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शौर्यपथ /भारत में उत्तर प्रदेश का एक शहर वाराणसी जो की काशी विश्वनाथ धाम के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। भगवान शिव को समर्पित यह शहर हिंदू तीर्थयात्रियों की आस्था का प्रतीक है।
लोगों की मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव स्वयं निवास करते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आइये जानते हैं वाराणसी के काशी विश्वनाथ धाम के बारे में 15 रोचक तथ्य जो सिर्फ आस्था ही नहीं हकीकत भी हैं
काशी विश्वनाथ मंदिर नामका अर्थ !
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान विश्वनाथ या विश्वेश्वर यानि शिव के नाम से रखा गया हैं जिसका अर्थ है ‘ब्रह्मांड का शासक’ इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है।
भगवान शिव को समर्पित मंदिर !
मंदिर हिंदुओं के लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव वास्तव में यहां कुछ समय के लिए रुके थे।
भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी !
उत्तरकाशी को प्राचीन काशी माना जाता है। जिसे ‘वाराणसी’ भी कहा जाता है। यह काशी भी शिव के त्रिशूल की नोक पर बसी हुई है। भगवान भोलेनाथ की 12 ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ विराजमान हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण !
अभिलेखों के अनुसार, जानकारों की माने तो काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने सन 1585 में बनवाया था, लेकिन 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई।
जानकारों की माने तो इस मंदिर का निर्माण से पहले इसका पुनर्स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने हाथों से किया था। इसके पश्चात इस मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने नष्ट कर दिया और उसी स्थान पर मस्जिद बनवा दिया था जो आज भी विद्यमान है।
ऐसा कहा जाता है कि जब मंदिर को नष्ट करने की औरंगजेब की योजना की खबर पहुंची, तो शिव की मूर्ति को विनाश से बचाने के लिए एक कुएं में छिपा दिया गया था। कुआँ, जिसे “ज्ञान का कुआँ” कहा जाता है, अभी भी वहाँ मस्जिद और मंदिर के बीच खड़ा है।
प्राचीन काल का शिवलिंग आज भी ज्ञानवापी में ही स्थित है।
काशी में विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला न्यायालय में है – अधिक जानने के लिए कृपया यहां क्लिक करें ; काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 (अनुमानित) में करवाया गया था, बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने से मंदिर के कलश कों गडवाया। शिखर पर स्वर्ण कलश होने के कारण इसे कई जानकार स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं।
मुक्ति का एकमात्र धाम !
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो हिस्सों में बंटा हुआ है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां दुर्गा विराजमान हैं, तो दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि काशी को मुक्ति का एकमात्र धाम कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ लाइव दर्शन
इस दिव्य मंदिर में हर साल 70 लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं।
मंदिर में जब मूर्तियों का श्रृंगार होता है तब सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर एक सोने का छत्र लगा हुआ है। ऐसा मान्यता है कि इस छत्र के दर्शन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और घर में सुख समृद्धि आती है।
दिन भर गुरु रूप में भोलेनाथ काशी में भ्रमण करते हैं। रात नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार और आरती की जाती है तो वह राज वेश में होते हैं। यही कारण है कि शिव को राजराजेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
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