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धर्म संसार /शौर्यपथ /भारत में कई महान ऋषि मुनि हुए हैं। प्राचीन काल में इन ऋषि मुनियों ने कई अविष्कार किए और भौतिक के सिद्धांत गढ़े थे। उन्हीं के सिद्धांतों को पढ़कर ही पश्चिमी जगत के नए सिद्धांत गढ़कर प्रसिद्ध पाई और ये ऋषि मुनि इतिहास के गर्त में खो गए। क्योंकि हर युग की भाषा और शासन अलग रहा है। उदाहरणार्थ तुलसीदासजी की रामायण इसलिए ज्यादा प्रचलित है क्योंकि उनकी भाषा आम लोगों की भाषा है। उसी तरह आज यह माना जाता है कि विज्ञान तो अंग्रेजी में ही होता है। आओ जानते हैं कि भारत के महान वैज्ञानिन ऋषि कणाद के बारे में 6 खास बातें।
कणाद गुजरात के प्रभास क्षेत्र (द्वारका के निकट कृष्ण के निर्वाण स्थल पर) में जन्मे थे। महर्षि कणाद ईसा से 600 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात बुद्ध और महावीर स्वामी के काल में। महर्षि कणाद वैशेषिक सूत्र के निर्माता, परंपरा से प्रचलित वैशेषिक सिद्धांतों के क्रमबद्ध संग्रहकर्ता एवं वैशेषिक दर्शन के उद्धारकर्ता माने जाते हैं। वे उलूक, काश्यप, पैलुक आदि नामों से भी प्रख्यात थे। महर्षि कणाद का जन्म चरक और पतंजलि से पूर्व हुआ था।
1.परामाणु सिद्धांत के जनक कणाद : महर्षि कणाद ने परमाणु के संबंध में विस्तार से लिखा है। यहां उस विस्तार से नहीं समझाया जा सकता। भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है- इस सिद्धांत के जनक महर्षि कणाद थे। यह बात बाद में आधुनिक युग के अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन (6 सितंबर 1766 -27 जुलाई 1844) ने भी मानी।
2. गति के नियम : महर्षि कणाद ने ही न्यूटन से पूर्व गति के तीन नियम बताए थे। सर आइजक न्यूटन ने 5 जुलाई 1687 को अपने कार्य 'फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका' में गति के इन तीन नियमों को प्रकाशित किया।
।।वेगः निमित्तविशेषात कर्मणो जायते। वेगः निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु। वेगः संयोगविशेषविरोधी।।- वैशेषिक दर्शन
अर्थात् : वेग या मोशन (motion) पांचों द्रव्यों पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।
3.गुरुद्वाकर्षण सिद्धांत के जनक कणाद : पश्चिम जगत मानता है कि 1687 से पहले कभी सेब जमीन पर गिरा ही नहीं था। जब सेब गिरा तभी दुनिया को समझ में आया की धरती में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति होती है। हालांकि इस शक्ति को विस्तार से सबसे पहले भास्कराचार्य ने समझाया था। उपरोक्त संस्कृत सूत्र न्यूटन के 913 वर्ष पूर्व अर्थात ईसा से 600 वर्ष पूर्व लिखा गया था। न्यूटन के गति के नियमों की खोज से पहले भारतीय वैज्ञानिक और दार्शनिक महर्षि कणाद ने यह सूत्र 'वैशेषिक सूत्र' में लिखा था, जो शक्ति और गति के बीच संबंध का वर्णन करता है। निश्चित ही न्यूटन साहब ने वैशेषिक सूत्र में ही इसे खोज लिया होगा। पश्चिमी जगत के वैज्ञानिक दुनियाभर में खोज करते रहे थे। इस खोज में सबसे अहम चीज जो उन्हें प्राप्त हुई वह थी 'भारतीय दर्शन शास्त्र।'
4. परमाणु बम : परमाणु बम के बारे में आज सभी जानते हैं। यह कितना खतरनाक है यह भी सभी जानते हैं। आधुनिक काल में इस बम के आविष्कार हैं- जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 कई वैज्ञानिकों ने काम किया और 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया। हालांकि परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डाल्टन (6 सितंबर 1766 -27 जुलाई 1844) को माना जाता है, लेकिन उनसे भी लगभग 913 वर्ष पूर्व ऋषि कणाद ने वेदों में लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। विख्यात इतिहासज्ञ टीएन कोलेबुरक ने लिखा है कि अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे। ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
महर्षि कणाद ने परमाणु को ही अंतिम तत्व माना। कहते हैं कि जीवन के अंत में उनके शिष्यों ने उनकी अंतिम अवस्था में प्रार्थना की कि कम से कम इस समय तो परमात्मा का नाम लें, तो कणाद ऋषि के मुख से निकला पीलव:, पीलव:, पीलव: अर्थात परमाणु, परमाणु, परमाणु। आज से 2600 वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था। कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे है।
5. वैशेषिक दर्शन के रचनाकार : वैशेषिक दर्शन वास्तव में एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है। यह आत्मा को भी पदार्थ ही मानता है। वैशेषिक दर्शन अनुसार व्यावहारिक तत्वों का विचार करने में संलग्न रहने पर भी स्थूल दृष्टि से सर्वथा व्यवहारत: समान रहने पर भी प्रत्येक वस्तु दूसरे से भिन्न है। वैशेषिक ने इसके परिचायक एकमात्र पदार्थ 'विशेष' पर बल दिया है इसलिए प्राचीन भारतीय दर्शन की इस धारा को 'वैशेषिक' दर्शन कहते हैं।
दूसरा यह कि प्रत्येक नित्य द्रव्य को परस्पर पृथक करने के लिए तथा प्रत्येक तत्व के वास्तविक स्वरूप को पृथक-पृथक जानने के लिए कणाद ने एक 'विशेष' नाम का पदार्थ माना है। 'द्वित्व', 'पाकजोत्पत्ति' एवं 'विभागज विभाग' इन 3 बातों में इनका अपना विशेष मत है जिसमें ये दृढ़ हैं। विशेष पदार्थ होने से 'विशेष' पर बल दिया गया इसलिए वैशेषिक कहलाए। चीनी विद्वान डॉ. एच. ऊई ने वैशेषिक दर्शन के काल को प्रारंभिक बौद्ध दर्शन का काल या उसके पूर्ववर्ती या सममालीन काल होने का अनुमान लगाया है। उनके अनुसार यह समकालीन या बौद्ध दर्शन के पूर्व गढ़ा गया दर्शन है।
6.कणाद का ग्रंथ : कणादकृत वैशेषिक सूत्र- इसमें 10 अध्याय हैं। वैशेषिक सूत्र के 2 भाष्य ग्रंथ हैं- रावण भाष्य तथा भारद्वाज वृत्ति। वर्तमान में दोनों अप्राप्य हैं। पदार्थ धर्म संग्रह (प्रशस्तपाद, 4थी सदी के पूर्व) वैशेषिक का प्रसिद्ध ग्रंथ है। यद्यपि इसे वैशेषिक सूत्र का भाष्य कहा जाता है, किंतु यह एक स्वतंत्र ग्रंथ है। पदार्थ धर्म संग्रह की टीका 'व्योमवती' (व्योमशिवाचार्य, 8 वीं सदी), पदार्थ धर्म संग्रह की अन्य टीकाएं हैं- 'न्यायकंदली' (श्रीधराचार्य, 10 वीं सदी), 'किरणावली (उदयनाचार्य 10वीं सदी), लीलावती (श्रीवत्स, 11वीं सदी)। पदार्थ धर्म संग्रह पर आधारित चन्द्र के 'दशपदार्थशास्त्र' का अब केवल चीनी अनुवाद प्राप्य है। 11वीं सदी के आसपास रचित शिवादित्य की 'सप्तपदार्थी' में न्याय तथा वैशेषिक का सम्मिश्रण है।
अन्य : कटंदी, वृत्ति-उपस्कर (शंकर मिश्र 15वीं सदी), वृत्ति, भाष्य (चंद्रकांत 20वीं सदी), विवृत्ति (जयनारायण 20वीं सदी), कणाद-रहस्य, तार्किक-रक्षा आदि अनेक मौलिक तथा टीका ग्रंथ हैं।
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