़ की बात करे तो २५२ केस की पुष्टि हुई है जो प्रति १० लाख में 8 की गणना में की जा रही है . बीते २० मई को छत्तीसगढ़ में कुल १०१ मरीजो की पुष्टि ई गयी थी किन्तु 5 दिनों में 25 मई तक कोरोना संक्रमित मरीजो की संख्या 252 तक पहुँच गयी . छत्तीसगढ़ के लिए राहत ककी बात यह है कि इनमे से ज्यादातर कोरोना संकर्मित मरीजो की ट्रेवल हिस्ट्री है और सभी क्वारेनटाईन सेंटर में है .
25 मई का दिन प्रदेश के मुंगेली जिले के लिए चौकाने वाला रहा एक साथ 26 मरीज के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि की गयी ये सभी क्वारेनटाईन सेंटर में रुके हुए प्रवासी श्रमिक है . मुंगेली कलेक्टर द्वारा क्वारेनटाईन सेंटर के आस पास के क्षेत्रो को सेनेटराईज करने के निर्देश दिए गए इस कार्य को कलेक्टर डॉ. भूरे द्वारा अपनी मौजूदगी में कराया गया एवं आम जनता से अपील की गयी की स्थिति नियंत्रण में है और सभी से लॉक डाउन के नियमो का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए गए .
कोरोना संक्रमण के डाटा तेजी से बदल रहे है शौर्यपथ समाचार द्वारा यह डाटा सरकारी आंकड़ो व अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी लिंक से एकत्रित किया गया है जो कि निरंतर बदलाव की स्थिति में है .
शौर्यपथ समाचार आम जनता और समानित पाठको से अनुरोध करता है कि परिवार के लिए आपका स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है . राज्य सरकारे और केंद्र सरकार हर संभव प्रयास कर रही है कि जनजीवन सामान्य स्थिति में आये . शाब्दि की सबसे बड़ी विपदा में अपने व्यवहारऔर व्यापार का नियंत्रण रखे एवं शासन के हर विभाग जो कोरोना के जंग में मैदान में है उनका सहयोग करे .

कोरोना संक्रमित की ताज़ा जानकारी और भारत की वर्तमान स्थिति

   नई दिल्ली / रायपुर / शौर्यपथ / ताजा जानकारी के अनुसार भारत दुनिया के टॉप 10 देशो में शामिल हो गया . वृहद् जनसँख्या के कारण भारत में कोरोना का प्रसार उतनी तेजी से नहीं हो रहा जिसकी कल्पना अन्य देशो द्वारा की जा रही थी . प्रवासी मजदूरो के गृह नगर जाने और लगातार टेस्टिंग होने से भारत में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की संख्या लगातार बढ़ रही है . एक अनुमान के मुताबिक मजदूरो के आवागम की स्थिति में संक्रमित लोगो की संख्या में और इजाफा होने के कयास लगाए जा रहे है . प्रवासी मजदूरो के अपने अपने प्रदेश में लौटने के बाद स्थिति नियंत्रण में होने की संभावना है . वर्तमान में अधिकतर मरीजो की ट्रेवल हिस्ट्री मिल रही है . भारत में वर्तमान समय में 1,38,845 केस की पुष्टि की गयी है जो प्रति 10 लाख की जनसँख्या में 102 है वही 57,721 मरीज स्वास्थ्य लाभ ले चुके है एवं ४०२१ लोगो की मौत हो चुकी है .
देश में सबसे ज्यादा मरीज महाराष्ट्र में मिले है जिनकी संख्या 50 हजार के पार हो चुकी है वही अगर छत्तीसगढ़ की बात करे तो २५२ केस की पुष्टि हुई है जो प्रति १० लाख में 8 की गणना में की जा रही है . बीते २० मई को छत्तीसगढ़ में कुल १०१ मरीजो की पुष्टि ई गयी थी किन्तु 5 दिनों में 25 मई तक कोरोना संक्रमित मरीजो की संख्या 252 तक पहुँच गयी . छत्तीसगढ़ के लिए राहत ककी बात यह है कि इनमे से ज्यादातर कोरोना संकर्मित मरीजो की ट्रेवल हिस्ट्री है और सभी क्वारेनटाईन सेंटर में है .
25 मई का दिन प्रदेश के मुंगेली जिले के लिए चौकाने वाला रहा एक साथ 26 मरीज के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि की गयी ये सभी क्वारेनटाईन सेंटर में रुके हुए प्रवासी श्रमिक है . मुंगेली कलेक्टर द्वारा क्वारेनटाईन सेंटर के आस पास के क्षेत्रो को सेनेटराईज करने के निर्देश दिए गए इस कार्य को कलेक्टर डॉ. भूरे द्वारा अपनी मौजूदगी में कराया गया एवं आम जनता से अपील की गयी की स्थिति नियंत्रण में है और सभी से लॉक डाउन के नियमो का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए गए .
कोरोना संक्रमण के डाटा तेजी से बदल रहे है शौर्यपथ समाचार द्वारा यह डाटा सरकारी आंकड़ो व अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी लिंक से एकत्रित किया गया है जो कि निरंतर बदलाव की स्थिति में है .
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