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ब्यूटी टिप्स /शौर्यपथ / आजकल के समय में बालों की देखभाल करना एक बड़ी चुनौती बन गया है. प्रदूषण, गलत खानपान, तनाव और केमिकल वाले प्रोडक्ट्स के कारण बालों की क्वालिटी खराब हो जाती है. ऐसे में प्राकृतिक उपायों का सहारा लेना सबसे बेहतर होता है. एलोवेरा जेल जिसे सदियों से औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है, बालों के लिए एक अद्भुत उपचार साबित हो सकता है. आइए जानें कि बालों पर एलोवेरा जेल लगाने से क्या फायदे होते हैं और इसे कैसे इस्तेमाल किया जाए.
बालों के लिए एलोवेरा के फायदे |
एलोवेरा में विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है. यह न सिर्फ बालों को पोषण देता है, बल्कि उन्हें मजबूत और चमकदार भी बनाता है.
1. डैंड्रफ को कम करता है
एलोवेरा में एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो स्कैल्प की सफाई करके डैंड्रफ को कम करने में मदद करते हैं. यह सिर की खुजली और जलन को भी शांत करता है.
2. बालों का टूटना रोकता है
एलोवेरा में मौजूद एंजाइम और अमीनो एसिड बालों की जड़ों को मजबूत करते हैं. यह बालों के झड़ने को रोकता है और उन्हें घना बनाता है.
3. बालों में प्राकृतिक चमक लाता है
एलोवेरा जेल बालों को डीप कंडीशनिंग प्रदान करता है. यह बालों को मॉइश्चराइज करके उन्हें रेशमी और चमकदार बनाता है.
4. बालों की ग्रोथ को बढ़ावा देता है
एलोवेरा में मौजूद प्रोटियोलिटिक एंजाइम डेड स्किन सेल्स को हटाकर स्कैल्प को स्वस्थ बनाते हैं. यह बालों के विकास में मदद करता है.
5. फ्रिज़ी बालों को कंट्रोल करता है
अगर आपके बाल रूखे और उलझे हुए हैं, तो एलोवेरा जेल का उपयोग आपके बालों को मैनेजेबल बनाने में मदद करता है.
एलोवेरा जेल लगाने का सही तरीका |
शुद्ध एलोवेरा जेल का इस्तेमाल करें: आप बाजार से एलोवेरा जेल खरीद सकते हैं या ताजे एलोवेरा पत्तों से जेल निकाल सकते हैं. ध्यान रखें कि यह शुद्ध और केमिकल-फ्री हो.
स्कैल्प पर मसाज करें: एलोवेरा जेल को हल्के हाथों से स्कैल्प पर लगाएं और 5-10 मिनट तक मसाज करें. यह स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ावा देता है.
बालों की लंबाई पर लगाएं: स्कैल्प के साथ-साथ बालों की पूरी लंबाई पर जेल लगाएं. यह बालों को कंडीशनिंग प्रदान करेगा.
30 मिनट तक छोड़ दें: जेल को कम से कम 30 मिनट तक बालों में लगा रहने दें। आप चाहें तो इसे रातभर भी लगा सकते हैं।
माइल्ड शैम्पू से धोएं: एलोवेरा जेल लगाने के बाद बालों को माइल्ड शैम्पू से धो लें। यह बालों से गंदगी हटाने के साथ उन्हें सॉफ्ट और सिल्की बनाएगा.
एलोवेरा जेल के साथ अन्य प्राकृतिक चीजों का उपयोग:
एलोवेरा और नारियल तेल
2 चम्मच एलोवेरा जेल में 1 चम्मच नारियल तेल मिलाएं.
इसे बालों और स्कैल्प पर लगाएं और 1 घंटे बाद धो लें.
एलोवेरा और दही
2 चम्मच एलोवेरा जेल में 2 चम्मच दही मिलाकर हेयर मास्क बनाएं.
इसे बालों पर लगाएं और 30 मिनट बाद धो लें.
एलोवेरा और नींबू का रस
2 चम्मच एलोवेरा जेल में 1 चम्मच नींबू का रस मिलाएं.
इसे स्कैल्प पर लगाएं। यह डैंड्रफ के लिए बहुत फायदेमंद है.
अगर आप नियमित रूप से एलोवेरा जेल का उपयोग करते हैं, तो कुछ ही हफ्तों में आपके बालों की सेहत में सुधार नजर आने लगेगा. यह बालों को न केवल पोषण देगा, बल्कि उन्हें प्राकृतिक चमक और मजबूती भी प्रदान करेगा.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्व है. इसे भगवान विष्णु की पूजा का एक जरिया माना जाता है. इन्हीं एकादशियों में से एक है षटतिला एकादशी, जो अपने विशेष महत्व के लिए जानी जाती है. षटतिला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा मिलती है. इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा भी की जाती है, जिससे जीवन में आर्थिक तरक्की मिलती है. देवी लक्ष्मी सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देती हैं. माना जाता है कि व्रत करने वाले भक्त को इस दिन सुबह-सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूजा के समय विशेष रूप से तिल का उपयोग किया जाता है. पूजा में तिल इसलिए शामिल करते हैं क्योंकि ये शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माने जाते हैं. इस दिन तिल का दान करना भी विशेष फलदायी माना जाता है.
इस दिन विधिपूर्वक करनी चाहिए पूजा
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल षटतिला एकादशी 25 जनवरी, शनिवार को पड़ रही है. ये एकादशी हर हिंदू परिवार के लिए पवित्र मानी जाती है और इस दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्रती के सारे पाप नष्ट होते हैं, और उसका जीवन सुखमय होता है. उसे अन्य जन्मों में भी इसका शुभ फल मिलता है. इसलिए षटतिला एकादशी का व्रत न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्व रखता है. इस व्रत से साधक के जीवन में पॉजिटिव एनर्जी आती है और वो ईश्वर की कृपा का पात्र बनता है.
कब है षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त
षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त 24 जनवरी की शाम 07 बजकर 25 मिनट से शुरू हो रहा है और ये 25 जनवरी की रात 08 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगा. उदया तिथि के आधार पर व्रत 25 जनवरी को किया जाएगा. यानी षटतिला एकादशी 25 जनवरी दिन शनिवार को मनाई जाएगी. इस व्रत को करते समय ये ध्यान देना जरूरी है कि पवित्रता पूरी तरह से बनी रहे. इस दिन दान पुण्य का भी विशेष महत्व है, इसलिए जरूरतमंदों को तिल, अन्न आदि का दान कर सकते हैं.
मां तुलसी की पूजा कैसे करें ?
षटतिला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागना शुभ माना जाता है. इस समय उठकर सबसे पहले अपने नित्य के क्रियाकलापों को पूरा करें और फिर पवित्र जल से स्नान कर लें. स्नान के बाद साफ कपड़े पहन लें और पूजा के लिए तैयार हो जाएं. अब मां तुलसी की पूजा शुरू करें. सबसे पहले तुलसी जी के पौधे के पास एक साफ जगह पर बैठ जाएं. तुलसी माता का श्रृंगार करें, इसके लिए आप उन्हें लाल चुनरी और चूड़ियां अर्पित कर सकते हैं. साथ ही सिंदूर भी अर्पित करें. ये माना जाता है कि ऐसा करने से देवी तुलसी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं. इसके बाद तुलसी जी को हल्दी, रोली और चंदन अर्पित करें. ये पूजा की अनिवार्य विधि है, जिसे करने से पवित्रता और शुद्धता का भाव आता है. पूजा जब खत्म होने वाली हो तो तुलसी जी के पास एक घी का दीया जलाएं. ये दीया ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक होता है जो जीवन के अंधकार को दूर करता है.
मां तुलसी के लिए करें ये उपाय
एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के चारों ओर कलावा बांधें. ये उपाय आपके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है और सुख-शांति लाता है. इस दिन तुलसी पूजन में इस मंत्र का जाप करें.
एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए और जल अर्पित नहीं करें. ऐसा माना जाता है कि मां तुलसी इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त एकादशी का निर्जला व्रत करती हैं. जल अर्पित करने या पत्ते तोड़ने से उनका व्रत भंग हो सकता है, जिससे उन्हें क्रोध आ सकता है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / 13 जनवरी से शुरू हुए कुंभ मेले के दो अमृत स्नान के बाद श्रद्धालुओं को तीसरे अमृत स्नान (शाही स्नान) का बेसब्री से इंतजार है, जो मौनी अमावस्या यानी 29 जनवरी को है. बीते 2 अमृत स्नान की तरह ही मौनी अमावस्या पर भी देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम नदी के किनारे एकत्रित होकर पुण्य फल की प्राप्ति करेंगे. इस बार मौनी अमावस्या कई मायनों में खास है क्योंकि शिववास सहित कई और मंगलकारी योग बन रहें हैं. इस दिन कुंभ स्नान-दान और भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी. ऐसे में आइए जानते हैं मौनी अमावस्या के दिन स्नान-दान का शुभ मुहूर्त और मंगलकारी योग....
मौनी अमावस्या शुभ मुहूर्त -
मौनी अमावस्या का मुहूर्त 28 जनवरी को शाम 07:35 मिनट से शुरू होगा, जो अगले दिन यानी 29 जनवरी को शाम 06:05 मिनट पर समाप्त होगा. हिन्दू धर्म में उदयातिथि की विशेष मान्यता है इसलिए साधक 29 जनवरी के दिन स्नान-ध्यान कर भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं.
मौनी अमावस्या को कौन से योग बन रहे हैं -
मौनी अमावस्या पर शिववास के अलावा सिद्धि योग भी बन रहा है. शिववास योग 29 जनवरी को शाम 06:05 मिनट तक है जबकि सिद्धि योग रात 09:22 मिनट तक है. मान्यता है इन योगों में भगवान शिव की पूजा करने से साधक की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
मौनी अमावस्या पर कौन से नक्षत्र बन रहे हैं -
इस दिन श्रावण एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का संयोग बन रहा है.
मौनी अमावस्या महत्व -
मौनी अमावस्या के दिन स्नान-दान करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं. साथ ही पापों से मुक्ति मिलती है, इसके अलावा मौनी अमावस्या के दिन भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा करने से कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी कम होता है.
अन्य शाही स्नान की तारीख
चौथा अमृत स्नान 03 फरवरी 2025, बसंत पंचमी
पांचवां अमृत स्नान 12 फरवरी 2025, माघ पूर्णिमा
छठा अमृत स्नान 26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि
मनेन्द्रगढ़/शौर्यपथ /छत्तीसगढ़ राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं में गहरी जड़ें जमाए हुए कई पर्व और उत्सव हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि समाज में सामूहिकता, भाईचारे और सामाजिक सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देते हैं। इनमें से एक प्रमुख और विशिष्ट पर्व छेरछेरा है, जो विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति का आदर्श प्रस्तुत करता है और किसानों के जीवन से जुड़ा हुआ है। छेरछेरा पर्व कृषि पर आधारित होने के कारण यह नए कृषि मौसम और फसल कटाई के बाद मनाया जाता है, जिसे हर साल पौष पूर्णिमा के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
समाज में सामूहिकता और सहयोग का प्रतीक है छेरछेरा
छेरछेरा पर्व की शुरुआत में ग्राम देवताओं की पूजा होती है, जिसे ग्रामीण अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए तथा कृषि की उन्नति की कामना से करते हैं। यह पर्व फसल के कटाई के बाद एक सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो समाज के सभी वर्गों को एकजुट करता है। इस दिन विशेष रूप से छोटे बच्चे, युवक और युवतियां हाथ में टोकरी या बोरियां लेकर घर-घर छेरछेरा मांगने निकलते हैं। वे ष्छेर छेरता माई मोरगी मार दे, कोठे के धान ला हेर देष् जैसे पारंपरिक गीत गाते हुए घरों के सामने जाते हैं और वहां से नया चावल और नकद राशि प्राप्त करते हैं। यह सब एक सामूहिक खुशी का हिस्सा होता है, जो पूरे गांव को उत्साहित और सामूहिक रूप से एकजुट करता है।
जनजातीय समुदाय की धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं
समाज की एकता और सामूहिक सहयोग को दर्शाते हुए यह पर्व केवल एक पारंपरिक उत्सव ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक सहयोग का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी बन जाता है। छेरछेरा के दौरान लोगों द्वारा इकट्ठा किया गया चावल और धन गरीब और जरूरतमंद परिवारों में बांटा जाता है, जिससे ग्रामीणों के बीच सहकारिता और एकजुटता की भावना और मजबूत होती है। इस प्रक्रिया में पारंपरिक रूप से अनाज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का काम किया जाता है, जिसे ग्रामीण बैंकिंग प्रणाली के रूप में देखा जा सकता है। यह प्रणाली सामाजिक सुरक्षा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां ग्रामीण अपनी जरूरतों को साझा करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और जैव विविधता संरक्षण
सरगुजा में छेरछेरा पर्व का विशिष्ट रूप और यहां की परंपराएं विशेष महत्व रखती हैं। सरगुजा के गांवों में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है, और यह स्थानीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यहां के बच्चे विशेष रूप से छेरछेरा के दिन हर घर के सामने पहुंचते हैं, और इस दिन उन्हें नया चावल और धन प्राप्त होता है। यह पर्व न केवल कृषि का उत्सव है, बल्कि यह लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भी अपनी अहमियत बनाए रखता है। गांवों में छेरछेरा के दौरान नृत्य और गीत की विशेष भूमिका होती है। महिलाएं जहां सुगा गीत गाती हैं, वहीं पुरुष शैला गीत गाकर नृत्य करते हैं। साथ ही युवा वर्ग भी डंडा नृत्य करते हुए घर-घर पहुंचता है। यह नृत्य और गीत स्थानीय परंपराओं और संस्कृति का हिस्सा होते हैं, जो समाज की एकता और विविधता को बढ़ावा देते हैं।
इसके अलावा छेरछेरा के दौरान होने वाले कला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ग्रामीण अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसमें लोकनृत्य, संगीत, नाटक और अन्य प्रदर्शन शामिल होते हैं, जिनका उद्देश्य स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करना और संस्कृति को संजोना होता है।
प्रकृति और कुल देवी देवताओं का करते है सम्मान
छेरछेरा पर्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से सभी लोग अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ मिलकर खुशी मनाते हैं और एक-दूसरे से सहयोग करते हैं। यह पर्व उन सभी परंपराओं का जीवंत उदाहरण है, जो हमारे समाज में भाईचारे और प्यार की भावना को बढ़ावा देती हैं। छेरछेरा के दिन विभिन्न गांवों में खेलकूद, प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिनमें लोग अपनी कला और कौशल का प्रदर्शन करते हैं। ये कार्यक्रम न केवल मनोरंजन का साधन होते हैं, बल्कि यह समाज में सामूहिकता और सामूहिक सहयोग की भावना को भी सुदृढ़ करते हैं।
छेरछेरा पर्व में प्रकृति और देवताओं का सम्मान एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है। इस पर्व के दौरान लोग न केवल अपने खेतों से काटे गए धान की पूजा करते हैं, बल्कि वे पेड़-पौधों, जल, मिट्टी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का भी सम्मान करते हैं। यह पर्व पर्यावरण के संरक्षण और जैव विविधता के प्रति जागरूकता फैलाने का एक बड़ा अवसर होता है। लोक पूजा के माध्यम से लोग यह संदेश देते हैं कि हम प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पर्यावरण का संरक्षण करें।
जैव विविधता के संरक्षण में छेरछेरा पर्व का योगदान महत्वपूर्ण है। पर्व के दौरान प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और संरक्षण किया जाता है, और यह संदेश फैलाया जाता है कि अगर हम प्रकृति का ध्यान नहीं रखेंगे तो हमारा अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। यह पर्व न केवल कृषि और पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह सांस्कृतिक संरक्षण का भी आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसमें लोकगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
जनजातीय समुदायों के लिए छेरछेरा पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। आदिवासी लोग इसे न केवल एक कृषि पर्व के रूप में मानते हैं, बल्कि इसे अपने जीवन और संस्कृति के एक अभिन्न हिस्सा के रूप में देखते हैं। जनजातीय समुदायों में यह विश्वास है कि उनके देवता और प्रकृति की शक्तियां उनके जीवन के हर पहलू में मौजूद हैं, और छेरछेरा पर्व के माध्यम से वे इन शक्तियों का सम्मान करते हैं। जनजातीय समुदाय के लोग इस दिन विशेष रूप से प्रकृति पूजा करते हैं और अपने ग्राम देवताओं को धन्यवाद अर्पित करते हैं। उनका मानना है कि यह पर्व उन्हें उनके जीवन की कठिनाइयों से उबारने के लिए देवताओं का आशीर्वाद प्रदान करता है। साथ ही, इस दिन जनजातीय समुदाय के लोग नई फसल को देवताओं को समर्पित करते हैं, ताकि आगामी वर्ष में उनकी कृषि समृद्ध हो और परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ रहें। इस पर्व के दौरान जनजातीय समुदाय परंपरागत धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जिसमें वे अपने देवताओं के सामने विशेष रूप से अनाज, फल और फूल चढ़ाते हैं, ताकि उन पर देवताओं की कृपा बनी रहे। वे इस दिन को एक तरह से धार्मिक आभार के रूप में मनाते हैं, जिसमें उनके समुदाय की समृद्धि, शांति और सौहार्द की कामना की जाती है।
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व न केवल किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, बल्कि यह समाज में सामूहिकता, भाईचारे और सहयोग की भावना को भी मजबूत करता है। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर अपने सुख-दुख साझा करने चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए।
इस पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और यह छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। चाहे वह नृत्य और संगीत हो, लोकगीत हो या फिर समाजिक सहयोग हो, छेरछेरा पर्व ने हमेशा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और भविष्य में भी यह इसी तरह से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोने का काम करेगा।
ब्यूटी टिप्स /शौर्यपथ /रसोई के मसालों में एक नहीं बल्कि कई गुण पाए जाते हैं जो ना सिर्फ त्वचा बल्कि बालों के लिए भी फायदेमंद होते हैं. इन्हीं चीजों की गिनती में आते हैं मेथी के दाने. बालों पर मेथी के दाने लगाने पर ना सिर्फ बालों का टूटना और झड़ना कम होता है बल्कि स्कैल्प की अच्छी सफाई हो जाती है, स्कैल्प पर जमी डेड स्किन सेल्स हटती हैं, बालों का बेजानपन दूर होता है और साथ ही बाल सिल्की और सॉफ्ट होने लगते हैं. मेथी के दाने विटामिन सी, आयरन, पौटेशियम, निकोटिनिक एसिड और आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होते हैं. ऐसे में यहां जानिए बालों पर किस तरह से मेथी के दाने लगाए जा सकते हैं.
मुलायम बालों के लिए मेथी के दाने |
रात में 2 से 3 चम्मच मेथी के दाने पानी में भिगोकर रख दें. आप बालों की लंबाई के अनुसार भी मेथी के दाने ले सकते हैं. इन दानों को अगली सुबह पीसें और पेस्ट तैयार कर लें. यह पेस्ट बालों की जड़ों से लेकर सिरों तक लगाया जा सकता है. इसे बालों पर आधे से एक घंटे लगाकर रखें और फिर धोकर हटा लें. बालों में चमक आ जाती है.
सिर की खुजली के लिए
अगर डैंड्रफ या ड्राइनेस के कारण स्कैल्प पर खुजली होती है तो इसके लिए मेथी के दानों के पेस्ट में अंडे मिलाकर लगाए जा सकते हैं. आपको पूरा अंडा नहीं लेना है बल्कि अंडे के पीले हिस्से को मेथी के दानों में मिलाकर सिर पर लगाना है. इसे आधा घंटा लगाकर रखें और फिर धोकर हटा लें.
बाल बढ़ाने के लिए
मेथी के गुण बालों को बढ़ने में मदद करते हैं. ऐसे में एक कटोरी नारियल के तेल में एक चम्मच मेथी के दाने डालकर पकाएं. जब मेथी के दाने अच्छी तरह पक जाएं तो इस तेल को ठंडा होने के लिए रख दें. बालों पर हफ्ते में 2 से 3 बार इस तेल को हल्का गर्म करके लगाया जा सकता है. मेथी का यह तेल बालों को मजबूती देता है और हेयर ग्रोथ बूस्ट करता है.
हेयर फॉल रोकने के लिए
लगातार झड़ रहे बालों को मजबूत बनाने के लिए मेथी को रातभर भिगोकर रखें और अगली सुबह पीसकर पेस्ट बनाकर सिर पर लगाएं. इस पेस्ट में नींबू का रस मिलाया जा सकता है. इसे सिर पर 20-30 मिनट लगाकर रखने के बाद धोकर हटा लें. बालों को जड़ों से सिरों तक मजबूती मिलती है.
डैंड्रफ हटाने के लिए
सिर पर जमे डैंड्रफ को कम करने के लिए मेथी के पेस्ट में दही मिलाकर हेयर मास्क बना लें. इस हेयर मास्क को सिर पर आधा घंटा लगाकर रखने के बाद धोकर हटाएं. हफ्ते में 3 बार इस नुस्खे को आजमाया जाए तो सिर से डैंड्रफ पूरी तरह हट जाता है.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /इस वर्ष का महाकुंभ मेला संगम नगरी प्रयागराज में लगने वाला है. प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होगा. धर्म और आस्था का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ 12 साल के बाद लगता है और इसमें देशभर से साधु संतों के अलावा बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं. मान्यता है कि कुंभ स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन भर के पापों से मुक्ति मिल जाती है. अनुमान है कि इस साल महाकुंभ मेले में लगभग 40 करोड़ लोग आस्था की डुबकी लगाएंगे.
महाकुंभ मेला 45 दिन चलेगा और इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण शाही स्नान की तिथियां होती हैं. उत्तर प्रदेश प्रशासन की ओर से मेले को लेकर पूरी तैयारियां की गई हैं. प्रशासन की ओर से मेला क्षेत्र में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए है. आइए जानते हैं महाकुंभ मेले में उत्तर प्रदेश प्रशासन की ओर से क्या नियम बनाए गए हैं.
मेला क्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के नियम
इन चीजों को लेकर न जाएं
उत्तर प्रदेश सरकार के नियम के अनुसार, श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र में कीमती सामान, अनावश्यक भोजन सामग्री और कपड़े ले जाने की मनाही की गई है. मेले में भीड़भाड़ के कारण कीमती सामान के खोने का डर रहता है. अनावश्यक भोजन सामग्री के कारण मेला क्षेत्र में गंदगी फैलने का खतरा रहता है.
अनजान लोगों पर न करें भरोसा
सरकार ने श्रद्धालुओं से मेले में अनजान लोगों से सावधान रहने और उन पर भरोसा नहीं करने के लिए कहा है. मेले में खो जाने या कोई अन्य परेशानी आने पर प्रशासन की ओर से की गई व्यवस्था से ही मदद लेने की अपील की गई है.
नदी में प्रदूषण
मेला क्षेत्र में नदी में पूजन सामग्री फेंकने पर भी सख्त मनाही है. नदी में पूजा के दौरान उपयोग किए गए फूल पत्ती व अन्य सामग्री प्रवाहित करने पर भी रोक लगाई गई है.
रहें भीड़ से दूर
प्रशासन की ओर से ऐसे लोग जो इंफेक्शन वाली बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें भीड़भाड़ और मेला क्षेत्र से दूर रहने को कहा गया है.
प्लास्टिक की थैलियों पर रोक
प्रयाग शहर और मेला क्षेत्र में प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर रोक लगाई गई है. इसके साथ ही खुले में शौच करने की भी मनाही है.
नियमों का करें पालन
महाकुंभ मेले में किसी तरह की परेशानी से बचने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बनाए गए इन नियमों का पालन जरूर करें. ये सभी नियम लोगों की सुविधा के लिए बनाए गए हैं. इनका पालन करने से मेले में सभी को कई तरह की परेशानियों से बचने में मदद मिलेगी.
इन दिनों को होगा शाही
13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा का शाही स्नान
14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति का शाही स्नान
29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या का शाही स्नान
3 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी का शाही स्नान
12 फरवरी को माघ पूर्णिमा का शाही स्नान
26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर्व का शाही स्नान
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वों में से एक स्कंद षष्ठी पर्व भी है, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता हैं. इसे तमिलनाडु में कंद षष्ठी भी कहा जाता है, कहते हैं इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती केपुत्र कार्तिकेय की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से जीवन में आने वाली सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है और भक्तों की मनोकामना भी पूरी होती हैं. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि इस बार स्कंद षष्ठी की पूजा किस दिन की जाएगी, आपको किस तरह से भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना करनी चाहिए और इसका महत्व क्या है.
स्कंद षष्ठी पर्व 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार, स्कंद षष्ठी पर्व पौष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो इस बार 4 जनवरी को देर रात 10:00 बजे से शुरू होकर अगले दिन 5 जनवरी 2025 को रात 8:15 तक रहेगा, ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 5 जनवरी 2025, रविवार के दिन ही स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाएगा. यह साल की पहली षष्ठी होगी, जब भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना की जाएगी.
इस तरह करें भगवान कार्तिकेय की पूजा
स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिक की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करके नए या स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर के मंदिर की साफ सफाई करें या घर में एक साफ सुथरा स्थान चुनें. वहां पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं, ऊपर से फूलों से सजाएं, भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र को एक आसन पर स्थापित करें. पूजा के लिए जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप आदि चीजों को एकत्रित करें. भगवान कार्तिकेय के सामने दीपक जलाएं, इसके बाद गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से उनका अभिषेक करें. तत्पश्चात् भगवान को चंदन और अक्षत लगाकर उनका तिलक करें, भगवान को फूल अर्पित करें, खासकर कमल का फूल उन्हें जरूर चढ़ाएं. इसके अलावा भगवान को फल, मिठाई और अन्य नैवेद्य अर्पित करें. अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें, स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करें और सच्चे मन से भगवान कार्तिकेय की आराधना करें. ध्यान रखें कि पूजा के समय किसी प्रकार का वाद-विवाद झगड़ा ना करें और इस दिन मांस मदिरा का सेवन नहीं करें.
स्कंद षष्ठी पूजा में करें इन मंत्रों का जाप
ॐ षडाननाय नमः
ॐ स्कन्ददेवाय नमः
ॐ शरवणभवाय नमः
ॐ कुमाराय नमः
स्कंद षष्ठी पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी पूजा का विशेष महत्व है, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता हैं, इन्हें युद्ध का देवता कहा जाता हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान कार्तिकेय ने असुरों के राजा तारकासुर का संघार किया था, यह पर्व साहस, दृढ़ता और बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है. कहते हैं कि जो दंपति इस दिन सच्चे मन से ध्यान कर कार्तिकेय भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. मान्यताओं के अनुसार, यह भी कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी पर पूजा करने से घर में जो भी बुरी शक्तियां होती है उनका नाश होता है और भगवान कार्तिकेय की कृपा से घर में सुख शांति और समृद्धि आती हैं.
*विजय मिश्रा 'अमित'*वरिष्ठ हिंदी-लोकरंगकर्मी
आलेख /शौर्यपथ / नये वर्ष के आगमन की खुशी में पुराने वर्ष की न आखरी रात लोग झूम रहे थे। गांव-शहर, गली में नाच-गाना, खाना-पीना चल रहा था, पर मैं चूंकि अपने नये वर्ष की शुरूआत हिन्दू पंचांग के मुताबिक चैत्र के माह को मानता हूं, अतः इन सबसे दूर था और रोज की तरह बिस्तर पर जल्दी ही लुढ़क गया था, किन्तु नये वर्ष के ढोल ढमाका, हो हल्ला और बीच-बीच में फूटने वाले कान फोड़ पटाखों की आवाज से मेरी नींद उचट गई थी। तभी मेरे कान में किसी के सिसकने की आवाज सुनाई दी। मैं उस दिशा में चल पड़ा जहां से सिसकने की आवाज आ रही थी।
कुछ कदम आगे जाने के उपरान्त मैंने देखा कि बरान्डे की दीवाल पर कील में टंगा कैलेंडर फड़फड़ाते हुए सिसक रहा है मानो छाती पीट-पीट कर रो रहा हो। मैं उसे देख कर भौंचक रह गया और करीब जाके पूछा- क्यों भाई कैलेंडर, पूरी दुनिया नये वर्ष के आगमन के उल्लास में डूबी हुई है और तुम कलप-कलप कर रो रहे हो। ऐसी क्या पीड़ा तुम्हें हो रही हैं ?
मेरे इस सवाल को सुन कर कैलेंडर अपने बहते हुए आंसू पोछते हुए बोला-अजीब आदमी हो, क्या तुम्हें मालूम नहीं कि आज मेरी जिंदगी की आखरी रात है। कल मेरी जगह नया कैलेंडर टंग जायेगा और मैं कचरे की तरह फेंक दिया जाउंगा। मुझे कोई याद करने वाला भी नहीं बचेगा।
अच्छा...... तो तुम्हें इसी बात का दुःख है कि अब तुम्हें कोई पूछेगा नहीं। अरे भाई कैलेंडर तुम्हें तो खुश होना चाहिये क्योंकि कल सुबह नये वर्ष पर तुम्हारें छोटे भाई अर्थात् नये कैलेंडर को तुम्हारी जगह सुशोभित होने का अवसर मिलेगा।
मेरी यह बात सुन कर कैलेंडर गुस्से में फड़फड़ा उठा और बोला- आदमी की जात सिर्फ अपने स्वार्थ और अपने फायदे को पहले देखते हो तभी मेरी यह बात सुन कर कैलेंडर गुस्से में फड़फड़ा उठा और बोला- आदमी की जात सिर्फ अपने स्वार्थ और अपने फायदे को पहले देखते हो, तभी तो मेरे लिए भी ऐसी घटिया सोच तुम्हारी बन गई हैं। कान खोल करसुनो, मैं इसलिए नहीं रो रहा हूं कि कल मेरी जगह नया कैलेंडर आ जायेगा। मैं तो ये सोच-सोच कर रो रहा हूं कि बारह महीने मैं तुम लोगों को होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस जैसे अनेक त्योंहारों की तारीख बताते रहा। ऐसे त्यौहार और विशेष दिनों की सूचना देते आपसी भाईचारा को बढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़-पौधा लगाने, पानी बचाने, नशापान से दूर रहने का संदेश देता रहा पर तुम लोगों ने मेरी बातों की परवाह नहीं की।
क्या बात कर रहे हैं कैलेंडर भाई ? मैं कैलेंडर को टोंकते हुए बोला-हम तो आपके बताये त्यौहार के मुताबिक खूब जश्न मनाते रहे। वर्ष भर हमनें अलग-अलग त्यौहारों का मजा लिया। भला हमारे त्यौहार मनाने में तुम्हें क्या कमी, क्या खोट दिखाई दी जो कि इतना गुस्सा कर रहे हो ?
मेरा यह सवाल सुन कर कैलेंडर दबंग आवाज में बोला- आग लगे तुम लोगों के त्यौहार मनाने के ढंग में। अरे तुम लोग तो बारहों महिना त्यौहारों की आड़ में लड़ते-झगड़ते रहे। तुम्हारा कोई भी त्यौहार बिना नशा, शराबखोरी के बिना पूरा होते नहीं दिखा। इसीलिए मै अपनी जिंदगी को व्यर्थ गया कहते हुए रो रहा हूं। वर्ष भर हरेक दिन की महिमा को बताते-बताते मैं पानी में डूबे मिट्टी के डल्ले की तरह घुलता रहा, पर तुम नहीं सुधरे कुत्ते की पूंछ की टेढ़े के टेढ़े रह गये और आज मेरा अंतिम दिन आ गया।
कैलेंडर अपने आंख से धार-धार बहते आंसू को पोछने रूका और एक गहरी सांस लेने के बाद फिर गंभीर आवाज में बोला- अरे, मुझे तो मालूम था कि एक जनवरी को मेरा जन्म हुआ और इकतीस दिसम्बर की रात मेरी जिंदगी की आखरी रात होंगी, पर तुम लोगों को तो इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं होता कि तुम्हारी जिंदगी का दीपक कब बुझ जायेगा ? इसीलिए समझा रहा हूं कि नये वर्ष में अच्छे-अच्छे काम करना। मैं और मेरा के चक्कर में पड़ने के बजाय हम और हमारे के भाव को लिये हुए प्रेम की डोर में बंध जाना। रूपया-पैसा और पद-प्रतिष्ठा के घमण्ड में पड़े अकड़े मत रहना, नहीं तो जिंदगी के आखिरी दिन कोई नाम लेने वाला भी नहीं बचेगा।
कैलेंडर की बातें ध्यान से सुनते-सुनते मैंने फिर सवाल किया- अरे भईया कैलेंडर जरा साफ-साफ बताओ कि नये वर्ष में हमें क्या करना चाहिए। मेरे इस सवाल पर शायद कैलेंडर को नई उम्मीद की किरण दिखाई दीं वह थोड़ा सा मुस्काया और बोला-नये वर्ष में अपनी मिट्टी, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति की रक्षा का संकल्प लो और ये गांठ मन में बांध लो कि नये वर्ष में नये भारत का सृजन करेंगे, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा से दूर रहेंगे। देश की रक्षा खातिर जो हुए बलिदान उनको नित नमन करेंगे।
कैलेंडर के ऐसे विचारों को सुनकर मेरे हृदय में उत्साह की नई उमंगे हिलोरे मारने लगी। मैं कैलेंडर को अपने दोनों हाथों से लिपटाते हुए बोला- कैलेंडर भईया, आप भरोसा रखो नये वर्ष के नये कैलेंडर की जिंदगी को हम व्यर्थ जाने नहीं देंगे। हर दिवस, पर्व, उत्सव की महिमा के अनुरूप कार्य करेंगे। मेरे ऐसे विचार को सुन कर कैलेंडर के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आये और वह मां की गोद में किलकारी भरते बच्चे की भांति आंखे बंद कर सो गया।
आस्था /शौर्यपथ / नए साल के पहले दिन का स्वागत हर कोई इसी उम्मीद के साथ करता है कि ये साल नई खुशियों के साथ शुरू होगा. नए साल के साथ समृद्धि के भी नए द्वार खुलें, ये सभी के मन की कामना होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नए साल का स्वागत अगर कुछ खास उपायों के साथ किया जाए तो नया साल भी बहुत खास बन सकता है. खासतौर से पूरे घर को पॉजीटिव एनर्जी से भर देने के लिए. साथ ही माता लक्ष्मी की असीम कृपा के लिए भी. ये ऐसे उपाय माने जाते हैं जो माता लक्ष्मी की कृपा को भी साथ लेकर आते हैं. जिन्हें मानकर आप पूरे साल घर को धन धान्य से भरपूर देख सकते हैं. चलिए जानते हैं कौन कौन से हैं वो उपाय, जिन्हें आजमा कर आप नए साल में मां लक्ष्मी की कृपा को महसूस कर सकते हैं. साथ ही अपनी लाइफ में कुछ पॉजीटिव बदलाव भी देख सकते हैं.
नए साल के पहले दिन करें ये उपाय
सूक्तम पाठ करें
नए साल के पहले दिन वेद मंत्रों का पाठ करना शुभ माना जाता है. खासतौर से धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए ये तरीका सबसे अच्छा माना गया है. इसमें भी सबसे शुभ माना जाता है गायत्री मंत्र का पाठ करना या फिर लक्ष्मी सूक्त का पाठ करना. ये दोनों ही ऐसे पाठ हैं जो आपको पॉजिटिव सोच से भर देंगे साथ ही घर में सुख शांति का माहौल बनाए रखने में भी मदद करेंगे. ये भी मान्यता होती है कि सूक्तम पाठ से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है. और, साल के पहले ही दिन इस पाठ को करने से पूरे साल भर माता लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं.
इष्ट देव का करें पूजन
आप जिस भी देवता का नियमित रूप से पूजन करते हैं, उन्हें ही आपका इष्ट देव माना जाएगा. नए साल के पहले दिन भी इष्ट देव का पूजन कर आप पूरे साल सुख समृद्धि से भरपूर बना सकते हैं. ये मान्यता है कि आप साल के पहले दिन पूरी सकारात्मक सोच के साथ अपने इष्ट देव का विधि विधान से पूजन करें. साथ ही उन्हें फूल, प्रसाद और फल चढ़ाना भी न भूलें. माना जाता है कि ऐसा करने से इष्ट देव पूरे साल प्रसन्न रहते हैं. जिसकी वजह से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं.
रंगोली बनाएं
हिंदू धर्म में मान्यता है कि हर शुभ अवसर पर घर के दरवाजे पर या मंदिर के पास रंगोली बनाई जाए. नए साल में नई खुशियों का स्वागत भी रंगोली के साथ करना शुभ माना जाता है. नए साल के पहले दिन सुबह सुबह घर के गेट को साफ करें और वहां लीप कर सुंदर और रंगों से भरपूर रंगोली बनाएं. रंगोली बनाने के लिए फूल और चावल के पाउडर का उपयोग करना भी बहुत शुभ माना जाता है.
दान पुण्य करें
किसी जरूरतमंद को मन से किया गया दान बहुत शुभ माना जाता है. साल के पहले दिन की शुरुआत भी अगर दान पुण्य के साथ होती है, तो ये बहुत शुभ माना जाता है. आप की जितनी भी क्षमता हो, उसके अनुसार नए साल के पहले दिन दान करना चाहिए. ये दान कपड़े, अनाज या धन के रूप में हो सकता है. ऐसा माना जाता है कि दान करने का लाभ पूरे साल धन धान्य के रूप में हासिल होता है.
सेहत टिप्स /शौर्यपथ / पेट की गंदगी साफ रखना न केवल आपके शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है. जब भी हमारा पाचन खराब होता है या अपच की समस्या होती है तो हमारा पूरा दिन खराब हो जाता है. न तो किसी काम में मन लगता है और न कुछ खाने की इच्छा होती है. कई बार पेट साफ न होने की समस्या से गैस बनने लगती है, जो न सिर्फ पेट दर्द बल्कि सिरदर्द का भी कारण बनता है. इसके साथ ही अगर आपका पेट साफ नहीं रहता, तो आपको गैस, कब्ज, अपच और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आज हम आपको एक ऐसा रामबाण घरेलू उपाय बताएंगे, जिसे अपनाने से आपका पेट रोज सुबह साफ होगा और आप दिनभर तरोताजा महसूस करेंगे.
पेट साफ न रहने के कारण
अनियमित खानपान: फास्ट फूड और तली-भुनी चीजें खाने से पेट खराब हो सकता है.
पानी की कमी: पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से कब्ज की समस्या हो सकती है.
तनाव और चिंता: मानसिक तनाव पाचन तंत्र पर बुरा प्रभाव डालता है.
अव्यवस्थित रूटीन: सोने और जागने का समय निश्चित न होना भी पेट खराब होने का एक कारण है.
रात को सोने से पहले करें ये उपाय |
1. गुनगुना पानी और नींबू
एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़ें. इसमें एक चुटकी नमक या एक चम्मच शहद मिलाएं. इसे सोने से पहले पीने से आपका पाचन तंत्र एक्टिव होता है और सुबह पेट साफ होता है.
2. त्रिफला चूर्ण
त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद में एक अद्भुत औषधि है. रात को सोने से पहले एक गिलास गुनगुने पानी में 1-2 चम्मच त्रिफला चूर्ण मिलाकर पिएं. यह पाचन को सुधारता है और आंतों से गंदगी निकालने में मदद करता है.
3. इसबगोल की भूसी
एक गिलास दूध या गुनगुने पानी में 1-2 चम्मच इसबगोल मिलाकर पीने से कब्ज की समस्या दूर होती है. यह आंतों को साफ करता है और मल त्याग को आसान बनाता है.
4. अजवाइन और सौंफ का पानी
एक चम्मच अजवाइन और एक चम्मच सौंफ को एक गिलास पानी में उबालें. इसे छानकर सोने से पहले पिएं. यह गैस और अपच को दूर करता है और पेट साफ करता है.
5. गर्म दूध और घी
एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाएं. इसे रात को सोने से पहले पिएं. यह आंतों को चिकना बनाता है और सुबह मल त्याग में आसानी होती है.
इन टिप्स को भी अपना सकते हैं आप:
सुबह उठने के बाद खाली पेट गुनगुना पानी पिएं.
अपने खाने में फाइबर से भरपूर फूड्स शामिल करें, जैसे फल, सब्जियां और अनाज.
रोजाना 30 मिनट योग या हल्की एक्सरसाइज करें.
समय पर खाना खाएं और ज्यादा मसालेदार भोजन से बचें.
रात को सोने से पहले इन घरेलू उपायों को अपनाने से आपका पाचन तंत्र मजबूत होगा और पेट की गंदगी सुबह आसानी से निकल जाएगी. यह न केवल आपकी पाचन प्रक्रिया को सुधारता है बल्कि आपके शरीर को हेल्दी और एनर्जी से भरपूर बनाए रखता है.
हेल्दी पाचन तंत्र के लिए नियमितता और सही लाइफस्टाइल अपनाना बेहद जरूरी है. अगर आप इन उपायों को नियमित रूप से अपनाएंगे, तो आपको पेट से जुड़ी किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा.
सेहत टिप्स /शौर्यपथ /आज के समय में लोगों की लाइफस्टाइल और खानपान ऐसा हो गया है जिसकी वजह से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना लोगों को करना पड़ता है. स्किन से लेकर के कई तरह की हेल्थ प्रॉबलम्स आज के समय में लोगों को परेशान रखती हैं. ऐसे में आपको अपनी डाइट का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है. आपको ऐसी चीजों को सेवन करने की सलाह दी जाती है जो आपको शरीर को अंदर से मजबूत बनाएं और आपके मेटाबॉलिज्म को बूस्ट भी करें. बता दें कि भारतीय खाने में देसी घी इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुनगुने पानी में एक चम्मच देसी घी का सेवन आपको कई तरह के लाभ दिला सकता है. बता दें कि आर्युवेद में भी इस खास ड्रिंक का जिक्र होता है. आइए जानते हैं इस देसी ड्रिंक का सेवन करने से होने वाले फायदों के बारे में.
गुनगुने पानी में घी मिलाकर पीने के जबरदस्त फायदे
1. पाचन सुधारता है: गुनगुने पानी के साथ घी पीने से आंतों की सफाई होती है और पाचन तंत्र बेहतर तरीके से काम करता है.
2. शरीर की ऊर्जा बढ़ाता है: घी शरीर को ताकत और स्फूर्ति प्रदान करता है। यह शरीर को लंबे समय तक ऊर्जा देता है.
3. त्वचा में चमक: घी में मौजूद फैटी एसिड त्वचा को भीतर से पोषण देकर उसे चमकदार और मुलायम बनाते हैं.
4. मासिक धर्म में राहत: महिलाओं के लिए यह नुस्खा खासतौर पर लाभकारी है। घी हार्मोनल बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है.
5. डिटॉक्सिफिकेशन: गुनगुने पानी और घी का यह मिश्रण शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है और लीवर को साफ करता है.
कैसे करें सेवन?
सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शुद्ध देसी घी मिलाएं. इसे धीरे-धीरे पीएं.
व्रत त्यौहार /शौर्यपथ /शनि प्रदोष व्रत, भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन शिव भक्तों को उपवास रखना चाहिए और सूर्य देव के दर्शन होने के बाद भी व्रत का पारण करना चाहिए. शनि प्रदोष व्रत ऐसा व्रत है जिससे कई नियम भी जुड़े हैं. वैसे तो भगवान शिव का नाम भोलेनाथ भी है. जो भक्तों से आसानी से नाराज नहीं होते. लेकिन शनि प्रदोष व्रत को लेकर मान्यताएं अलग हैं. जिनके अनुसार शनि प्रदोष व्रत रखने में चूक होने पर भगवान शिव के कोप का भागी भी बनना पड़ सकता है. इतना ही नहीं व्रत रखने वालों की गलती से आर्थिक हालात प्रभावित होने की भी संभावना होती है. इसलिए ये जान लेना जरूरी है कि इस व्रत वाले दिन आप क्या करें और क्या न करें.
कब है शनि प्रदोष व्रत |
शनि प्रदोष व्रत की तिथि
शनि प्रदोष व्रत इस बार 28 दिसंबर को पड़ने वाला है. पाचांग के मुताबिक हर साल पौष महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि जब आती है तब शनि प्रदोष व्रत होता है. इस साल ये तिथि 28 दिसंबर को पड़ने वाली है. इस तिथि कि शुरुआत का समय होगा रात 2 बज कर 26 मिनट. जो अगले दिन यानि 29 दिसंबर 2024 की रात 3 बजकर 32 मिनट तक जारी रहेगी. बात करें इस दिन के पूजन के सही समय की तो 2 घंटे 77 मिनट का ये मुहूर्त शाम 5 बजकर 33 मिनट से शुरू होगा और 8 बजकर 17 मिनट तक जारी रहेगा.
इस दिन जरूर करें ये काम
इस दिन के लिए मान्यता है कि शिव परिवार की पूरे विधि विधान से पूजन करना बहुत शुभ होता है. जो लोग पूरी आस्था के साथ व्रत रखते हैं, उनकी संतान को सुखी जीवन के मिलता है साथ ही उसकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. ये भी मान जाता है कि इस पूजन के साथ साथ भगवान शिव का जल से अभिषेक भी करना चाहिए और रुद्राभिषेक भी करना चाहिए.
शनि प्रदोष व्रत वाले दिन क्या न करें?
सिंदूर न चढ़ाएं
शनि प्रदोष का व्रत हो या भगवान शिव का कोई अन्य व्रत रख रहे हों, तब भी उन्हें सिंदूर अर्पित न करें. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव बैरागी होते हैं और सिंदूर हमेशा ही सौभाग्या का प्रतीक होता है. इसलिए भगवान शिव की प्रतिमा पर कभी कुमकुम या फिर सिंदूर अर्पित नहीं करना चाहिए.
ऐसा भोजन न करें
जिस दिन शनि प्रदोष का व्रत रखें उस दिन गलती से भी नॉन वेज का सेवन न करें. ऐसा करने से मान जाता है कि भगवान शिव क्रोधित हो सकते हैं.
तुलसी की पत्तियां न चढ़ाएं
सिंदूर की तरह ही भगवान शिव को तुलसी की पत्तियां नहीं अर्पित की जानी चाहिए. तुलसी माता लक्ष्मी का एक स्वरूप मानी जाती हैं. इसलिए उन्हें भगवान शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए.
नारियल के पानी से न करें अभिषेक
नारियल का पानी भी माता लक्ष्मी का ही प्रतीक माना जाता है. इसलिए भगवान शिव का अभिषेक नारियल पानी से करना भी शुभ नहीं माना जाता है.
खंडित अक्षत
भगवान शिव को पूजन करते समय अक्षत यानी कि चावल अर्पित किए जाते हैं. लेकिन ये चावल के दाने खंडित नहीं होना चाहिए. पूजन जो भी चावल के दानें चढ़ाए जाएं वो पूरे होने चाहिए. साथ ही ये भी माना जाता है कि भगवान शिव को चढ़ाए जाने वाले अक्षत धुले हुए भी होना चाहिए.
काले कपड़े
भगवान शिव का शनि प्रदोष व्रत के दिन पूजन करते समय काले कपड़े पहनना भी शुभ नहीं माना जाता है. इस दिन के व्रत से भगवान शिव की कृपा पाने के लिए हरा, सफेद या पीले वस्त्र पहनने की सलाह दी जाती है.
आस्था/शौर्यपथ / साल 2025 में 'महाकुंभ' का आयोजन प्रयागराज में होने जा रहा है. जिसमें लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है. संगम नगरी में कुंभ मेला 13 जनवरी, 2025 से शुरू होगा जो 26 फरवरी 2025 तक चलेगा. आपको बता दें कि 45 दिन तक चलने वाले कुंभ स्नान का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कलश से अमृत 12 जगहों पर गिरा था. इनमें 4 स्थान धरती पर और 8 स्वर्ग में थे. पृथ्वी के चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं.
कहा जाता है कि अमृत की बूंदें प्रयागराज के संगम, उज्जैन के शिप्रा, हरिद्वार के गंगा और नासिक के गोदावरी नदीं में गिरी थीं. यही कारण है कि हर 12 साल में इन नदियों के किनारे कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.
आपको बता दें कि कुंभ का आयोजन स्थान ज्योतिष गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है. इसमें ग्रहों का विशेष स्थान होता है. ऐसे में आइए जानते हैं हरिद्वार से लेकर नासिक में लगने वाले कुंभ में कौन सा ग्रह किस स्थिति में होता है....
हरिद्वार में कब लगता है कुंभ -
हरिद्वार में कुंभ तब लगता है जब बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और सूर्य मेष राशि में गोचर कर रहे होते हैं.
प्रयागराज में कब लगता है कुंभ -
वहीं, प्रयागराज में जब सूर्य मकर राशि में और गुरु वृष राशि में होता है तो यह कुंभ मेला प्रयागराज में लगता है.
नासिक में कब लगता है कुंभ -
जबकि नासिक में तब आयोजित होता है, जब गुरु सिंह राशि में गोचर करते हैं.
उज्जैन में कब लगता है कुंभ -
ऐसे ही जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों, तो कुंभ मेला का आयोजन उज्जैन में किया जाता है.
महाकुंभ कितने साल पर लगता है -
प्रयागराज में लगने वाला कुंभ 'महाकुंभ' है जिसका संयोग 144 साल पर बनता है. हिन्दू धर्म के अनुयायियों का मानना है कि कुंभ मेले में स्नान करने से पिछले सारे पाप धुल जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग जिले के छोटे से गांव असोगा की रहने वाली श्रीमती मंजू अंगारे जो आज लड्डू वाली दीदी के नाम से प्रसिद्ध है। पाटन विकासखण्ड के असोगा गांव में 12 महिलाओं को जोड़कर मॉ संतोषी महिला स्व सहायता समूह का गठन किया गया, जिसमें मंजू अंगारे दीदी सदस्य के रूप में है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर मंजू अंगारे द्वारा सभी प्रकार के लड्डु अपने हाथों से तैयार कर दुकानों एवं आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के लिए विक्रय किया जा रहा है। दीदी द्वारा करी के लड्डु, मुर्रा लड्डु, तिल के लड्डु, मेवे के लड्डु, बेसन का लड्डु बनाया जा रहा है।
समूह से जुड़कर दीदी द्वारा बैंक से एक लाख रूपए का लोन लिया और अपने कार्य को चलाना प्रारंभ किया, जिसमें दीदी प्रतिमाह 15 हजार से 20 हजार रूपए औसत कमा रही है। दीदी के द्वारा शुरूआत में केवल अपने गांव के दुकानों का आर्डर लेकर सभी प्रकार के लड्डु का निर्माण किया जाता था, लेकिन आज दीदी के द्वारा पाटन ब्लॉक के आस-पास के सभी गांवो से सभी प्रकार के लड्डू बनाने का ऑर्डर लिया जा रहा है, जिससे दीदी के कमाई में और अधिक वृद्धि हुई।
दीदी के द्वारा अपने काम को आगे और बढ़ाने के लिए ग्राम संगठन से सीआईएफ लोन ऋण 60 हजार उपलब्ध कराया गया, जिसे प्रतिमाह समय पर संगठन में जमा कर रही है। समूह को 15 हजार की अनुदान राशि की सहायता मिलने से कार्य में वृद्धि आई। दीदी को आस-पास के गांव से शादी/छट्ठी एवं अन्य कार्यक्रम में आर्डर मिलना शुरू हो गया। छोटे से गांव में समूह के माध्यम से आजीविका करके पूरे गांव में लड्डू वाली दीदी के नाम से प्रसिद्व हो गई। लड्डू बनाकर प्रत्येक माह 15 हजार से 20 हजार रूपये लाभ कमाकर मंजू दीदी लखपति दीदी बन गई हैं।