August 06, 2025
Hindi Hindi

वीर अंगद की किस बात को सुनकर रावण के सभासदों को गुस्सा आ गया था?

  • Ad Content 1

    आस्था /शौर्यपथ /सभासदों ने वीर अंगद के यह शब्द सुने, तो उन्होंने मन ही मन अपने पुरखों का, कोटि-कोटि धन्यवाद किया, कि चलो वीर अंगद ने हमारी स्त्रियों के अपहरण का कार्यक्रम अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया है। लेकिन वीर अंगद रावण को मरा हुआ कह रहे हैं?
भगवान श्रीराम जी का सेवक होना भी अपने आप में, मानो बैकुण्ठ सी प्राप्ति है। एक बार ध्यान से तो देखिए, वीर अंगद रावण की सभा में कैसे रावण की झूठी महिमा को तार-तार कर रहे हैं। वीर अंगद ने रावण को पहले ही स्पष्ट कर दिया था, कि वे रावण की सभा में इसलिए कुछ विशेष तांडव नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने श्रीराम जी के श्रीमुख से कई बार यह कहते हुए सुना है कि स्यार का शिकार करने से सिंह की शोभा नहीं बढ़ती। अब सिंह के बच्चे तो सिंह ही होंगे न? अर्थात वीर अंगद स्वयं को, श्रीराम जी का दूत नहीं, अपितु श्रीराम जी का सुत मान कर चल रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें, तो वीर अंगद स्वयं को श्रीराम जी की भाँति ही, सिंह की ही परिधि में देख रहे हैं। कहने का भाव, कि रावण को केवल, भगवान श्रीराम जी ही स्यार नहीं मान रहे थे, अपितु वीर अंगद भी रावण को स्यार की ही मूर्त में देख रहे हैं। लेकिन रावण है, कि वीर अंगद को बार-बार वानर कह कर बुला रहा है। साथ में रावण श्रीराम जी के संबंध में भी ऐसे अशोभनीय वाक्य बोल रहा है, जो कि एक साधारण मानव के लिए भी न बोले जायें। क्योंकि वीर अंगद कितने ही समय से अपने शब्दों को मर्यादा के पट में बाँध रहे थे। लेकिन अब उन्होंने उस बँधन को तोड़ डाला। और रावण को ऐसे कड़े व ठोस शब्द बोले कि रावण ने जिसकी कल्पना भी नहीं की थी-
‘नाहिं त करि मुख भंजन तोरा।
लैं जातेउँ सीतहि बरजोरा।।
जानेउँ तव बल अधम सुरारी।
सुनें हरि आनिहि परनारी।।’
वीर अंगद बोले, कि अरे दुष्ट! अगर श्रीराम जी तेरे बारे में स्यार वाली सोच न रखते और तुझे मारने में अपना अपमान न समझते, तो निश्चित ही मैं तुम्हारा मुँह तोड़कर, माता सीता को जबरदस्ती यहाँ से ले जाता। अरे अधम! तेरा बल तो मैंने तभी जान लिया, जब तू एक पराई स्त्री को, सूने में चुरा लाया।
रावण को भरी सभा में यह कहना, कि ‘मैं तेरा मुँह तोड़कर श्रीसीता जी को ले जाऊँगा’, क्या इससे पूर्व किसी ने भी, रावण को ऐसा कहने का साहस किया था? नहीं? वीर अंगद रावण को कहते हैं, हे रावण! तू राक्षसों का राजा और बड़ा अभिमानी है। किन्तु मैं तो श्रीरघुनाथ जी के सेवक का भी सेवक हूँ। अर्थात कहाँ तू और कहाँ मैं। लेकिन अगर मैं श्रीराम जी के अपमान से न डरूँ, तो देखते-देखते मैं तेरा ऐसा तमाशा करूँ, कि तुझे जमीन पर पटककर, तेरी सेना का संहार कर और तेरे गाँव को चौपट करके, तेरी युवती स्त्रियों सहित जानकी जी को ले जाऊँ-
‘तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ।
तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ।।’
वीर अंगद के इन शब्दों में रत्ती भर भी ऐसा नहीं था, कि उन्हें ऐसा करने में कहीं भी कोई संशय प्रतीत हो रहा हो। वीर अंगद के इन शब्दों ने, रावण की सभा में सभी सभासदों के हृदयों पर, मानो उबलता तेल डाल दिया था। सभी को लगा, कि यह आवश्यक थोड़ी न है, कि वीर अंगद केवल, रावण की ही स्त्रियों को उठाकर ले जायेगा। उसका मन कहीं बदल गया, तो हो सकता है, कि वह हमारी स्त्रियों को भी हर ले जाये। तब तो बड़ा अनिष्ट हो जायेगा।
निश्चित ही उन सभासदों के पास अगर मोबाइल फोन होते, तो वे तत्काल अपने-अपने घरों में काल करने बैठ जाते और अपनी-अपनी स्त्रियों को घरों में कैद हो जाने का निर्देश पारित कर देते। लेकिन उनकी समस्या यह थी, कि उनके पास न तो मोबाइल फोन ही थे, और न ही वे तत्काल रावण के सामने बैठे होने को कारण, उसकी सभा को छोड़ कर जा सकते थे। तभी वीर अंगद के एक वाक्य से उनकी साँस में साँस आई-
‘जौं अस करौं तदपि न बड़ाई।
मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई।।’
यदि ऐसा करूँ, तो भी इसमें कोई बड़ाई नहीं है। कारण कि मरे हुए को मारने में कुछ भी पुरुषत्व नहीं है।
सभासदों ने वीर अंगद के यह शब्द सुने, तो उन्होंने मन ही मन अपने पुरखों का, कोटि-कोटि धन्यवाद किया, कि चलो वीर अंगद ने हमारी स्त्रियों के अपहरण का कार्यक्रम अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया है। लेकिन वीर अंगद रावण को मरा हुआ कह रहे हैं? अरे-अरे यह तो ठीक नहीं। क्या हमारे प्यारे राजा, लंकापति रावण कोई मरे हुए हैं?
बेचारे सभासदों को कहाँ ज्ञान था कि वीर अंगद केवल रावण को ही मरा नहीं कहने जा रहे थे, अपितु संसार में चौदह प्रकार के ऐसे लोगों का वर्णन करने जा रहे थे, जो कि देखने में तो जीवित प्रतीत होते हैं, लेकिन तब भी वे शव ही होते हैं। कौन हैं, वे चौदह लेाग, जिन्हें जीते जी भी मुर्दे की ही श्रेणी में रखा जाता है (क्रमशः)---जय श्रीराम।

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)