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सफलता की कहानी /शौर्यपथ /
पशुधन विकास विभाग द्वारा हितग्राही मूलक योजनाओं का क्रियान्वयन सुकमा जिले में सफलता पूर्वक हो रहा है। जिले में विभागीय योजनाओं जैसे बैकयार्ड कुक्कट पालन, शबरी लेयर फार्मिंग, शूकर पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन आदि योजनाओं के तहत हितग्राहियों को आजीविका मूलक गतिविधियों से जोड़कर आर्थिक मजबूती, स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
गरीबी उन्मूलन योजना के अन्तर्गत महिला स्व-सहायता समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्येश्य से पशुधन विकास विभाग जिला सुकमा द्वारा नवम्बर माह में ग्राम पंचायत केरलापाल के ग्यारह स्व-सहायता समूहों को एक-एक माह के 50-50 नग कड़कनाथ चूजे एवं दाना प्रदान किया गया था। जिससे उन्हें अपनी आय में वृद्धि के साथ-साथ आर्थिक स्थिति सदृढ़ करने में सहायता मिल सके।
चूज़ों की देख-रेख में देती हैं पर्याप्त समय
पटेलपारा केरलापाल में सत्यम स्व सहायता समूह, जय मां काली स्व सहायता समूह एवं शिवम् स्व सहायता समूह की महिलाओं ने बताया कि कड़कनाथ के चूजे मिलने से उन्हें आत्मनिर्भरता की राह नजर आई। महिलाओं ने बताया कि विभाग द्वारा प्रदाय किए गए चूजे उत्तम नस्ल के है जिनसे वे निश्चित ही आर्थिक लाभ कमा सकेंगी। जय मां काली समूह की अध्यक्ष श्रीमती सुकड़ी मरकाम ने बताया कि इन चूजों को रोजाना तीन समय खुराक दी जाती है जो इनकी वृद्धि होने में सहायक है। विभाग द्वारा चूजों के लिए 50 किलो दाना भी प्रदान किया गया है।
वहीं ग्राम केरलापाल सड़कपारा के शेरावाली स्व सहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती गन्धेश्वरी मंडल ने बताया कि समूह की महिलाएं चूजो की देख रेख के लिए पर्याप्त समय देती है। समूह के सदस्य कड़कनाथ चूजों के पालन को लेेकर खासी उत्साही हैं। चूजों को खुराक में वे दाने के साथ चावल, धान, कोंढा आदि मिलाकर देती है जिससे उनमें जल्दी वृद्धि हो। इसके साथ ही ठंड से बचाने के लिए बाड़े को चारों तरफ से कपड़े और बोरे से ढंक रखा है ताकि चूजे मौसमी सर्दी से बचे रहे। सुबह और रात को बाड़े को गरम रखने के लिए बल्ब और अलाव जलाकर व्यवस्था करती है, जिससे बाड़े में संतुलित तापमान बना रहता है।
कड़कनाथ का व्यवसाय कर कमाएंगी हजारों रुपए
चर्चा के दौरान हितग्राही महिलाओं ने बताया कि कड़कनाथ नस्ल के मुर्गियों की बाजार में अच्छी खासी कीमत है। अपने पौष्टिक गुणों के कारण साधारण प्रजाति की मुर्गियों की तुलना में इसकी कीमत लगभग दो से तीन गुना है। मंहगी होने के बावजूद भी लोग इसे खरीदने से कतराते नहीं। स्थानीय बाजार में कड़कनाथ बड़ी आसानी से लगभग 800 रुपए प्रति किलो की दर से बिक जाते है। जय मां काली स्व सहायता समूह की सदस्य श्रीमती देवे मिश्रा ने बताया कि उनके आस पास पड़ोस के लोगों ने अभी से मुर्गियों के लिए नाम लिखवा रखे हैं। चूज़े अभी लगभग 700 ग्राम वजनी हैं, पर्याप्त वजन होने के बाद वे अपने ग्राहकों को कड़कनाथ विक्रय कर देंगी।
शासन द्वारा प्रदाय किए गए कड़कनाथ का व्यवसाय कर स्व-सहायता समूह की महिलाएं अधिक आय अर्जित कर सकती हैं। व्यवसाय से उन्हें कड़कनाथ विक्रय करने से तो फायदा होगा ही साथ ही अंडों से निकलने वाले चूजों से वे अगली खेप खुद ही तैयार कर सकती है। अपने विशिष्ट स्वाद और पौष्टिक तत्वों के कारण कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे-मुर्गियां कई प्रकार के रोग के निवारण में फायदेमंद होने के कारण इसकी अच्छी मांग रहती है। जिसको ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा गरीब तबके की महिलाओं को स्वावलंबी और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से चूजे प्रदान किए गए हैं। स्व-सहायता समूह की महिलाओं की निष्ठा और लगन इस बात को दर्शाता है कि शासन की योजनाएं ग्रामीण अंचल के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही है। जिसमें ग्रामीणों को स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की राह सुदृढ नजर आती है।
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