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धर्म संसार / शौर्यपथ / श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम कलियुग में एक ऐसा अवतार लेंगे जिसमें शरीर तो कृष्ण का ही होगा परंतु हृदय राधा का होगा। यह सुनकर राधा कहती हैं कि अहा कितना आनंद आएगा जब राधा की भांति दरदर होकर केवल कृष्ण-कृष्ण पुकारते फिरोगे। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं हां, वही करूंगा। वही करूंगा। चैतन्य के रूप में नवद्वीप से लेकर वृंदावन तक कृष्ण कृष्ण पुकारता जाऊंगा।
इसके बाद चैतन्य महाप्रभु को अपने दो साथियों के साथ हरि कीर्तन करते हुए बताया जाता है। फिर से श्रीकृष्ण राधा से कहते हैं कृष्ण कृष्ण पुकारता जाऊंगा। ताकि तुम्हारी तरह कृष्ण प्रेम में तड़प कर देख सकूं। यह सुनकर राधा कहती हैं कि यदि उस तड़प का पूरा आनंद लेना है तो एक काम करिए। तब कृष्ण पूछते हैं, क्या? फिर राधा कहती हैं मुझे मुरली बजाना सिखा दीजिए। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं क्या करोगी? तब राधा कहती हैं कि जब आप विरह व्यथा से पीड़ीत होंगे तो आपकी तरह वृंदावन में चैन से बैठकर मुरली बजाऊंगी। जिसकी ध्वनि सुनकर आप भी मेरी तरह बैचेन हो जाएंगे।
फिर उधर, गोकुल के यमुना किनारे श्रीकृष्ण और राधा को पुन: बताया जाता है। राधा कहती हैं मुझे भी मुरली बजाना सिखाओ। तब कृष्ण कहते हैं कि मुरली नहीं है। यह सुनकर श्रीकृष्ण के हाथ से मुरली लेकर राधा कहती हैं फिर ये क्या है? इस पर कृष्ण कहते हैं ये तुम्हारे काम की नहीं, तुम्हे तो ऐसी मुरली चाहिए जो केवल कृष्ण को जगाए। कृष्ण की मुरली बजेगी तो सारे ब्रह्मांड को जगा देगी। फिर एक तुम ही नहीं और न जाने प्रेम की कितनी ही आत्माएं इस मुरली के स्वरों में बंधकर खिंची चली आएंगी। अगर ऐसा हुआ तो तुम क्या करोगी? फिर उन सबको संभालना तुम्हारे बस में नहीं होगा।
यह सुनकर राधा उठकर खड़ी हो जाती है और कहती हैं ये तुम्हारा अहंकार है कान्हा। राधा जैसा प्रेम तुमसे और कौन करेगा? जो इस प्रकार मतवाली होकर लोकलाज, रिश्ते-नाते सब छोड़-छाड़कर तुम्हारे पीछे फिरेंगी। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब अहंकार तुम कर रही हो राधे। याद रखो अहंकार प्रेम का शत्रु होता है।
तब राधा कहती हैं कि जिसे तुम अहंकार कह रहे हो वह प्रेम का अधिकार है और जो सबसे अधिक प्रेम करेगी वह अवश्य अपना अधिकार मांग सकती हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम में मांगना नहीं देना होता है राधे। तब राधा कहती हैं कि ये सब दार्शनिक बातें रहने दो। तुम्हें अभिमान हैं ना अपनी दूसरी प्रियतमाओं पर तो बजाओ अपनी मुरली और बुला लो उन सबको। आज हो जाए सबके प्रेम की परीक्षा।
ऐसा कहकर राधा श्रीकृष्ण के आसपास एक गोला बना देती हैं और कहती हैं कि इस वृत्त के अंदर वही पैर धर सकेंगी जो तुमसे मेरी तरह प्रेम करती हों अन्यथा यहीं भस्म हो जाएगी। तब श्रीकृष्ण राधा की ओर गौर से देखते हैं तो राधा कहती हैं कि देखते क्या हो बजाओ मुरली और बुला लो उन सबको। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि फिर सोच लो। राधा कहती हैं सोच लिया।
यह सुनकर श्रीकृष्ण अपने अधरों कर मुरली को रखकर आंखें बंद कर ऐसी मुरली बजाते हैं कि राधा कि सभी सखियां बेसुध होकर अपना स्थलू शरीर छोड़ कान्हा के पास यमुना पर पहुंच जाती हैं। यह देखकर राधा आश्चर्य से देखती हैं कि ये सखियां तो यहां आ रही हैं। वे सभी आकर उस वृत्त (गोले) के आसपास एकत्रित होकर कान्हा की मुरली सुनती रहती हैं।
राधा यह देखकर गोले के आसपास अपनी शक्ति से आग उत्पन्न कर देती हैं, लेकिन वह सभी सखियां आग को पार करके कान्हा के और नजदीक पहुंच जाती हैं। यह देखकर राधा की आंखों से आंसू झरने लगते हैं। कुछ क्षण में आग लुप्त हो जाती है। राधा कृष्ण के चरणों में हाथ जोड़कर बैठ जाती हैं और कहती हैं मुझे क्षमा कर दो कान्हा। मैंने भूल से तुम पर केवल अपना ही अधिकार समझा था। आज मेरे अहंकार टूट गया। राधा हार गई।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इन्हें ध्यान से देखो। ये ललीता, विशाखा, उत्तरा सभी मानती हैं कि ये तुमसे अधिक प्रेम करती हैं। ये सब मुझे अपना पति मानती हैं, लेकिन ये सभी वास्तव में तुम ही हो राधा। प्रभु अपनी माया से राधा को दिखाते हैं कि ये सभी सखियां तुम ही हो। प्रभु कहते हैं कि राधा और श्रीकृष्ण के सिवाय इस संसार में कुछ नहीं। तब राधा कहती हैं कि एक चीज है और वो है प्रेम। राधा और कृष्ण का प्रेम। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं आज हम तुमसे फिर हार गए राधा।
इसके बाद दोनों एक अंधे व्यक्ति के भजन सुने में डूब जाते हैं।
दूसरी ओर अक्रूरजी से गर्ग ऋषि हंसते हुए कहते हैं कि अच्छा देवी देवकी ने ऐसा कहा कि उसका छोटा अनपढ़ ही अच्छा। वो गय्या चराएगा और मुरली ही बजाएगा। यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं जी गुरुदेव ऐसा ही कहा उन्होंने। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि वाह वाह वाह, कैसी गूढ़ बात कहती उन्होंने। आप इसका अर्थ समझे?
यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि दोनों राजकुमारों को अपने वंश और अपने देश को ध्यान में रखकर वही काम करने चाहिए जिससे राजकुमारों का उत्तरदायित्व पूरा हो। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि श्रीकृष्ण केवल राजकुमार ही नहीं। कुछ और भी हैं। आप उनके उत्तरदायित्व को समझ सकते हैं? अक्रूरजी जो विद्या और जो ज्ञान आप उन्हें सिखाना चाहते हैं वह सब उनकी मुरली की धुन में छुपा हुआ है।
लेकिन अक्रूरजी यह बात नहीं मानते और कहते हैं कि उनका धर्म ये आज्ञा नहीं देता है कि वो एक काल्पनिक विश्वास का सहारा लेकर इस प्रकार अकर्मण्य होकर केवल हाथ पर हाथ धरे अच्छा समय आने की प्रतीक्षा करते रहें। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि आपकी बात भी सही है। आप जैसा कर्मयोगी केवल मनुष्य की शक्ति पर ही विश्वास रखकर अपना कर्म निर्धारित करता है। परंतु हम जैसे भक्त केवल उसकी शक्ति पर भरोसा रखकर ही कर्म करते हैं जो मनुष्य को भी शक्ति देता है।
फिर अक्रूरजी कहते हैं कि गुरुदेव मैं समझता हूं कि दोनों राजकुमार अब किशोरावस्था में हैं। अब उन्हें कंस से टक्कर लेने के लिए अपनी पूरी तैयारी शुरु कर देना चाहिए। इसलिए मैं आपकी सेवा में आया हूं कि आप ही वसुदेवजी को आदेश दे सकते हैं कि अब राजकुमारों का समय यूं गय्या चराने में बर्बाद न किया जाए। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि उनका समय बर्बाद नहीं हो रहा अक्रूरजी। ये समय तो उनकी प्रेम लीला का है। मानव को ये सिखना है कि प्रेम के बिना मानव का जीवन अधूरा है। गर्ग मुनि कहते हैं कि श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं वे समय आने पर राजनीति भी सिखाएंगे और युद्ध भी करेंगे। निर्माण और संहार करना भी सिखाएंगे।
अक्रूरजी को गर्ग मुनि की बात समझ में नहीं आती है। वे कहते हैं कि जरासंध, बाणासुर और कंस जैसे लोग मिलकर इस धरती को नरक बना दें उससे पहले उनकी शक्तियों का अंत कर देना चाहिए। तब गर्ग मुनि कहते हैं कि उसका समय तो आने दीजिए? यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं कि वह समय कब आएगा? गर्ग मुनि कहते हैं कि बस आने ही वाला है लेकिन अभी तो प्रभु की प्रेम लीला जारी है। विनाश की लीला आरंभ करने से पहले वे मनुष्य को यह संदेश देना चाहते हैं कि अंतत: प्रेम ही सृष्टि का आधार है और वहीं जगत का सार है।
फिर से उस अंधे को कीर्तन करते हुए बताया जाता है। कीर्तन सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि आह कवि की परिकल्पना में उस परम सत्य की कैसी व्याख्या है। अक्रूजी जी वास्तव में कवि की दूरदृष्टि ही समय की सीमाओं को लांघकर उस परम सत्य को देख सकती हैं।...जय श्रीकृष्णा।
नजरिया /शौर्यपथ / पूरा विश्व इस वक्त कोविड-19 से जूझ रहा है। ज्यादातर आर्थिक गतिविधियां रुकी हुई हैं। विभिन्न प्रकार की समस्याओं से लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहां पर प्रवासी मजदूरों की समस्या जबरदस्त रूप में उभरकर सामने आई है। ये मजदूर अलग-अलग प्रांतों से मुख्यत: तीन राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में आ रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या अभी तक उत्तर प्रदेश में 26 लाख लोगों के आने की है। सबका ध्यान सरकार पर है कि वह इनके लिए क्या कर रही है। आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो चुके हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017 बताता है कि देश में लगभग 14 करोड़़ मजदूर मौसमी या चक्रीय स्वरूप के हैं। यही मजदूर कोविड-19 के बाद आर्थिक पुनर्गलन में अहम भूमिका निभाएंगे, जैसाविश्व आर्थिक मंच कहता है। ये मजदूर अर्थव्यस्था के तीनों सेक्टर- कृषि, उद्योग और सेवा में अपना योगदान देते हैं। सेवा क्षेत्र में ये कूड़ा उठाने से लेकर सड़क-भवन निर्माण, मलबा ढोने तक के काम में शामिल हैं। औद्योगिक क्षेत्र में माल ढोने से लेकर उत्पादित वस्तुओं को लादने तक में ये अपना योगदान देते हैं, तो वहीं कृषि क्षेत्र मे बुआई, कटाई और उत्पादित फसलों की ढुलाई इत्यादि का काम करते हैं। इनके शारीरिक योगदान से ही अर्थव्यवस्था में रोजगार और उत्पादन संभव है। ये अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इनके बिना तो अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही टूट जाएगी।
सवाल यह है कि मजदूर आखिर क्यों सड़क पर आए? पहला कारण तो यही है कि राज्य सरकारों ने उनकी क्रय-शक्ति पर ध्यान ही नहीं दिया। कोविड से पहले वे जहां थे, वहीं उनके रहने, खाने व उनकी क्रय-शक्ति बनाए रखने की व्यवस्था होनी चाहिए थी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। और जो कुछ किया भी गया, वह उन्हें रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था।
दूसरा कारण राजनीतिक है। कुछ सत्तासीन पार्टियों को लगता है कि प्रवासी मजदूर उनको वोट तो देते नहीं, इसीलिए इनका पलायन होने दो। उन्हें शायद यह भी लगता है कि इनके चले जाने से स्थानीय वोट बैंक को संतुष्टि भी मिलेगी और रोजगार के अवसर भी होंगे। लेकिन इससे नुकसान स्थानीय राज्यों का भी है, क्योंकि सामान ढोने वालों, सड़कें बनाने वालों की कमी पड़ जाएगी। इसके सामाजिक पहलू की भी पड़ताल की जानी चाहिए। प्रवासी मजदूर जहां वर्षों से रह रहे थे, वहां उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती चली गई। इनका हिस्सा उस राज्य के रोजगार, आय, जमीन, मकान आदि में बढ़ता चला गया। इस वजह से वह स्थानीय जनता नाराज होने लगी, जो इन्हें सिर्फ मजदूर के रूप में देखना चाहती थी। इस तबके की नाराजगी भी प्रवासियों को झेलनी पड़ी है।
ऐसी स्थिति में सरकारों को मजदूरों तक सामाजिक व वित्तीय सुरक्षा के साथ-साथ तत्काल नकदी पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए। केंद्र सरकार ने इस दिशा में पीएम किसान योजना, मनरेगा व अन्य योजनाओं के जरिए महत्वपूर्ण कदम उठाए भी हैं। ऐसी आपदा के समय त्वरित निर्णय और तीव्र कार्यशैली का काफी महत्व होता है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश सरकार अपनी समकक्ष सरकारों से काफी आगे दिख रही है। प्रदेश सरकार ने 353 करोड़ रुपये का एक त्वरित राहत पैकेज जारी किया है, जिससे 30 लाख से भी अधिक श्रमिक लाभान्वित होंगे। यूपी लौट रहे प्रवासी मजदूरों को मुख्यमंत्री लगातार यह भरोसा दे रहे हैं कि प्रदेश में आने वाले निवेश के जरिए वह उनके रोजगार व सामाजिक सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करेंगे। यदि उत्तर प्रदेश ऐसे श्रमिकों को लेकर अपनी योजना में कामयाब रहा, तो उसके पास दूसरे राज्यों में काम कर रहे अपने श्रमिकों का भी पूरा ब्योरा होगा और जब कभी भी कोई आपदा आएगी, तो वह उसके हिसाब से प्लान कर सकेगी। मानव संपदा के सकारात्मक इस्तेमाल से प्रदेश की तस्वीर बदली जा सकती है।
अन्य राज्य सरकारें भी केंद्र के साथ मिलकर मजदूरों के लिए योजनाएं बना रही हैं। कोरोना के कारण राजस्व को पहुंचे भारी नुकसान की भरपाई के लिए भी वे तरकीबें निकालने में जुटी हैं। जाहिर है, इस विकट संकट से निपटने के लिए त्वरित निर्णय और दीर्घकालिक रणनीति बनाने की जरूरत है। अब सोचना उन राज्यों को भी होगा, जहां से श्रमिकों का पलायन हुआ है, वे अपनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे कामगारों का भरोसा कैसे जीतेंगे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं) शक्ति कुमार, चेयरपर्सन, सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज ऐंड प्लानिंग, जेएनयू
सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / देश में पांचवें लॉकडाउन का लागू होना उतना ही जरूरी हो गया था, जितना लॉकडाउन में ढील देना। कड़ाई और ढील की मिली-जुली व्यवस्था ही समय की मांग है। प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में भी इसी मजबूरी की ओर संकेत करते हुए चेताया है कि देश खुल गया है, अब ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है। वाकई सतर्कता आज प्राथमिकता है, तभी हम न केवल अपने कार्य-व्यापार को आगे बढ़ा पाएंगे, स्वयं को सुरक्षित रखने में भी कामयाब होंगे। जाहिर है, लॉकडाउन पांच पिछले लॉकडाउन की तरह नहीं है। अब केवल कंटेनमेंट जोन में ही लॉकडाउन रखना अनिवार्य होगा। साथ ही, इस बार राज्यों की भूमिका वाकई बहुत बढ़ गई है। उन्हें अपने स्तर पर बड़े फैसले करने हैं। मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार इत्यादि राज्यों ने तो लॉकडाउन को 30 जून तक बढ़ाने का फैसला कर लिया है। कुछ राज्य 15 जून तक ही लॉकडाउन के पक्ष में हैं। आज कुछ राज्य ज्यादा चिंतित हैं, तो समझा जा सकता है। पिछले लॉकडाउन की अगर हम चर्चा करें, तो 14 दिनों में ही संक्रमण के लगभग 86 हजार मामले सामने आए हैं। आंकड़ों को अलग से देखें, तो चिंता होती है, लेकिन दूसरे देशों से तुलना करें, तो अपेक्षाकृत संतोष होता है। हमारा यह संतोष कायम रहना चाहिए।
यह चर्चा जारी रहेगी कि जब देश में 500 मामले भी नहीं थे, तब बहुत कड़ाई से लॉकडाउन लगाया गया था, लेकिन जब मामले दो लाख के करीब पहुंचने लगे हैं, तब लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। जब केंद्र और राज्य सरकारें ढील पर विचार कर रही थीं, तब 30 मई को संक्रमण के मामलों में रिकॉर्ड इजाफा दर्ज हुआ है। अब एक दिन में 8,000 से ज्यादा मामले आने लगे हैं, तो आने वाले दिनों में क्या होगा? मरने वालों की संख्या भी 5,000 के पार जा चुकी है। ऐसे में, जब धर्मस्थल, रेस्तरां, होटल, शॉपिंग मॉल, स्कूल-कॉलेज खुल जाएंगे, तब क्या होगा? जब सड़कों पर सार्वजनिक वाहन दौड़ने लगेंगे, फिर क्या होगा? धर्म और शिक्षा के मंदिर देश में हमेशा से भीड़ भरे रहे हैं। ये हमारे समाज के सबसे कमजोर मोर्चे हैं, जहां संचालकों-प्रबंधकों को विशेष रूप से चौकस रहना होगा। धर्मस्थल के संचालकों की ओर से आ रहे दबाव को समझा जा सकता है, पर वहां फिजिकल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित रखना अच्छे संस्कार, सभ्यता की नई निशानी होगी। धर्म प्रेरित मानवता भी हमें एक-दूसरे की चिंता के लिए प्रेरित करती है। हम सभी न चाहते हुए भी एक-दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं।
कोरोना के संदर्भ में अनेक लोगों को अब यह नहीं पता चल रहा है कि उन्हें कोरोना किससे लगा? घर से निकलने वाला एक आदमी अगर अनेक लोगों के संपर्क में आएगा, तो यह पता लगाना उत्तरोतर कठिन होता जाएगा कि कोरोना की कौन-सी शृंखला आगे बढ़ रही है। लॉकडाउन पांच के समय देश ऐसी अनेक तरह की नई चुनौतियों की ओर बढ़ रहा है। संदिग्ध लोगों की निगरानी का काम हाथ-पैर फुला देगा। बेशक, अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार हम देखेंगे और देश के लोगों को राहत देने के लिए यह अपरिहार्य है। ध्यान रहे, हर जगह पुलिस या सरकार खड़ी नहीं हो सकती, हमें स्वयं अनुशासित नागरिक बनकर अपनी और अपने पास के लोगों की पहरेदारी करनी है। यह अपनी ऐसी फिक्र करने का समय है, जिसमें सबकी फिक्र शामिल हो।
मेलबॉक्स / शौर्यपथ / हर महामारी ने समय-समय पर मनुष्य के लिए संकट पैदा किया है, लेकिन उसके साथ वह इंसान को कई सीख और संदेश भी देकर गई है। वर्तमान में अपने चरम पर चल रही कोरोना महामारी के साथ भी ऐसा ही है। कोरोना से हमारी जंग जारी है। बतौर सबक उत्तर प्रदेश जैसे राज्य श्रमिक आयोग के गठन की घोषणा कर रहे हैं, तो केंद्र सरकार भी ‘माइग्रेंट वर्कर्स’ को परिभाषित करने जा रही है, जो आने वाले वर्षों में काफी राहतपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। एक सबक यह भी है कि प्रकृति से खिलवाड़ जानलेवा हो सकता है, और अगर हम यूं ही उसके साथ छेड़छाड़ करते रहे, तो वह अपने घाव खुद भर सकती है। तो क्या आगे भी हम पर्यावरण को स्वच्छ रखेंगे? लॉकडाउन अवधि में अपराधों में आई कमी कायम रखेंगे? पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण बंद करेंगे? इन सवालों का सटीक जवाब अभी नहीं दिया जा सकता, लेकिन गांधी जी के स्थानीय स्वशासन के मंत्र को यदि हम अपना लें, तो देश भर में होने वाला भीतरी पलायन भी रुक सकता है। राज्य सरकारों को इसकी तरफ सोचना चाहिए।
उज्ज्वल अवस्थी
मदद वाले हाथ
बॉलीवुड पर संवेदनशील मामलों पर चुप्पी बरतने के आरोप अक्सर लगते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अभिनेता सोनू सूद द्वारा गरीब लोगों को घरों तक पहुंचाने के लिए किए गए प्रयास सराहनीय हैं। सोनू सूद जैसे अभिनेताओं से सरकार के जिम्मेदार लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं कि जनता के पैसे को जनता पर खर्च कर कैसे जनसेवा की जा सकती है। कोरोना वायरस बेशक आर्थिक रूप से सरकारों की कमर तोड़ रहा है, लेकिन अभिनेता सोनू सूद जैसे मदद करने वाले लोगों के सामने आने वाली प्रशासनिक मुश्किलों का तुरंत निपटारा तो सरकार कर ही सकती है। ऐसा करने से मदद करने वाले हाथ और ज्यादा मजबूत होंगे।
महेश कुमार सिद्धमुख, राजस्थान
इंटरनेट का बढ़ता दायरा
डिजिटल दुनिया का साम्राज्य बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि सूक्ष्म से लेकर विशाल तक, सभी चीजों के लिए डिजिटल माध्यम को अपनाने की मांग हो रही है। एक तरफ, डिजिटल के फायदे हैं, तो दूसरी तरफ इसके कुछ नुकसान भी हैं। सभी के लिए, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में, जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वहां डिजिटल नहीं, नॉर्मल दुनिया की जरूरत है। सरकारी स्तर पर भी अब हर जगह डिजिटल की मांग है, पर उसमें भी यह सबके लिए संभव नहीं। सरकारी क्षेत्र हो या निजी, किसी भी जगह डिजिटल के साथ-साथ सामान्य सुविधा भी आवश्यक है। डिजिटल के साथ ऐसी व्यवस्था भी जरूरी है, जो सबके लिए उपयुक्त हो और सब उसका आसानी से इस्तेमाल कर सकें।
माधुरी शुक्ला, सारनाथ, वाराणसी
चौधराहट मंजूर नहीं
भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव को कम करने के लिए पिछले कुछ दिनों से कूटनीतिक और राजनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं। इन कोशिशों का सकारात्मक परिणाम भी सामने आया है। अब चीन के रुख में नरमी दिखने लगी है। मगर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बीच मध्यस्थता की पेशकश कर दी। जाहिर है, वह भारत-चीन सीमा विवाद को नया रूप देने की कोशिश में हैं। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पर भी ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की बात कही थी, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। मौजूदा हालात में, जब अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है और कोविड-19 पर उन दोनों में तकरार जारी है, तब अमेरिका द्वारा मध्यस्थता की बात कहना कहां तक प्रासंगिक है? सच्चाई तो यह है कि अमेरिका अपनी चौधराहट दिखाना चाहता है, जिसे हमें कतई नहीं मानना चाहिए।
अली खान, जैसलमेर, राजस्थान
ओपिनियन / शौर्यपथ /इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, दीवारो-दर को गौर से पहचान लीजिए... उमराव जान फिल्म के एक गीत की यह पंक्ति आज काफी मौजूं है। घर, दफ्तर और बाहर, अगर दीवारों-दर ही बदल चुके हों, तो? और अगर आप भी बदल गए हों, तो? बदलाव तय है। मशहूर चिंतक, लेखक थॉमस फ्रीडमैन ने कहा है कि हम इतिहास की एक नई विभाजन रेखा पर खड़े हैं। दुनिया का इतिहास अब ईसा से पहले और ईसा के बाद के पैमाने पर नहीं, बल्कि कोरोना से पहले और कोरोना से बाद के कालखंडों में विभाजित होगा। ‘उत्तर कोरोना काल’ में जो चीजें सबसे ज्यादा बदली हुई होंगी, उनमें से एक है- हमारा सामाजिक व्यवहार और दूसरा है- काम करने का हमारा तरीका।
पहले भी लोग घर से या दफ्तर के बाहर से काम करते थे, लेकिन वे अपवाद थे। अब कोरोना के समय दफ्तर जाने वाले अपवाद हैं। इसीलिए सबके मन में सवाल है कि ऐसे ही क्यों नहीं चल सकता? दफ्तर की क्या जरूरत है? कई छोटे दफ्तर चलाने वाले तो फैसला कर चुके हैं कि अब दफ्तर बंद करके किराया बचाया जाए। दुनिया की चर्चित आर्थिक पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने एक लेख में ऑफिस का मर्सिया लिख दिया है। डेथ ऑफ द ऑफिस शीर्षक वाले लेख में बताया गया है कि इस बीमारी के आने से पहले ही दफ्तर खतरे में थे, अब यह खतरा और भी बढ़ गया है। हालांकि लेखक रियायत देते हैं कि फिलहाल ऑफिस की जान नहीं जाने वाली।
इधर रियल एस्टेट कंसल्टेंसी नाइट फ्रैंक ने भारत में कमर्शियल रियल एस्टेट के जिम्मेदार लोगों के बीच एक सर्वे किया है। इसके मुताबिक, 72 प्रतिशत लोग सोच रहे हैं कि छह महीने बाद भी दफ्तर के आधे लोगों से घर से ही काम लेना जारी रखा जाए। जल्दी ही उन दफ्तरों के बारे में फैसला होना है, जहां लॉकडाउन लगने के बावजूद लोगों ने घर से काम करके कामकाज पर असर नहीं आने दिया है। ऐसी कंपनियों का सोचना है कि क्या सबको काम पर वापस बुलाना है या कम लोगों को दफ्तर बुलाकर बाकी के घर को ही दफ्तर मान लिया जाए? मैकिंजी के सर्वेक्षण में शामिल एक कंपनी के सीईओ ने इस पर बहुत दिलचस्प टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि इसे ‘वर्क फ्रॉम होम’ कहने की बजाय ‘स्लीपिंग इन ऑफिस’ कहना बेहतर होगा। घर से काम कर रहे लोगों और उनके घरवालों से बात कीजिए, तो यह बात सटीक लगेगी। ज्यादातर का कहना है कि अब वे पहले से ज्यादा व्यस्त हैं। ज्यादा समय काम कर रहे हैं और इस चक्कर में घर का संतुलन भी बिगड़ रहा है, क्योंकि सब अपने-अपने कंप्यूटर या मोबाइल के जरिए किसी न किसी मीटिंग या क्लास में व्यस्त रहते हैं।
वैसे ऑफिस कम रेजिडेंस यानी घर और दफ्तर एक साथ की अवधारणा नई नहीं है। आम तौर पर इसका अर्थ एक बड़ा बंगलेनुमा घर होता है, जिसमें रहने का हिस्सा अलग और दफ्तर का हिस्सा अलग होता है। बडे़ अधिकारियों की जिंदगी आज भी ऐसे घरों में गुजरती है। दफ्तर बंद होने के बाद उसके कमरे बंद और घर की जिंदगी शुरू।
मगर कोरोना आने के साथ असंख्य लोगों के घर उनके दफ्तर बन गए। दिक्कत यह है कि सारे घर ऐसे नहीं हैं, जिनमें अलग से दफ्तर बन जाएं, तो अपने बेडरूम, ड्रॉइंग रूम या डाइनिंग टेबल को ही दफ्तर बनाना पड़ता है। बीच में कूकर की सीटी भी बजेगी और दरवाजे की घंटी भी। एक से ज्यादा लोग काम कर रहे हों, तो जगह की तंगी भी है। एक दिग्गज का कहना है कि भारत के ज्यादातर घर वर्क फ्रॉम होम के हिसाब से तैयार नहीं हैं। यानी इस रास्ते पर आगे बढ़ना है, तो घरों में बदलाव करने होंगे। इस बदलाव का खर्च भी क्या कंपनियां उठाएंगी?
जाहिर है, सारी बड़ी कंपनियां यह हिसाब जोड़ रही हैं कि जो कर्मचारी घर पर रहकर दफ्तर चलाएंगे, उन्हें इसके लिए कितना खर्च करना पडे़गा और कंपनी को कितना देना पड़ेगा। घर में काम से कंपनी को बचत हो रही है या नुकसान? अभी फिजिकल डिस्टेंसिंग भी देखनी है यानी एक कर्मचारी को बैठाने के लिए चार की जगह चाहिए। एक जगह ज्यादा कर्मचारियों को बैठाने से हमेशा खतरा बना रहेगा। दक्षिण कोरिया के एक कॉल सेंटर में एक ही हॉल में काम करने वाले 43 प्रतिशत लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए।
अब ओपन ऑफिस और कंपनी के सारे कामकाज एक जगह लाकर बड़ा सेंट्रल कॉम्प्लेक्स बनाने की दिशा में काम खतरनाक है। अगर कोई बीमारी फैल गई, तो पूरा काम ठप हो जाएगा। इसीलिए काम को एक से ज्यादा जगह बांटकर रखना समझदारी मानी जाएगी। शिकागो यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च से पता चलता है कि अमेरिका में 37 प्रतिशत काम ऐसे हैं, जो हमेशा के लिए घर से किए जा सकते हैं।
एक दूसरी बड़ी बहस यह भी छिड़ी हुई है कि क्या दफ्तर सिर्फ काम के लिए होते हैं? टीम भावना, कंपनी से जुड़ाव और नौकरी न बदलने की इच्छा, इन सबके पीछे दफ्तर की भी भूमिका होती है। काम के बीच चाय-कॉफी पर चर्चा, विमर्श, दोस्तियां, रोमांस इत्यादि से भी इंसान अपने दफ्तर से जुड़ता है।
बहरहाल, मैकिंजी की रिपोर्ट में ऐसा एक सूत्र है, जो सबके काम का है और वह है, ‘सीखने की कला सीखो। महामारी के बाद के दौर में काम की पूरी दुनिया बदली हुई होगी, कंपनियां बदल जाएंगी और आपके अपने बहुत से लोग बदल चुके होंगे। ऐसे में, वही कारोबार आगे बढ़ पाएंगे, जो अपने लोगों को तेजी से इस बदलती दुनिया के साथ बदलने का रास्ता सीखने लायक बनाएंगे या सीखने के लिए जरूरी कौशल दे पाएंगे और अभी यह काम बहुत कम लोगों को आता है।’
फेसबुक और ट्विटर, दोनों ने कहा है कि वे अपने बहुत से कर्मचारियों को हमेशा के लिए घर से काम करने की छूट दे रहे हैं। उधर, एक रियल एस्टेट कंपनी ने एक नए ऑफिस का डिजाइन बना दिया है, जिसमें काम करने वालों के बीच छह फुट की दूरी का इंतजाम होगा। यह तय है कि हर आदमी घर से काम नहीं कर सकता और काम के जितने भी तरीके निकाले जाएंगे, उन पर सवाल उठेंगे। बहरहाल, दुनिया किसी भी शक्ल में खुले, हमें आगे तो बढ़ना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
दुर्ग / शौर्यपथ खास खबर / दुर्ग जिला मुख्यालय के मध्य स्थिति इंदिरा मार्किट शहर का मुख्य व्यावसायिक केंद्र है . इस बाज़ार की स्थापना सालो पहले से हुई है . इंदिरा मार्केट में निगम प्रशासन द्वारा सालो पहले दुकानों का निर्माण कर व्यापारियों को सशर्त लीज पर दिया गया और यही मंशा के साथ कि शहर का गौरव इंदिरा मार्केट सहसर की शान बने . किन्तु इंदिरा मार्केट की निगम अधीन इमारतो की हालत कई स्थानों से जर्जर हो गयी है , प्रेस काम्प्लेक्स की इमारत , मछली बाज़ार की ईमारत सहित सब्जी मार्केट की इमारतो की हालत भी खस्ता हाल है और कारण है कई व्यापारियों की मनमानी .
बिना अनुमति किया गया बदलाव
इंदिरा मार्केट में निगम द्वारा तय नियमो और मानको के आधार पर शापिंग काम्प्लेक्स का निर्माण हुआ और व्यापारियों को आबंटित हुआ किन्तु कुछ व्यापारियों की गलती या लालच की प्रवित्ति कह ले आज काम्प्लेक्स की इमारत जर्जर अवस्था में हो गयी . निगम प्रशासन द्वारा आबंटन के समय लीज धारक व्यापारियों को इस शर्त पर दुकाने आबंटित की गयी थी कि कोई भी व्यापारी दुकानों के मूल रूप में परिवर्तन करने से पहले निगम प्रशासन की अनुमति ले किन्तु दुकानदारों द्वारा ऐसा नहीं किया गया कई दुकानदारों द्वारा दुकानों के मूल स्वरुप में बदली की गयी अधिकतर बदलाव भूतल पर संचालित दुकानों में की गयी . भूतल में बदलाव और बिना अनुमति व बिना विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में हुए निर्माण के कारण दो माले भवन में उपरी माला कही कही से कमजोर हो गया .
लालम यह है कि मचली बाज़ार से लगी हुई इमारत तो इतनी जर्जर हो गयी कि ऊपर जाने की सीढी भी नेस्तनाबूद हो गयी . प्रेस काम्प्लेक्स भवन के छज्जा गिरने की घटना कई बार हो चुकी है . निगम पिछले कई सालो से भवन के संधारण के नाम पर लाखो खर्च कर चुका है किन्तु किसी भी निगम इंजिनियर ने शायद ये रिपोर्ट नहीं दी होगी कि संधारण से इमारत की स्थिति में कोई सार्थक सुधार होगा और इस तरह निगम के लाखो रूपये बर्बाद होने के बाद स्थिति जस की तस है .
बाज़ार विभाग की गलती का खामियाजा भुगत रही है जनता
निगम प्रशासन में बाज़ार की व्यवस्थाओ पर और अव्यवस्था पर निगाह रखने के लिए निगम प्रशासन में बाज़ार विभाग नाम की एक शाखा है . इस विभाग की जिम्मेदारी है कि बाज़ार में निगम की संपत्ति पर कोई गैर क़ानूनी कार्य ना करे , निर्धारित जगह से ज्यादा स्थान पर अतिक्रमण ना करे , दुकानों के मूल स्वरुप में बिना अनूमति बदलाव ना करे , बाज़ार शासन के नियमो के अनुसार चले और इसके लिए विभाग के कर्मचारियों को शासन द्वारा लाखो रूपये मानदेय के रूप में दिया जाता है किन्तु शायद निगम का बाज़ार विभाग अपने कार्यो के निर्वहन करने में असफल रहा और निगम प्रशासन को लगातार दिग्भ्रमित करता रहा . ऐसा नहीं कि कि बाज़ार विभाग के कर्मचारी 2-4 साल में स्थानांतरित होते हो और नए कर्मचारी आते हो जिसके कारण व्यापारियों द्वारा इसका लाभ लेकर अवैध तरीके से निर्माण कर लिया जाता हो और मूल रूप में परिवर्तन किया जाता हो . प्राप्त जानकारी के अनुसार बाज़ार मुहर्रिर , कर्मचारी व बाबू ऐसे लोग नियुक्त है जिनकी सालो से नियुक्ति हुई है और सालो से ही बाज़ार विभाग का कार्य कर रहे है शायद ही बाज़ार का कोई व्यापारी हो जो इन अधिकारियों कर्मचारियों को जानता नहीं हो . फिर भी बाज़ार के कई संस्थानों द्वारा बिना अनुमति निर्माण के बाद भी बाज़ार विभाग का मौन रहना किसी तरह की कोई दंडात्मक कार्यवाही का ना होना दर्शाता है कि निगम का बाज़ार विभाग किस तरह की कार्यप्रणाली के तहत कार्य कर रहा है .
लाइसेंस विभाग की मिलीभगत का अंदेशा?
व्यापार के लिए प्रत्येक व्यापारिक संसथान को निगम से अनुज्ञप्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है अनुज्ञा प्रमाणपत्र के नवीनीकरण के समय लैसेंक विभाग दूकान की स्थित का आंकलन करने के बाद ही व्यापार संचालित करने के प्रमाण पत्र ज़ारी करता है किन्तु शायद ही ऐसा कोई मामला सामने आया हो जिसकी अनुज्ञा प्रमाण्पत्र निरस्त हुई हो निगम अधीन दुकानों के मूल रूप परिवर्तन के कारण . साफ प्रतीत होता है कि लाइसेंस विभाग सिर्फ दस्तावेजो के आधार पर ही नवीनीकरण करता रहा अगर स्थल निरिक्षण किया जाता तो वर्तमान की स्थिति निर्मित ही नहीं होती .
बड़े बड़े व्यापारियों द्वारा किया गया अतिक्रमण पर निगम प्रशासन रहता है मौन
इंदिरा मार्केट में निगम द्वारा बनाए गए व्यावसायिक परिसर की एक श्रंखला है जो सब्जी मार्केट के चारो तरफ है वही प्रेस काम्प्लेक्स ए ,बी , सी की श्रृंखला है इन काम्प्लेक्स में भी कई दुकानों द्वारा मूल स्वरुप बदला गया मूल स्वरुप बदलने के लिए किसने अनुमति ली किसने नहीं इसकी जानकारी भी बाज़ार विभाग से प्राप्त नहीं हो सकी . कुछ दिनों पहले ही प्रेस काम्प्लेक्स से छज्जा का कुछ हिस्सा टूट कर गिरने की घटना हुई थी जिसके बाद इसे संध्रण के लिए दुर्ग विधायक द्वारा निर्देशित किया गया था .
महापौर और विधायक को कार्यवाही के समय रहना चाहिए सामने ?
निगम प्रशासन की सत्ता 20 सालो से भाजपा के अधीन थी इन 20 सालो में बाज़ार की व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ गयी अब जबकी 20 साल बाद दुर्ग निगम में कांग्रेस की सत्ता है , विधान सभा क्षेत्र में जहाँ कांग्रेस के विधायक है और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है ऐसे में दुर्ग के दो जनप्रतिनिधि जिनकी छवि भ्रष्टाचार से मुक्त है ऐसे दोनों जनप्रतिनिधि महापौर बाकलीवाल और विधायक अरुण वोरा ही बाज़ार के व्यापारियों निगम के कार्यो में सहयोग के लिए अपील कर सकते है समझाईश दे सकते है ताकि दुर्ग इंदिरा मार्केट के व्यापारी और जनता को किसी प्रकार की क्षति ना हो . बाज़ार के जर्जर भवन का पूर्ण संधारण ही एवं नियमो सहित सञ्चालन ही एक मात्र रास्ता है सुव्यवस्थित और सुरक्षित बाज़ार का ...
अतिक्रमण व मूल स्वरुप बदलने वालो पर क्या निगम प्रशासन करेगी कार्यवाही या फिर किसी बड़े हादसे का है इंतज़ार
निगम प्रशासन द्वारा बनाया गया व्यावसायिक परिसर शासन के मापदंडो को पूर्ण करके बनाया गया था . किन्तु कई व्यापारियों द्वारा बरामदे सही सड़क तक सामन फैला कर व्यापार किया जा रहा कई व्यापारी तो सड़क पर भी व्यापार कर रहे है किन्तु बाज़ार विभाग का मौन विभाग की कार्यप्रणाली से कई तरह के भ्रष्टाचार का संदेह पैदा करता है . अब निगम प्रशासन के मुखिया की जिम्मेदारी बनती है कि इंदिरा मार्केट के ऐसे व्यापारी जो बरामदे व सड़क तक सामान फैला कर व्यापार कर रहे है उस पर कड़ी कार्यवाही करे , जो व्यापारी दुकानों के मूल स्वरुप में परिवर्तना कर दिए है बिना अनुमति के उन पर कार्यवाही करे और आम जनता को अपने इस कार्य से सन्देश दे कि निगम प्रशासन व्यापारियों के दबाव में नहीं शासन के नियमो के तहत कार्य करता है .
रायपुर / शौर्यपथ / मोदी सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा पर भाजपा नेताओं की बड़ी बड़ी घोषणाओं पर तीखा प्रहार करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि मोदी जी की 20 लाख करोड़ की घोषणा और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की पांच पांच धारावाहिक सीरियल पत्रकार वार्ताओं के बाद भी देश के किसी भी वर्ग किसान मजदूर छोटे व्यापारी को पता नहीं चल पाया है कि उसे मिला क्या है ।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि 5-5 पत्रकार वार्ताओं के बाद देश को एक अनुवादक मंत्री और एक लोन मंत्री के अलावा कुछ नहीं मिला है । कांग्रेस डॉक्टर रमन सिंह को चुनौती देती है कि वह एक पत्रकार वार्ता और ले और यह बताएं कि छत्तीसगढ़ में 20 लाख करोड़ में किसको कितना मिलेगा ।
मरकाम ने कहा है कि मोदी जी घोषणा तो लाखों करोड़ों और अरबों की करते हैं लेकिन पैसे किसी को मिलते नहीं । किसान सम्मान निधि की हकीकत को भी बेनकाब करते हुए कांग्रेस ने कहा है कि देश में 44त्न किसान को सम्मान निधि के दायरे से बाहर है जब किसान सम्मान निधि की पहली किस्त जारी की गई तो 8:30 करोड़ किसान इसमें आते थे दूसरी किस्त में 7:30 करोड़ किसान बचे और तीसरी सूची में छह करोड़ किसान बचे 29 जनवरी को सूची जारी की गई तो किसान 3:30 करोड़ हो गए थे या किसानों का सम्मान है या अपमान यह रमन सिंह जी को बताना चाहिए
मोदी सरकार के 2.0 के पहले एक साल को विफलता और नाकामी का काला अध्याय निरूपित करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि कोरोना से निपटने से लेकर अर्थव्यवस्था तक हर मामले में मोदी सरकार विफल साबित हुयी है। मोहन मरकाम ने कहा है कि 40 करोड़ भारतीयों के गरीबी रेखा के नीचे जाने की स्थिति बनने के लिए मोदी सरकार 2.0 का पहला साल जिम्मेदार है। साम्प्रदायिक दंगे भड़कने और नागरिकता के काले कानून के लिए मोदी जी के इस एक वर्ष को याद किया जायेगा। महाराष्ट्र बंद दिल्ली और हरियाणा के चुनावों में भाजपा की हार हुयी। हरियाणा में भाजपा अनैतिक गठबंधन करके सरकार बना पायी। यातायात का काला कानून लाया गया जिसमें भारी भरकम जुर्माने का प्रावधान है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि पूरा देश आज नोटबंदी एवं गलत तरीके से जीएसटी लागू करने की गलती को भुगत रहा है और अर्थव्यवस्था मांग की बड़ी भारी कमी से जूझ रही है और जिस तरह से सरकार ने 20 लाख करोड़ के जुमले की घोषणा की है, उससे मांग की सृजन की कोई उम्मीद भी नहीं है। आंकड़ों से ये बात स्पष्ट हो गई है कि कोरोना संक्रमण के फैलने के पूर्व ही अर्थव्यवस्था स्लोडाउन फेज में थी। जिस तिमाही के आंकड़े आये हैं उसमें लाकडाउन सिर्फ एक हफ्ता ही था।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने केंद्र सरकार से इन सवालों का जवाब मांगा है
-पिछले 4 साल से लगातार गिरती जीडीपी का जिम्मेवार कौन है?
-बड़े विज्ञापनों के बावजूद मेक इन इंडिया स्कीम धराशायी क्यों हुई?
-20 लाख करोड़ के पैकेज गरीबों, मध्यमवर्ग, किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी, निजी नौकरी करने वालों किसी को भी क्यों कुछ नहीं मिला?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने मांग की है कि अब मोदी सरकार अपनी नोटबंदी और गलत तरीके से जीएसटी लागू करने की विफलता को देश के सामने स्वीकार करे। मोहन मरकाम ने कहा है कि कोरोना की गंभीर चुनौती के लिए समय पर तैयारी कर पाने में भी मोदी सरकार विफल रही। समय पर विमानतलों में स्क्रीनिंग नहीं की गयी जिसका परिणाम पूरा देश भुगत रहा है। 30 जनवरी को पहला कोरोना का मामला आने के बाद भी 24 फरवरी को गुजरात में लाखों लोगों को इक_ा कर नमस्ते ट्रम्प किया गया परिणामस्वरूप आज गुजरात कोरोना से बेहाल है 15500 से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और गुजरात से पूरे देश में गये श्रमिक कोरोना संक्रमण से प्रभावित पाये जा रहे हैं। देश में भी कोरोना पर रोक लगाने में समय पर फैसला मोदी सरकार नहीं कर पायी क्योंकि भाजपा मध्यप्रदेश की निर्वाचित सरकार को गिराने में लगी रही और 23 को भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के मध्यप्रदेश में शपथ लेने के बाद 24 मार्च से लाकडाउन किया गया। आज मध्यप्रदेश में 7500 से अधिक कोरोना मरीज हैं। थाली बजाकर, घंटा बजाकर, लाइट बुझाकर, दिया जलाकर कोरोना महामारी से लडऩे जैसे मोदी सरकार के खोखले उपायों का ही परिणाम है कि आज देश में कोरोना प्रभावितों की संख्या एक लाख सत्तर हजार से अधिक होने जा रही है।
खास बात
// फ र्म के नाम की गाडिय़ा नहीं होगी निशुल्क
// व्यक्तिगत निजी वाहन होंगे निशुल्क
// किसानी उपयोग में आने वाले वाहन निशुल्क
// एम्बुलेंस निशुल्क
// शासकीय वाहन निशुल्क
// निशुल्क वाहन वाहन के निशुल्क की सुविधा लेफ्ट साइड के अंतिम लेन में होगी
दुर्ग / शौर्यपथ / धमधा नाका टोल टेक्स में आज दिनांक 1 जून से जिले की सी जी 07 पासिंग निजी वाहनों का कोई टेक्स नहीं लगेगा . बता दे कि शहर के कई संगठनों ने धमधा नाका टोल टेक्स पर जिले के निजी वाहनों के शुल्क का विरोध किया और कई बार प्रदर्शन भी किया . शौर्यपथ समाचार पत्र सभी संगठनों का साधुवाद करता है जिन्होंने इस कार्य में अपना अहम योगदान दिया . शौर्यपथ समाचार द्वारा माह फरवरी में दुर्ग की आम जनता और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से उनकी आवाज को शहर के विधायक अरुण वोरा एवं महापौर बाकलीवाल व सभापति राजेश यादव तक सोशल मिडिया के माध्यम से पहुँचाया .
विधायक वोरा के द्वारा मामले को संज्ञान में लेते हुए फरवरी माह में निगम अधिकारियों , जिला प्रशासन और शिवनाथ कंपनी से मीटिंग आहूत कर इस मुद्दे पर चर्चा की गयी . विधायक वोरा महापौर बाकलीवाल द्वारा मामले पर लगातार प्रयास किया जाता रहा और मामले को प्रदेश के परिवहन मंत्री के समक्ष रखा गया . पिछले हफ्ते हुई परिवहन मंत्री मो. अकबर से इसी मामले को लेकर विधायक वोरा एवं महापौर की मीटिंग हुई जिसमे दुर्ग पासिंग निजी वाहनों को धमधा नाका टोल टेक्स पर निशुल्क करने के विषय में लम्बी चर्चा के बाद मंत्री मो. अकबर द्वारा जल्द ही इस विषय पर किसी नतीजे में पहुँचने की बात कही गयी .
विधायक वोरा के अथक व लगातार प्रयास का परिणाम रहा कि धमधा नाका टोल टेक्स में दुर्ग पासिंग निजी चार पहिया , दो पहिया वाहनों पर अब कोई शुल्क नहीं लगेगा साथ ही किसानी उपयोग में आने वाले ट्रेक्टर ट्राली को भी किसी प्रकार का शुल्क नहीं देना होगा . सिर्फ उन्ही वाहनों का शुल्क लिया जाएगा जिन वाहनों का पंजीयन फर्म के नाम से हुआ होगा .
एक जून और दुर्ग में 20 सालो बाद सत्ता में आये कांग्रेस के महापौर का जन्म दिन एक ही दिन पडऩे से एक यादगार के रूप में भी दुर्ग की जनता याद रखेगी . सालो से विवादित इस टोल नाके में लोकल वाहनों के टेक्स का विरोध जिले की अधिकतर संगठनों द्वारा किया जाता रहा . सभी की एक मत राय थी कि जिले के वाहनों को निशुल्क किया जाए जो काफी लम्बे समय बाद आज पूरी हुई .
इस बारे में शौर्यपथ समाचार पत्र द्वारा जब टोल नाका के प्रबंधक प्रवीन तेवतिया से बात हुई तो उनके अनुसार शासन के आदेश अनुसार एक जून से जिले की पासिंग निजी वाहन से अब किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाएगा सिर्फ ऐसे वाहन जो व्यावसायिक रूप में है या किसी फार्म के नाम पर रजिस्टर्ड है उन्ही वाहनों का शुल्क लिया जाएगा . इसके लिए टोल प्रबंधन द्वारा टोल नाके के लें नंबर 1 व लेन नंबर 8 को निशुल्क की श्रेणी में रखा गया है अन्य लेन पर वाहन के क्रॉस होने पर शासन के आदेश अनुसार शुल्क लिया जाएगा एवं किसी भी तरह की शंका की स्थिति में टोल प्लाज़ा प्रबंधक से संपर्क किया जा सकता है .
0 क्वारेंटाईन सेंटर में समुचित व्यवस्था बनाए रखें : वर्मा
0 प्रवासी श्रमिकों का मनरेगा जॉब कार्ड बनाने के दिए निर्देश
0 बारिश की आपदा से बचाव के लिए एक्शन प्लान तैयार रखें
राजनांदगांव / शौर्यपथ / कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा ने वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से सभी एसडीएम, सीएमओ, सीईओ जनपद और राजस्व अधिकारियों से क्वारेंटाईन सेंटर की व्यवस्था, प्रवासी श्रमिकों के रोजगार तथा विभिन्न योजनाओं के संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। कलेक्टर ने कहा कि क्वारेंटाईन सेंटर में श्रमिकों के लिए शुद्ध भोजन, पेयजल, बिजली और साफ-सफाई की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। क्वारेंटाईन सेंटर में स्वास्थ्य विभाग की टीम प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सभी श्रमिकों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण करें। सर्दी, खांसी, बुखार वाले श्रमिकों का सेंपल लेकर जांच कराएं। वहां ड्यूटी करने वाले कर्मचारी श्रमिकों को सोशल डिस्टेसिंग का पालन करने के लिए प्रेरित करें। मास्क लगाना और समय-समय पर साबुन से हाथ धोने की जानकारी भी दें। नोडल अधिकारी नियमित रूप से क्वारेंटाईन सेंटर का निरीक्षण करें।
कलेक्टर वर्मा ने कहा कि सीमा पर आने वाले श्रमिकों के लिए बस की सुविधा के साथ पेयजल और भोजन की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। श्रमिकों के आवास और शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों से आने वाले बहुत से श्रमिकों की क्वारेंटाईन अवधि पूरी हो गई है। इस स्थिति में मजदूरों को प्राथमिकता से रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कार्य करें। जिन मजदूरों का जॉब कार्ड नहीं बना है उनका जॉब कार्ड बनाकर मनरेगा में काम दिलाए। कलेक्टर वर्मा ने निर्देश देते हुए कहा कि अन्य राज्यों से आने वाले श्रमिकों और क्वारेंटाईन सेंटर में रूके श्रमिकों का डेटा तैयार कर विस्तृत जानकारी रखें। ग्राम पंचायतों में मनरेगा में पर्याप्त मात्रा में कार्य स्वीकृत हों। इसमें काम करने वाले श्रमिकों को समय पर राशि का भुगतान करें। इसमें किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं होनी चाहिए।
कलेक्टर वर्मा ने कहा कि नगरीय निकाय क्षेत्रों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। बाजार में सोशल डिस्टेसिंग का पालन, मास्क लगाना अनिवार्य रूप से लागू करें। फिल्ड में काम करने वाले कर्मचारी, बाजारों का नियमित भ्रमण कर व्यवस्था बनाएं। शहरी क्षेत्र में आने वाले प्रवासी श्रमिक होम आईसोलेशन का कड़ाई से पालन करें। कलेक्टर श्री वर्मा ने कहा कि कोरोना के साथ ही सामान्य बीमारियों के इलाज का भी ध्यान रखें। एएनसी चेकअप, टीकाकरण, 102 महतारी एक्सप्रेस और 108 संजीवनी एक्सप्रेस की गाडिय़ों का संचालन समय पर लगातार होना चाहिए। बैंकों में भीड़ कम करने के लिए बैंक सखी के माध्यम से राशि का अंतरण करने प्रेरित करें।
कलेक्टर वर्मा ने कहा कि मानसून के मद्देनजर नाली और बड़े नालों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें। ताकि बरसात का पानी जमा न हो सके। बरसात के समय आपदा से बचाव के लिए एक्शन प्लान बनाकर तैयार रखें। खरीफ मौसम के लिए बीज का उठाव, खाद भण्डारण की व्यवस्था पहले से ही तैयार कर लिया जाए। श्री वर्मा ने सभी एसडीएम को निर्देश दिए कि रेत खदानों का निरीक्षण करें। खनन होने वाले क्षेत्रों का मार्किंग भी करें। अवैध रेत खनन करने वाले पर सख्त कार्रवाई करें। उन्होंने राशन का वितरण, वन अधिकार पट्टा, नजूल भूमि का फ्रीहोल्ड, डायर्वसन, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जैसे योजनाओं को समय-सीमा में पूरा करने के निर्देश दिए। इस अवसर पर अपर कलेक्टर हरिकृष्ण शर्मा, सहायक कलेक्टर ललितादित्य नीलम, जिला पंचायत की सीईओ श्रीमती तनुजा सलाम, एसडीएम राजनांदगांव मुकेश रावटे सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
दुर्ग / शौर्यपथ / जिले के कलेक्टर डाक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने शनिवार सभी जिलास्तरीय अधिकारियों की ओरिएंटेशन मीटिंग ली। हर अधिकारी को आधे घंटे का स्पेल दिया गया था। पूर्व में सभी से विभागीय गतिविधियों एवं प्रस्तावित नवाचारों के संबंध में फोल्डर मंगवा लिए गए थे। आज इन पर चर्चा हुई। बैठक में कलेक्टर ने पूछा कि विभागीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किस तरह की योजना बनाई है। क्या इसमें किसी तरह की बाधा आ रही है। यदि शासन के स्तर पर किसी तरह का प्रस्ताव भेजना है तो उसे बताएं। जिन विभागों की महत्वाकांक्षी योजनाएं चल रही हैं। उनके क्रियान्वयन के संबंध में वस्तुस्थिति की कलेक्टर ने जानकारी ली।
उन्होंने सभी से ओरिएंटेशन बैठक में कहा कि विभागीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मासिक टारगेट रखें, इससे वार्षिक लक्ष्य प्राप्त करने में आसानी जाएगी। सभी ब्लाक लेवल के आफिसर्स की समीक्षा नियमित रूप से करें। जहां अच्छा कार्य हो रहा हो, उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीक को अन्य ब्लाक में भी फालो किया जाए। नियमित मानिटरिंग बहुत जरूरी है और साथ में यह भी कि निचले अमले द्वारा किसी तरह का फीडबैक आ रहा है तो उस पर तुरंत कार्रवाई की जाए।
स्थिति जानी और दिये सुझाव- बैठक में शिक्षा, कृषि, ग्रामीण विकास एवं निर्माण एजेंसियों सहित सभी से जिले में चल रही वर्तमान गतिविधि की जानकारी ली। उदाहरण के लिए शिक्षा विभाग से मीटिंग की शुरूआत हुई और कलेक्टर ने शासन द्वारा चलाए जाने वाले अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के संबंध में जानकारी ली। लाकडाउन के दौरान आनलाइन शिक्षा के बारे में भी जानकारी ली। कृषि में उन्होंने खाद-बीज की स्थिति के बारे में जानकारी ली। उन्होंने कहा कि लगातार किसानों से मिलकर उनसे फीडबैक लें। उन्होंने कहा कि जमीनी स्थिति से जितने ज्यादा वाकिफ होंगे, उतना ही बेहतर परिणाम हमें मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि ब्लाक लेवल के अधिकारियों को भी लगातार इस बारे में मोटिवेट करें।
इस तरह रखा गया था शेड्यूल- कलेक्टर ने साढ़े दस बजे से ओरिएंटेशन मीटिंग रखी। यह सात बजे तक निर्धारित रखी गई। बीच में एक घंटे का समय कलेक्टर ने शंकराचार्य हास्पिटल के दौरे के लिए रखा। उन्होंने सबसे पहले साढ़ेे दस बजे एजुकेशन डिपार्टमेंट को समय दिया। फिर 11 बजे ट्राइबल, फिर साढ़े ग्यारह बजे तक फूड, फिर 12 बजे कृषि एवं बीज निगम, साढ़ेबारह बजे से हार्टिकल्चर, एक बजे से वेटरनरी, फिशरीज और सेरीकल्चर, डेढ़ बजे से सोशल वेलफेयर, 2 बजे से एक्साइज, सवा दो बजे माइनिंग का ओरिएंटेशन मीटिंग रखा गया। इसके बाद चार बजे से जिला पंचायत, पांच बजे से पीडब्ल्यूडी, साढ़े पांच बजे से डब्ल्यूआरडी, छह बजे से पीएचई और साढ़े छह बजे से पीएमजीएसवाय एवं एमएमजीएसवाय का ओरिएंटेशन रखा गया।