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दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर पालिका निगम और भ्रष्टाचार एक दुसरे के पर्याय बनते जा रहे है . संधारण मद के नाम पर ऐसे कई कार्य हो जाते है और मनमानी रकम का आहरण कर लिया जाता है इसका अगर बारीकी से निरिक्षण करे तो साल भर में करोडो के नुक्सान वाली दुर्ग निगम के करोडो खर्च संधारण में ही होते है किन्तु इन मद के आड़ में बड़ा खेल चलता है लेन देन का जिस पर सब मौन है .
पहले 20 सालो से सत्ता में रही भाजपा में चला संधारण मद का खेल जिसमे अधिकतर पार्षदों की चांदी हो गयी . भाजपा राज में ऐसे कई वार्ड रहे जिसमे पार्षद किसी भी दल का हो संधारण मद का खुल कर बंदरबाट हुआ शौर्यपथ समाचार पत्र द्वारा ऐसे कई संधारण मद के कार्यो को प्रमुखता से प्रकाशित भी किया किन्तु इस मद और इसके काम से अधिकतर पार्षदों को शायद लाभ होता होगा तभी मौन रहे और संधारण मद से बनी हुई सडक पर फिर सडक बन गयी , गड्ढे भरने के नाम पर जाने कितने लाखो के बिल निकल गए किन्तु स्थिति जस की तस , जो निगम की संपत्ति नहीं जिसके संधारण का कार्य निगम की जिम्मेदारी नहीं उस पर भी निगम द्वारा लाखो खर्च किये जाते रहे जैसा कि पिछले साल का ही मामला है पटेल चौक से साइंस कॉलेज तक के डिवाईडर का जिसके संधारण की जिम्मेदारी जिला पीडब्ल्यूडी विभाग की थी किन्तु तब भी बिना निविदा के इस डिवाईडर की पोताई का कार्य ईई गोस्वामी द्वारा अपने किसी ख़ास ठेकेदार को दिया गया लाखो के इस कार्य के कुछ समय बाद इसकी टूट फुट की मरम्मत हुई और इस तरह निगाम्के लाखो पानी में बह गए .
ऐसे ही एक मामले में तकिया पारा वार्ड में वाटर फाउंटेन का है जिसमे लाखो के संधारण का कार्य तो हो गया किन्तु लाखो खर्च करने के बाद भी वाटर फाउंटेन कुछ घंटे भी नहीं चला और ये हाल है दुर्ग निगम के पीडब्ल्यूडी प्रभारी के वार्ड का . अगर पीडब्ल्यूडी प्रभारी के वार्ड के कार्य में ही इतनी लापरवाही हो सकती है तो शहर की जनता अंदाज लगा ले कि किस तरह की लापरवाही शहर के अन्य हिस्सों में कार्य के दौरान होती होगी . शहर की व्यवस्था को देखने और सुचारू रूप से चलाने के लिए जनता ने सरकार चुनी और जनता के प्रतिनिधि के तौर पर वार्ड पार्षदों को निगम में भेजा . शहर के मेयर जो संगठन की राजनीती करते आ रहे थे सक्रीय राजनीती में सभी का सम्मान करते हुए भरपूर प्रयास कर रहे है कि निगम सुचारू चले . जैसा कि सभी को मालूम है कि दुर्ग कांग्रेस के दो वरिष्ठ पार्षद मदन जैन और अब्दुल गनी दोनों ही महापौर के प्रबल दावेदार थे किन्तु महापौर के चयन के बाद निगम के सबसे महत्तवपूर्ण पद पीडब्ल्यूडी विभाग की जिम्मेदारी दोनों वरिष्ठ पार्षदों में से महापौर ने अब्दुल गनी के सुपुर्द करी किन्तु इन 10 महीनो के कार्यकाल में जनप्रतिनिधि खुले में चर्चा के अपेक्षा बंद कमरों में चर्चा में ज्यादा व्यस्त रहे , निगम के कार्य बिना निविदा के आरम्भ होते गए और मनपसंद ठेकेदारों को कार्य मिलता रहा जो ज्यादा सलामी दे उसे ज्यादा कार्य की तर्ज पर नियमो की लगातार अवहेलना होती रही किन्तु अनुभवी पीडब्ल्यूडी प्रभारी गनी मौन रहे , उनके खुद के वार्ड में संधारण मद से लाखो खर्च के बाद भी वाटर फाउंटेन की हालत जस की तस यहाँ तक की उस फाउंटेन में पानी की व्यस्था भी नहीं ना ही निकासी की फिर भी प्रभारी मौन , इंजिनियर मौन , ईई मौन आखिर शहर में सुशासन की उम्मीद की किरण कभी रोशन होगी या फिर जनता अगले चुनाव और नए वादों के लिए तैयार है ?
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