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नजरिया /शौर्यपथ / पिछले दो महीनों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में 14 छोटे-छोटे भूकंप आ चुके हैं। भूकंप की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, पर दिल्ली के इलाके भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं और हिमालय से काफी करीब भी। यहां पहले भी 6-6.7 तीव्रता के चार बड़े भूकंप आ चुके हैं, लिहाजा सवाल यह है कि अगर यहां कोई बड़ा भूकंप आया, तो उससे निपटने के लिए हमारी क्या तैयारी है?
भूकंप एक अवश्यंभावी प्राकृतिक घटना है, जो पृथ्वी की आंतरिक संरचना के कारण, भूगर्भ में विशिष्ट स्थानों पर संचयित ऊर्जा के खास परिस्थितियों में उत्सर्जित होने से घटती है। यह ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के माध्यम से चारों तरफ प्रवाहित होती है, जिससे सतह पर बने मकानों-इमारतों में कंपन होता है। इंसानी जान-माल का नुकसान तब होता है, जब ये इमारतें इस कंपन को नहीं झेल पातीं, यानी नुकसान भूकंप से नहीं, भूकंप को न झेल पाने वाली इमारतों से होता है। इसीलिए नई बनने वाली इमारतों को भूकंप बर्दाश्त कर सकने लायक भूकंपरोधी बनाकर और पुराने भवनों में जरूरी सुधार करके हम इस नुकसान से बच सकते हैं।
अभी अपने यहां भूकंपरोधी मकान बनाने में भारतीय मानक संस्थान द्वारा बनाया गया मानचित्र इस्तेमाल होता है। मगर इसकी अपनी सीमाएं हैं। जैसे, इसमें भारतीय भूभाग को सिर्फ चार जोन में बांटा गया है और इससे यह पता नहीं चलता कि भविष्य में किसी भूभाग में भूकंप के आने और उसके प्रभाव की कितनी आशंकाएं हैं? फिर, भूकंप का प्रभाव भवनों के करीब 30 मीटर नीचे तक की मिट्टी के गुणों व संरचना के मुताबिक अलग-अलग होता है। चूंकि थोड़ी-थोड़ी दूर पर ही मिट्टी के गुण बदल जाते हैं, इसलिए क्षेत्रीय स्तर पर बना यह मानचित्र बहुत ज्यादा कारगर नहीं माना जाता। हालांकि, पहली सीमा से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रयास से 2013 में बने ‘प्रॉबबिलिस्टिक सिस्मिक हैजर्ड मानचित्र’ का उपयोग भारतीय मानक संस्थान जरूरी प्रावधान बनाने में कर रहा है। वहीं, दूसरी समस्या के हल के लिए करीब 250 शहरों में कई जगहों की 30 मीटर गहराई तक की मिट्टी की संरचना और उसके गुणों का अध्ययन करके छोटे-छोटे भूभाग पर भूकंप की मारक-क्षमता के आकलन (जिसे भूकंपीय सूक्ष्म-वर्गीकरण कहते हैं) पर काम चल रहा है, ताकि भविष्य में प्रत्येक शहर के लिए भवन-निर्माण के अलग-अलग मानदंड बनाए जा सकें।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के महत्व को समझते हुए भूकंप जोखिम मूल्यांकन केंद्र (अब राष्ट्रीय भूकंप केंद्र का अंग) ने 2007 में सूक्ष्म-वर्गीकरण मानचित्र बनाने का काम शुरू किया था, जिसे 2014 में पूरा कर लिया गया। इसके तहत विभिन्न प्रकार के 40 मानचित्र बनाए गए, जो भवन-निर्माण के लिए उपयोगी हैं। इन मानचित्रों का इस्तेमाल करके यह तय किया जा सकता है कि किस स्थान पर भवन को कितना मजबूत बनाना है या कितनी मंजिल का मकान बनाना सुरक्षित है या कहां पर उसके धंसने की आशंका है।
इस अध्ययन से यह भी पता चला कि दिल्ली का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा मापक के हिसाब से जोन-पांच में शामिल किया जाना चाहिए। इसीलिए मौजूदा भवन-निर्माण प्रावधानों के तहत यहां बनने वाले मकानों के भूकंपरोधी होने पर संदेह है। चूंकि नई नीति के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 89 गांवों को शहर का दर्जा मिला है और यहां के कई गांव मापक के हिसाब से उस 30 प्रतिशत हिस्से में आते हैं, इसलिए यहां संभावित 20 लाख नए भवनों के निर्माण यदि मौजूदा कोड के तहत बनेंगे, तो वे शायद ही भूकंपरोधी होंगे। रिपोर्ट तो यह भी है कि दिल्ली में करीब 80 फीसदी भवन मानक के अनुरूप नहीं हैं। जाहिर है, यहां के ज्यादातर भवन भूकंपरोधी नहीं हैं और जो नए बन रहे हैं, वे भी शायद ही तेज झटकों को झेल पाएं। तो फिर जान-माल का नुकसान रोका कैसे जाए? सबसे पहले दिल्ली में किए गए अध्ययन के निष्कर्ष को तुरंत लागू होना चाहिए। पुराने तमाम भवनों, खासकर शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों आदि का सर्वेक्षण कर उनमें आवश्यक सुधार किया जाना चाहिए। इन कामों को संस्थागत रूप देने के लिए भूकंप जोखिम मूल्यांकन केंद्र को फिर से सक्रिय करना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) अतींद्र कुमार शुक्ला, पूर्व प्रमुख, भूकंप विज्ञान केंद्र, मौसम विभाग
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