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दुर्ग। शोर्यपथ। दुर्ग नगर निगम क्षेत्र में सार्वजनिक भूमि के एक विवादास्पद आवंटन को लेकर एक बार फिर नगर प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता चतुर्भुज राठी द्वारा शपथ-पत्र में कथित रूप से गलत जानकारी देकर एक बहुमूल्य जमीन का आवंटन करवा लेने के मामले में वर्तमान शहरी सरकार की निष्क्रियता राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है।
जानकारी के अनुसार, जब नगर निगम में कांग्रेस की सत्ता थी, तब राम रसोई नामक एक संस्था ने उक्त जमीन के लिए आवेदन किया था। यह संस्था भारतीय जनता पार्टी के नेता चतुर्भुज राठी से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी बताई जा रही है। आरोप है कि संस्था के दस्तावेजों में कई तथ्य छिपाए गए और भूमि आवंटन की प्रक्रिया में कई अनियमितताएं हुईं। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि भूमि का स्थल परिवर्तन परिषद की अंतिम बैठक में चुपचाप कर दिया गया, और फिर 50 पैसे के साधारण कागज पर अनुबंध भी हो गया, जिसकी स्पष्ट जानकारी न तो परिषद को दी गई और न ही शहरी सरकार के दस्तावेज़ों में दर्ज है।
वर्तमान में दुर्ग नगर निगम की बागडोर भाजपा समर्थित महापौर श्रीमती अलका बाघमार के हाथों में है। हालांकि विपक्ष व सामाजिक संगठनों द्वारा कई बार इस मुद्दे को उठाया गया और दस्तावेज़ी प्रमाण भी उपलब्ध कराए गए, फिर भी प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या शहरी सरकार अपने ही पार्टी नेता को बचाने के लिए कार्रवाई से परहेज कर रही है?
महापौर अलका बाघमार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में शहर में "सुशासन और पारदर्शिता" का वादा किया था, लेकिन राम रसोई संस्था को बस स्टैंड जैसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र में अधूरे दस्तावेजों के आधार पर दी गई जमीन और उस पर बने अनुबंध की जांच न करना, उनकी प्रशासनिक प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं होती, तो इससे एक गंभीर परंपरा स्थापित होगी जिसमें राजनैतिक रसूख के बल पर सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग करना सामान्य होता जाएगा।
दूसरी ओर, दुर्ग बस स्टैंड की बदहाल स्थिति नगर निगम की प्राथमिकता को लेकर भी सवाल खड़े कर रही है। व्यस्ततम बस स्टैंड पर अतिक्रमण, गंदगी और अव्यवस्था को लेकर जनता में रोष है, परंतु नगर प्रशासन की दृष्टि भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में अधिक केंद्रित नजर आ रही है।
भाजपा संगठन के लिए यह मामला विचारणीय है। वही पार्टी जो वर्षों तक भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करती रही, आज जब उसका प्रतिनिधि महापौर पद पर है, तब उसके नेतृत्व में नियमों की अनदेखी और गलत दस्तावेजों के आधार पर सार्वजनिक भूमि का आवंटन जैसे मामलों पर आंखें मूंद लेना, उसके सिद्धांतों को कमजोर करता है।
अब यह देखना होगा कि भाजपा समर्थित नगर निगम की पहली महिला महापौर श्रीमती अलका बाघमार क्या इस संवेदनशील मामले में निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई की पहल करेंगी, या फिर यह मामला भी अन्य राजनीतिक मामलों की तरह समय के गर्त में दब जाएगा।
जनता की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि सुशासन और पारदर्शिता की बातें केवल भाषणों तक सीमित रहेंगी या व्यवहार में उतरेंगी।
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