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लाइफस्टाइल / शौर्यपथ / भागती-दौड़ती जिंदगी में हम अक्सर खान-पान को लेकर लापरवाही कर जाते हैं जिसके चलते हमें मोटापा या पेट के आसपास के हिस्से में पेट की चर्बी होने लगती है। ऐसे में पूरा शरीर स्लिम होते हुए भी निकला हुआ पेट बहुत ही अजीब लगता है। आप खुद भी ऐसी हालत में खुद में आत्मविश्वास की कमी पाते होंगे। आज विश्व योग दिवस पर हम आपके लिए कुछ ऐसे ही खास आसन लेकर आए हैं, जो आपकी पेट की चर्बी कम करने के साथ आपको एक्टिव रखने में भी मदद करेंगे।
बैली फेट को कम करने के लिए योगासन के साथ कुछ बातों का ध्यान देना भी बहुत आवश्यक है। योगा ट्रेनर और नेचुरापैथ एक्सपर्ट प्रियंका सिंह ने हमें पेट की चर्बी कम करने के कई आसन बताए और साथ ही उन्होंने हमें कुछ ऐसे टिप्स भी दिए, जिनकी जानकारी आमतौर पर बहुत कम होती है।
1. भुजंगासन
इस आसन में शरीर की आकृति फन उठाए हुए भुजंग अर्थात सर्प जैसी बनती है इसीलिए इसको भुजंगासन या सर्पासन (संस्कृत: भुजंगसन) कहा जाता है।
2. नौकासन
नौकासन योग करते समय हमारे शरीर का आकार नौका यानि नाव (Boat) के समान रहता है इसीलिए इस योग को नौकासन कहा जाता हैं। वजन को नियंत्रित करने तथा पेट की चर्बी कम करता है।
3. उष्ट्रासन
एक मध्यवर्ती पीछे झुकने-योग आसन है जो अनाहत (ह्रदय चक्र) को खोलता है। इस आसन से शरीर में लचीलापन आता है और पेट की चर्बी तेजी से कम होती है।
4. धनुरासन
इस आसन में शरीर की आकृति खींचे हुए धनुष जैसी बनती है इसलिए इसे धनुरासन कहा जाता है।
5.. चक्की चलनासन
चक्की= आटे को पीसने की एक मशीन + चलाना+ आसन. इस आसन में हाथों से चलाने वाली गेहूँ की चक्की को चलाने की जैसी मुद्रा बनाई जाती है।
योगा ट्रेनर के खास टिप्स
-आमतौर पर सुबह का समय योगा करने के लिए अच्छा होता है लेकिन कई लोग सुबह के समय योग नहीं कर पाते। ऐसे में आप योगा शाम को भी कर सकते हैं क्योंकि शाम को दिन भर काम करके हमारी बॉडी काफी एक्टिव हो जाती है। ऐसे में शाम को योग करना आसान रहता है। इससे रात को नींद भी अच्छी आती है।
-खाने के तुंरत बाद योग नहीं करना चाहिए। योग करने से 1 घंटे पहले कुछ खा सकते हैं और योग करने के डेढ़ घंटे तक कुछ न खाएं।
-योग हो या फिर एक्सर्साइज बॉडी को वॉमअप करना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप खड़े होकर हाथ-पैर की धीरे-धीरे मूवमेंट करें। बिना वॉमअप के चोट लगने का खतरा रहता है।
खाना / खजाना / शौर्यपथ / ‘ओल्ड इज गोल्ड’ आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। रेसिपीज के मामके में भी यह बात बिल्कुल फिट बैठती है। आप मीठे में कोई भी रेसिपी बना लें लेकिन खीर की एक अलग जगह रिजर्व है। आज हम आपको खीर बनाने का ऐसा तरीका बताएंगे जिससे आपकी खीर और भी ज्यादा टेस्टी बनेगी-
सामग्री-
आधा कप- चावल
2 लीटर दूध
आधा कप- चीनी
4 इलायची पिसी हुई
6 से 7 बादाम बारीक कटे
6 से 7 काजू बारीक कटे
एक बड़ी चम्मच चिरौंजी
6 से 7 किशमिश, धुली हुई
5 से 6 मखाने कटे हुए
2 बड़े चम्मच कद्दूकस किया नारियल
घी
विधि-
सबसे पहले चावल साफ करके अच्छी तरह धो लें। चावल का सारा पानी निकालकर इन्हें 5 मिनट के लिए एक छलनी में करके रख दें। अब कड़ाही में एक चम्मच घी डालकर गैस पर गर्म करें। फिर इसमें चावल डालकर 2 से 3 मिनट तक धीमी आंच पर एक बड़ी चम्मच से चलाते हुए फ्राई करें। खीर बनाने के बर्तन में दूध डालकर इसमें आधा कप पानी मिलाएं और गैस पर गर्म करने रख दें।
दूध में उबाल आने के बाद इसमें भुने हुए चावल डालकर 8 से 10 मिनट तक मध्यम आंच पर बड़े चम्मच से चलाते हुए पकाएं। ध्यान रखें चावल बर्तन के तले में चिपके नहीं। जब चावल गलकर अच्छी तरह पक जाएं, तो दूध में चीनी डालकर मिलाएं। चीनी घुलने के बाद दूध में नारियल का बुरादा, मखाने, बादाम, काजू और चिरौंजी डालकर, खीर गाढ़ी होने तक लगभग 8 से 10 मिनट मध्यम आंच पर पकाएं।
जब खीर गाढ़ी हो जाए तो, इसमें पिसी हुई इलायची, केसर और किशमिश मिलाकर 2 मिनट तेज आंच पर पकाने के बाद गैस बंद कर दें।
खेल / शौर्यपथ / इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने 2001 में नासिर हुसैन की कप्तानी में भारत का दौरान किया था। दोनों टीमों के बीच तीन मैचों की टेस्ट सीरीज खेली गई थी, जिसे भारत ने 1-0 से जीता था। इस सीरीज की शुरुआत से पहले माना जा रहा था कि भारत 3-0 से टेस्ट सीरीज में क्लीनस्वीप करेगा। पहला टेस्ट मैच भारत ने 10 विकेट से जीता था, लेकिन फिर इंग्लैंड ने वापसी की और बाकी दो टेस्ट मैच ड्रॉ कराए। इस टेस्ट सीरीज का आखिरी टेस्ट मैच बेंगलुरु में खेला गया था। उस मैच में सचिन तेंदुलकर सेंचुरी से चूके थे और टेस्ट क्रिकेट में पहली बार स्टंपिंग आउट हुए थे, एश्ले जाइल्स नेगेटिव लेंथ पर गेंदबाजी करने के चलते निशाने पर रहे थे। नासिर हुसैन ने 19 साल बाद बताया कि किस तरह से सचिन को आउट करने का पूरा प्लान बनाया गया था।
बेंगलुरु टेस्ट में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 336 रन बनाए, जवाब में टीम इंडिया ने 121 रनों तक पांच विकेट गंवा दिए थे। वीरेंद्र सहवाग और तेंदुलकर क्रीज पर मौजूद थे। सहवाग सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए आए थे। सचिन 143 टेस्ट पारियों में पहली बार स्टंप आउट हुए थे। नासिर हुसैन ने बताया कि किस तरह से तेंदुलकर को आउट करने का प्लान बनाया गया था। हुसैन ने 'सोनी टेन पिट स्टॉप' पर कहा, 'सचिन और सहवाग जब मैदान के चारों तरफ शॉट्स खेल रहे हों और पूरा स्टेडियम सचिन... सचिन... से गूंज रहा हो तो मुझे अपने गेंदबाजों की आंखों में दिख रहा था कि वो चिंता में हैं। मुझे पता था कि सबसे जरूरी है स्टेडियम में मौजूद लोगों को शांत कराना। ऐसा करना तभी मुमकिन था जब सचिन को रन बनाने से रोका जा सके।'
'एश्ले जाइल्स को लेकर आया गेंदबाजी कराने'
उन्होंने आगे कहा, 'बेंगलुरु की पिच में एक रफ एरिया था, लेकिन मेन पिच में कुछ भी नहीं था। अगर गेंदबाज नॉर्मल गेंदबाजी करते तो उनके लिए कुछ नहीं था। मैं गेंदबाजी एश्ले जाइल्स को लेकर आया, जो कसी हुई लाइन से गेंदबाजी कर रहे थे। एश्ले स्टंप्स के काफी करीब गेंदबाजी कर रहे थे काफी कसी लाइन से गेंद फेंक रहे थे जिससे उस रफ पैच को हिट कर सकें।' जाइल्स ओवर द विकेट गेंदबाजी कर रहे थे, रन नहीं बना पाने पर तेंदुलकर भी परेशान होने लगे, एक गेंद उन्होंने मिस की और क्रीज से थोड़ा बाहर निकले ही थे कि जेम्स फोस्टर ने उन्हें स्टंप आउट कर दिया।
'चालाकी भरा प्लान था'
इंग्लैंड को 'नेगेटिव लाइन' से गेंदबाजी के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। हुसैन ने कहा, 'सचिन आउट हुए, यह काफी चालाकी भरा प्लान था। इसके बाद लोग भी शांत हो गए। उस समय इंग्लैंड में भी किसी ने कहा था कि यह शर्मनाक है और इंग्लैंड ऐसे नेगेटिव प्लान का इस्तेमाल कर रहा है। यह लोगों को शांत करने के लिए था। यह इकलौता ऐसा मौका था जब तेंदुलकर स्टंप आउट हुए थे। भारत उस मैच में पहली पारी में करीब 300 (असल में 238) रनों पर ऑलआउट हुआ था, जो मेरी जीत थी।
मनोरंजन /शौर्यपथ / सुशांत सिंह राजपूत ने महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक एम एस धोनी में काम किया था। फिल्म की शूटिंग और प्रमोशन के दौरान सुशांत धोनी के परिवार के काफी क्लोज आ गए थे। वह उनसे मिलते रहते थे। इतना ही नहीं, एक बार तो सुशांत, अंकिता लोखंडे को भी धोनी की बेटी जीवा से मिलवाने ले गए थे।
सुशांत और अंकिता ने जीवा के साथ खूब मस्ती की थी। दोनों की फोटोज अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। बता दें कि इस फिल्म के बाद सुशांत और अंकिता दोनों अलग हो गए थे।
सुशांत सिंह राजपूत से ब्रेकअप के बाद भी अपने प्यार की निशानी को सहेज कर रख रखी थीं अंकिता लोखंडे
बता दें कि अंकिता, सुशांत से जितना प्यार करती थीं, उतना ही उनकी रिस्पेक्ट करती थीं। इतना ही नहीं भले ही दोनों के ब्रेकअप को इतने साल हो गए थे, लेकिन सुशांत के निधन से अंकिता काफी टूट गई थीं। वह सुशांत के परिवार से मिलने उनके घर भी गई थीं।
सुशांत को लेकर अंकिता के मन में इतनी रिस्पेक्ट थी कि आज भी उन्होंने अपने घर के नेमप्लेट से सुशांत का नाम नहीं हटाया। इस बात की जानकारी सुशांत और अंकिता के दोस्त संदीप सिंह ने दी।
दरअसल, संदीप ने सुशांत और अंकिता को लेकर इमोशनल पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, 'अंकिता आपने केवल उसकी खुशी और सफलता के लिए प्रार्थना की। आपका प्यार सच्चा था। आपने अभी भी अपने घर के नेमप्लेट से उसका नाम नहीं हटाया है'।
सुशांत को अंकिता बचा सकती थीं
संदीप ने आगे यह भी लिखा, 'मुझे पता है कि केवल आप (अंकिता) ही उसे बचा सकती थीं। काश, आप दोनों की शादी हो जाती जैसा कि हमने सपना देखा था। आप उसे बचा सकती थीं अगर वह बस आपको वहां रहने देता। आप उसकी प्रेमिका, उसकी पत्नी, उसकी मां, हमेशा के लिए उसकी सबसे अच्छे दोस्त थीं। मैं तुमसे प्यार करता हूं अंकिता। मुझे उम्मीद है कि मैं आप जैसे दोस्त को कभी नहीं खो सकता।'
मनोरजन / शौर्यपथ / बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के निधन को आज एक सप्ताह बीत चुका है हालांकि उनके चाहने वालों के साथ फैमली-फ्रेंड और बॉलीवुड सितारे उन्हें मिस करना नहीं छोड़ हैं। क्योंकि उनकी मौत को कोई भी नहीं भूला पा रहा है। हर शख्स उनकी मौत से दुखी और सदमें है। सुशांत के फैमली और फ्रेंड उन्हें याद करते हुए उनकी थ्रोबैक फोटो और वीडियो शेयर कर श्रध्दाजंलि दे रहे हैं। इसी बीच सुशांत का एक और थ्रोबैक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें सुशांत गांव की लड़की से शादी करने वाले एक सवाल पर एकदम देसी अंदाज में रिएक्शन दे रहे हैं। उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब देखा जा रहा है।
इस वायरल वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि उनका यह विडियो उनके पैतृक निवास का है। जब सुशांत आखिरी बार वहां अपना मुंडन संस्कार करने के लिए वहां गए थे। विडियो में सुशांत अपने पिता के साथ घर के आँगन में बैठे दिख रहे हैं। वीडियो में सुशांत के अवाला कुछ महिलाएं और परिवार के बाकी सदस्य भी नजर आ रहे हैं जो सुशांत से शादी को लेकर चर्चा कर रहे हैं।
इस वायरल विडियो में सुशांत के परिवार की एक महिला सुशांत से सवाल करती है कि – ‘शादी में सबको ले जाओगे न…?’ इस पर सुशांत बोलते हैं – ‘पहले लड़की ढूंढ लें…? आप लोग भी बताएं कोई हो तो… ‘ फिर महिला कहती है – ‘देहाती लड़की से कर लोगे?’ तो इस पर सुशांत बोलते हैं – ‘काहे नहीं…’
विडियो में सुशांत बड़े ही देसी अंदाज में बातचीत करते नजर आ रहे हैं। उनके बैठने के तरीके और बातचीत के ढंग से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कितने जमीन से जुड़े शख्स थे। इतना ही नहीं वीडियो में सुशांत हाथ में नीम का दातुन लिए हुए नजर आ रहे हैं। वीडियो देखकर लग रहा है कि यह सुबह-सुबह का वीडियो है। वे महिला के सवालों का बड़े अच्छे से जवाब दे रहे हैं। लोगों को सुशांत का ये देसी अंदाज बड़ा ही पसंद आया।
बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत ने बड़े पर्दे पर अपनी शुरुआत फिल्म साल 2013 में रिलीज हुई फिल्म कोई पो चे से की थी। इसी साल वह फिल्म शुद्ध देसी रोमांस में भी नजर आए थे। साल 2014 में सुशांत आमिर खान स्टारर फिल्म पीके में अनुष्का के लवर की भूमिका में दिखे थे। साल 2015 में सुशांत की फिल्म डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी रिलीज हुई थी। सुशांत सिंह राजपूत को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली साल 2016 में रिलीज हुई बायोपिक फिल्म एम.एस.धोनी द अनटोल्ड स्टोरी से। इसके बाद सुशांत ने राब्ता, वेलकम टु न्यूयॉर्क, केदारनाथ, सोनचिड़िया और छिछोरे जैसी फिल्मों में नजर आए।
जीना इसी का नाम है / शौर्यपथ / करीब छह दशक पहले ब्रिटेन की गुलामी से आजाद हुआ नाइजीरिया बुरी खबरों के लिए ही सुर्खियों में अधिक रहा है। भुखमरी, गरीबी, नस्लवादी हिंसा और स्त्री उत्पीड़न के दाग तो जैसे इसके दामन से ही चिपक गए थे। हालांकि आज यह तेजी से आर्थिक तरक्की करने वाला एक अफ्रीकी देश है। साल 2014 में नाइजीरिया की एक अलग तरह की घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान इसकी ओर मोड़ा। उस वाकये की मुख्य किरदार थीं अडाओरा ओकोली। नाइजीरिया की एक युवा डॉक्टर।
जुलाई 2014 की बात है। ओकोली लागोस स्थित अपने हॉस्पिटल में तब कार्यरत थीं। एक दिन लाइबेरिया के 40 साल के पैट्रिक सोयर अपने इलाज के लिए उनके पास आए। वह काफी बीमार लग रहे थे। पैट्रिक को अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी गई। अगले दिन जब वह उन्हें देखने गईं, तो पैट्रिक के बेड पर रखे ‘इंट्रावेनस फ्लूड बैग’ को भी हाथ में उठा लिया। यह असावधानी बरतते समय उन्हें जरा भी इलहाम नहीं था कि यह मरीज अतिसंक्रामक वायरस का शिकार भी हो सकता है, क्योंकि तब तक नाइजीरिया में इबोला का एक भी मामला पुष्ट नहीं हुआ था।
उन्हीं दिनों मानवाधिकार समूह ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने एक अपील जारी की थी कि पश्चिम अफ्रीकी देशों को इबोला से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद की दरकार है। इस बयान के सामने आने के चंद रोज बाद ही पैट्रिक की मौत हो गई। पैट्रिक इबोला वायरस के संक्रमण का शिकार हुए थे। पैट्रिक की मौत के कुछ ही दिनों बाद ओकोली को उल्टियां आने लगीं, पेशाब का रंग बदलने लगा और उनमें डायरिया के लक्षण दिखने लगे। उन्हें समझते देर न लगी कि वह संक्रमित हो चुकी हैं। अगस्त में उनके खून की जांच की गई, जो पॉजिटिव निकली। उन्होंने फौरन अपनी मां को फोन किया कि उनके कमरे को बाहर से बंद कर दें और उसके आसपास किसी को न जाने दें। ओकोली ने मां को कहा, ‘घबराना नहीं, मैं जिंदा लौटूंगी।’
ओकोली को तुरंत ‘आइसोलेशन रूम’ में पहुंचा दिया गया। जब तक इस वायरस को लेकर लागोस में सतर्कता बरती जाती, तब तक इसने कई लोगों को अपना शिकार बना लिया था। ओकोली खुद एक डॉक्टर थीं, इसलिए हालात की गंभीरता को वह अच्छी तरह जान रही थीं। उनके साथ कई मरीज आइसोलेशन में थे, लेकिन उन सबकी देखभाल करने के लिए तब संक्रामक रोगों का एक ही विशेषज्ञ था। ओकोली कहती हैं, ‘हम प्रामाणिक थिरेपी पाने की स्थिति में नहीं थे। इस बीमारी को परास्त करने वाले किसी व्यक्ति का प्लाज्मा उपलब्ध नहीं था। मैं उन लम्हों में सिर्फ अपने ईश्वर से बातें कर सकती थी और मैंने पल-पल उससे यही गुहार लगाई कि मुझे तुम्हारी जरूरत है।’
ओकोली को मालूम था कि उन्हें तरल पदार्थ लेते रहना होगा, ताकि उनकी त्वचा में तरलता बनी रहे। अपनी नब्ज भी लगातार टटोलती रहीं। करीब एक हफ्ते के बाद उनकी सेहत में कुछ सुधार नजर आया। और फिर एक सुबह डॉक्टर उनके लिए वही पैगाम लेकर आया, जो किसी डॉक्टर को फरिश्ते के बराबर खड़ा कर देता है। डॉक्टर ने कहा, ‘ओकोली पिछले कई दिनों की जांच में तुम्हारी रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं पाई गई है।’ वह एक नए जन्म की तरह था। एक पखवाडे़ के बाद जब ओकोली को वार्ड से छुट्टी मिली, तो वह एक लाल रिबन काटकर आगे बढ़ीं। यह प्रतीक था कि वह इंसानी दुनिया में फिर से लौट रही हैं।
नवंबर 2014 में अमेरिकन सोसायटी फॉर ट्रॉपिकल मेडिसिन ऐंड पब्लिक हेल्थ ने एक कॉन्फ्रेंस में अपने अनुभव साझा करने के लिए ओकोली को न्यू ऑरलेन्स आमंत्रित किया। बिल गेट्स इस कॉन्फ्रेंस के मुख्य वक्ता थे। ओकोली को लगा कि बिल गेट्स एक पीड़िता का नजरिया जानना चाहते हैं। कॉन्फ्रेंस के बाद वह नाइजीरिया लौटने वाली थीं, लेकिन टुलेन यूनिवर्सिटी की पब्लिक हेल्थ ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन विभाग ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि वह उनके यहां दाखिले के लिए आवेदन करें। बिल गेट्स ने उनके अनुभवों को अपनी वेबसाइट पर साझा किया है।
ओकोली ने इनफेक्शियस डिजीज एपिडेमियोलॉजी में मास्टर की पढ़ाई करने का मन बनाया, ताकि वह किसी भी महामारी से निपटने के विभिन्न पहलुओं को अच्छी तरह जान सकें। एक भुक्तभोगी के तौर पर वह जान चुकी थीं कि एक मरीज आखिर उन पलों में क्या सोचता है। वह कहती हैं कि ‘इस एहसास ने मेरी आंखें खोलीं कि संक्रामक रोग दरअसल गरीबी और ऐसे पिछड़े देशों की बीमारी है, जिनके पास इतने संसाधन नहीं कि इसे पसरने से रोक सकें।’
नाइजीरिया जैसे देशों में ऐसे विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है, जो जानते हों कि जब जानलेवा संक्रामक रोग का प्रसार हो, तो क्या करना चाहिए। अब एक बच्ची की मां ओकोली अपने मुल्क लौट संक्रामक रोगों से ग्रस्त लोगों की सेवा करना चाहती हैं। उनके शब्द हैं, ‘अंतत: यह ईश्वर की भक्ति और मानवता की सेवा है।’
(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह) अडाओरा ओकोली, इबोला को मात दे चुकी डॉक्टर
नजरिया /शौर्यपथ / भारत भावुक इंसानों से भरा हुआ है। किसी का दुख-दर्द मन को जरा-सा छू जाए, तो नमी अंदर से उमड़ती है और आंखों से छलक आती है। कोई अचरज नहीं कि चीर-फाड़ और कड़वी दवाओं की पढ़ाई करके नया-नया निकला वह डॉक्टर अंदर से सिसक रहा था। हाथों में कुछ कागज थे, जिन पर ऐसे शब्द नुमाया थे, जो एक समाजसेवी के बलिदान की कहानी बखान रहे थे। कुछ देर ही कागज पर निगाह टिकती और फिर भावुकता कागजों से परे बहा ले जाती। कुछ संभलकर कागज पर लौटना होता और फिर शब्द भावनाओं का ज्वार उठा देते थे। मन सवाल करता कि ऐसे भी कोई करता है क्या? अपना देश यहां है और कहां दूर जाकर सेवा में लगे हैं? सेवा भी ऐसी कि दिन-रात रोम-रोम रमा हुआ है। विधि का विधान देखिए, करीब 600 कुष्ठ रोगियों की सेवा करते-करते खुद में भी रोग लग गया है। अरे पगले सेवक, अब तो छुट्टी ले, बहुत हुई सेवा। अब तो तुझे खुद रोग लग आया है, अब तू खुद बचे, न बचे? लौट जा अपने देश बेल्जियम, हवाई में कौन तेरा है? पर डेमियन नाम का वह सेवक सेवा का मोर्चा नहीं छोड़ता। सेवा से ऐसी श्रद्धा है कि हिम्मत कभी जवाब नहीं देती। तकलीफ बढ़ती है, तो सेवा की हिम्मत भी अगले पायदान चढ़ जाती है। वह बेमिसाल सेवक रोग से गलने-गलने तक दूसरों की सेवा करता है और फिर एक दिन थककर बिस्तर पर जा लेटता है हमेशा के लिए। उस दिन इंसानियत मुल्कों की सरहदों को ढहाकर जमीं से आसमां तक गूंज उठती है कि सब देख लो, ऐसा होता है इंसान।
ऐसी अनुपम सेवा कथा से गुजरते हुए ही डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस ने यह निश्चय किया था कि दुनिया में उन्हें भी कहीं मिले सेवा का मौका, तो कुछ कर गुजरें। वाकई, खूब चाहने से ही राह निकलती है। उन्हीं दिनों चीनी क्रांतिकारियों के कॉमरेड सैन्य जनरल झो दे की चिट्ठी आई थी, पंडित नेहरू के पास कांग्रेस और भारत के नाम। जापानी हमले का जवाब देते चीनी क्रांतिकारियों ने मदद की गुहार लगाई थी। तब अपना देश आजाद नहीं हुआ था। उस चिट्ठी में गुहार के चंद लफ्ज चीन के भावी पितामह माओ ने भी जोडे़ थे। उन्होंने लिखा था, ‘हमारी मुक्ति, भारतीयों और चीनियों की मुक्ति, सभी दलितों और उत्पीड़ितों की मुक्ति का संकेत होगी’। गुहार थी कि भेज सको, तो डॉक्टर भेजो, बड़ी संख्या में हम मारे जा रहे हैं। पंडित नेहरू से लेकर नेताजी बोस तक सभी कांग्रेसी नेता भावुक हो उठे थे। जगह-जगह अपील प्रसारित की गई। कौन डॉक्टर चीन सेवा के लिए जाना चाहता है?
अच्छा मौका डॉक्टर कोटनिस के हाथ लग गया। बहुत खुश हुए कि इंसानियत और अपनी योग्यता साबित करने का सुनहरा मौका आया है। भारत और भारतीयों की सेवा भावना को परदेशी जमीन पर साकार करना है। यही देश की परंपरा है, इंसान से इंसान का भाईचारा बढ़ाना है। पिता शांताराम कोटनिस तो बेटे के लिए दवाखाना खोलने की तैयारी में थे, लेकिन बेटे ने पत्र लिख भेजा कि चीन जाऊंगा, मंजूरी दीजिए। पिता कुछ निराश हुए, पर खुश भी थे कि बेटा देश की पुकार पर जा रहा है। उसके चर्चे होंगे, जय-जयकार होगी और फिर वह कोई हमेशा के लिए थोड़ी न जा रहा है, एक-दो साल में लौट आएगा। सेवा का स्वप्न लिए कोटनिस 2 सितंबर, 1938 को भारत से चीन के लिए जहाज से रवाना हुए। उनके साथ अन्य चार डॉक्टर भी थे- एम अटल, एम चोलकर, डी मुखर्जी और बी के बासु। डॉक्टरों में सबसे युवा 28 वर्ष के कोटनिस ही थे। चीन पहुंचने पर दिग्गज नेताओं, माओ और एन लाई ने भी बहुत सम्मान से इस्तकबाल किया। कोटनिस वहां सेवा में ठीक वैसे ही डूब गए, जैसे हवाई में डेमियन डूबे थे। वह चीनी जवानों की ऐसी ममता के साथ सेवा करते थे कि चीनी उन्हें लाड़ में ‘ब्लैक मदर’ कहते थे।
चीन की मुक्ति और नए वाम राष्ट्र के निर्माण के लिए भयानक लड़ाई चल रही थी। किसी दिन तो 800 के करीब घायल इलाज के लिए आ जाते थे। दो-दो, तीन-तीन दिन तक जगते हुए लगातार ऑपरेशन करने पड़ते थे। असह्य दबाव पड़ा, पर सेवा जारी रही। मिरगी के दौरे पड़ने लगे और 9 दिसंबर, 1942 को कोटनिस दुनिया से चले गए। महज 32 के थे। साथ आए डॉक्टर एक-एक कर स्वदेश लौटे, लेकिन कोटनिस न लौट सके, जैसे डेमियन भी नहीं लौट सके थे।
अपने पीछे चीनी पत्नी और पुत्र यिनहुआ (अर्थात भारत-चाइना) के साथ ही वह सेवा की ऐसी विरासत छोड़ गए कि चीन चाहकर भी उन्हें अर्थात अपने के दिहुआ को नहीं भुला सकता। डॉक्टर कोटनिस को विदा करते हुए चीन के पितामह माओ ने कहा था, ‘सेना ने एक मददगार हाथ खो दिया है; राष्ट्र ने एक दोस्त खो दिया है। आइए, हम हमेशा उनकी अंतरराष्ट्रीय भावना को ध्यान में रखें’।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय द्वारकानाथ शांताराम कोटनिस विश्व प्रसिद्ध चिकित्सक
सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / भारत में कोरोना संक्रमण के खिलाफ एक दवा को दी गई मंजूरी किसी खुशखबरी से कम नहीं है। हल्के और मध्यम प्रकार के कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए इस एंटीवायरल दवा ‘फेविपिराविर’ को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने अपनी इजाजत दे दी है। न केवल भारत में दवा आधिकारिक रूप से बनेगी, बल्कि यहां दवा बेचने की भी इजाजत मिल गई है। यह दवा जापान में फ्लू के खिलाफ प्रयोग में रही है और कोविड-19 के इलाज में भी इससे काम में लिया जा रहा है। भारतीय कंपनी भी इसके जेनेरिक संस्करण का निर्माण करती है और कोरोना के दिनों में भी कुछ देशों में इसकी आपूर्ति कर रही है। अब यह दवा भारत में भी कोरोना के खिलाफ काम आएगी, लेकिन इसे केवल डॉक्टर की आधिकारिक सलाह या देखरेख में ही लेने की मंजूरी दी गई है। दवा बनाने वाली कंपनी को अपने परीक्षण में बहुत उत्साहजनक नतीजे मिले हैं और अब इस दवा के सामूहिक प्रयोग से इसकी असली ताकत का बेहतर अंदाजा हो सकेगा। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह दवा ‘गेम चेंजर’ हो सकती है। यह दवा कोरोना के प्रारंभिक चरण में कारगर हो सकती है और कोरोना मामलों को गंभीर अवस्था में जाने से बचा सकती है। आगामी दो महीने में इस दवा के कारगर होने के संबंध में पुख्ता आंकड़े उपलब्ध हो जाएंगे। चूंकि यह दवा बहुत सस्ती है, इसका प्रयोग आसान है, इसलिए भी इसका कारगर होना भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश और पूरी दुनिया के लिए बड़ी बात होगी।
जब भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामले 4.12 लाख से ज्यादा हो गए हैं, जब 13 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, तब ऐसी किसी उम्मीद बंधाती दवा को मंजूरी देना और भी जरूरी हो गया था। भारत की बात करें, तो अभी 1.70 लाख से ज्यादा सक्रिय मामले हैं, जिनमें से गंभीर मामले पांच प्रतिशत के करीब पहुंच गए हैं। 95 प्रतिशत से ज्यादा मामले हल्के या मध्यम प्रकार के हैं और इनमें भी जिन मामलों में लक्षण स्पष्ट हैं, वहां यह दवा यदि रामबाण सिद्ध हो जाए, तो यह भारत के लिए बड़ी सफलता होगी।
खास बात यह है कि यह दवा एंटीवायरल है और इन दिनों दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना की सीधी दवा या वैक्सीन की बजाय एंटीवायरल दवा बनाने में जुटने लगे हैं। कोरोना से लड़ने में ऐसी और भी दवाओं की जरूरत पड़ेगी। संभव है, विभिन्न चरणों और विभिन्न लक्षणों के लिए अलग-अलग एंटीवायरल दवाएं बनें। लेकिन यह तो मानना ही होगा कि यह कोरोना की सोलह आना पुख्ता दवा नहीं है, अभी भी फिजिकल डिस्टेंसिंग ही सबसे मुकम्मल उपाय है। भारत में लॉकडाउन खुलने के बाद संक्रमण में आई तेजी यह साफ कर देती है कि लोगों ने शारीरिक दूरी बनाए रखने में कोताही बरती है। लोगों को और मुस्तैदी से बताना होगा कि आज कोरोना से बचने के लिए भीड़ से बचना और अनजान लोगों से शारीरिक दूरी बनाना स्वस्थ रहने की बुनियादी शर्त है। ऐसे शोध सामने आ चुके हैं कि मास्क न पहनने पर संक्रमित होने का खतरा 70 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ जाता है और मास्क पहनने पर खतरा 40 प्रतिशत घट जाता है। जिन देशों ने मास्क का यथोचित प्रयोग किया है, वहां संक्रमण काबू में आ रहा है। बेशक, पुख्ता दवा के मिलने तक कोरोना के खिलाफ जारी युद्ध में मास्क ही असली कवच है।
मेल बॉक्स / शौर्यपथ / भारत की सख्त आपत्ति के बावजूद नेपाल ने अपने नए नक्शे पर राष्ट्रपति की मंजूरी ले ली। अब यह नेपाल के संविधान का दस्तावेजी हिस्सा बन गया है। इससे भारत के तीन बड़े हिस्से कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा नेपाल के मानचित्र में जुड़ गए हैं। सवाल यह है कि नेपाल जैसा पड़ोसी देश आखिर क्यों भारत के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहा है? रणनीतिकारों की मानें, तो अब नेपाल से भी हमारा सीमा-विवाद शुरू हो गया है। इसका अर्थ है कि वह भी पाकिस्तान और चीन की तरह हमारे लिए खतरा बन सकता है। इसमें कोई दोराय नहीं कि नेपाल ने चीन के उकसावे में यह सब किया है, लेकिन भारत को नेपाल के इस दुस्साहस का गंभीरता से जवाब देना चाहिए। अगर आज कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया, तो बाद में उन हिस्सों पर हम अपना दावा कमजोर कर लेंगे। हमारी सरकार को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा। देश हर कदम पर उसके साथ खड़ा है।
मोहम्मद आसिफ
जामिया नगर, दिल्ली
लंबी लड़ाई की तैयारी
इस सदी की सबसे भयावह बीमारी कोविड-19 ने भारत ही नहीं, पूरे विश्व को अव्यवस्थित कर दिया है। विश्व की बड़ी से बड़ी आर्थिक ताकतें भी इसके सामने घुटने टेक चुकी हैं। अनिश्चितता के इस माहौल में जब सभी के मन में खौफ है और भविष्य के प्रति चिंता, तो हमें छोटी-छोटी खुशियों में ही जिंदगी को समेटना चाहिए। जिंदगी क्या है और कैसी है, यह इसी पर निर्भर करता है कि हम इसे जीते कैसे हैं? इसीलिए इस सदी का यह अनुभव जरूर त्रासद है, लेकिन ऐतिहासिक और मूल्यवान भी है। सरकारों द्वारा आधिकारिक और प्रशासनिक स्तर पर सामान्य जीवन में संतुलन बनाने के साथ-साथ देश और समाज को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे न केवल सबक हैं, बल्कि आने वाले कल के लिए संजीवनी बूटी का काम करेंगे। साफ है कि हम एक मैराथन में दौड़ रहे हैं। हमें आने वाले दिनों, महीनों और संभवत: सालों के लिए भी तैयार रहना होगा।
सत्या नारायण पोद्दार
गंभीर विमर्श जरूरी
मशहूर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का विचलित कर देने वाला आत्मघाती कदम सुर्खियों में है। निस्संदेह असफलताओं के चौराहे पर खड़े इंसान के लिए मौत का रास्ता आसान लगता है। मगर सफलता-असफलता छोटी हो या बड़ी, उसे आत्महत्या की वजह मान लेना सही नहीं। आत्महत्या पर होने वाली सार्वजनिक बहसों से अलग हमें उन कारणों को टटोलना होगा कि आत्महत्या जैसे कठोर कदम से लोग बच सकें। आंकड़े बताते हैं कि देश में लगभग 15 प्रतिशत लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, जिसमें सभी लिंग, उम्र व आय के लोग शामिल हैं। निस्संदेह, मनोवैज्ञानिकों को ऐसे लोगों के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी उठानी होगी। देश में एक ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए कि लोग अपनी छोटी-बड़ी, सभी समस्याओं पर बेझिझक विमर्श कर सकें।
एमके मिश्रा, रातू, रांची, झारखंड
बढ़ता रुतबा
192 देशों में से 184 का समर्थन पाकर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का फिर से अस्थाई सदस्य बन गया है। यह उपलब्धि भारत को यूं ही नहीं मिली है। जिस तरीके से हमने पूरे विश्व को अपना मानकर सभी के साथ भाईचारे की मिसाल पेश की है, उसी के कारण हमारा इतना रुतबा बढ़ा है। भारत हमेशा से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ में भरोसा रखता है और सभी देशों को एक परिवार मानता है। इसीलिए कोरोना-संक्रमण काल में भी हमने सभी जरूरतमंद देशों को दवा भेजी। इन्हीं सब कारणों से आज हम इस हैसियत में हैं कि सभी देश हमारी ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। यह हमारे लिए सुखद स्थिति है।
नीरज कुमार पाठक, नोएडा
राजनांदगांव / शौर्यपथ / डोंगरगढ़ विधायक भुनेश्वर बघेल ने अपने विधानसभा क्षेत्र ग्राम घुमका में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सांसद राहुल गांधी के जन्म दिवस के अवसर पर विधायक बघेल ग्राम पंचायत घुमका के गौठान मे वृक्षारोपण किये और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र घुमका में मरीजों को फल और बिस्किट वितरण किये
विशेष कर बघेल ने कोरोना संक्रमण के समय सबसे पहले इस संक्रमण से लड़ाई लड़ने वाले हमारे सभी स्वास्थ्य कर्मियों का फुल और कुछ उपहारों से सभी स्टाफ कर्मियों का स्वागत एवं सम्मान किया। इस कार्यक्रम में घुमका सरपंच श्रीमती फुलमती वर्मा ने अपने उद्बोधन में स्वास्थ्य केंद्र के सभी कर्मियों का पुलिस प्रशासन का ग्राम घुमका के सभी नागरिकों के तरफ से इनके साहस भरे कार्य के लिए उनको धन्यवाद कर उनका हौसला बढ़ाया।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष दुर्गेश द्विवेदी, ग्राम पंचायत घुमका सरपंच फुलमती वर्मा, कमल कुमार दुबे, जय कुमार वर्मा, जयनारायण साहू, चंद्रेश वर्मा, रतन यदु, महेश वर्मा, प्रहलाद यादव, सौरभ वैष्णव, नवनीत सिंह, दिनेश पुरानिक, कपिल वर्मा, राज वर्मा, विक्की ठाकुर, डेरहा राम वर्मा, टुम लाल वर्मा, कमल बंजारे सभी क्षेत्रीय कांग्रेस कार्यकर्ता और घुमका पंचायत के उप सरपंच, पंचगण, सचिव उपस्थित रहे।