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व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / सावन माह का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है. इस माह में आने वाले प्रदोष व्रत में भगवान शंकर की पूजा से जीवन में हो रही सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं. सावन प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के जलाभिषेक और पूरी विधि विधान से भोलेनाथ की उपासना करने से जीवन में सुख समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती है. आइए जानते हैं कब रखा जाएगा सावन का दूसरा प्रदोष व्रत, शुभ मुहूर्त और महत्व.
कब है प्रदोषव्रत
हिंदू धर्म के पंचाग के अनुसार सावन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी यानी तेरहवीं तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस बार ये तिथि 30 जुलाई को सुबह 10 बजकर 34 मिनट से 31 जुलाई को सुबह 7 बजकर 19 मिनट तक हैं. 30 जुलाई रविवार को सावन माह का दूसरा प्रदोष व्रत है. प्रदोष काल शाम 7 बजकर 14 मिनट से रात 9 बजकर 29 मिनट तक है.
प्रदोष व्रत का महत्व
इस बार प्रदोष व्रत के रविवार को है. रविवार को होने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष कहते हैं. इस विशेष व्रत पर महादेव की उपासना से जातक भय और रोग से मुक्ति पाता है. गृहस्थ जीवन में सुखों की वृद्धि होती है. इस दिन महादेव के जलाभिषेक से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
कबकरें प्रदोष व्रत में पूजा
प्रदोष व्रत की पूजा के लिए गोधुली यानी सूर्यास्त के ठीक पहले का समय सबसे अच्छा माना जाता है. व्रती को सूर्यास्त के पहले स्नान कर पूजा की तैयारी करनी चाहिए. प्रदोष की पूजा में प्रारंभिक पूजा की जाती है जिसमें माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और नंदी के साथ भगवान शंकर को पूजा जाता है. उसके बाद आह्वान कर कलश की स्थापना की जाती है. कमल बने और जल से भरे कलश को दुर्वा पर स्थापित किया जाता है. अनुष्ठान के बाद प्रदोष कथा या शिव पुराण सुनते हैं.
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