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दुर्ग / शौर्यपथ / संगठन स्तर पर देखा जाए तो दुर्ग कांग्रेस में संगठन नाम का शब्द सिर्फ कागजों पर ही सीमित है ना नियम ना तरीके से मीटिंग होने की चर्चा होती है ना ही सोशल मीडिया पर कांग्रेस अपनी जानकारियां और अपने उपलब्धियां साजा कर पाती हैं आपसी मतभेदों का आलम यह है कि एक-एक प्रत्याशी को 4 से 5 जगह आवेदन देना पड़ रहा है सभी कांग्रेस की जीत से ज्यादा अपने-अपने सीट पर टिकट की मांग करते नजर आ रहे हैं ऐसे में संगठित भाजपा के साथ मुकाबला करने में दुर्ग कांग्रेस में कोई ऐसा नेता नहीं जो सभी को एक धागे में पिरो सके.
पूर्व विधायक अरुण वोरा में अब वह नेतृत्व क्षमता कहीं नजर नहीं आ रही जिसके दम पर दुर्ग कांग्रेस के सारे मोती रूपी कार्यकर्ता को एक धागे में पिरोया जा सके वही दुर्ग नगर निगम क्षेत्र में निवासरत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री जिनका जनप्रतिनिधि और संगठन के कार्यों में लगभग पांच दशक से ज्यादा का लंबा अनुभव रहा ही के मैदान में उतरने से कांग्रेस कहीं ना कहीं मुकाबले में नजर आ सकती है .वर्तमान समय में जब नगर पालिक निगम और पंचायत के चुनाव एक साथ हो रहे हैं ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ दुर्ग शहर में भी कांग्रेस की मजबूत उपस्थिति की बड़ी जिम्मेदारी अब जिले के वरिष्ठ नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल,पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ,पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे जैसे नेताओं के कंधे पर आ चुकी है क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री जिले सहित प्रदेश में एक बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए संगठन को फिर से मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं वही पूर्व मंत्री वरिष्ठ नेता रविन्द्र चौबे साजा बेमेतरा क्षेत्र में कार्यकर्ताओ को सक्रीय कर रही .
वही दुर्ग शहर में नगर निगम चुनाव में अगर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू की पुत्रवधू सरिता साहू को संगठन प्रत्याशी घोषित करता है तो निश्चित ही नगर निगम चुनाव में भाजपा के साथ कांग्रेस का मुकाबला रोचक तो होगा ही और कड़े मुकाबले की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकेगा.
बता दे कि गत विधानसभा चुनाव में जिले में साहू समाज की संख्या बहुल होने के बाद भी एक भी विधानसभा सीट में प्रत्याशी घोषित नहीं हुआ ऐसे में समाज की यह मनसा है कि साहू समाज के प्रत्याशी के साथ साहू समाज रहेगा हालांकि साहू समाज का झुकाव भाजपा के तरफ ज्यादा रहता है परंतु अगर दुर्ग नगर निगम से भारतीय जनता पार्टी साहू समाज से किसी को प्रत्याशी नहीं बनती तो और कांग्रेस संगठन दुर्ग से साहू समाज से सरिता साहू को प्रत्याशी घोषित करती है तो साहू समाज का झुकाव महापौर चुनाव में कांग्रेस की तरफ रहने की उम्मीद है वही चुनावी रणनीति बनाना और कार्यकर्ताओं को संगठित कर चुनावी मैदान में उतरने की कला पूर्व गृह मंत्री साहू में काफी ज्यादा है .50 साल के से भी अधिक के राजनीतिक अनुभव का लाभ संगठन को और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में जरूर मिलेगा और कांग्रेस मुकाबले में भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगी .
साल भर के कार्यकाल में जिस तरह से दुर्ग विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान विधायक गजेंद्र यादव की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है और नगर निगम के कार्यों में अपरोक्ष रूप से हस्तक्षेप के कई मामले सामने आने के बाद आम जनता एक नए राजनीतिक केंद्र की उम्मीद कर रही है ऐसे में देखना यह होगा कि जिस तरह से कांग्रेस संगठन ने 2018 के विधानसभा चुनाव में अचानक प्रत्याशियों की अदला-बदली कर ताम्रध्वज साहू को दुर्ग ग्रामीण से चुनावी मैदान में उतारा उस ही स्थिति वर्तमान समय में बन जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.
वर्तमान समय में दुर्ग महापौर प्रत्याशी के लिए दावेदारों के आवेदनों की संख्या भले ही दर्जन पहुंच गई हो परंतु प्रबल दावेदारों में सत्यवती वर्मा एवं प्रेमलता साहू के अलावा ऐसा कोई चेहरा नजर नहीं आ रहा है जो कांग्रेस की तरफ से दमदारी से भाजपा के प्रत्याशी के साथ चुनावी जंग में उतरे ऐसे में वरिष्ठ नेता तामेध्वाज साहू की पुत्रवधू श्रीमती सरिता साहू के चुनावी मैदान में उतरने से दुर्ग कांग्रेस की चुनावी स्थिति में तो बदलाव आएगा ही साथ ही संगठन जो बिखरा हुआ है निष्क्रिय है वह भी एक बार सक्रिय हो जाएगा.बता दे कि रिसाली निगम चुनाव के समय भी काफी चर्चा थी कि तात्कालिक गृह मंत्री tamrdhwaj साहू की पुत्रवधू चुनावी मैदान में उतरेंगी और महापौर से नवाजी जाएँगी किन्तु तब तात्कालिक गृह मंत्री ने किसी अन्य को मौका देकर कांग्रेस को मजबूत करने का सफल प्रयास किया किन्तु वर्तमान समय में दुर्ग कांग्रेस कार्यकर्ताओ को किसी ऐसे चेहरे की सख्त आवश्यकता है जो जंग में मजबूती से लडे .
आखिर कब तक कांग्रेस संगठन स्व. मोतीलाल बोरा के सम्मान में दुर्ग संगठन को हासिये पर रखेगा
दुर्ग कांग्रेस संगठन में वर्तमान समय में पूरे फैसला पूर्व विधायक वोरा लेते हैं परंतु कांग्रेस को संगठित करने में पूर्व विधायक अरुण वोरा लगातार असफल ही रहे हैं निष्क्रिय अध्यक्ष एवं सालों से जमे ब्लॉक अध्यक्षों के बदलाव की दिशा में भी पूर्व विधायक अरुण वोरा असफल साबित हुए युवा कांग्रेस मात्र लाभ का पद बना हुआ है .वहीं बंगले की राजनीति के चलते दुर्ग कांग्रेस बिखर सा गया ऐसे में कांग्रेस के कई कार्यकर्ता अब नए राजनीतिक केंद्र की तलाश में नजर आ रहे हैं फैसला कांग्रेस संगठन का होगा कि वह दुर्ग कांग्रेस को उनके बदहाल स्थिति में छोड़ना है या फिर कड़े फैसले लेते हुए नए बदलाव की स्थिति में ?
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