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रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दिया गया कि देश में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम वर्ष 2009 से प्रभावशाली है और निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम वर्ष 2010 से प्रभावशाली है। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम वर्ष 2010 से लागू कर दिया, लेकिन इस कानून को प्रायवेट स्कूलों में ज्यादा और सरकारी स्कूलों में कम उपयोग किया जाता है, क्योंकि वर्ष 2010 से लेकर 2020 तक इस अधिनियम के अंतर्गत पात्र बच्चों को सिर्फ प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया जा रहा है और अब तक लगभग 2.85 लाख बच्चों को प्रवेश दिलाया जा चुका है। वहीं इस अधिनियम के अंतर्गत कितने पात्र बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती कराया गया, इसकी जानकारी शिक्षा विभाग के पास नहीं है, जबकि इस कानून के अंतर्गत सर्वप्रथम पात्र बच्चों को सरकारी स्कूलों में फिर अनुदान प्राप्त प्रायवेट स्कूलों में और अंत में गैर सहायता प्राप्त प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाना है, लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा विगत दस वर्षो में आरटीई कानून के अतंर्गत सर्वप्रथम पात्र बच्वों प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया जा रहा है और अब जब प्रायवेट स्कूल और पालकों के बीच ट्यूशन फीस को लेकर गतिरोध बढ़ते जा रहा है, तो प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग कह रहे है कि यदि प्रायवेट स्कूलों में पालकों को परेशानी हो रही है तो सरकारी स्कूल में आ जाए, जहां ऑनलाईन क्लासेस चल रही है।
जरा सोचिए, पालक अपने बच्चों को प्रायवेट अंग्रेजी मिडियम स्कूल से निकाल कर सरकारी हिन्दी मिडियम स्कूल में भर्ती कराए, जहां टीचरों और संसाधन की भारी कमी है, यदि सरकारी स्कूल इतना अच्छा है तो फिर आरटीई के अंतर्गत विगत दस वर्षो में पात्र बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश क्यों नहीं कराया गया? क्यों 2.85 लाख बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाया गया?
प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग के इस गैर जिम्मेदार बयान का छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन घोर विरोध करता है। शिक्षा का अधिकार कानून का पहले सरकारी स्कूलों में कड़ाई से पालन कराया जाना चाहिए, जहां टीचरों और संसाधन के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति किया जा रहा है और मानदंडों, मानको और शर्तो की धाजियां उड़ाई जा रही है।
पैरेंट्स एसोसिएशन के रायपुर जिला सचिव पनेश त्रिवेदी ने कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार कानून का यदि कड़ाई से पालन कराया जाए तो आधी से अधिक स्कूलों में ताला लग जाएगा और ऐसे सरकारी स्कूलों में पालको को अपने बच्चों को पढ़ाने की नसीहत देने वाले अधिकारीयों की तत्काल छुट्टी कर दिया जाएगा।
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