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दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग निगम जो भ्रष्टाचार की नयी नई उंचाइयो पर लगातार प्रगति पथ पर चल रहा है और इस भर्ष्टाचार पर सब कुछ जानते हुए भी अधिकारी मौन है . दुर्ग निगम में कार्यरत ऐसे कई कर्मचारी है जो अनेको बार शासन के नियमो की धज्जी उड़ा कर आराम से नौकरी कर रहे है और अधिकारी जानते हुए भी मौन है . शौर्यपथ समाचार पत्र ने ऐसे ही एक मामले में सब इंजिनियर भीमराव के कार्यो का खुलासा किया था जिसमे उनके द्वारा एक ऐसे कार्य को अंजाम दिया गया जहा कार्य तो क्या जगह ही दुर्ग निगम के नक़्शे में नहीं साड़ी जानकारी और शिकायत के बाद भी निगम प्रशासन द्वारा भीम राव पर किसी तरह की जाँच या कार्यवाही हुई हो ऐसा प्रतीत नहीं होता .
ऐसे ही एक मामले में दुर्ग निगम के भृत्य भूपत भारद्वाज द्वारा फर्जी मार्कशीट से उन्नति का मामला सामने आया है जिसमे उन्नति के लिए भूपत भारद्वाज द्वारा शासन की आँखों में धुल झोंकते हुए फर्जी मार्कशीट के आधार पर प्रमोशन तक पा लिया गया और साल भर पदोन्नति के पद में कार्य भी करता रहा किन्तु स्थापना शाखा के अधिकारी कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि पदोन्नति पाने वाले कर्मचारियों द्वारा जो दस्तावेज जमा किये गए है वह असली है या नकली . संभावना तो यह भी जताई जा रही है कि सारे मामले की जानकारी स्थापना शाखा के किसी कर्मचारी को थी और आर्थिक लाभ के लिए फर्जी मार्कशीट के जरिये पदोन्नति का खेल चला . फर्जी मार्कशीट मामले में किसी लापरवाही है यह जांच का विषय है किन्तु मामले के खुलासे के बाद भी निगम प्रशासन मौन है और जिम्मेदार स्थापना शाखा के अधिकारियों पर लापरवाही के लिए कोई सख्त कदम उठाने की बात तो बहुत दुर्ग जिस कर्मचारी ने फर्जी मार्कशीट के सहारे पदोन्नति प्राप्त की उस पर भी निगम के जिम्मेदार उच्च अधिकारी मौन है और कार्यवाही के नाम पर सिर्फ इतना किया कि पदोन्नति को शून्य कर दिया गया और कर्मचारी भूपत को वापस भृत्य के रूप में कार्य की अनुमति दे दी गयी .
क्या निगम प्रशासन में कर्मचारियों के फर्जीवाड़े के उजागर होने के बाद भी किसी तरह की कोई कार्यवाही का प्रावधान नहीं है . आखिर निगम प्रशासन क्यों नहीं ऐसे कर्मचारियों के दस्तावेजो की जाँच करती जो दस्तावेजो के सहारे पदोन्नति पाए है ये तो एक ही मामला है जो उजागर है ना जाने ऐसे कितने मामले होंगे जिसमे नियमो के आड़ में दस्तावेजो के आड़ में कई कर्मचारी फर्जी तरीके से पदोन्नत हुए है और जो जायज है उनका हक़ मार रहे है . क्या स्थापना शाखा या अन्य उच्च अधिकारियों का इस तरह के पदोन्नति के खेल में कोई विशेष सहयोग है जिसके सहारे शासन के शक्तियों का लाभ अपने गहर को भरने में लगे है .
एक तरफ शहर की आम जनता नाली में अगर कचरा फेक दे तो अधिकारियों की टीम लावलश्कर के साथ जुर्माने के लिए पहुँच जाती है वही इस तरह के फर्जी वाडे पर आखिर निगम प्रशासन क्यों मौन है क्या निगम के उच्च अधिकारी , निगम आयुक्त द्वारा भृत्य भूपत भारद्वाज के इस कृत्य पर कोई सख्त कदम उठाएंगे या टेबल के निचे का कोई खेल चलेगा ?
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